भारत में आर्थिक नियोजन

प्रमुख उद्देश्य

  •  आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, सामजिक न्याय, पूर्ण रोज़गार की प्राप्ति गरीबी निवारण एवं रोज़गार अवसरों का सृजन, आत्मनिर्भरता की प्राप्ति ।
  • निवेश एवं पूंजी निर्माण को बढ़ावा देना, आय वितरण एवं क्षेत्रीय विषमता दूर करना तथा मानव संसाधन का विकास एवं निजीकरण, उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के दौर में गरीबों को सुरक्षा प्रदान करना।
  • तीव्र आर्थिक विकास के साथ समावेशी विकास की संकल्पना आदि भारत में आर्थिक नियोजन के प्रमुख उद्देश्य रहे हैं जिनकी प्राप्ति के लिये भारतीयों द्वारा स्वतंत्रता पूर्व से ही प्रयास किये गए। इनकी परिणति स्वतंत्रता उपरांत देश में लागू की गई पंचवर्षीय योजनाओं में परिलक्षित होती है।

स्वतंत्रता पूर्व वेश में आर्थिक नियोजन के लिये प्रस्ताव

  • वर्ष 1934– सर्वप्रथम एम. विश्वेश्वरैया ने अपनी पुस्तक ‘प्लांड इकॉनमी फॉर इंडिया’ में देश में आर्थिक नियोजन के अपनाए प्रस्ताव रखा। जाने का
  • वर्ष 1938– सुभाषचंद्र बोस की अध्यक्षता में हुए हरिपुरा अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आयोजन समिति की नियुक्ति की गई। समिति द्वारा प्रस्तुत योजना को ‘कांग्रेस योजना’ भी कहते हैं।
  • वर्ष 1944– बंबई के आठ प्रमुख व्यापारियों ने ‘ए प्लान ऑफ * इकॉनमिक डेवेलपमेंट फॉर इंडिया’ तैयार किया जिसे ‘बांबे प्लान’ के नाम भी जाना जाता है। इसे टाटा-बिड़ला प्लान भी कहा जाता है। इसके 1: प्रमुख सदस्य जे.आर.डी. टाटा, जी.डी. बिड़ला, लाला श्री राम, कस्तूर भाई लाल भाई, ए.डी. श्रौफ, आर्देशिर दलाल तथा जॉन मथाई थे।
  • आर्देशिर दलाल की देख-रेख में ‘आयोजन तथा विकास विभाग’ स्थापित हुआ।
  • इसी वर्ष श्रीमन नारायण द्वारा ‘गांधी योजना’ प्रस्तुत की गई।
  •   वर्ष 1945– श्री एम.एन राय ने ‘जन योजना’ प्रस्तुत की।
  •   वर्ष 1950 – जय प्रकाश नारायण द्वारा ‘सर्वोदय प्लान’ प्रस्तुत किया गया।

स्वतंत्रता उपरांत आर्थिक नियोजन

  • वर्ष 1950 में ‘सलाहकारी योजना बोर्ड’ की सिफारिश पर 15 मार्च1950 को योजना आयोग का गठन किया गया
  • जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा उपाध्यक्ष गुलज़ारी लाल नंदा थे।
  • 1 जनवरी, 2015 से ‘नीति आयोग’ की स्थापना के बाद योजना आयोग को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया।

हमारा YouTube Channel, Shubiclasses अभी Subscribe करें !

पंचवर्षीय योजनाएँ

प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56)

  •  हैरॉड-डोमर मॉडल पर आधारित कृषि को उच्च प्राथमिकता दी गई, योजना सफल रही तथा इसने लक्ष्य से ज़्यादा विकास दर हासिल की।
  • इसमें सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952), राष्ट्रीय प्रसार सेवा योजना तथा अनेक सिंचाई परियोजनाएँ,
  • जैसे- भाखड़ा नांगल, व्यास परियोजना, दामोदर नदी घाटी परियोजना आदि शुरू की गईं।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-1961)

  • यह पी.सी. महालनोबिस मॉडल पर आधारित थी जिसका उद्देश्य ‘समाजवादी समाज’ की स्थापना करना था।
  • इसमें भारी उद्योगों एवं खनिजों को प्राथमिकता दी गई।
  • इस योजना में दुर्गापुर, भिलाई, राउरकेला इस्पात कारखानों की स्थापना की गई।

तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961–1966)

  • देश की ‘अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने तथा स्वतः स्फूर्त अवस्था में पहुँचाने का लक्ष्य’ के साथ शुरू की गई यह योजना सुखमय चक्रवर्ती के प्लानिंग मॉडल पर आधारित मानी जा सकती है।
  • पुनः कृषि पर सर्वाधिक बल दिया गया।
  • यह योजना अपना लक्ष्य प्राप्त करने में विफल रही।
  • जिसके प्रमुख कारण थे-भारत-चीन युद्ध 1962, भारत-पाक युद्ध, 1965 तथा वर्ष 1965-66 का सूखा।

योजना अवकाश (1966-1969) (प्रथम योजना अवकाश)

  • इस अवधि में तीन वार्षिक योजनाएँ क्रियान्वित की गईं।
  • कृषि एवं उद्योगों को समान प्राथमिकता।
  • योजना अवकाश के कारण भारत-पाक युद्ध, सूखा, मूल्य वृद्धि तथा संसाधनों की कमी थे।

चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-1974)

  • इसका उद्देश्य ‘स्थायित्व के साथ विकास तथा आर्थिक आत्मनिर्भरता’ की प्राप्ति थी।
  • योजना अशोक रुद्र तथा एलन एस. मान्ने द्वारा तैयार ओपन कंसिस्टेंसी मॉडल पर आधारित थी।
  • इस योजना में कृषि तथा सिंचाई प्राथमिकता के क्षेत्र थे।
  • परिवार नियोजन कार्यक्रम इस योजना की विशेषता थी।
  • इसमें ‘समाजवादी समाज’ की स्थापना पर विशेष बल दिया गया तथा क्षेत्रीय विषमता दूर करने के लिये ‘विकास केंद्र उपागम’ की शुरुआत की गई।
  • इसमें 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया (1969), एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापार व्यवहार अधिनियम (MRTP Act-1969) तथा बफर स्टॉक की अवधारणा लागू की गई।

पाँचवी पंचवर्षीय योजना (1974-1978)

  • इस योजना का उद्देश्य ‘गरीबी उन्मूलन, आत्मनिर्भरता तथा शून्य विदेशी सहायता’ की प्राप्ति थी। इसमें आर्थिक स्थायित्व को उच्च प्राथमिकता दी गई।
  • योजना में वर्ष 1975 में बीस सूत्री कार्यक्रम शुरू किया गया।
  • इसमें ‘गरीबी निवारण’ कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया।
  • इसी योजना में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (1974), काम के बदले अनाज़ तथा अंत्योदय योजना (1977-78) प्रारंभ हुई।
  • इसमें पहली बार गरीबी तथा बेरोज़गारी पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • जनता पार्टी सरकार ने इसे एक वर्ष पहले ही 1978 में समाप्त घोषित कर दिया।

अनवरत योजना (Rolling Plan, 1978-80)

(द्वितीय योजना अवकाश)

  •  इस योजना (छठी योजना का प्रथम चरण) को जनता पार्टी सरकार द्वारा लागू किया गया था।
  • वर्ष 1980 में पुनः कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने पर इसे समाप्त कर छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) प्रारंभ की गई।
  • अनवरत योजना की संकल्पना गुन्नार मिर्डाल द्वारा विकासशील देशों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास के संदर्भ में प्रस्तुत की गई थी।

छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85)

  • योजना का उद्देश्य ‘गरीबी उन्मूलन और रोज़गार में वृद्धि’ था।
  • ग्रामीण बेरोज़गारी उन्मूलन तथा गरीबी निवारण से संबंधित अनेक ” कार्यक्रमों की शुरुआत की गई।
  • जैसे- एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम, ट्रेनिंग ऑफ रूरल यूथ फॉर सेल्फ इंप्लॉयमेंट (TRYSEM) आदि।

सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-1990)

  • योजना का उद्देश्य ‘उत्पादकता को बढ़ाना और रोज़गार जुटाना, समता एवं न्याय आधारित सामाजिक व्यवस्था तथा तकनीकी के लिये सुदृढ़ आधार’ तैयार करना था।
  • ‘भोजन, काम और उत्पादन’ का नारा दिया गया।
  • पहली बार दीर्घकालीन विकास रणनीति पर बल देते हुए उदारीकरण को प्राथमिकता दी गई।
  • योजना अपने लक्ष्य (5 प्रतिशत) से ज्यादा (6.0 प्रतिशत) विकास दर हासिल करने में सफल रही।
  • इस योजना में ‘मानव संसाधन विकास’ पर अधिक बल दिया गया था।

