- भक्ति का पहला उल्लेख श्वेताश्वतर उपनिषद् में है।
- भक्ति की अवधारणा मौर्योत्तर काल में आई।
- दक्षिण भारत में जनप्रिय आंदोलन के रूप में अलवार और नयनार संतों के द्वारा भक्ति आंदोलन प्रारंभ हुआ।
शंकराचार्य ( 788-820)
- दर्शन – अद्वैतवाद
- महिष्मति में मंडनमिश्र की पत्नी ‘भारती’ से शास्त्रार्थ किया।
- शंकराचार्य ने चार पीठों की स्थापना करवाई।
- बौद्ध धर्म से प्रभावित होने के कारण शंकर को ‘प्रच्छन्न बौद्ध’ कहा जाता है।
रामानुजाचार्य (1017-1137)
- दर्शन – विशिष्टाद्वैत
- रामानुजाचार्य को दक्षिण में विष्णु का अवतार माना जाता है।
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निम्बार्काचार्य
- दर्शन – द्वैताद्वैतवाद
- सनक संप्रदाय से संबंधित थे।
मध्वाचार्य
- दर्शन – द्वैतवाद
- ब्रह्म संप्रदाय से संबंधित थे।
वल्लभाचार्य (1479-1531)
- दर्शन – शुद्धाद्वैतवाद
- वल्लभाचार्य चैतन्य महाप्रभु के बाद कृष्ण भक्ति शाखा के दूसरे प्रसिद्ध संत थे।
- इन्होंने उत्तर भारत में पुष्टि मार्ग का प्रचार किया। ये रुद्र संप्रदाय से संबंधित थे।
रामानंद (1294-1411)
- ये पहले संत थे जिन्होंने हिंदी में संदेश दिया।
- इनके 12 शिष्य थे जो भिन्न-भिन्न वर्णों से थे, जैसे- कबीर रैदास चर्मकार, सेन – नाई। जुलाहा, धन्ना जाट,
कबीर (1398-1518)
- जन्म काशी में, मृत्यु मगहर (संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश में)। सिकंदर लोदी के समकालीन थे।
- कबीर के शिष्य भागूदास ने इनकी रचनाओं का बीजक में संकलन किया।
- रचनाएँ- बीजक, साखी, सबद, होली, रेखताल आदि।
गुरुनानक (1469-1539)
- जन्म – तलवंडी में, मृत्यु – करतारपुर में।
- बाबर तथा इब्राहिम लोदी के समकालीन।
दादूदयाल (1544-1603)
- इन्होंने ब्रह्म या परम ब्रह्म संप्रदाय की स्थापना की।
- इन्होंने षड्दर्शन को अस्वीकृत कर निपख मार्ग का अनुमोदन किया।
रैदास
- कबीर ने रैदास को ‘संतों का संत’ कहा है।
नरसी मेहता
- गांधीजी के प्रिय भजन- ‘वैष्णव जण तो तेणे कहिये जे पीर पराई जाणै रै’ के रचयिता नरसी मेहता ही थे।
- इनका कार्यक्षेत्र गुजरात था।
सूरदास
- अष्टछाप के प्रधान।
- वल्लभाचार्य के शिष्य ।
मीराबाई (1496-1546)
- रत्नसिंह की पुत्री थीं।
- इनका विवाह उदयपुर के सिसौदिया राजकुमार युवराज भोजराज से हुआ था।
चैतन्य महाप्रभु (1486-1533)
- ‘संकीर्तन प्रणाली’ चलाई।
- इन्हें गौरांग महाप्रभु भी कहते थे।
शंकरदेव (असम में ) (1449-1568)
- एक शरण संप्रदाय तथा महापुरुषीय संप्रदाय की स्थापना की।
- सत्रिया नृत्य की रचना की।