कोशिका: संरचना एवं कार्य

कोशिका (Cell)

कोशिका प्रत्येक जीवधारी की आधारभूत संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई है।

ऐसे जीव जो एक कोशिका से बने होते हैं उन्हें एककोशिकीय और ऐसे जीव जो एक से अधिक कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं उन्हें बहुकोशिकीय जीव कहते हैं।

कोशिका की खोज सर्वप्रथम रॉबर्ट हुक ने 1665 ई. में की थी।

सर्वप्रथम जीवित एवं मुक्त कोशिकाओं की खोज ल्यूवेनहॉक ने की थी।

कोशिका के अध्ययन के विज्ञान को कोशिका विज्ञान (Cytology) कहा जाता है।

संसार की सबसे छोटी कोशिका ‘माइकोप्लाज्मा गैलिसेप्टिकम’ (Mycoplasma Gallisepticum) नामक परजीवी जीवाणु की है एवं संसार की सबसे बड़ी कोशिका (Cell) शुतुरमुर्ग के अंडे (Egg of Ostrich ) की होती है।

मानव शरीर में पाई जाने वाली सबसे छोटी कोशिका सेरीबेलम की ग्रैन्यूल सेल (Granule Cell of Cerebellum) होती है। मानव शरीर में पाई जाने वाली सबसे बड़ी कोशिका अंडाणु (Ovum) की तथा सबसे लंबी कोशिका तंत्रिका तंत्र के न्यूरॉन (Neuron) की होती है।

कोशिका में पाए जाने वाले केंद्रक की उपस्थिति के आधार पर कोशिकाएँ मूल रूप से दो प्रकार की होती हैं 1. प्रोकैरियोटिक 2. यूकैरियोटिक

प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic Cells) यूकैरियोटिक कोशिका(Eukaryotic Cells)
Ø  इसमें स्पष्ट केंद्रक का अभाव होता है।

Ø  इसमें केंद्रक झिल्ली (Nuclear Membrane) और केंद्रिका (Nucleolus) अनुपस्थित होते हैं।

Ø  इनमें पाए जाने वाले गुणसूत्र (Chromosome), जो आनुवंशिक पदार्थ (DNA) द्वारा निर्मित होते है, वे कोशिका द्रव्य के विशेष क्षेत्र अर्थात् न्यक्लिओइड (Nucleoid) में मौजूद रहते हैं तथा कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) के संपर्क में रहते हैं।

Ø  कोशिका द्रव्य में राइबोसोम के कण उपस्थित होते हैं। परंतु झिल्ली युक्त कोशिकांग जैसे- माइटोकॉड्रिया, हरित लवक, गॉल्जीकाय, लाइसोसोम अनुपस्थित होते हैं।

Ø  इनमें DNA प्रोटीन के साथ जुड़ा नहीं होता एवं हिस्टोन प्रोटीन का पूर्णत: अभाव होता है।

Ø  इनमें गुणसूत्रों की संख्या केवल एक होती है।

Ø  इस प्रकार की कोशिकाएँ, जीवाणु तथा नील हरित शैवाल (Blue-green Algae) में पाई जाती हैं।

Ø  इनमें पूर्ण विकसित केंद्रक पाया जाता है।

Ø  इसमें केंद्रक झिल्ली और केंद्रिका उपस्थित होते हैं।

Ø  कोशिका द्रव्य में झिल्ली युक्त सभी कोशिकांग (Cell Organelles) उपस्थित होते हैं।

Ø  इनमें एक से अधिक गुणसूत्र पाए जाते हैं।

Ø  इसमें DNA प्रोटीन के साथ जुड़ा हुआ होता है तथा हिस्टोन प्रोटीन उपस्थित होता है।

Ø  विषाणु एवं जीवाणु को छोड़कर ये कोशिकाएँ सभी पौधे तथा जंतु में पाई जाती हैं।

 

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कोशिकाद्रव्यी अंगक (Cytoplasmic Organelles )

कोशिका द्रव्य में विभिन्न अंगक पाए जाते हैं जो एक निश्चित कार्य करते हैं। इनका वर्णन निम्नलिखित है

माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)

