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हाइड्रोजन (H)
- वनस्पति तेल तथा कार्बनिक पदार्थों के निर्माण में।
- अम्लों (HCI, H2SO4) के निर्माण में, धातुकर्मीय प्रक्रियाओं में।
- आण्विक हाइड्रोजन का उपयोग वेल्डिंग में होता है।
- रॉकेट के ईंधन के रूप में हाइड्रोजन गैस का उपयोग किया जाता है।
- हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन कहा जाता है।
जल (Water-H20)
- जल की विशिष्ट ऊष्मा अन्य द्रवों की अपेक्षा अधिक होती है।
- जल की तापीय चालकता, पृष्ठ तनाव डाइइलेक्ट्रिक स्थिरांक अन्य द्रवों की अपेक्षा अधिक होता है। अतः इन गुणों की उपस्थिति से जल विशेष गुण प्रदर्शित करता है।
- कैल्सियम एवं मैग्नीशियम के लवण जल को कठोर बनाते हैं। जल की कठोरता दो तरह की होती है- स्थायी तथा अस्थायी। जहाँ अस्थायी कठोरता को उबालकर आसानी से दूर किया जा सकता है। वहीं जल की स्थायी कठोरता को दूर करने के लिये कई रासायनिक विधियों का उपयोग किया जाता है।
- कठोर जल उपयुक्त नहीं है- पीने के लिये, कपड़े धोने में, सिंचाई के लिये एवं बॉयलर इत्यादि में।
सोडियम (Na)
- सोडियम प्रकृति में स्वतंत्र अवस्था में नहीं पाया जाता है, क्योंकि यह एक बहुत क्रियाशील धातु है।
- इसकी क्रियाशीलता के कारण ही प्रयोगशाला में इसे किरोसिन के तेल में डुबोकर रखा जाता है।
- सोडियम का उपयोग फॉस्ट ब्रीडर रिएक्टर में प्रशीतक के रूप में होता है।
- टेट्रा इथाइललेड के निर्माण में भी सोडियम प्रस्तुत होता है।
सोडियम के कुछ प्रमुख यौगिक एवं उनके उपयोग
सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH)
- साबुन, कृत्रिम सिल्क के निर्माण में।
- पेट्रोलियम के शुद्धीकरण में ।
- प्रयोगशाला अभिकर्मक के रूप में।
धावन सोडा (Na, CO, 10H, O)
- इसे सोडा ऐश भी कहते हैं।
- साबुन, बोरेक्स, काँच, कास्टिक सोडा इत्यादि के निर्माण में।
- जल की स्थायी कठोरता दूर कर उसे मृदु बनाने में।
- घरेलू कार्यों में व धुलाई संबंधी कार्यों के लिये।
खाने का सोडा (NaHCO3)
- खाद्य पदार्थों में (केक, ब्रेड आदि बनाने में) अग्निशामक यंत्रों में इसका उपयोग अग्निशमन के लिये किया जाता है।
ग्लॉबर्स साल्ट (Glaubers Salt)
Na2SO4.10H2 O इसका उपयोग शीशा निर्माण, कागज़ निर्माण,औषधि निर्माण, आदि में होता है।
सोडियम क्लोराइड (NaCl)
- इसका उपयोग खाने के नमक के रूप में होता है।
सोडियम परॉक्साइड (Na2 O2)
- यह एक पीले रंग वाला चूर्ण होता है। इसका उपयोग अस्पतालों व जहाजों आदि में बंद हवा को शुद्ध करने के लिये होता है।
- रँगाई में, प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। साथ ही ऊन आदि के विरंजन में भी इसका उपयोग होता है।
क्षारीय मृदा धातुएँ (Alkaline Earth Metals)
