18वीं शताब्दी में स्थापित हुए नवीन स्वायत्त राज्य

18वीं शताब्दी में स्थापित हुए नवीन स्वायत्त राज्य

राज्य / संस्थापक महत्त्वपूर्ण तथ्य
हैदराबाद (1724 निज़ाम-

उल-मुल्क आसफजाह (चिनकिलिच खाँ)

Ø  वेलेजली की सहायक संधि को मानने वाला पहला राज्य
कर्नाटक (सआदतउल्ला खाँ) Ø  कर्नाटक की राजधानी अर्काट थी।
अवध (सआदत खाँ बुरहान-उल- मुल्क) Ø  1856 में ब्रिटिश रेजीडेंट जेम्स आऊट्रम की रिपोर्ट के आधार पर अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर उसे अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला लिया गया।

Ø  अवध का अंतिम नवाब वाजिद अली शाह था।

रुहेलखंड (वीर दाउद और उसका पुत्र अली मुहम्मद खाँ) Ø  पहले आंवला (बरेली) राजधानी थी, बाद में रामपुर राजधानी बनी।
जाट Ø  सूरजमल जाट राज्य का एक योग्य एवं विद्वान शासक था जिसके शासनकाल में जाट राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था।

Ø  सूरजमल को ‘जाटों का अफलातून’ कहा जाता था।

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केरल

  • 18 वीं सदी की शुरुआत में केरल में चार प्रमुख राज्य-कालीकट, चिरक्कल, कोचीन एवं त्रावणकोर थे।
  • मार्तंड वर्मा त्रावणकोर राज्य का एक प्रमुख शासक था जिसने डचों को हराकर केरल में उनकी राजनीतिक सत्ता को समाप्त किया।
  • रामवर्मा भी त्रावणकोर के एक प्रसिद्ध राजा थे।

राजपूत राज्य

  • 18वीं सदी का सबसे महान राजपूत राजा आमेर का सवाई जयसिंह (1681-1743) हुआ।
  • इसने जयपुर शहर की स्थापना कर इसे विज्ञान एवं कला का प्रसिद्ध केंद्र बनाया।
  • जयसिंह एक महान खगोलशास्त्री था, उसने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, बनारस तथा मथुरा में वेधशालाओं का निर्माण करवाया।
  • जयसिंह ने ‘जिज मुहम्मदशाही’ नाम से सारणियों का एक सेट तैयार करवाया।
  • इससे खगोलशास्त्र संबंधी पर्यवेक्षण में मदद मिलती थी।

बंगाल

  • मुर्शीद कुली खाँ ने बंगाल में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
  • उसने किसानों को तकावी ऋण (बीज, मवेशी आदि खरीदने हेतु दिया गया ऋण) दिये और बंगाल में इजारेदारी (ठेकेदारी) प्रथा को बढ़ावा दिया।
  • मुर्शीद कुली खाँ के शासनकाल में क्रमश: सीताराम राय, उदय नारायण और गुलाम मुहम्मद, शुजात खाँ ने बगावत किया। अंतिम विद्रोह नजात खाँ का था।
  • 1751 में अलीवर्दी खाँ ने मराठों को उड़ीसा प्रांत तथा बिहार एवं बंगाल का वार्षिक चौथ देने की बात स्वीकार की।
  • अलीवर्दी खाँ ने यूरोपीयों को मधुमक्खियों की उपमा दी थी।

बंगाल के नवाब (1765 तक)

मुर्शीद कुली खाँ (1713-27)

शुजाउद्दीन (1727-39)

सरफराज़ (1739-40)

अलीवर्दी खाँ (1740-56)

सिराजुद्दौला (1756-57)

मीर जाफ़र (1757-60)

मीर कासिम (1760–63)

मीर जाफ़र (1763–65)

