नागरिकता [भाग 2 (अनुच्छेद 5-11)]
- नागरिकता संबंधी कानून बनाने की पूर्ण शक्ति संसद को दी गई है।
- संसद ने सर्वप्रथम 1955 में ‘नागरिकता अधिनियम’ (Citizenship Act) पारित किया, जिसमें (1986, 1992, 2003, 2005, 2015) प्रासंगिक संशोधन किये गए हैं।
- भारतीय संविधान एकल नागरिकता का प्रावधान करता है।
- विधिक व्यक्ति (कंपनी, निगम आदि) नागरिक नहीं हो सकते, क्योंकि उन्हें मूल अधिकार नहीं दिये जा सकते।
- नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 3-7 के अंतर्गत नागरिकता अर्जन के पाँच तरीके- जन्म, वंश, पंजीकरण, देशीयकरण एवं भारत में नए क्षेत्र के सम्मिलित होने पर हैं।
- नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 8, 9 तथा 10 में नागरिकता समाप्ति की तीन स्थितियाँ बताई गई हैं:
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- नागरिकता का परित्याग करने पर,
- किसी अन्य देश की नागरिकता (Citizenship) स्वीकार करने पर
- भारत सरकार द्वारा नागरिकता से वंचित किया जाना।
- कानूनी आधार पर व्यक्तियों को नागरिक, अन्यदेशीय व्यक्ति राज्यविहीन व्यक्ति और शरणार्थी में बाँटा जा सकता है।
- 9 जनवरी, 1915 को महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के दिवस को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रवासी भारतीय दिवस की सिफारिश डॉ. एल.एम सिघंवी कमेटी ने की थी।
- अनुच्छेद 15, 16, 19, 29, 30 केवल नागरिकों को प्राप्त हैं, जबकि अनुच्छेद 14, 20,21, 21A, 22, 23, 24, 25, 26, 27, 28 भारतीय नागरिकों के साथ-साथ विदेशियों (शत्रु देश के लोगों को छोड़कर) को भी प्राप्त मूल अधिकार हैं।
- लोकसभा एवं राज्य विधानसभा के निर्वाचन हेतु मतदान का अधिकार व सदस्यता का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है।
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, महान्यायवादी, राज्यपाल, महाधिवक्ता जैसे प्रमुख पदों पर केवल भारतीय नागरिक ही नियुक्ति के पात्र होंगे।
नागरिकता
अनुच्छेद 5- संविधान के प्रारंभ पर अधिवास द्वारा नागरिकता
अनुच्छेद 6- पाकिस्तान से प्रव्रजन (Migration) करके आए व्यक्तियों की नागरिकता
अनुच्छेद 7– पाकिस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों की नागरिकता के अधिकार
अनुच्छेद 8– भारत के बाहर रहने वाले भारतीय मूल के व्यक्ति की नागरिकता
अनुच्छेद 9– किसी अन्य देश की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित करने पर भारत की नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाएगी।
अनुच्छेद-10– किसी नागरिक की नागरिकता का अधिकार संसदीय विधान के अलावा किसी अन्य रीति से नहीं छीना जा सकता है।
अनुच्छेद-11– नागरिकता से संबंधित विधान बनाने की शक्ति संसद को होगी। इस प्रयोजन हेतु संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 पारित किया है।
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अनिवासी भारतीय (NRI)
- अनिवासी भारतीय भारत के ही नागरिक होते हैं और भारतीय पासपोर्ट धारण करते हैं, किंतु ये नौकरी या व्यवसाय के लिये साधारणत: भारत से बाहर रहते हैं।
- इन्हें नागरिकों को प्राप्त लगभग सभी सुविधाएँ मिलती हैं।
- ये कोई भी ऐसा कार्य कर सकते हैं, जो यहाँ के नागरिक कर सकते हैं।
- इन्हें मताधिकार का पूरा अधिकार है। भारत में NRI कोटे के अंतर्गत इन्हें शिक्षा का अधिकार प्राप्त है।
- भारतीय बैंक में भारतीय मुद्रा में खाता खोल सकते हैं।
भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO)
- ये भारत के नागरिक नहीं होते। ये वे व्यक्ति हैं जो स्वयं या जिनके पूर्वज भारत के नागरिक रहे हैं, किंतु वर्तमान में ये किसी अन्य देश के नागरिक हैं।
- इन्हें 15 वर्षों तक वीज़ा की ज़रूरत नहीं होती।
- एक यात्रा के दौरान 180 दिनों तक ‘विदेश क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारी’ के पास पंजीकरण कराने से छूट है।
- भारत में कम-से-कम 7 वर्षों तक निवास के आधार पर भारतीय नागरिकता के लिये आवेदन कर सकते हैं।
- इन्हें मताधिकार एवं चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है।
- इन्हें भी NRI कोटा में शिक्षा का अधिकार है तथा भारतीय मुद्रा में भारतीय बैंक में खाता खोलने का अधिकार है।
समुद्रपारीय भारतीय नागरिक (OCI)
- ये विदेशी नागरिक होते हैं तथा साधारणतः इनका निवास विदेश में ही होता है।
- इन्हें जीवनपर्यंत वीज़ा की सुविधा उपलब्ध है।
- एक यात्रा की अवधि चाहे जितनी लंबी हो, इन्हें पंजीकरण कराने । रह की आवश्यकता नहीं है।
- भारतीय नागरिकता (Citizenship) के लिये 5 वर्ष पूर्व पंजीकरण कराया हो तथा कम-से-कम 1 साल से भारत में रहा हो।
- इन्हें NRI कोटा में शिक्षा का अधिकार है। भारत में भारतीय मुद्रा में बैंक खाता भी खोल सकते हैं।
- 19 जनवरी, 2015 की अधिसूचना (भारत का राजपत्र) के द्वारा PIO
- तथा OCI कार्ड धारकों की भिन्नता समाप्त कर दी गई है तथा अब PIO कार्ड जारी नहीं किये जाएंगे।
- अब सभी PIO कार्डों को OCI कार्डों का दर्जा प्राप्त होगा।
- मैग्नाकार्टा अधिकारों का एक घोषणा पत्र था, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 ई. में सामंतों के दबाव में जारी किया गया।।
- यह नागरिकों के अधिकारों से संबंधित पहला लिखित पत्र था।
- सर्वप्रथम 1789 ई. में फ्राँस ने अपने संविधान के अंतर्गत ‘मानवीय अधिकारों’ को स्थान प्रदान किया।
- 1931 में कराची अधिवेशन में सरदार वल्लभभाई पटेल की।
- अध्यक्षता में कॉन्ग्रेस ने एक घोषणा पत्र में मूल अधिकारों की मांग की, जिसका प्रारूप जवाहरलाल नेहरू द्वारा बनाया गया था।
- डॉ. अंबेडकर ने “मूल अधिकार से संबंधित ‘भाग-III’ को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग कहा है। “