- S ब्लॉक के द्वितीय वर्ग में स्थित धातुओं को ‘क्षारीय मृदा धातु कहते हैं।
- इस वर्ग में बेरीलियम (Be), मैग्नीशियम (Mg), कैल्सियम (Ca), स्ट्रॉसियम (Sr), बेरीयम (Ba) व रेडियम (Ra) आदि स्थित हैं।
- बेरीलियम का उपयोग मिश्र धातुओं के निर्माण के लिये होता है।
- रेडियम का उपयोग कैंसर में उपचार के लिये किया जाता है।
मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड [Mg(OH)2]
- इसे मिल्क ऑफ मैग्नीशिया भी कहते हैं। इसका उपयोग पेट में अम्लीयता संबंधी समस्या दूर करने के लिये होता है।
- मैग्नीशियम से निर्मित अन्य प्रमुख यौगिक मैग्नीशियम सल्फेट(MgSO4), मैग्नीशियम कार्बोनेट (MgCO,), मैग्नीशियम एल्वा हैं।
- मैग्नीशियम एल्वा का प्रयोग पेट में अम्लीयता से संबंधित समस्या के उपचार के लिये किया जाता है।
कैल्शियम (Calcium)
- कैल्शियम प्रकृति में सल्फेट, फॉस्फेट, सिलिकेट, कार्बोनेट फ्लुराइड आदि के रूप में पाया जाता है।
- कैल्शियम स्वतंत्र अवस्था में नहीं पाया जाता है। यह मानव शरीर में हड्डियों के विकास के लिये मूलभूत तत्त्व है।
कैल्शियम के कुछ प्रमुख यौगिक एवं उसके उपयोग
कैल्शियम ऑक्साइड (CaO)
- यह एक अक्रिस्टलीय ठोस होता है। वायुमंडल में खुला रखने पर यह नमी व कार्बन डाईऑक्साइड का अवशोषण करता है।
- कीटाणुनाशी/रोगाणुनाशी होने की वज़ह से इसका उपयोग दीवारों की पुताई के लिये होता है।
- इसका उपयोग सीसा उद्योग, चर्म उद्योग में होने के साथ-साथ चीनी के शुद्धिकरण व ब्लीचिंग पाउडर के निर्माण में होता है।
कैल्सियम कार्बोनेट (CaCO3)
- यह प्रकृति में चूना पत्थर, संगमरमर आदि के रूप में पाया जाता है।
- इसका उपयोग भवन निर्माण, बुझे चूने के निर्माण आदि में होता है। यह मोती (Pearl) का मुख्य घटक है।
- कैल्सियम कार्बाइड का प्रयोग फलों को पकाने में किया जाता है।
- इसके अलावा एथिलीन, इथेफॉन रसायन का उपयोग भी फलों के पकाने में होता है।
प्लास्टर ऑफ पेरिस (CaSO4. H2 O)
- खिलौनों, मूर्तियों, आभूषणों एवं सजावट का सामान बनाने में।
- चिकित्सकीय कार्यों, विशेष रूप से टूटी-फूटी अस्थियों को उचित स्थान पर बैठाने के लिये।
- सीलिंग संबंधी कार्यों में।
बोरान (B)
- बोरान से बोरेक्स एवं बोरिक एसिड का निर्माण होता है। बोरेक्स और बोरिक एसिड का उपयोग औषधि निर्माण एवं औद्योगिक उपयोग के लिये किया जाता है।
- बोरान अग्निरोधी, कठोर और उच्च गलनांक वाला तत्त्व होता है।
- इसलिये इसकी उपयोगिता बढ़ जाती है। बोरान फाइबर का उपयोग बुलेट प्रूफ जैकेट, वायुयान में प्रयुक्त होने वाले हल्के उपकरणों के में निर्माण में होता है।
- नाभिकीय रिएक्टरों में प्रयुक्त नियंत्रित छड़ों का निर्माण बोरान से होता है।
