शुंग वंश
- मौर्य शासकों के तुरंत बाद 185 ई.पू. में जो वंश सत्ता में आया वो शुंग वंश था।
- शुंगों की राजधानी प्रारंभ में पाटलीपुत्र तथा बाद में विदिशा हो गई।
- पतंजलि के महाभाष्य से शुंग शासक पुष्यमित्र के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। पतंजलि पुष्यमित्र के पुरोहित थे।
- पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेघ यज्ञ किये तथा साँची स्तूप (विदिशा) में पाषाण वेदिका का निर्माण करवाया।
- शुंग वंश के पहले शासक पुष्यमित्र के समय पहला यवन आक्रमण हुआ जिसे उसके पौत्र वसुमित्र ने विफल कर दिया।
- हेलियोडोरस का गरुड़ स्तंभ यह बताता है कि वह यवन राजदूत था जो शुंग शासक भागभद्र के विदिशा दरबार में आया और उसने भागवत धर्म के सम्मान में गरुड़ स्तंभ का निर्माण करवाया।
- शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति की हत्या कर वासुदेव ने 75 ई.पू. में कण्व वंश की स्थापना की। कण्व वंश का शासन बहुत लंबा नहीं चल सका।
आंध्र / सातवाहन
- ई.पू. प्रथम सदी में ऊपरी दक्कन में सातवाहनों का उदय हुआ।
- इस वंश की स्थापना सिमुक ने की तथा इसकी राजधानी महाराष्ट्र के प्रतिष्ठान/पैठन में थी।
- सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत थी।
- शातकर्णी प्रथम इस वंश का प्रथम योग्य शासक था।
- सातवाहन शासक हाल एक बड़ा कवि तथा विद्वानों का आश्रयदाता था। इसने प्राकृत भाषा में गाथासप्तशती की रचना की है।
- सातवाहन वंश के ऐश्वर्य को गौतमीपुत्र शातकर्णी (106-130 ई.) ने पुनर्जीवित किया।
- इसकी विजयों का उल्लेख इसकी माँ गौतमी बलश्री की नासिक प्रशस्ति से प्राप्त होता है।
- इसका प्रतिद्वंद्वी शक शासक नाहपण था जो क्षहरात वंश का था।
- गौतमीपुत्र शातकर्णी ने क्षहरात वंश के नाश का दावा किया है।
- इसके बाद इसका पुत्र वशिष्ठीपुत्र पुलुमावि (130-154 ई.) शासक बना।
- इसने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि धारण की थी तथा पुराणों में इसका नाम पुलोमा मिलता है।
- शक शासक रुद्रदामन प्रथम (130-150 ई.) ने सातवाहनों को दो बार पराजित किया किंतु वैवाहिक संबंध के कारण इनका नाश नहीं किया।
- वशिष्ठीपुत्र पुलुमावि का विवाह रुद्रदामन की पुत्री से हुआ था।
- यज्ञश्री शातकर्णी सातवाहन वंश का अंतिम महत्त्वपूर्ण शासक था।
- ब्राह्मणों को भूमि दान देने की परंपरा सातवाहनों ने ही शुरू की। हालाँकि उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं को भी भूमिदान दिया।
- भड़ौच सातवाहन काल का प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह था।
- सातवाहन शासकों ने चांदी, तांबे, सीसा, पोटीन और काँसे की मुद्राओं का प्रचलन किया।
- सातवाहन प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत ‘गौल्मिक’ को ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासन का काम सौंपा जाता था जो एक सैनिक टुकड़ी का प्रधान होता था।
- कार्ले-चैत्य, अमरावती कला का विकास आदि सातवाहन काल की प्रमुख उपलब्धियाँ हैं।
हमारा YouTube Channel, Shubiclasses अभी Subscribe करें !
