चीन– ताइवान विवाद : भारत किसका देगा साथ ?

चीन– ताइवान विवाद आखिर चर्चा में क्यों है?

  • हाल ही में अमेरिका की नैंसी पेलोसी ने ताइवान की यात्रा की है । उनकी इस यात्रा के बाद चीन ने ताइवान के क्षेत्र में अपनी सेना को जुटाना शुरू कर दिया है। चीन की इस कार्यवाही से दुनिया पर फिर नए युद्ध का खतरा मंडरा रहा है।

नैंसी पेलोसी कौन है ?

  • नैंसी पेलोसी अमेरिकी ‘हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव’ की स्पीकर हैं ।
  • हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव अमेरिकी कांग्रेस का निचला सदन है ।
  • नैंसी पेलोसी की तुलना हम भारतीय लोकसभा के स्पीकर ओम बिड़ला से कर सकते हैं ।
  • अमेरिका में नैंसी पेलोसी का पद अमेरिकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद प्रशासन में तीसरा स्थान है ।
  • नैंसी पेलोसी अपने लंबे राजनीतिक कैरियर में मानवाधिकारों को लेकर चीन का विरोध करती रही हैं ।

क्यों महत्वपूर्ण है यह यात्रा ?

  • उनकी ताइवान की यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 25 वर्षों में यूएस ऑफिशियल की सबसे बड़ी यात्रा है। इसके पहले 1997 में नेवट गिंग्रिच ने ताइवान की यात्रा की थी।

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इस यात्रा से चीन को क्या परेशानी है?

  • वन चाइना नीति के तहत ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है ।
  • चीन ताइवान को अपने एक प्रांत के रूप में देखता है ।
  • इसके विपरीत ताइवान अपनी स्वतंत्रता का दावा करता है ।
  • ताइवान में चीन से अलग एक लोकतांत्रिक सरकार है ।
  • ऐसे में ताइवान में किसी वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी की उपस्थिति उसकी स्वतंत्रता की पुष्टि करता है ।
  • नैंसी पेलोसी की इस यात्रा से पहले चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था इस यात्रा से चीन और मजबूत कदम उठाएगा उसका कहना था कि नैंसी पेलोसी की यात्रा चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को कमजोर करती है और इससे चीन अमेरिका के संबंध प्रभावित होंगे ।
  • इस यात्रा से तो बड़ी शक्तियों के बीच संभावित सैन्य संघर्ष का मंच तैयार हो गया है।

इस यात्रा के क्या मायने हैं?

  • नैंसी पेलोसी की यात्रा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सत्ता के लिए प्रत्यक्ष चुनौती है ।
  • यात्रा की वजह से चीन में राष्ट्रवादी भावना चरम पर है ।
  • लोग कड़ी कार्यवाही की मांग कर रहे हैं 
  • यदि चीन कोई कार्यवाही नहीं करता है तो यह चीन की बड़ी हार होगी। 
  • चीन की सेना द्वारा ताइवान के आस–पास सैन्य अभ्यास की शुरुआत कर दी गई है। 
  • चीन ने अपनी सेना को जुटाना शुरू कर दिया है। चीन की सेना के द्वारा ताइवान को चारों ओर से घेरने की कोशिश की गई है।
  • चीन इस कार्यवाही को सैन्य अभ्यास का नाम न देकर ‘टारगेटेड मिलिट्री ऑपरेशन’ का नाम दिया है ।
  • इस अभियान के दौरान एक छोटी सी घटना भी एक बड़े युद्ध का रूप ले सकती है ।
  • इसलिए यह चिंता का विषय भी बना है चीन ने ताइवान के बंदरगाहों को भी ब्लॉक कर दिया है।
  • दोनों देशों के बीच अधिकांश व्यापार पर प्रतिबंध भी लग गया है। 
  • इससे ताइवान की अर्थव्यवस्था पर खासा प्रभाव पड़ेगा।
  • चीन की कोई भी कार्यवाही दुनिया भर की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगी।
  • रूस यूक्रेन युद्ध का प्रभाव दुनिया भर में देखने को मिल रहा है ।
  • ताइवान चिप का सबसे बड़ा निर्यातक है । चिप इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है ।
  • यदि चीन के द्वारा कोई भी कार्यवाही की जाती है तो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के दामों में बढ़ोतरी हो सकती है।