- ऊष्मारोधी (heat resistant) शीशे के निर्माण में बोरेक्स अम्ल आर्थोबोरिक अम्ल का उपयोग होता है।
- चिकित्सीय साबुनों के निर्माण में बोरेक्स का उपयोग किया जाता है।
एल्युमिनियम
- यह एक प्रमुख धातु है। इसका उपयोग विद्युत तारों, बर्तन निर्माण, वायुयान निर्माण व औद्योगिक कार्यों के लिये किया जाता है।
कार्बन (Carbon)
- कार्बन मुक्त अवस्था में कोयला (Coal), हीरा व ग्रेफाइट में पाया जाता है, वहीं यह संयुक्त अवस्था में धात्विक कार्बोनेटों, कार्बन डाईऑक्साइड, हाइड्रोकार्बनों आदि में पाया जाता है। यह सर्वाधिक संख्या में यौगिक बनाने वाला तत्त्व है।
- इसके अलावा यह सभी जैविक प्राणियों का आवश्यक घटक है। कार्बन के तीन समस्थानिक ज्ञात हैं। 12C, 13C एवं 14C रेडियोएक्टिव होता है। 14C का प्रयोग रेडियो कार्बन डेटिंग में किया जाता है।
सिलिकॉन
- सिलिकॉन (Si) भी P ब्लॉक का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, जिसका उपयोग अभियांत्रिकी, सौर संयंत्रों के निर्माण, शीशा उद्योग आदि में होता है।
- पृथ्वी की भूपर्पटी में दूसरा सर्वाधिक (लगभग 28%) पाया जाने वाला तत्त्व है।
- क्वार्ट्ज़ (Quartz), ट्राइडाइमाइट (Tridymite) सिलिका के प्रमुख क्रिस्टलीय रूप हैं।
- सिलिकॉन (Silicons) एक प्रमुख पॉलीमर है, जिसका निर्माण सिलिका (Si) से होता है।
- सिलिकन पॉलीमर जल प्रतिरोधी है तथा सिलिकॉन का उपयोग सीलेंट (Selant), ग्रीस (greases), विद्युत अवरोधक (electrical insulator), वाटर प्रूफ मैटेरियल के साथ-साथ शल्य क्रियाओं एवं सौंदर्य में अभिवृद्धि हेतु की गई शल्य क्रियाओं में किया जाता है।-
नाइट्रोजन (N)
- नाइट्रोजन वायुमंडलीय गैसों का एक प्रमुख संघटक है।
- नाइट्रोजन की वायुमंडल में उपस्थिति 78% है। साथ ही नाइट्रोजन प्रोटीन और सभी जीवधारियों का आवश्यक घटक है।
नाइट्रोजन का उपयोग
- अमोनिया के उत्पादन में एवं उर्वरक उद्योग में विद्युत बल्बों में अक्रिय वातावरण उत्पन्न करने के लिये नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है।
- कृत्रिम गर्भाधान के लिये प्रयुक्त होने वाले वीर्य को तरल नाइट्रोजन में रखा जाता है।
- वायुयान के टायरों में नाइट्रोजन गैस भरी जाती है।
नाइट्रोजन के यौगिक
अमोनिया (NH3 )
- अमोनिया नाइट्रोजन का हाइड्राइड है। अमोनिया एक महत्त्वपूर्ण गैस है, जिसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में होता है।
- हाइड्रोजन और यूरिया (NH2 – CO-NH2) के निर्माण में अमोनिया का प्रयोग होता है।
- द्रवित अमोनिया का उपयोग प्रशीतकों में बर्फ जमाने के लिये होता है।
नाइट्रस ऑक्साइड (N2O)
- यह हँसाने वाली गैस के नाम से भी जानी जाती है।
नाइट्रिक अम्ल (HNO3)
