तरंग | wave

wave

  • तरंगें एक प्रकार का विक्षोभ (disturbance) होती हैं, जो किसी माध्यम में कणों को गतिशील करती हुई आगे बढ़ती है।
  • तरंगों की गति की प्रक्रिया में माध्यम के कणों का स्थानांतरण हुए बिना ऊर्जा का स्थानांतरण होता है।
  • तरंगों को दो भागों में बाँटा जा सकता है- यांत्रिक तरंगें और विद्युत चुंबकीय तरंगें ।

यांत्रिक तरंगें (Mechanical Waves)

  • ऐसी तरंगें, जिनके संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है।
  • यह माध्यम द्रव्य की कोई भी अवस्था यथा-ठोस, द्रव अथवा गैस हो सकती है।
  • जिन माध्यमों में ये तरंगें संचरण करती हैं, उनमें प्रत्यास्थता तथा जड़त्व का गुण होना चाहिये।

अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse Waves)

  • यांत्रिक तरंगों की गति के दौरान माध्यम के कण दोलन करते हैं।
  • इन कणों का दोलन तरंगों की गति के दिशा के लंबवत् अथवा समानांतर होता है।
  • जब माध्यम के कण तरंग गति की दिशा के लंबवत् कंपन करते हैं तो ऐसी तरंगों को ‘अनुप्रस्थ तरंगें’ कहते हैं।

अनुप्रस्थ तरंगों के उदाहरण

  • जलीय तरंगें, भूकंप के दौरान उत्पन्न S तरंगें, पृष्ठीय तरंगे (Surface wave) इत्यादि ।

अनुदैर्ध्य तरंगें (Longitudinal Waves)

  • जब माध्यम के कण तरंग गति की दिशा के समानांतर कंपन करते हैं तो उसे ‘अनुदैर्ध्य तरंगें’ कहते हैं।
  • जैसे:- ध्वनि तरंगें, P- तरंगें (भूकंपीय तरंग) इत्यादि ।

अनुदैर्ध्य तरंगों की विशेषताएँ

  • ये तरंगें सभी माध्यमों (ठोस, द्रव, गैस) में उत्पन्न की जा सकती हैं इन तरंगों का संचरण संपीडन एवं विरलन के रूप में होता है।
  • अनुप्रस्थ और अनुदैर्ध्य तरंगों को ‘प्रगामी तरंगे’ भी कहते हैं, क्योंकि इन तरंगों की गति एक स्थान से दूसरे स्थान तक होती है।

तरंगों के अभिलाक्षणिक गुण

आयाम (Amplitude)

  • माध्यम के कणों का अपनी मूल स्थिति से दोनों ओर अधिकतम विस्थापन आयाम कहलाता है।
  • आयाम का SI पद्धति में मात्रक मीटर होता है।

तरंग दैर्ध्य (Wavelength)

  • दो क्रमागत शृंगों अथवा दो गर्तों के बीच की दूरी को ‘तरंग दैर्ध्य ‘ कहते हैं। इसे ग्रीक अक्षर ^ (लैम्डा) से प्रदर्शित करते हैं।
  • इसका SI मात्रक मीटर (M) है।

आवृत्ति (Frequency)

  • तरंग की आवृत्ति तरंग संचरण में किसी कण द्वारा 1 सेकेंड में पूरे किये गए दोलनों की संख्या होती है।
  • आवृत्ति का SI पद्धति में मात्रक हर्ट्ज (Hz) होता है।

ध्वनि तरंगें (Sound Waves)

  • यह अनुदैर्ध्य यांत्रिक तरंगें होती हैं। कंपन करती हुई वस्तुएँ ध्वनि उत्पन्न करती हैं।
  • ध्वनि का स्रोत (कंपन करती हुई वस्तु) जिस माध्यम में रखा होता है, उसे ‘ध्वनि का माध्यम’ कहते हैं।
  • ऊर्जा के अन्य रूपों जैसे प्रकाशीय ऊर्जा आदि की तरह ध्वनि भी ऊर्जा का एक रूप है।
  • तरंग वेग (V) = तरंग की आवृत्ति (n) x तरंग की तरंगदैर्ध्य
  • SI पद्धति में तरंग वेग का मात्रक मीटर/सेकेंड होता है।

ध्वनि तरंगों की विशेषताएँ

  • इनके संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है (इनका संचरण निर्वात में नहीं होता है) ।
  • ध्वनि की चाल माध्यम के गुणों (ताप, आर्द्रता आदि) पर निर्भर करती है। माध्यम का ताप बढ़ने पर ध्वनि की चाल बढ़ जाती है।
  • यदि ताप स्थिर रहे तो दाब का ध्वनि की चाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • माध्यम की आर्द्रता भी ध्वनि की चाल को प्रभावित करती है।
  • यदि वायु नम होती है तो उसका घनत्व शुष्क वायु की तुलना में कम होता है, इसलिये आर्द्र वायु में ध्वनि की चाल बढ़ जाती है।
  • माध्यम के वेग की दिशा में ध्वनि की चाल बढ़ती है, परंतु माध्यम के विपरीत दिशा में घटती है।

