गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)

गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)

गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)

  • ब्रह्मांड में स्थित प्रत्येक पिंड एक दूसरे पर अपने द्रव्यमान के कारण परस्पर आकर्षण बल आरोपित करते हैं।
  • दो पिंडों के बीच लगने वाले इसी आकर्षण बल को ‘गुरुत्वाकर्षण’ (Gravitation) कहते हैं।
  • यदि इन दो पिंडों में एक पृथ्वी हो तो पृथ्वी द्वारा आरोपित आकर्षण बल को ‘गुरुत्व बल’ कहते हैं।
  • केप्लर के नियमों का उपयोग कर न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण बल के सार्वभौमिक नियम का सिद्धांत प्रस्तुत किया था।
  • न्यूटन ने यह बताया, “इस विश्व में प्रत्येक पिंड हर दूसरे पिंड को एक बल द्वारा आकर्षित करता है, जिसका परिमाण दोनों पिंडों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। ” गणितीय रूप में इसे इस प्रकार लिखा जाता है:

|F| = G×M1 M2/r2

|F | – बल का परिमाण

G – सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक

M1 – पहले पिंड का द्रव्यमान

M2 – दूसरे पिंड का द्रव्यमान

R – उनके बीच की दूरी

गुरुत्वीय नियतांक (The Gravitational Constant)

गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम F = G×M1 M2/r2में G गुरुत्वीय नियतांक है। इसका मान प्रयोगों के आधार पर 6.67 × 10-11 Nm2/kg2 निकाला गया है।

पृथ्वी का गुरुत्वीय त्वरण(Gravitational Acceleration of Earth)

     g=GME/R2E

यहाँ ME – पृथ्वी का द्रव्यमान

RE – पृथ्वी की त्रिज्या

G– सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक

  • इस प्रकार गणना करने पर g का मान लगभग 9.8 मी/से आता है, जिसे पृथ्वी का ‘गुरुत्वीय त्वरण’ कहते हैं।
  • ध्यान रहे कि यह मान पृथ्वी के पृष्ठ पर है, पृष्ठ से ऊपर या नीचे जाने पर गुरुत्वीय तरण का मान बदल जाता है।
  • इस प्रकार के बदलाव को हम दो भागों में बाँटकर अध्ययन कर सकते हैं:

पृथ्वी के पृष्ठ से ऊपर

  • चूँकि पिंड पृथ्वी के पृष्ठ से ऊपर है अर्थात् पिंड की पृथ्वी से दूरी पृथ्वी की त्रिज्या से अधिक होगी। यदि पिंड पृथ्वी के पृष्ठ से h ऊँचाई पर है तो :

       g = G× ME/ (RE+h)2

  • चूँकि (RE +h)2, 1 से बड़ी धनात्मक संख्या है। अतः स्पष्ट है कि g का मान कम हो जाएगा।

पृथ्वी के पृष्ठ से नीचे

  • हम केंद्र की ओर बढ़ते हैं। प्रभावी त्रिज्या एवं प्रभावी द्रव्यमान कम होता रहता है और गुरुत्वीय त्वरण भी ।
  • पृथ्वी के केंद्र पर जाते-जाते गुरुत्वीय त्वरण का मान पूर्णत: शून्य हो जाता है।

यह जानना रुचिकर होगा कि कोई भी पिंड पृथ्वी से चाहे जितनी भी अधिकतम दूरी पर स्थित हो, पृथ्वी द्वारा लगाया गया गुरुत्वाकर्षण बल कभी शून्य नहीं हो सकता।

गुरुत्वीय त्वरण से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • जब कोई वस्तु ऊँचाई से मुक्त रूप से गिराई जाती है तो गिरते समय वस्तु का वेग गुरुत्वीय त्वरण के कारण बढ़ता जाता है, कि वस्तु के द्रव्यमान के कारण।
  • एक ही समय पर स्वतंत्र रूप से गिराई गई दो भिन्न-भिन्न द्रव्यमान की वस्तुएँ एक साथ धरती के तल को स्पर्श करेंगी, यदि वे समान ऊँचाई से गिराई जाएँ।
  • चूँकि पृथ्वी पर हवा का घर्षण गिरती हुई वस्तु की चाल को प्रभावित करता है।
  • अतः व्यावहारिक रूप से ऐसा संभव नहीं है। लेकिन निर्वात में ऐसा संभव है, क्योंकि हवा का घर्षण शून्य होगा।
  • पृथ्वी के तल पर अलग-अलग जगह पर गुरुत्वीय त्वरण का मान अलग-अलग होगा।
  • ऐसा पृथ्वी का अपने अक्षीय घूर्णन एवं विशिष्ट आकार के कारण होता है।
  • ध्रुवों पर गुरुत्वीय त्वरण का मान अधिकतम होता है, क्योंकि ध्रुवों पर पृथ्वी की त्रिज्या विषुवत वृत्त की अपेक्षा कम होती है तथा घूर्णन का प्रभाव भी न्यूनतम होता है।
  • विषुवत वृत्त पर गुरुत्वीय त्वरण निम्नतम होता है, क्योंकि त्रिज्या अधिकतम एवं घूर्णन का प्रभाव भी अधिकतम होता है