- यह एक प्रमुख अम्ल है, जिसका उपयोग विस्फोटकों के निर्माण में, प्रयोगशाला में अभिकारक के रूप में, नाइट्रेट के उत्पादन, रॉकेट ईंधन के ऑक्सीकारक के रूप आदि में होता है।
नाइट्र्स अम्ल (HNO2)
- यह अम्ल बहुत अस्थायी प्रकृति का होता है। इसका उपयोग ऑक्सीकारक के रूप में होता है।
हाइड्राजीन (N2H2)
- इसका उपयोग रॉकेट में ईंधन के रूप में होता है।
फॉस्फोरस (P)
- फॉस्फोरस के कई अपररूप पाए जाते हैं।
- मुख्यतः सफेद फॉस्फोरस, लाल फॉस्फोरस और काला फॉस्फोरस हैं।
सल्फ्यूरिक एसिड (H2SO4)
- एक अति महत्त्वपूर्ण औद्योगिक रसायन है, इसका प्रयोग प्रयोगशाला में अभिकर्मक व औद्योगिक कार्यों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी होता है। कार एवं अन्य मोटर गाड़ियों की बैटरी में सल्फ्यूरिक अम्ल का प्रयोग किया जाता है।
सफेद फॉस्फोरस
- यह मोम जैसा ठोस अपारदर्शी पदार्थ होता है। यह जल में अविलेय और ज़हरीला होता है। यह अँधेरे में चमकता है।
लाल फॉस्फोरस
- यह भी जल में अविलेय होता है, परंतु न तो ज़हरीला होता है और न ही अँधेरे में प्रकाश उत्पन्न करता है। इसका उपयोग माचिस बनाने में होता है।
फॉस्फीन (PH3)
- फास्फीन का उपयोग संकेतक (signal) के रूप में होता है।
- तनु सल्फ्यूरिक अम्ल बनाने के लिये जल में सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल को मिलाया जाता है न कि सल्फ्यूरिक अम्ल में जल।
- यदि सांद्र अम्ल में जल मिलाया जाएगा तो अधिक ऊष्मा उत्पन्न होने के कारण मिश्रण का ताप अचानक बढ़ जाता है, जो खतरनाक हो सकता है।
हैलोजन (Halogens)
- आवर्त सारणी में P ब्लॉक के 17वें वर्ग में स्थित तत्त्वों को ‘हैलोजन’ कहते हैं।
- फ्लोरीन (F), क्लोरीन (CI), ब्रोमीन (Br), आयोडीन (I) व एस्टेटीन (At) को हैलोजन परिवार का सदस्य कहा जाता है।
- ये तत्त्व प्रकृति में स्वतंत्र अवस्था में नहीं पाए जाते हैं। फ्लोरीन व क्लोरीन गैसीय अवस्था में, ब्रोमीन द्रवित अवस्था में व आयोडीन ठोस
- अवस्था में पाया जाता है। एस्टेटीन एक रेडियोसक्रिय तत्त्व है। हैलोजन परिवार में स्थित तत्त्व बहुत क्रियाशील होते हैं।
- फलोरीन (F) सर्वाधिक विद्युत-ॠणात्मक तत्त्व है। हैलोजनों का उपयोग प्लास्टिक निर्माण में किया जाता है।
ब्रोमीन (Br)
- अग्निशमन पदार्थ के रूप में, सिल्वर ब्रोमाइड के औद्योगिक उत्पादन में, नींद की दवा के एक संघटक के रूप में आदि।
- ब्रोमीन एक ऐसी अधातु (तत्त्व) है, जो साधारण ताप पर द्रवित अवस्था में पाई जाती है।
आयोडीन (I)
- गलगंड (Goitre) बीमारी के लिये निर्मित दवा में, जीवाणुनाशक के रूप में इसका उपयोग होता हैं।
- समुद्र में पाए जाने वाले शैवाल-लैमिनेरिया में आयोडीन पर्याप्त मात्रा में में पाया जाता है।
एस्टेटीन (At)