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मैसूर

  • 18वीं सदी में मैसूर पर वाडयार वंश का शासन था तथा इस वंश के अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज के शासनकाल में नंदराज तथा देवराज नामक दो मंत्रियों के हाथों में सत्ता की वास्तविक शक्ति केंद्रित थी।
  • इस समय मैसूर पर मराठों तथा निज़ाम के आक्रमण का खतरा बना रहता था।
  • इसी दौरान हैदर अली को अपना युद्ध कौशल प्रदर्शित करने का मौका मिला और शीघ्र ही वह मैसूर की सेना के उच्च पद तक पहुँच गया।
  • हैदर अली 1761 में मैसूर राज्य का वास्तविक शासक बन बैठा।
  • इसने 1755 में डिंडीगुल के फौजदार के रूप में एक आधुनिक शस्त्रागार की स्थापना की तथा इसमें फ्राँसीसी विशेषज्ञों की मदद ली।
युद्ध महत्त्वपूर्ण तथ्य
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1769)
  •   इस युद्ध में हैदर अली विजयी हुआ।
  •   अंग्रेज़ों को हैदर अली की शर्तों पर ‘मद्रास की संधि’ पर हस्ताक्षर करने पड़े।
  •  इस समय बंगाल का गवर्नर लॉर्ड वेरेलस्ट था।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-1784)
  •  सर आयरकूट ने पोर्टोनोवो की लड़ाई में नवंबर (1781) में हैदर अली को हराया। हैदर अली की मृत्यु (1782) के पश्चात् उसका पुत्र टीपू मैसूर का शासक बना जिसने युद्ध जारी रखा।
  •  ‘मंगलौर की संधि (1784)’ से युद्ध समाप्त हुआ।
  •   इस समय बंगाल का गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स था।
तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-92)
  •   श्रीरंगपट्टनम की संधि (1792) से युद्ध समाप्त हुआ ।
  •   टीपू को अपना आधा राज्य, भारी युद्ध हर्जाना तथा बंधक रूप में अपने दो बेटों को अंग्रेज़ों को सौंपना पड़ा।
  •   इस समय बंगाल का गवर्नर जनरल ‘लॉर्ड कार्नवालिस’ था।
चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध (1799)
  •  बंगाल का गवर्नर जनरल वेलेजली
  •   टीपू सुल्तान की मृत्यु (श्रीरंगपट्टनम के किले में)

 

  • टीपू सुल्तान ने फ्राँसीसी क्रांति से प्रभावित होकर श्रीरंगपट्टनम (राजधानी) में स्वतंत्रता का वृक्ष लगाया और जैकोबियन क्लब का सदस्य बना।
  • टीपू सुल्तान ने 1796 के बाद आधुनिक नौ-सेना खड़ी करने की कोशिश की तथा इसके लिये मंगलौर, वाजिदाबाद और मोलीदाबाद में पोत निर्माण घाट (Dockyard) का निर्माण कराया।
  • टीपू ने शृंगेरी मंदिर के मरम्मत के लिये दान दिया था।
  • उसने विदेशों में आधुनिक पद्धति के दूतावास स्थापित किये थे।
  • टीपू द्वारा एक नए कैलेंडर को लागू किया गया तथा सिक्का ढलवाने की नई प्रणाली के साथ-साथ माप-तौल के नए पैमाने को अपनाया गया।

सिख

  • गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के पश्चात् गुरु की परंपरा समाप्त हो गई। इसके पश्चात् बंदा बहादुर ने सिखों का नेतृत्व सँभाला।
  • बंदा बहादुर के बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। उसने लौहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। 1716 में फर्रुखसियर ने इसकी हत्या करवा दी।
  • बंदा बहादुर की मृत्यु के पश्चात् सिख कई छोटे-छोटे समूहों में बँट गए थे।
  • 1748 में कर्पूर सिंह की पहल पर सभी सिख समूहों का ‘दल खालसा’ में विलय हुआ।
  • दल खालसा को जस्सा सिंह अहलुवालिया के नेतृत्व में रखा गया जिसे बाद में कई मिसलों (टुकड़ों) में विभाजित किया गया।
  • सिख 12 मिसलों में संगठित थे तथा राज्य के विभिन्न हिस्सों में कार्य कर रहे थे।

 

रणजीत सिंह और पंजाब

  • रणजीत सिंह का जन्म 2 नवंबर, 1780 को सुकरचकिया मिसल के मुखिया महासिंह के घर हुआ।
  • महासिंह के बाद सुकरचकिया मिसल के प्रधान रणजीत सिंह पंजाब के प्रमुख शासक बने।
  • इन्होंने भंगी मिसल के अधिकार से लाहौर एवं अमृतसर को छीनकर लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।
  • अमृतसर को धार्मिक राजधानी माना जाता था।
  • 1809 में रणजीत सिंह एवं अंग्रेज़ों (चार्ल्स मेटकाफ) के बीच अमृतसर की संधि हुई।
  • इसके अनुसार सतलुज नदी दोनों राज्यों की सीमा मान ली गई।
  • रणजीत सिंह ने सुप्रसिद्ध कोहिनूर हीरा अहमदशाह अब्दाली के पौत्र शाहशुजा से प्राप्त किया।
  • रणजीत सिंह के बाद उसका अयोग्य पुत्र खड्ग सिंह गद्दी पर बैठा।

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प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध (1845-46)