चीन– ताइवान विवाद का इतिहास

  • ताइवान दक्षिण– पूर्वी चीन के तट से लगभग 160 किलोमीटर दूर एक दीप है ।
  • यह उत्तर– पश्चिम प्रशांत महासागर में स्थित है।
  • 1897 में पहला चीन– जापान युद्ध हुआ था इसमें जापान की विजय हुई थी जिसमें ताइवान जापान के हाथों में चला गया और ताइवान पर जापान का लंबे समय तक नियंत्रण रहा ।
  • 1 सितंबर 1939 द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई।
  • 1945 में जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया ।
  • इसके बाद ताइवान पर एक बार फिर चीन का नियंत्रण हो गया ।
  • 1927 में ही चीन में एक ग्रह युद्ध की शुरुआत हो गई ।
  • सन 1911 से पहले लगभग 4000 वर्षों तक चीन में किंग राजवंश का शासन था। विद्रोह के बाद किंग राजवंश की सत्ता समाप्त हो गई ।
  • इसके बाद रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) का गठन किया गया और एक गठबंधन सरकार बनाई गई ।
  • इसमें दो पार्टियां थी– राष्ट्रवादी कुओमियांग पार्टी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी।
  • इस गृह युद्ध में 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी की विजय हुई ।
  • 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी ने ‘पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ का गठन किया ।
  • इसके बाद राष्ट्रवादी कुओमियांग पार्टी के नेता ताइवान चले गए और ताइवान में ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ का गठन किया।
  • वर्तमान में ताइवान को रिपब्लिक ऑफ चाइना के नाम से जाना जाता है और चीन की मुख्य भूमि को पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के नाम से जाना जाता है ।
  • दोनों देशों के अलग-अलग पक्ष है चीन ताईवान को अपना हिस्सा मानता है जबकि ताइवान एक स्वतंत्र देश होने का दावा करता है।

चीन –ताइवान विवादों में भारत की क्या स्थिति है?

  • भारत ‘वन चाइना ’नीति का पालन करता है ।
  • ताइवान के साथ भारत के औपचारिक संबंध नहीं है ।
  • 1995 में भारत और ताइवान के बीच राजधानी में प्रतिनिधि कार्यालयों की स्थापना की गई जो कि दूतावास के रूप में काम करते हैं।
  • कुछ वर्षों में ताइवान को लेकर भारत की नीति में परिवर्तन हुए हैं ।
  • 2010 के बाद से भारत के आधिकारिक दस्तावेजों में वन चाइना नीति का जिक्र नहीं किया गया है ।
  • भारत– ताइवान के संबंधों में सुधार देखने को मिला है 2014 में शपथ ग्रहण के दौरान ताइवान के प्रतिनिधि भी आमंत्रित थे।
  • 2019 में दोनों देशों के बीच लगभग 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार भी हुआ ।
  • भारत –चीन संबंध खराब होने से भारत –ताइवान संबंधों में सुधार हो रहा है ।

चीन– ताइवान विवाद में दुनिया की क्या स्थिति है?

  • दुनिया भर में केवल 13 देश ने ही ताइवान को औपचारिक तौर पर मान्यता दी है।
  • अमेरिका ने भी ताइवान को औपचारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है हालांकि अनौपचारिक तौर पर अमेरिका ने ताइवान के साथ संबंध स्थापित किए हैं।
  •  इसके अलावा ताईवान संयुक्त राष्ट्र का भी सदस्य नहीं है इसके साथ ताइवान w.h.o. का भी सदस्य नहीं है ।
  • ताइवान केवल कुछ रीजनल ऑर्गेनाइजेशन का ही सदस्य है ।

क्या चीन– ताइवान के बीच युद्ध होगा?

चीन– ताइवान विवाद

  • नैंसी पेलोसी की इस यात्रा और विरोध में चीन के द्वारा उठाए जा रहे कदम के बाद युद्ध की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है ।
  • यात्रा के बाद दुनिया दो हिस्सों में बांट रही है।
  • रूस और पाकिस्तान द्वारा चीन को समर्थन दिया जा रहा है।
  • पश्चिमी देश ताइवान को समर्थन दे रहे हैं।
  • हालांकि पूर्ण युद्ध की संभावना काफी कम है क्योंकि चीन जानता है कि युद्ध की आर्थिक लागत काफी अधिक है।
  • वर्तमान में रूस यूक्रेन का युद्ध चल रहा है जिससे रूस को काफी अधिक आर्थिक – सैन्य लागत का सामना करना पड़ रहा है।
  • अमेरिकी विशेषज्ञों के बीच चिंता का विषय बना है क्योंकि पिछले कुछ सालों में चीन की सैन्य क्षमता काफी तेजी से बढ़ी है ।
  • इसलिए युद्ध की संभावना अधिक है ।
  • यदि चीन हमला करता है तो ताइवान को बाहरी समर्थन की आवश्यकता पड़ेगी और यह समर्थन अमेरिका जैसी महाशक्ति से आएगा और अमेरिका के आने से स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।

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