उत्तरवर्ती मुगल साम्राज्य

 उत्तरवर्ती मुगल साम्राज्य

  • लगभग 200 वर्षों के शासन के पश्चात् 18वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मुगल शासन का विघटन शुरू हो गया।
  • औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् उसके तीनों पुत्रों- मुअज्जम, मुहम्मद आजम तथा कामबख्श में उत्तराधिकार के लिये युद्ध हुआ जिसमें 65 वर्षीय बहादुरशाह (मुअज्जम) विजयी रहा।

बहादुरशाह प्रथम (मुअज्जम) (1707-1712)

  • इसने मराठों तथा राजपूतों के प्रति मैत्रीपूर्ण नीति अपनाई।
  • 1707 में इसने शम्भाजी के पुत्र शाहू को मुगल कैद से मुक्त कर दिया।
  • बहादुरशाह ने सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह के साथ मेल-मिलाप के संबंध स्थापित किये एवं उन्हें संतुष्ट करने के लिये गुरु के सम्मान में खिलअत (राजा द्वारा सम्मानपूर्वक भेंट की गई पोशाक) एवं उच्च मनसब (ओहदा) प्रदान किये।
  • इसे ‘शाह-ए-बेखबर’ के नाम से जाना जाता है।

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जहाँदार शाह (1712-1713)

  • 1712 में बहादुरशाह प्रथम की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र जहाँदार शाह जुल्फिकार खां के सहयोग से शासक बना।
  • जहाँदार शाह ने आमेर के राजा सवाई जयसिंह को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया
  • तथा ‘मिर्ज़ा’ की उपाधि दी, साथ ही मारवाड़ के राजा अजीत सिंह को गुजरात की सूबेदारी तथा महाराजा की उपाधि प्रदान की।
  • जहाँदार शाह को लोग ‘लंपट और मूर्ख’ कहते थे।
  • 1713 में जहाँदार शाह का भतीजा फर्रुखसियर, सैय्यद बंधुओं (अब्दुल्ला खाँ तथा हुसैन अली) के सहयोग से उसे परास्त कर सिंहासन पर बैठा।

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फर्रुखसियर (1713-1719)

  • इसके काल में जजिया तथा तीर्थयात्रा-कर समाप्त कर दिया गया।
  • सैय्यद बंधुओं के प्रभाव से भयभीत होकर फर्रुखसियर इनके खिलाफ षड्यंत्र करने लगा,
  • जिसका पता लग जाने पर सैय्यद बंधुओं ने फर्रुखसियर को उसके पद से हटाकर उसकी हत्या कर दी।
  • फर्रुखशियर की मृत्यु के पश्चात् क्रमशः रफी उद्-दरजात और रफीउद्दौला अत्यंत कम समय के लिये गद्दी पर बैठे।

मुहम्मद शाह (1719-1748)

  • मुहम्मद शाह के शासनकाल में अनेक स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ, जैसे-बंगाल, अवध, हैदराबाद आदि।
  • मुहम्मद शाह का वास्तविक नाम रोशन अख़्तर था। इसे ‘रंगीला बादशाह’ भी कहा जाता था।
  • मुहम्मद शाह के शासनकाल में नादिरशाह का आक्रमण हुआ। फरवरी, 1739 में करनाल में हुए युद्ध में मुगलों की हार हुई।
  • नादिरशाह भारत से ₹30 करोड़ नकद, सोना, चांदी के अतिरिक्त, कोहिनूर हीरा तथा शाहजहाँ का रत्नजड़ित सिंहासन ‘तख्त-ए-ताऊस’ भी अपने साथ ले गया।
  • अहमदशाह अब्दाली ने मुहम्मद शाह के समय ही प्रथम बार 1748 में भारत पर आक्रमण किया।
  • इसके पश्चात् अहमद शाह (1748-54) तथा आलमगीर द्वितीय (1754–59) गद्दी पर बैठे।

शाह आलम द्वितीय (1759-1806)

  • इसने 1764 में हुए बक्सर के युद्ध में बंगाल के नवाब मीर कासिम तथा अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।
  • बक्सर के युद्ध में कंपनी से पराजित होने के पश्चात् हुई इलाहाबाद की संधि के प्रावधानों के अनुरूप इसे कई वर्षों तक इलाहाबाद में अंग्रेज़ों का पेंशनयाफ्ता बनकर रहना पड़ा।
  • 1772 में मराठों के सहयोग से इसे दिल्ली के सिंहासन की प्राप्ति हुई।
  • इसी के शासनकाल में 1803 में अंग्रेज़ों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया।
  • शाह आलम द्वितीय के पश्चात् उसका पुत्र अकबर द्वितीय (1806-1837) गद्दी पर बैठा।

बहादुरशाह द्वितीय (1837-1857)

  • बहादुरशाह द्वितीय जिसे ‘जफर’ के नाम से जाना जाता था, यह अंतिम मुगल शासक था।
  • 1857 के संग्राम में विद्रोहियों का साथ देने के कारण इसे रंगून निर्वासित कर दिया गया, जहाँ 1862 में इसकी मृत्यु हो गई।

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