यह केवल यूकैरियोटिक कोशिका (Cell)  में पाई जाती है जिसका मुख्य कार्य श्वसन क्रिया को संपादित करना है। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में माइटोकॉण्ड्रिया के समरूप रचनाएँ मीसोसोम (Mesosome) पाई जाती  हैं, जो श्वसन तथा कोशिका विभाजन का कार्य करती हैं। माइटोकॉण्ड्रिया में ऑक्सीजन की उपस्थिति में भोजन के विखंडन से ऊर्जा मुक्त होती है जो ATP (Adenosine triphosphate) के रूप में संचित रहती है। यही कारण है कि माइटोकॉण्ड्रिया को ‘कोशिका का पावरहाउस’ कहा जाता है।

लवक (Plastid)

लवक सभी पादप कोशिकाओं व कुछ प्रोटोजोआ (जैसे- युग्लीना) में पाए जाते हैं। लवक कोशिका में पाए जाने वाले ‘सबसे बड़े अंगक’ होते हैं। इनमें पाए जाने वाले विशिष्ट प्रकार के वर्णकों के आधार पर शिम्पर ने इन्हें 3 वर्गों में बाँटा है

हरित लवक (Chloroplast)

यह पर्णहरित (Chlorophyll) की उपस्थिति के कारण हरे रंग का होता है। ये प्रकाश संश्लेषण क्रिया के केंद्र हैं इसलिये ये सिर्फ प्रकाश संश्लेषक पादप कोशिकाओं में ही पाए जाते हैं।

वर्णी लवक (Chromoplast)

ये हरे रंग को छोड़कर पौधों में पाए जाने वाले अन्य रंगों के लिये उत्तरदायी होते हैं। कच्चे टमाटर पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं क्योंकि उनके हरित लवक, वर्णी लवकों में परिवर्तित हो जाते हैं, अर्थात् तीनों प्रकार के लवक आपस में परिवर्तित हो सकते हैं।

रंग वर्णक
सेब का लाल रंग एन्थोसायनिन
टमाटर का लाल रंग लाइकोपिन
पपीते का पीला रंग कैरिकाजैन्थिन
गाजर का रंग कैरोटिन
हल्दी का रंग जैन्थोफिल

अवर्णी लवक (Leucoplast)

ये रंगहीन लवक है, जो पौधों के संचय अंगों में पाये जाते है। यह पौधों के उन भागों की कोशिकाओं में पाया जाता है, जो सूर्य प्रकाश से वंचित रहते हैं अर्थात् जड़ एवं भूमिगत तनों में, जैसे- मक्का, आलू, गेहूँ आदि।

अंतःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum)

ये कोशिका द्रव्य में पाई जाने वाली चपटी, नलिका सदृश रचनाएँ हैं, जो कोशिका (Cell) में अंतः झिल्लिका तंत्र (Membranous System) बनाती हैं। ये केंद्रक से कोशिका झिल्ली तक फैली हुई होती है। यह लाइपोप्रोटीन की बनी होती है। यह अंतः कोशिकीय परिवहन तंत्र का निर्माण करती है एवं केंद्रक से कोशिका द्रव्य में आनुवंशिक पदार्थों को ले जाने का पथ बनाती है। यह दो प्रकार की होती हैं

(a) चिकनी अंतःप्रदव्यी जालिका

इसकी सतह पर राइबोसोम्स की अनुपस्थिति के कारण यह चिकनी (Smooth) होती है। यह लिपिड तथा स्टीरॉइड संश्लेषण में सहायक होती है।

(b) खुरदरी अंतःप्रद्रव्यी जालिका

राइबोसोम्स की उपस्थिति के कारण यह खुरदरी होती है। यह प्रोटीन संश्लेषण व स्रवण में सक्रिय भाग लेती है।

गॉल्जी काय (Golgi Body)

गॉल्जी काय को पौधों में डिक्टियोसोम (Dictyosomes ) कहा जाता है। गॉल्जी काय का मुख्य कार्य मैक्रोमॉलिक्यूल्स (Macromolecules), जैसे कार्बोहाइड्रेट्स, लिपिड प्रोटीन, न्यूक्लिक एसिड का संवेष्टन (Packaging), संग्रहण (Storage) व प्रवण (Secretion) करना है। गॉल्जी काय ग्लाइकोलिपिड व ग्लाइकोप्रोटीन निर्माण का प्रमुख स्थल है।