  • प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग तथा अंग्रेज़ी सेना का प्रमुख लॉर्ड गफ था।
  • सिख एवं अंग्रेज़ों के बीच पाँच लड़ाइयाँ हुईं जिनमें सबराओं की लड़ाई निर्णायक सिद्ध हुई।
  • लाहौर की संधि (मार्च 1846) तथा भैरोवाल की संधि (दिसंबर 1846) से दलीप सिंह को महाराज स्वीकार किया गया
  • तथा पंजाब राज्य एक ब्रिटिश रेजीडेंट तथा ब्रिटिश सेना को तैनात कर दिया गया।
  • साथ ही सतलुज के दक्षिण के सारे क्षेत्र अंग्रेज़ों को मिल गए।

द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध (1848-1849)

  • लॉर्ड डलहौजी के शासनकाल में चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में फरवरी 1849 में अंतिम रूप से सिख सेना को परास्त किया।
  • मार्च 1849 में पंजाब का अंग्रेज़ी राज्य में विलय कर लिया गया।
  • दलीप सिंह सिख साम्राज्य के अंतिम शासक थे।
  • मूलराज का विद्रोह द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध से संबंधित था।

मराठा

  • मुगल साम्राज्य के पतन के क्रम में नवस्थापित होने वाले राज्यों में मराठा राज्य सर्वाधिक शक्तिशाली था।
  • 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् बहादुर शाह ने शिवाजी के पोते शाहू को मुगल कैद से आज़ाद कर दिया।
  • शाहू के मुक्त होने के पश्चात् उसका राजाराम की विधवा ताराबाई (अल्पवयस्क पुत्र शिवाजी द्वितीय की सत्ता पर दावेदारी को लेकर) के साथ सत्ता संघर्ष शुरू हो गया।
  • इस संघर्ष के क्रम में अंततः 1707 में खेड़ा के युद्ध में शाहू विजयी हुआ।
  • इसके पश्चात् जनवरी 1708 में शाहू ने सतारा में अपना राज्याभिषेक करवाया।

बालाजी विश्वनाथ (1713-20)

  • बालाजी विश्वनाथ ने संघर्ष के दौर में शाहू का सर्वाधिक साथ दिया था। शाहू ने 1713 में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा बनाया।
  • पेशवा के पद पर बालाजी विश्वनाथ की नियुक्ति के साथ ही यह पद शक्तिशाली हो गया।
  • बालाजी और उसके उत्तराधिकारी राज्य के वास्तविक शासक बन गए।
  • इसके बाद मराठा शासक (छत्रपति) शाहू नाममात्र का ही शासक होकर रह गया।
  • 1719 में बालाजी विश्वनाथ ने फर्रुखसियर को गद्दी से हटाने में सैय्यद बंधुओं की मदद की थी।

बाजीराव प्रथम (1720-40)

  • 1720 में बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु पश्चात् बाजीराव प्रथम पेशवा बना।
  • बाजीराव प्रथम तथा हैदराबाद के शासक निज़ाम-उल-मुल्क के बीच 7 मार्च, 1728 को पालखेड़ा का युद्ध हुआ जिसमें निज़ाम की हार हुई।
  • निज़ाम के साथ ‘मुंगी शिवागाँव की संधि’ हुई।
  • 29 मार्च, 1737 को बाजीराव प्रथम ने दिल्ली पर धावा बोल दिया।
  • वह दिल्ली पर आक्रमण करने वाला पहला पेशवा था। इस समय दिल्ली की गद्दी पर मुहम्मद शाह बैठा हुआ था।

बालाजी बाजीराव (1740-61)

