- 1 अगस्त, 1920 से असहयोग आंदोलन प्रारंभ हो गया। इसी दिन तिलक का निधन हो गया।
- कांग्रेस द्वारा सितंबर 1920 में कलकत्ता में विशेष अधिवेशन बुलाया गया
- जिसमें विदेशी शासन के खिलाफ सीधी कार्रवाई करने,
- विधानपरिषदों का बहिष्कार करने एवं असहयोग व सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया गया।
- इस अधिवेशन की अध्यक्षता लाला लाजपत राय ने की थी।
- शुरुआत में सी.आर. दास इस प्रस्ताव के विरोधियों में थे।
- उनका विरोध विधानपरिषदों के बहिष्कार को लेकर था।
- नागपुर अधिवेशन (दिसंबर, 1920) में सी.आर. दास ने ही असहयोग आंदोलन से संबद्ध प्रस्ताव पेश किया
- तथा जनआंदोलन के लिये संविधान इतर तरीके अपनाने की भी घोषणा कर दी।
- कांग्रेस की नीतियों में आए बदलावों की वज़ह से मुहम्मद अली जिन्ना, जी.एस. खापर्डे, विपिन चंद्र पाल एवं एनी बेसेंट ने कांग्रेस को छोड़ दिया।
- देश के जाने-माने वकीलों- सी.आर. दास, मोतीलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, सैफुद्दीन किचलू, राजगोपालाचारी, सरदार पटेल, टी. प्रकाशम एवं आसफ अली ने वकालत छोड़ दी।
- इस दौरान सुभाषचंद्र बोस नेशनल कॉलेज कलकत्ता के प्रधानाचार्य बने।
- मार्च 1921 में विजयवाड़ा कांग्रेस सम्मेलन में तिलक स्वराज फंड के लिये कोष इकट्ठा करने तथा खादी और चरखे का प्रचार करने का लक्ष्य रखा गया।
- संपूर्ण आंदोलन के दौरान बहिष्कार कार्यक्रमों में विदेशी कपड़ों का बहिष्कार सर्वाधिक सफल रहा।
- इस आंदोलन के दौरान चरखे एवं खादी के प्रचार ने खूब ज़ोर पकड़ा।
- खादी राष्ट्रीय आंदोलन का प्रतीक बन गई।
- असहयोग आंदोलन के मूल कार्यक्रम में ताड़ी की दुकानों पर धरने को शामिल नहीं किया गया था किंतु यह कार्रवाई काफी लोकप्रिय हुई।
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- इस आंदोलन के दौरान सबसे पहले गिरफ्तार होने वाले नेता सी. आर. दास तथा उनकी पत्नी बसंती देवी थीं।
- असहयोग आंदोलन के दौरान ही गांधी जी ने एक वर्ष में स्वराज प्राप्त करने का नारा दिया था।
- 5 फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा (गोरखपुर) में भीड़ ने पुलिस थाने पर हमला कर आग लगा दी जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए।
- (कुछ अन्य स्रोतों में इस घटना की तिथि 4 फरवरी, 1922 भी देखने को मिलती है।)
- इसलिये गांधी जी ने 12 फरवरी, 1922 को गुजरात के बारदोली में बैठक की तथा एक प्रस्ताव के द्वारा आंदोलन को वापस ले लिया।
- गांधी जी के द्वारा आंदोलन को अचानक वापस लेने के निर्णय की जवाहर लाल नेहरू,
- मोतीलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, सी. राजगोपालाचारी, सी.आर. दास आदि ने आलोचना की।