देशी रियासतों में जनता के द्वारा किया गया संघर्ष

  • 1920 के असहयोग आंदोलन ने देशी रियासतों की जनता पर काफी प्रभाव छोड़ा
  • तथा रियासतों की जनता लोकतांत्रिक अधिकारों एवं लोकप्रिय सरकारों की मांगों को लेकर आंदोलन करने लगी।
  • कांग्रेस ने 1920 के नागपुर अधिवेशन में सर्वप्रथम देशी रियासतों के संबंध में अपनी नीति घोषित की।
  • इस अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित कर रियासतों के राजाओं से उत्तरदायी सरकार गठन करने की मांग की
  • तथा रियासतों की जनता को कांग्रेस का सदस्य बनने की अनुमति दी।
  • विभिन्न रियासतों में उत्पन्न राजनीतिक गतिविधियों में सामंजस्य बिठाने हेतु दिसंबर 1927 में ऑल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की स्थापना की गई।
  •  मार्च 1939 में त्रिपुरी अधिवेशन में कांग्रेस ने रियासतों की जनता को कांग्रेस के नाम पर आंदोलन की अनुमति दे दी।
  • 1939 में स्टेट्स पीपुल्स कॉफ्रेंस ने लुधियाना अधिवेशन के लिये जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष चुना,
  • तो ब्रिटिश भारत एवं देशी रियासतों में छिड़े आंदोलन अब खुले रूप से एक-दूसरे के साथ जुड़ गए।

अगस्त प्रस्ताव (1940)

  • वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने कांग्रेस की मांग के प्रत्युत्तर में अगस्त प्रस्ताव की घोषणा की।
  • इसके तहत भारत को डोमिनियन स्टेटस, वायसराय की कार्यकारिणी में भारतीय सदस्यों की संख्या में वृद्धि,
  • द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होते ही संविधान निर्मात्री परिषद् का गठन, युद्ध सलाहकार परिषद गठित करने आदि की बात की गई थी।
  • कांग्रेस ने डोमिनियन स्टेटस की बात ठुकरा दी।

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व्यक्तिगत सत्याग्रह (1940)

  • अगस्त प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए अक्तूबर 1940 में गांधी जी ने पवनार (महाराष्ट्र) में कुछ चुने हुए व्यक्तियों को साथ लेकर सीमित पैमाने पर सत्याग्रह चलाने का निर्णय लिया। इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश भारत सरकार की नीति के प्रति नैतिक विरोध प्रदर्शित करना था।
  • इस सत्याग्रह के प्रथम सत्याग्रही विनोबा भावे तथा द्वितीय सत्याग्रही जवाहर लाल नेहरू थे।

पाकिस्तान की मांग

  • 1930 के मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में मुहम्मद इकबाल ने सर्वप्रथम एक पृथक् राष्ट्र का विचार दिया था।
  • जबकि पाकिस्तान शब्द का प्रयोग सबसे पहले कैंब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने किया था।
  • मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन ( मार्च 1940) की अध्यक्षता मुहम्मद अली जिन्ना ने की थी।
  • इस अधिवेशन में, जिन्ना ने द्विराष्ट्र सिद्धांत को प्रस्तुत किया, साथ ही पहली बार पाकिस्तान राज्य की मांग से संबंधित प्रस्ताव भी पारित किया गया।

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