  • 1740 में बाजीराव प्रथम की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बालाजी बाजीराव पेशवा बना।
  • बालाजी बाजीराव को ‘नानासाहब’ के नाम से भी जाना जाता था।
  • बालाजी बाजीराव ने मराठा शासक (छत्रपति) राजाराम द्वितीय से 1750 में संगोला की संधि की जिससे राज्य के संपूर्ण अधिकार पेशवा के हाथों में आ गए।
  • बालाजी बाजीराव के शासनकाल में ही 14 जनवरी, 1761 को पानीपत का तृतीय युद्ध मराठों और अफगानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली के मध्य हुआ। इस युद्ध में मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ कर रहे थे। मराठा तोपखाना इब्राहिम खाँ गार्दी के हाथों में था।
  • इस युद्ध में मराठों की हार हुई। इस हार को सह नहीं पाने के कारण 1761 में ही बालाजी बाजीराव की मृत्यु हो गई।
  • माधवराव 1761 में पेशवा बना। इसने मराठों की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः बहाल करने का प्रयास किया।
  • माधवराव के समय में ही मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय 1772 में अंग्रेज़ों के संरक्षण को
  • छोड़कर इलाहाबाद से दिल्ली आ गया और मराठों की संरक्षिता अस्वीकार कर ली।
  • माधवराव की मृत्यु (1772) के बाद उसका छोटा भाई नारायण राव पेशवा बना, लेकिन 1773 में उसकी हत्या कर दी गई।
  • नारायण राव की मृत्यु के बाद जन्मा उसका पुत्र’ माधव नारायणराव पेशवा बना।
  • उसकी अल्पायु के कारण मराठा सरदारों ने नाना फड़नवीस के नेतृत्व में मराठा राज्य की देखभाल के लिये ‘बारा भाई कौंसिल’ की नियुक्ति की।
  • महादजी सिंधिया इस कौंसिल के एक अन्य महत्त्वपूर्ण सदस्य थे।
  • नाना फड़नवीस का मूल नाम बालाजी जनार्दन भानू था।
  • मराठों का इतिहास लिखने वाले ‘ग्रांट डफ’ ने नाना फड़नवीस को ‘मराठों का मैकियावली’ कहा है।
  • प्रमुख मराठा सरदारों की चुनौती का सामना करने में स्वयं को असमर्थ पाकर रघुनाथराव पूना से बंबई भाग गया और अंग्रेज़ों से सहायता मांगी।
  • उसके इस दुर्भाग्यपूर्ण प्रयास ने आंग्ल-मराठा युद्ध की भूमिका तैयार कर दी।

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782)

  • प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध की शुरुआत रघुनाथराव तथा अंग्रेज़ों के मध्य सूरत की संधि (1775) से हुई।
  • प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान पुरंदर की संधि (1776) तथा बड़गाँव की संधि (1779) भी हुई।
  • पूना दरबार और अंग्रेज़ों के मध्य 1782 की साल्बाई की संधि से इस युद्ध की समाप्ति हुई।
  • इसमें महादजी सिंधिया ने मध्यस्थता की।
  • अंग्रेज़ों ने रघुनाथराव का साथ छोड़ दिया और माधव नारायणराव को पेशवा स्वीकार कर लिया।

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द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1806)

  • पेशवा माधव नारायणराव ने अक्तूबर 1795 में आत्महत्या कर ली।
  • इसके पश्चात् रघुनाथराव का पुत्र बाजीराव द्वितीय पेशवा बना।
  • पेशवा का होल्कर के साथ संघर्ष प्रारंभ हो गया।
  • इस संघर्ष से घबराकर पेशवा ने 1802 में अंग्रेज़ों से बसीन की संधि कर अंग्रेज़ों का संरक्षण स्वीकार कर लिया।
  • बसीन की संधि द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के प्रमुख कारणों में से एक था।
  • इसमें अंग्रेज़ों ने भोंसले, सिंधिया व होल्कर को पराजित किया।
  • इस दौरान की गई कुछ प्रमुख संधियाँ इस प्रकार हैं
  • देवगाँव की संधि (1803) – भोंसले/अंग्रेज़
  • सुर्जी अर्जनगाँव की संधि (1803) – सिंधिया/अंग्रेज़
  • राजपुर घाट की संधि (1805) – होल्कर/अंग्रेज़

तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1818)

  • आंग्ल-मराठा युद्ध का तृतीय व अंतिम चरण लॉर्ड हेस्टिंग्स के समय शुरू हुआ।
  • उसने आक्रामक रुख अपनाया तथा पिंडारियों के विरुद्ध अभियान के बहाने मराठों को चुनौती दी।
  • इसी क्रम में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध की शुरुआत हो गई।
  • पेशवा की पहले किर्की में और बाद में कोरेगाँव तथा अष्टी नामक स्थान पर पराजय हुई।
  • भोंसले की सीताबर्डी में तथा होल्कर की महीदपुर में पराजय हुई।
  • इस युद्ध से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण संधियाँ इस प्रकार थी
  • ग्वालियर की संधि (1817)- सिंधिया/अंग्रेज़
  • पूना की संधि (1817)- पेशवा/अंग्रेज़
  • मंदसौर की संधि (1818)-होल्कर/अंग्रेज़
  • तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध की समाप्ति के पश्चात् अंग्रेज़ों ने पेशवा पद को समाप्त कर दिया
  • तथा बाजीराव द्वितीय को पूना से हटाकर कानपुर के निकट बिठूर में पेंशन पर जीने के लिये भेज दिया।

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