- यह रेडियोसक्रिय तत्त्व होता है, जो बहुत अस्थायी प्रवृत्ति का होता है। यह भू-पर्पटी पर सबसे कम पाया जाने वाला तत्त्व है।
अक्रिय गैसें (Inert Gases)
- आवर्त सारणी के 18वें समूह में रासायनिक रूप से अक्रिय गैस हीलियम, नीऑन, ऑर्गन इत्यादि शामिल हैं। रासायनिक क्रियाशीलता के अभाव के कारण इन्हे ‘उत्कृष्ट गैस’ या ‘नोबेल गैस’ कहते हैं।
हीलियम (He)
- यह अज्वलनशील और कम घनत्व वाली गैस होती है। इसका उपयोग गोताखोरों द्वारा किया जाता है। कृत्रिम ऑक्सीजन का निर्माण हीलियम और ऑक्सीजन के मिश्रण से होता है। मौसम संबंधी आँकड़ों की जानकारी प्राप्त करने के लिये प्रक्षेपित गुब्बारों में हीलियम भरी जाती है।
नियॉन (Ne)
- इसका उपयोग विद्युत बल्बों में अक्रिय वातावरण उत्पन्न करने के लिये स्फुरदीप्त बल्बों में स्फुरण के लिये, विज्ञापनों में, हवाई अड्डों पर चालकों को संकेत देने के लिये किया जाता है।
आर्गन (Ar)
- धातुओं की वेल्डिंग (Welding) में, आग बुझाने के लिये, विद्युत बल्बों में अक्रिय वातावरण उत्पन्न करने के लिये। वायुमंडल में पाई जाने वाली सबसे अधिक अक्रिय गैस आर्गन है।
जेनॉन (Xe)
- अक्रिय गैसों में सर्वाधिक यौगिकों का निर्माण जेनॉन करती है। इसका उपयोग भी अक्रिय वातावरण उत्पन्न करने के लिये किया जाता है। इसे ‘स्ट्रैंजर गैस’ भी कहते हैं।
रेडॉन (Rn)
- रेडान का उपयोग कैंसर के उपचार में किया जाता है।
- ब्रह्मांड में सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्त्व हाइड्रोजन है।
धब्बारहित इस्पात (Stainless Steel)
- यह आयरन की एक मिश्रधातु है, जिसे कार्बन और आयरन को मिलाकर तैयार किया जाता है।
- आयरन में मिलाए गए अन्य धातु के आधार पर विभिन्न गुणों वाले इस्पात का निर्माण किया जाता है।
आयरन में कार्बन, क्रोमियम, निकिल, मैगनीज को एक निश्चित अनुपात में मिलाकर धब्बारहित स्टील का निर्माण किया जाता है। - आयरन से कार्बन की मात्रा बढ़ाकर ज्यादा कठोर इस्पात निर्माण किया जाता है। सामान्यतः यह 2 प्रतिशत से अधिक नहीं होता है।
- लोहे का शुद्ध रूप जो औद्योगिक कार्यों में प्रयोग होता है, ‘पिटवाँ लोहा’ कहा जाता है। इसमें कार्बन की मात्रा अत्यंत कम (0.04 – 0.08 प्रतिशत) होती है, जबकि ढलवा लोहे में कार्बन 3 से 5 प्रतिशत तक हो सकता है। हेमेटाइट, मैग्नेटाइट, लिमोनाइट सिडेराइट विभिन्न लौह अयस्क हैं।
तांबा (Cu)
- तांबे का प्रमुख अयस्क कॉपर पाइराइट होता है।
- तांबा अघातवर्ध्य व तन्य होता है, विद्युत सुचालक होता है। इसलिये इसका उपयोग विद्युत तारों के निर्माण में किया जाता है।
जस्ता (Zinc)