राइबोसोम्स (Ribosomes)

ये राइबो न्यूक्लिक अम्ल (RNA) व प्रोटीन से बनी रचनाएँ हैं, जिन पर कोई आवरण नहीं पाया जाता। ये अंतःप्रद्रव्यी जालिका की झिल्लियों की सतह पर सटे होते हैं या फिर अकेले या गुच्छों में कोशिका द्रव्य में बिखरे रहते हैं। जंतु कोशिका में इन्हें सर्वप्रथम जॉर्ज पैलेड नामक वैज्ञानिक ने खोजा था, अतः इन्हें पैलेड कण (Palade Particle) भी कहा जाता है। राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होते हैं। राइबोसोम का निर्माण केंद्रिका के द्वारा होता है।

लाइसोसोम (Lysosome)

ये जंतु कोशिका में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इनका निर्माण गॉल्जी कायों में होता है तथा ये अंतः कोशिकीय पाचन के मुख्य स्थान होते हैं। कभी-कभी लाइसोसोम अपनी ही कोशिका का पाचन कर कोशिका को नष्ट कर देते हैं, इसी कारण इन्हें ‘आत्महत्या की थैली’ (Suicidal Bag ) कहा जाता है।

स्फीरोसोम (Sphaerosome)

ये पादप कोशिका के लाइसोसोम कहे जाते हैं। ये वसा का संश्लेषण व संग्रहण करते हैं।

तारक काय व तारक केंद्रक (Centrosome and Centriole)

यह सभी जंतु कोशिका व निम्न पादपों की कोशिकाओं (फंजाई. ब्रायोफाइटा, फर्न, जिम्नोस्पर्म) में पाया जाता है। तारक काय दो बेलनाकार संरचनाओं-तारक केंद्रकों से मिलकर बना होता है।

माइक्रोबॉडीज

(a) परॉक्सीसोम (Peraxisome)

यह पौधों में होने वाले ‘प्रकाशीय श्वसन’ (Photorespiration) तथा कोशिका में हाइड्रोजन परऑक्साइड (H.O.) उत्पादन में सहायक होता है।

(b) ग्लाइऑक्सीसोम (Glyoxysome)

यह मुख्यत: ग्लाइऑक्सीलेट-चक्र (ग्लूकोनियोजेनेसिस) में भाग लेता है।

रसधानी (Vacuole)

कोशिका द्रव्य में जल, रस तथा उत्सर्जित पदार्थों को घेरने वाली एक संरचना पाई जाती है, जिसे रसधानी कहते हैं। रसधानी एकल झिल्ली से घिरी होती है। पादप कोशिका में यह कोशिका का 90 प्रतिशत तक स्थान घेरती है एवं उसे कठोरता तथा सहारा प्रदान करती है। कुछ विशिष्ट रसधानियाँ अपशिष्ट पदार्थों के उत्सर्जन का कार्य भी करती हैं।

केंद्रक (Nucleus)

कोशिका में केंद्रक की खोज रॉबर्ट ब्राउन ने 1831 ई. में की थी। केंद्रक कोशिका का नियंत्रण केंद्र होता है। केंद्रक में क्रोमोसोम तथा जीन उपस्थित रहते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं (बैक्टीरिया यथा नील हरित शैवाल) आदि में केंद्रक पूर्ण विकसित नहीं होता है। इसी कारण इसे इनसिपिएन्ट न्यूक्लियस (Incipient Nucleus) कहते हैं। केंद्रक निम्नलिखित चार भागों से मिलकर बनता है

(a) केंद्रक झिल्ली (Nuclear Membrane)

यह दोहरी परत की एक झिल्ली है जो केंद्रक को चारों ओर से घेरे रहती है। इसके द्वारा केंद्रक कोशिका द्रव्य से पृथक् रहता है। बाहरी झिल्ली अंतः प्रद्रव्यी जालिका से जुड़ी होती है, जिस पर राइबोसोम्स भी पाए जाते हैं।

(b) केंद्रक द्रव्य (Nucleoplasm )