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97)

  • देश में राजनीतिक अस्थिरता के कारण यह योजना वर्ष 1990 की जगह वर्ष 1992 से लागू की जा सकी।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य ‘सर्वांगीण मानव विकास’ था। इसी में प्रधानमंत्री रोज़गार योजना की शुरुआत हुई।
  • औद्योगिक ढाँचे में परिवर्तन के अंतर्गत भारी उद्योग का महत्त्व कम करते हुए आधारिक संरचनाओं पर बल दिये जाने की शुरुआत हुई।
  • योजना ने अपने लक्ष्य (5.6) ज़्यादा (6.8) वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त किया।

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002)

  • इसमें सर्वोच्च प्राथमिकता ‘सामाजिक न्याय एवं समानता के साथ विकास’ को दिया गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंदी के कारण योजना का आशानुरूप परिणाम प्राप्त नहीं हुआ।
  • प्राथमिकता क्रम में सुधार के क्षेत्रों को चुना गया ये थे- भुगतान 1 संतुलन सुनिश्चित करना, विदेशी ऋणभार कम करना, खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता तथा प्रौद्योगिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करना आदि।

दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007)

  • इसका उद्देश्य ‘देश में गरीबी और बेराजगारी समाप्त करना तथा अगले 10 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय दोगुना करना’ था।
  • इस योजना ने निर्धारित लक्ष्य 8 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर के करीब 7.6 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर को प्राप्त किया तथा यह अब तक की सबसे सफल योजनाओं में से एक रही है।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012)

  • योजना लक्ष्य ‘तीव्र एवं समावेशी विकास’ था।
  • यह अब तक की सबसे सफल योजना रही है।
  • इस योजना में औसत संवृद्धि दर 8 प्रतिशत रही।
  • यह वृद्धि दर अब तक की सर्वाधिक वृद्धि दर है।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017)

  • मुख्य उद्देश्य ‘तीव्रतर, अधिक समावेशी और धारणीय विकास’ है।
  • योजना के लक्ष्य- विकास दर 8 प्रतिशत, कृषि क्षेत्र में 4 प्रतिशत, विनिर्माण क्षेत्र में 10 प्रतिशत की वृद्धि करना।
  • 5 करोड़ रोज़गार का सृजन, गरीबी को कम से कम 10 प्रतिशत बिंदु तक कम करना ।
  • योजना के अंत तक शिशु मृत्यु दर 25 तथा मातृत्व मृत्यु दर को 1 प्रति हज़ार जीवित जन्म तक लाने तथा 0-6 वर्षों के आयु वर्ग में लिंगानुपात 950 करने का लक्ष्य है।
  • योजना के अंत तक प्रजनन दर 2.1 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य।
  • सभी गाँवों को बारहमासी सड़कों से जोड़ना तथा विद्युतीकरण करना।
  • राजकोषीय घाटे को GDP के 3 प्रतिशत के स्तर तक सीमित करना।
  • इस योजना में सर्वाधिक धनराशि सामाजिक सेवाओं के लिये रखी गई है।

नीति आयोग (National Institution for Transforming India – NITI)

  • 1 जनवरी, 2015 को केंद्रीय मंत्रिमंडल के संकल्प से योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन किया गया।
  • नीति आयोग का गठन एक संविधानेत्तर संस्था के रूप में किया गया है
  • जिसमें एक अध्यक्ष (प्रधानमंत्री), एक उपाध्यक्ष तथा एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पदों का प्रावधान किया गया है।
  • इसकी गवर्निंग काउंसिल में- राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल/प्रशासक होंगे।
  • इसका कार्य एक ‘थिंक टैंक’ की तरह नीति-निर्माण, विकास प्रक्रिया में निर्देशन एवं परामर्श, क्षमता निर्माण, प्रौद्योगिकी उन्नयन तथा ग्राम स्तर पर योजना निर्माण के लिये एक समुचित तंत्र के  विकास द्वारा सहयोगी संघवाद को बढ़ावा देना है।

Leave a comment