चेदि राजवंश
- प्रथम सदी ई.पू. में कलिंग क्षेत्र (ओडिशा) में चेदि राजवंश का उदय हुआ।
- संभवतः चेदि राजवंश का संस्थापक महामेघवाहन नामक व्यक्ति था। अतः इस वंश का नाम महामेघवाहन वंश भी पड़ गया।
- इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक खारवेल हुआ।
- उदयगिरि पहाड़ी (ओडिशा) के हाथीगुम्फा अभिलेख से उसके बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।
विदेशी शासन
हिंद-यूनानी (इंडो ग्रीक)
- मौर्योत्तर काल में भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर पहला आक्रमण हिंद-यूनानी या बैक्ट्रियाई-यूनानी द्वारा किया गया।
- भारतीय सीमा में सर्वप्रथम डेमेट्रियस प्रथम ने प्रवेश किया और पंजाब के कुछ क्षेत्र को जीता।
- मिनांडर (165-145 ई. पू.) सबसे प्रसिद्ध हिंद-यूनानी शासक हुआ। उसकी राजधानी पंजाब में शाकल (आधुनिक सियालकोट) में थी।
- मिनांडर को बौद्ध साहित्य में मिलिंद कहा गया मिलिंदपण्हो नामक बौद्ध ग्रंथ में मिलिंद तथा बौद्ध आचार्य नागसेन के बीच संवाद संकलित है।
- मिनांडर की काँस्य मुद्राओं पर धर्मचक्र का चिह्न मिलता है।
- हिंद-यूनानी शासकों ने भारत के पश्चिमोत्तर सीमा-प्रांत में हेलेनिस्टिक कला का प्रसार किया।
- सबसे पहले हिंद-यूनानियों ने ही भारत में सोने के सिक्के चलाए।
शक
- शकों ने भारत में अनेक शाखाएँ स्थापित की। शक राजा स्वयं को क्षत्रप कहते थे।
- पश्चिमी क्षत्रपों में चष्टन वंश का रुद्रदामन सबसे प्रसिद्ध शक शासक हुआ।
- रुद्रदामन ने अपने मंत्री सुविशाख द्वारा सुदर्शन झील का पुनरुद्धार कराया।
- विशुद्ध संस्कृत में पहला अभिलेख रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख है। इसी पर सम्राट अशोक और स्कंदगुप्त के अभिलेख भी खुदे हुए हैं।
- 58 ई.पू. में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकों को पराजित करके बाहर खदेड़ दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। विजय के उपलक्ष्य में उसने 58 ई.पू. में ही एक नया संवत् विक्रम संवत् प्रारंभ किया।
- अंतिम शक शासक रुद्रसिंह तृतीय था जिसे गुप्त शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने पराजित कर शकों का राज्य गुप्त साम्राज्य में मिला लिया।
पहलव
- पश्चिमोत्तर भारत में शकों के आधिपत्य के बाद पह्लवों (पार्थियाई) का आगमन हुआ।
कुषाण
- पहलवों के बाद कुषाण आए जो यू-ची कबीले से संबंधित थे।
- भारत में कुषाण वंश की स्थापना कुजुल कडफिसस ने की। इसने तांबे के सिक्के चलाए।
- कुषाण शासक विम कडफिसस ने सोने के सिक्के जारी किये। यह शैव मतानुयायी था तथा इसने महेश्वर की उपाधि धारण की।
- कनिष्क इस वंश का महानतम शासक था। इसने 78ई. में अपना राज्यारोहण किया तथा इसके उपलक्ष्य में एक संवत् चलाया जो शक संवत् कहलाया।
- कनिष्क की प्रथम राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) तथा दूसरी राजधानी मथुरा थी।
- इसके दरबार में अश्वघोष, वसुमित्र तथा नागार्जुन जैसे विद्वान और चरक जैसे चिकित्सक विद्यमान थे।
- कनिष्क के शासनकाल में ही कश्मीर के कुंडलवन में चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था। जिसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने की।
- कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का अनुयायी था।
- नागार्जुन ने ‘माध्यमिक सूत्र’ तथा अश्वघोष ने बुद्धचरित्र, सौंदरानंद तथा सारिपुत्रप्रकरण की रचना की।
- कनिष्क के उत्तराधिकारी वसुदेव की मुद्राओं पर शिव और नंदी की आकृतियाँ मिलती हैं, इससे पता चलता है कि वह शैव मतानुयायी था।
- कुषाण शासकों ने राजाओं की प्रतिमा पूजा का प्रचलन प्रारंभ किया।
- वसुदेव-II कुषाण वंश का अंतिम शासक था।