केंद्रक के अंदर गाढ़ा, अर्द्धतरल व पारदर्शी द्रव पाया जाता है, जिसे केंद्रक द्रव्य कहते हैं।

(c) केंद्रिका (Nucleolus)

केंद्रक के अंदर केंद्रक द्रव्य में एक छोटी गोलाकार झिल्ली रहित रचना पाई जाती है जिसे केंद्रिका कहते हैं। कोशिका विभाजन में केंद्रिका का विशेष महत्त्व होता है। यह राइबोसोमल RNA का संश्लेषण स्थल है, अतः इसे ‘RNA भंडारगृह’ कहा जाता है। सक्रिय रूप से प्रोटीन संश्लेषण करने वाली कोशिकाओं में केंद्रिका की संख्या अधिक व उनका आकार भी बड़ा होता है।

(d) क्रोमेटिन जालिका (Chromatin Network)

केंद्रक द्रव्य में अत्यधिक महीन व विस्तृत धागेनुमा रचनाएँ पाई जाती हैं, जिन्हें क्रोमेटिन जाल कहा जाता है। विभाजन के समय यही क्रोमेटिन जाल संघनित व व्यवस्थित होकर मोटी छड़ (Rod) जैसी होजाती है, जिसे गुणसूत्र (Chromosome) कहा जाता है। क्रोमेटिन डी एन.ए. एवं प्रोटीन से बनी रचना होती है।

गुणसूत्र (Chromosome )

कोशिका के केंद्रक में गुणसूत्र, महीन लंबे तथा कुंडलित धागे के रूप में दिखाई देते हैं तथा कोशिका विभाजन के समय ये स्पष्ट दिखाई देते हैं। गुणसूत्र का शीर्ष भाग टेलोमीयर (Telomere) कहलाता है। [ गुणसूत्र मुख्यत: DNA (= 40%) एवं क्षारीय हिस्टोन प्रोटीन (40% ) का बना होता है। सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में एक निश्चित संख्या में गुणसूत्र पाए जाते हैं। मनुष्य में 2n 46 (n 23 ) गुणसूत्र पाए जाते हैं। इनमें से 22 जोड़े स्त्री तथा पुरुष में समान रहते हैं लेकिन 23 वाँ जोड़ा स्त्री में XX तथा पुरुष में XY होता है। इसी 23वें जोड़े को लिंग गुणसूत्र कहा जाता है। मनुष्य की एक कोशिका में DNA, 46 गुणसूत्रों में इकट्ठा रहता है। गुणसूत्र आनुवंशिक सूचनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाने के लिये उत्तरदायी होते हैं।

कुछ सरीसृपों, जैसे मगरमच्छ, छिपकली इत्यादि में लिंग गुणसूत्र नहीं होते हैं। इन जीवों में लिंग का निर्धारण पर्यावरणीय ताप द्वारा होता है।

कोशिका (Cell)

डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड-डी.एन.ए. (Deoxyribonucleic Acid- DNA )

DNA एक न्यूक्लिक एसिड (Nucleic Acid) है जो प्रोटीन के साथ मिलकर गुणसूत्र की संरचना बनाता है। यह कोशिका के केंद्रक में धागे के रूप में फैला रहता है। डी.एन.ए. की कुछ मात्रा केंद्रक के अतिरिक्त माइटोकॉण्ड्रिया तथा क्लोरोप्लास्ट में भी पाई जाती है। मूल रूप से यह एक आनुवंशिक पदार्थ है जो लक्षणों (Traits) या गुणों को माता-पिता से संतानों में पहुँचाने का कार्य करता है। DNA की संरचना तीन प्रकार के पदार्थों (Materials) से निर्मित होती है

  1. नाइट्रोजन क्षार (Nitrogen Base)

(a)प्यूरीन (Purine)

(अ) एडिनीन(Adenine)

(ब) ग्वानीन (Guanine)

(b)पिरिमिडीन (Pyrimidine )

(अ) साइटोसीन(Cytosine)

(ब) थायमीन(Thymine)

  1. शुगर (Sugar)

DNA में 2-डी ऑक्सि राइबोस तथा RNA में राइबोस नाम की 5 कार्बन शुगर होती है।

  1. फास्फोरिक अम्ल (H3PO4)