- जिंक प्रकृति में अपने विभिन्न अयस्कों में संयुक्त अवस्था में पाया जाता है। जिंक ब्लैंड इसका एक प्रमुख अयस्क है। जिंक ऊष्मा तथा विद्युत का सुचालक होता है। इसका उपयोग प्रयोगशालाओं में अभिकर्मक के निर्माण, मिश्र धातुओं के निर्माण के साथ-साथ औद्योगिक तथा चिकित्सकीय प्रयोगों के लिये होता है।
- इसका उपयोग लोहे के प्रतिरक्षण में होता है। लोहे को जंगरोधी बनाने के लिये उस पर जस्ते की पॉलिश की जाती है। इस प्रक्रिया को गैल्वेनाइजेशन (यशद-लेपन) कहते हैं।
- जस्ता (जिंक) के कुछ प्रमुख यौगिक
- जिंक सल्फेट: इसे ‘सफेद थोथा’ भी कहते हैं।
- जिंक ऑक्साइड: यह चिकित्सकीय दृष्टि से एक उपयोगी यौगिक है, जिसका उपयोग कृत्रिम दाँत व क्रीम आदि के निर्माण के लिये किया जाता है।
- लिथोपोनः इसका उपयोग रंगाई से संबंधी कार्यों के लिये होता है।
- जिंक सल्फाइड: इसमें स्फुर्दीप्त का गुण पाया जाता है।
- ज़िंक फॉस्फाइड: इसका उपयोग चूहा विष के रूप में होता है।
चांदी (Ag)
- यह प्रकृति में स्वतंत्र व मिश्रित दोनों अवस्थाओं में पाई जाती है।
- अर्जेंटाइट चांदी का मुख्य अयस्क है व चांदी का निष्कर्षण सामान्यतया अर्जेंटाइट से ही किया जाता है।
- चांदी ऊष्मा तथा विद्युत का सुचालक होता है। अब तक ज्ञात धातुओं में चाँदी सबसे अच्छा सुचालक है।
चाँदी के कुछ प्रमुख यौगिक
- सिल्वर क्लोराइडः इसका उपयोग फोटोक्रोमिक ग्लास बनाने में किया जाता है।
- सिल्वर ब्रोमाइड: इसका उपयोग फोटोग्राफी में किया जाता है।
- सिल्वर आयोडाइड: इसका उपयोग कृत्रिम वर्षा कराने के लिये किया जाता है।
- सिल्वर नाइट्रेट: यह चाँदी का एक प्रमुख यौगिक होता है। इसका उपयोग प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में होता है। मतदान के समय अंगुली में निशान लगाने के लिये प्रयुक्त स्याही सिल्वर नाइट्रेट की ही बनी होती है।
पारा (Hg)
- यह प्रकृति में स्वतंत्र अवस्था में, परंतु अल्प मात्रा में पाया जाता है।
- पारे का सबसे महत्त्वपूर्ण अयस्क सिनेबार है।
- पारा साधारण ताप पर द्रव अवस्था में रहता है। यह ऊष्मा का निम्न
- सुचालक तथा विद्युत का अच्छा सुचालक होता है।
- पारे का मिश्रधातु ‘अमलगम’ कहलाता है। लोहा, प्लेटिनम इत्यादि तत्त्व अमलगम नही बनातें हैं।
- पारे को ‘क्विक सिल्वर’ के नाम से भी जाना जाता है।
पारे के कुछ प्रमुख यौगिक
- मरक्यूरस क्लोराइड (Mercurous Chloride-Hg2Cl2)
- मरक्यूरिक क्लोराइड (Mercuric Chloride-HgCl2):
- यह कोरोसिव सब्लीमेट के नाम से भी जाना जाता है। इसका उपयोग नेल्सन अभिकर्मक के निर्माण तथा कीटाणुनाशकों के निर्माण में किया जाता है।
- मरक्यूरिक सल्फाइड (Mercuric Sulphide-HgS): इसका निर्माण सिंदूर निर्माण के लिये किया जाता है।
प्लेटिनम (Pt)
- यह इतना महत्त्वपूर्ण तत्त्व है कि इसे ‘सफेद सोना’ के नाम से जाना जाता है।