पलायन वेग (Escape Velocity)

  • किसी वस्तु को ऊपर की ओर फेंकने पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण यह पृथ्वी पर वापस लौट आती है।
  • यदि वेग को बढ़ाते जाएँ तो अंत में एक ऐसा वेग आता है, जिससे फेंकने पर वस्तु पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र से बाहर निकल जाती है और पृथ्वी पर वापस नहीं लौटती है।
  • वह न्यूनतम वेग जिससे किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंकने पर वस्तु पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र का पार कर जाती है तथा पृथ्वी पर कभी लौटकर नहीं आती, ‘पलायन वेग’ कहलाता है। पलायन वेग पिंड के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है।
  • पृथ्वी के लिये पलायन वेग का मान 11.2 किमी./सेकंड है अर्थात् पृथ्वी तल से किसी वस्तु को 11.2 किमी./सेकंड या इससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाए तो वस्तु फिर पृथ्वी तल पर वापस नहीं आएगी।

नोट: कुछ स्रोतों में ‘पलायन वेग’ के स्थान पर ‘पलायन चाल’ भी लिखा मिलता है।

भार एवं भारहीनता (Weight and Weightlessness )

  • किसी पिंड पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण द्वारा आरोपित बल को पिंड का भार कहा जाता है। इसे W से निरूपित करते हैं।
  • गणितीय रूप से इसे निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जाता है:

W = mg

  • जहाँ m पिंड का द्रव्यमान है और g गुरुत्वीय त्वरण ।
  • यह एक सदिश राशि है, क्योंकि इसमें परिमाण एवं दिशा दोनों उपस्थित हैं।
  • पृथ्वी द्वारा आरोपित बल की दिशा सदैव पृथ्वी के केंद्र की ओर होती है।
  • पृथ्वी द्वारा आरोपित बल की प्रकृति, दैनिक जीवन में अनुभव किये जाने वाले अन्य बलों से अलग है।
  • इस बल के लिये पिंड का पृथ्वी से संपर्क में रहना आवश्यक नहीं है,
  • जबकि अन्य बल जैसे वायुगतिकी बल, घर्षण बल, उत्प्लावन बल इत्यादि के लिये पिंड का संपर्क आवश्यक है।
  • यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि हम अपने भार का अनुभव भी सिर्फ इसलिये कर पाते हैं,
  • क्योंकि पृथ्वी द्वारा आरोपित बल की प्रतिक्रिया (न्यूटन का गति विषयक तृतीय नियम) हम पर कार्य करती है, जिसका हमें अनुभव होता है।
  • अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्रियों की भारहीनता का कारण भी प्रतिक्रिया बल का शून्य होना है, क्योंकि अंतरिक्षयान और यात्री दोनों एकसमान त्वरण से पृथ्वी की ओर गिरते हैं।

लिफ्ट में भार

  • यदि लिफ्ट त्वरित गति से ऊपर जा रही हो तो व्यक्ति को अपना भार अधिक अनुभव होगा, क्योंकि प्रतिक्रिया बल बढ़ जाएगा।
  • यदि लिफ्ट नीचे आ रही हो तो भार कम अनुभव होगा, क्योंकि प्रतिक्रिया बल कम हो जाएगा।

उपग्रह (Satellite)

  • कोई ऐसा पिंड जो किसी ग्रह के परितः परिक्रमा करता है, उसे ‘उपग्रह’ मानव ‘ कहते हैं।
  • चंद्रमा पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह है।
  • वहीं आज ने अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कई अन्य कृत्रिम उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है।

भूस्थिर उपग्रह (Geo-Stationary Satellite)

  • ऐसे कृत्रिम उपग्रह (Artificial satellites), जिनका परिक्रमण (Revolution) काल पृथ्वी के घूर्णन (Rotation) काल के बराबर होता है, जिससे ये पृथ्वी के सापेक्ष स्थिर बने रहते हैं। ये उपग्रह अपनी कक्षा में पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर परिक्रमा करते हैं।
  • ये उपग्रह पृथ्वी तल से लगभग 36000 किमी. की ऊँचाई पर स्थित होते हैं।

उपग्रहों का कक्षीय वेग (Orbital Velocity of Satellite)

  • उपग्रह का कक्षीय वेग इस बात पर निर्भर करता है कि उपग्रह पृथ्वी से कितनी ऊँचाई पर स्थित है।
  • उपग्रह की ऊँचाई पृथ्वी तल से जितनी अधिक होगी, उसका वेग उतना ही कम होगा।
  • उपग्रह की चाल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है।

उपग्रह का परिक्रमण काल (Revolution Period of Satellite)

  • किसी उपग्रह द्वारा अ8पनी कक्षा में पृथ्वी का एक चक्कर लगाने में जितना समय लिया जाता है, उसे उपग्रह का ‘परिक्रमण काल’ कहते हैं।

पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा उपग्रह पृथ्वी पर नीचे इसलिये नहीं गिरता, क्योंकि पृथ्वी का आकर्षण बल पृथ्वी की कक्षा में आवश्यक गति के लिये त्वरण प्रदान करता है।

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