DNA के नाइट्रोजन क्षारों में हमेशा एडिनीन (A) का थायमिन (T) के साथ एवं ग्वानीन (G) का साइटोसीन (C) के साथ युग्मन (Pairing) होता है। जबकि RNA में थायमीन (T) के स्थान पर यूरेसिल (U) नामक पिरिमिडीन क्षार पाया जाता है।

जेम्स वाट्सन तथा फ्राँसिस क्रिक ने 1953 में DNA की द्विकुंडलित संरचना (Double Helical Structure) प्रस्तुत की थी, जिसके लिये उन्हें 1962 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

राइबोन्यूक्लिक एसिड-आर.एन.ए. (Ribonucleic Acid-R.N.A.)

RNA कोशिका द्रव्य में बिखरा रहता है। यह एकल कुंडलित संरचना है। यह मुख्य रूप से प्रोटीन निर्माण की प्रक्रिया में भाग लेता है। यह एक गैर-आनुवंशिक पदार्थ है, यद्यपि यह कुछ वायरस, जैसे- टोबेको मोजेक वायरस (T.M.V.) आदि में यह आनुवंशिक पदार्थ की तरह कार्य करता है। RNA तीन प्रकार का होता है

  1. मैसेंजर RNA (m RNA )

यह DNA में अंकित सूचनाओं को प्रोटीन संश्लेषण स्थल (Protein Synthesis Site ) पर लाने का कार्य करता है।

  1. राइबोसोमल RNA (r RNA )

इसका निर्माण केंद्रिका (Nucleolus) में होता है। यह कोशिका में उपस्थित समस्त RNA का लगभग 80 प्रतिशत होता है। इसका मुख्य कार्य राइबोसोम के संरचनात्मक संगठन में सहायता प्रदान करना है।

  1. ट्रांसफर RNA (tRNA)

यह सभी RNA में सबसे छोटा RNA है। इसका मुख्य कार्य अमीनो अम्लों को प्रोटीन संश्लेषण स्थल पर लाना है।

tRNA की संरचना जानने में भारतीय मूल के जीव विज्ञानी एच.जी.खुराना (H.G. Khurana) का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके इस योगदान के लिये उन्हें नीरनबर्ग (Nirenberg) तथा रॉबर्ट होले (Robert Holley) के साथ संयुक्त रूप से 1968 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

DNA तथा RNA की तुलना (Comparison of DNA and RNA )

गुण DNA RNA
उपस्थिति केंद्रक, माइटोकॉण्ड्रिया तथा क्लोरोप्लास्ट में उपस्थित होता है। कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) तथा केंद्रक द्रव्य (Nucleoplasm) में उपस्थित होता है।
पिरिमिडीन क्षार साइटोसीन तथा थायमीन साइटोसीन तथा यूरेसिल
प्यूरीन क्षार एडिनीन तथा ग्वानीन एडिनीन तथा ग्वानीन
पेंटोज शुगर डीऑक्सी राइबोस राइबोस
कार्य आनुवंशिक सूचनाओं का हस्तांतरण प्रोटीन संश्लेषण

 

जीन (Gene)

जीन आनुवंशिकता की इकाई है। जीन DNA का वह भाग है जो किसी विशिष्ट कार्य को संपादित करता है। वायरस में जीन DNA अथवा RNA से बना होता है जबकि यूकैरियोटिक जीवों में यह केवल DNA का बना होता है। ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट (Human Genome Project) के अनुसार मानव में 20,000 से 25,000 मानव प्रोटीन कोडिंग जीन्स हैं। जीन अपना कार्य एंजाइम के माध्यम से करता है, अर्थात् किसी जीव में प्रत्येक जीन एक विशिष्ट एंजाइम का उत्पादन करता है जो विशिष्ट उपापचय (Metabolic) क्रिया को नियंत्रित करता है।

कोशिकीय उत्सर्जी पदार्थ(Cellular Excretory Substances)

ये मुख्यतः पादप कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जित पदार्थ होते हैं, जो पादपों के लिये अनुपयोगी होते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण उत्सर्जी पदार्थ निम्नलिखित हैं