ध्वनि के अभिलाक्षणिक गुण

प्रबलता (Loudness)

  • यह हमारे कान में उत्पन्न वह संवेदना है, जिसके कारण हम तीव्र अथवा मंद ध्वनियों की पहचान कर पाते हैं।
  • किसी ध्वनि की प्रबलता ध्वनि के आयाम पर निर्भर करती है।

तारत्व (Pitch)

  • यह ध्वनि का वह अभिलक्षण है, जिससे ध्वनि मोटी अथवा पतली सुनाई देती है।
  • ध्वनि का तारत्व ध्वनि की आवृत्ति पर निर्भर करता है।
  • तारत्व जितना अधिक होता है, ध्वनि की आवाज उतनी ही पतली होती है।
  • बच्चों एवं लड़कियों की आवाज का तारत्व अधिक होता है।
  • इसलिये इनकी आवाज पतली सुनाई देती है।

गुणता (Quality)

  • ध्वनि की इस विशेषता से हम एक-समान तारत्व व प्रबलता वाली ध्वनियों में विभेद कर पाते हैं।
  • गुणता की वजह से हम अपने विभिन्न मित्रों तथा रिश्तेदारों की आवाज़ पहचान लेते हैं।
  • एक साथ एक ही आवृत्ति पर बजने वाले वाद्ययंत्रों की आवाज को भी इसी गुण के आधार पर महसूस किया जाता है।

परावर्तन (Reflection )

  • ध्वनि तरंगें भी प्रकाश तरंगों की भाँति परावर्तन का गुण प्रदर्शित करती हैं।
  • ध्वनि तरंगों के मार्ग में जब अवरोध उत्पन्न होता है तो ये तरंगें भी प्रकाश तरंगों की भाँति परावर्तित होती हैं।
  • चूँकि ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्ध्य अधिक होती है, अतः बड़े पृष्ठों से इनका परावर्तन अधिक होता है।

ध्वनि का अपवर्तन (Refraction of Sound)

  • प्रकाश तरंगों की तरह ध्वनि तरंगों में भी अपवर्तन का गुण पाया जाता है अर्थात् जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में गमन करती है तो उसकी दिशा परिवर्तित हो जाती है।
  • अपवर्तन की घटना के पीछे मुख्य वजह विभिन्न माध्यमों और तापों में ध्वनि की चाल का भिन्न-भिन्न होना है।

ध्वनि का व्यतिकरण (Interference of Sound)

  • जब दो समान आवृत्ति और समान आयाम की ध्वनियाँ एक साथ एक बिंदु पर पहुँचती हैं तो उस बिंदु पर ध्वनि ऊर्जा का पुनर्वितरण हो जाता है।
  • यह घटना ‘ध्वनि का व्यतिकरण’ कहलाती है।

ध्वनि का विवर्तन (Diffraction of Sound)

  • जब ध्वनि के मार्ग में अवरोध उत्पन्न होता है तो वह सुलभ स्थान मुड़कर आगे बढ़ती है।
  • इस घटना को ‘ध्वनि का विवर्तन’ कहते हैं, से उदाहरण- खिड़कियों या दरवाजों से आवाज सुनाई देना।

अनुरणन (Reverberation)

  • जब ध्वनि के मार्ग में कोई दृढ़ अवरोध पड़ता है तो ध्वनि परावर्तित हो जाती है।
  • जब ध्वनि स्रोत किसी बंद कमरे में दृढ़ दीवारों से घिरा होता है तो ध्वनि स्रोत बंद होने के पश्चात् भी कुछ समय तक ध्वनि सुनाई देती है, क्योंकि ध्वनि का बार-बार परावर्तन होता है। यह घटना ध्वनि का ‘अनुरणन’ कहलाती है।
  •  अनुरणन की घटना को प्रभावहीन करने के लिये ही सिनेमाहॉल की दीवारों को खुरदरा बनाया जाता है अथवा ध्वनि अवशोषक पदार्थों की एक परत ऊपर से लगाई जाती है। बादलों का गर्जन भी अनुरणन का उदाहरण है।

प्रतिध्वनि (Echo)

  • वह ध्वनि जो किसी अवरोध से टकराने के बाद वापस लौटती है, उसे ‘प्रतिध्वनि’ कहते हैं।
  • यदि ध्वनि का वेग़ 332मी./से. है तो प्रतिध्वनि उत्पन्न होने के लिये अवरोध, ध्वनि स्रोत से लगभग 17 मीटर ( 16.6) मी.) दूर होना चाहिये।

प्रणोदित दोलन तथा अनुनाद (Propelled Oscillation and Resonance)