अफीम (Opium): पोस्ता (Papaver Somniferum) के कच्चे फल से

कुनैन (Quinine): सिनकोना की छाल से

रेसर्पीन (Reserpine): राउवेल्फिया की जड़ों से

निकोटीन (Nicotine): तंबाकू की पत्तियों से

कैफीन (Caffeine): कॉफी के बीजों से

थीन (Theine): चाय की पत्तियों से

मैरीजुआना(Marijuana): भांग (कैनेबिस सटाइवा) से

एट्रोपीन (Atropine): एट्रोपा की जड़ों से

हींग (Asafoetida): फेरुला (Ferula Asafoetida) पौधे की जड़ों से प्राप्त रेजिन

रबर (Rubber) : हीबिया पौधे से प्राप्त लेटेक्स

कत्था (Catechu): एकेसिया पौधे की लकड़ी से

कॉर्क (Cork): ओक वृक्ष की छाल से

कोशिका विभाजन (Cell Division)

पैतृक कोशिका (Parent cell) से नई संतति कोशिकाओं (Daughter cell) के बनने की क्रिया कोशिका विभाजन कहलाती है। कोशिका विभाजन मुख्यतः दो प्रकार का होता है

समसूत्री विभाजन (Mitosis)

समसूत्री विभाजन में गुणसूत्रों की संख्या समान रहती है, अतः यह विभाजन कोशिकाओं के गुणन, वृद्धि, मरम्मत आदि के लिये होता है। समसूत्री विभाजन को मुख्यत: दो भागों में बाँटा गया है- (a) केंद्रक विभाजन (Karyokinesis) तथा (b) कोशिका द्रव्य विभाजन (Cytokinesis)

अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis)

यह विभाजन प्रजनन अंगों की कोशिकाओं में होता है। यह विशिष्ट प्रकार का कोशिका विभाजन है, जिसके द्वारा बनने वाली अगुणित संतति कोशिकाओं (Haploid Daughter Cells) में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है, इसलिये इसे अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन कहा जाता है। लैंगिक जनन करने वाले जीवधारियों में इस विभाजन द्वारा अगुणित युग्मक (Haploid Gamete) बनते हैं, जो निषेचन क्रिया द्वारा पुनः द्विगुणित (Diploid) अवस्था प्राप्त कर लेते हैं। मियोसिस के अंत में चार अगुणित कोशिकाएँ बनती हैं। मियोसिस दो चरणों में पूर्ण होता है- (a) अर्द्धसूत्री विभाजन I: गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है तथा (b) अर्द्धसूत्री विभाजन II: प्रत्येक गुणसूत्र के दो अर्द्धगुणसूत्र ( Chromatids) अलग-अलग हो जाते हैं।

कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य (Some Important Facts)

  • प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में श्वसन (Respiration) का कार्य मीसोसोम (Mesosome) करते हैं जबकि यूकैरियोटिक कोशिका में श्वसन का कार्य माइटोकॉण्ड्रिया करते हैं।
  • कोशिका झिल्ली (Cell Membrane) एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली (Semi Permeable Membrane) होती है। यह कुछ विशिष्ट अणुओं को ही अपने आर-पार आने या जाने देती है।
  • गॉल्जी काय (Golgi Body) का मुख्य कार्य कोशिका (Cell) द्वारा संश्लेषित प्रोटीन, वसा आदि की पैकेजिंग करना है।
  • गॉल्जी काय को कोशिका के अणुओं का Traffic Controller भी कहा जाता है।
  • हरित लवक (Chloroplast) को कोशिका का रसोईघर (Kitchen of the Cell) भी कहा जाता है क्योंकि इसमें प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन का निर्माण होता है।
  • कोशिका में ‘अचल संपत्ति’ न्यूक्लिक अम्ल को कहा जाता है।
  • अनियंत्रित समसूत्री विभाजन (Uncontrolled Mitosis) से कैंसर हो जाता है।
  • समसूत्री विभाजन वृद्धि, मरम्मत आदि के लिये आवश्यक होता है।
  • बुढ़ापे के लिये Ageing Gene जिम्मेदार होता है।
  • कुछ जीवाणुओं जैसे राइजोबियम के अंदर Nir Gene होता है जिसकी सहायता से ये जीवाणु नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) करने में सक्षम होते हैं।

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