  • जब किसी सरल लोलक को उसकी साम्य अवस्था से विस्थापित कर छोड़ दिया जाता है तो लोलक मुक्त दोलन करने लगता है और अंततः क्षय बलों के कारण रुक जाता है।
  • यदि कोई बाह्य बल इस दोलन को बनाए रखे तो इसे ‘प्रणोदित दोलन’ या ‘परिचालित दोलन’ कहते हैं।
  • जब परिचालित बल की आवृत्ति, दोलक की प्राकृतिक आवृत्ति के बराबर हो जाती है तो दोलक का आयाम अधिकतम हो जाता है।
  • यह परिघटना ही ‘अनुनाद’ कहलाती है।

मानव श्रव्यता का परिसर

  • ध्वनि की आवृत्ति का वह परिसर, जो मानव कान के लिये सुग्राही होता है, ‘श्रव्यता परिसर’ कहलाता है।
  • मानव के लिये यह 20Hz (हर्ट्ज) से 20,000 Hz होता
  • 20KHz (20000Hz) से अधिक आवृत्ति वाली ध्वनि को ‘पराश्रव्य तरंगें’ अथवा ‘पराध्वनि’ कहते हैं।
  • 20Hz से कम आवृत्ति वाली ध्वनियों को ‘अपश्रव्य तरंगे’ कहते हैं।

पराश्रव्य तरंगों के अनुप्रयोग

  • अल्ट्रासाउंड में पराश्रव्य तरंगों का उपयोग होता है।
  • चमगादड़ रात को पराश्रव्य तरंगों की सहायता से ही विचरण करते हैं।

सोनार (SONAR – Sound Navigation And Ranging)

  • सोनार तकनीक में पराश्रव्य तरंगों का उपयोग होता है, जिसकी सहायता से सागरों की गहराई में पनडुब्बियों आदि की स्थिति ज्ञात की जाती है।

प्रघाती तरंगें (Shock waves)

  • ऐसे पिंड जो ध्वनि की चाल से अधिक चाल से गति करते हैं तो उस चाल को ‘पराध्वनिक चाल’ कहते हैं।
  • पराध्वनिक चाल से गति करने वाले पिंड अपने पीछे शंक्वाकार विक्षोभ पैदा करते हैं, इन विक्षोभों के संचरण को ‘प्रघाती तरंग’ कहते हैं ।

डॉप्लर प्रभाव (Doppler effect)

  • ध्वनि स्रोत और श्रोता के बीच सापेक्षिक गति के कारण ध्वनि की आवृत्ति में परिवर्तन का अनुभव होता है, स्रोत अथवा श्रोता की गति के कारण ध्वनि की आवृत्ति में परिवर्तन होने की घटना को ‘डॉप्लर प्रभाव’ कहते हैं।
  • प्रकाश तरंगों में भी डॉप्लर प्रभाव पाया जाता है।

डाप्लर प्रभाव के अनुप्रयोगः

  • खगोल विज्ञान में, दूर से वाहनों की गति मापने मे, कृत्रिम उपग्रहों की ट्रैकिंग में इत्यादि ।

विद्युत चुंबकीय तरंगें (Electromagnetic Spectrum)

  • ऐसी तरंगें जिनके संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है, उन्हें ‘विद्युत चुंबकीय’ तरंगें कहते हैं।
  • विद्युत चुंबकीय तरंगों में विद्युत क्षेत्र एवं चुंबकीय क्षेत्र के मध्य 90° का कोण बनता है अर्थात् विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र परस्पर लंबवत् होते हैं।
  • ये तरंगें प्रकाश के वेग से चलती हैं और प्रकृति में अनुप्रस्थ तरंगें होती हैं।
  • रेडियों वेब, माइक्रोवेब इंफ्रारेड वेब, अल्ट्रावायलेट, X-रे, गामा-रे विद्युत चुंबकीय तरंग के प्रकार हैं।

उपयोग

  • दीर्घ रेडियों तरंगें आयनमंडल से परावर्तित होती हैं।
  • इसलिये रेडियो तरंगे संचार के लिये उपयोगी होती हैं।
  • अवरक्त किरणें ऊष्मा को उत्पन्न करती हैं।
  • इनका उपयोग देखने वाले लक्ष्य को खोजने, टी.वी. रिमोट इत्यादि उपकरणों में किया जाता है। रात में
  • X-किरणों का प्रयोग पदार्थ भौतिक, चिकित्सा विज्ञान में किया जाता है।
  • क्रिस्टल की संरचना ज्ञात करने में X-किरणें उपयोगी हैं।
  • CT SCAN में X – किरणों का उपयोग किया जाता है।
  • कॉस्मिक किरणें उच्च ऊर्जा युक्त आवेशित कण हैं, जो लगभग प्रकाश की गति से गमन करते हैं।
  • ये विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम का भाग नहीं हैं।

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