- एडम उत्प्रेरक एक प्रमुख उत्प्रेरक होता है, जो प्लेटिनम का ऑक्साइड (PtO2.H2O) होता है।
- इसका उपयोग प्रयोगशालाओं में उपकरणों, इलेक्ट्रोडों व मिश्र धातुओं एवं आभूषणों आदि के निर्माण में किया जाता है।
सोना (Au)
- यह प्रकृति में मुक्त व स्वतंत्र दोनों अवस्थाओं में पाया जाता है।
- केलोवेराइट व सिल्वेनाइट सोने के प्रमुख अयस्क हैं। मुख्यतया सोने का निष्कर्षण इन्हीं अयस्कों से किया जाता है।
- सोना एक मुलायम, तन्य, अघातवर्ध्य, चमकदार धातु है। इन गुणों से इस धातु के महत्त्व में अतिशय वृद्धि हो जाती है। सोना ऊष्मा तथा विद्युत का सुचालक होता है।
- सोने का उपयोग स्वर्ण सिक्कों के निर्माण, आभूषणों के निर्माण के साथ-साथ विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाली मशीनों के अति महत्त्वपूर्ण अवयव बनाने के लिये भी किया जाता है।
प्रमुख रेडियो सक्रिय तत्त्व
यूरेनियम (Uranium)
- यह एक अति महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। यह प्रकृति में स्वतंत्र अवस्था में नहीं पाया जाता है।
- परमाणु ऊर्जा उत्पादन में इसका उपयोग प्रमुखता से होता है।
- इसकी उपयोगिता की वज़ह से ही इसे ‘आशा धातु’ कहा जाता है।
प्लूटोनियम (Plutonium)
- f ब्लॉक की एक्टीनाइड श्रेणी में स्थित यह तत्त्व अत्यंत उपयोगी परमाणु बमों के निर्माण व नाभिकीय संयंत्रों में ईंधन के रूप में इसका है। उपयोग किया जाता है।
थोरियम (Thorium)
- यह एक रेडियो सक्रिय तत्त्व है, भारत में केरल तट पर मोनोजाइट में प्रचुर मात्रा में यह उपलब्ध है। भारत एक फास्टब्रीडर रिएक्टर बालू को विकसित करने के अंतिम चरण में है, जिसमें थोरियम का इस्तेमाल U-233 (यूरेनियम समस्थानिक) बनाने के लिये होगा।
उर्वरक (Fertilizer)
- यह कोई भी ऐसा ठोस, द्रव अथवा गैसीय पदार्थ है, जिसमें एक अथवा एक से अधिक ऐसे पोषक तत्त्व उपस्थित रहते हैं, जो वनस्पतियों के विकास में सहायक होते हैं।
सीमेंट
- यह एक बारीक चूर्ण होता है। सीमेंट का संघटन कैल्सियम ऑक्साइड (CaO) (60-70%) तथा सिलिकॉन डाईऑक्साइड लगभग (20 से 25% तक) चिकनी मिट्टी, एलुमिना एवं फेरिक ऑक्साइड आदि से मिलकर बनता है। इसका उपयोग मुख्यतः भवन निर्माण में किया जाता है।
काँच
- काँच का कोई निश्चित रासायनिक सूत्र नहीं होता है, क्योंकि यह एक मिश्रण है। साधारण रूप में इसे Na2Sio2.CaSiO3 4SiO2 से प्रदर्शित करते हैं। काँच के निर्माण में रेत, सोडा, एवं क्वार्ट्ज का उपयोग होता. है। काँच बनाने के लिये कच्चे माल को विभिन्न अनुपातों में मिलाकर द्रवित किया जाता है। उसके बाद उसे धीरे-धीरे ठंडा करके ठोस अवस्था में काँच प्राप्त कर लिया जाता है। इसलिये इसे ‘अतिशीतित द्रव’ भी कहते हैं।
कुछ विशेष काँच तथा उनका उपयोग
सोडा काँच
यह एक मृदु काँच है। इसका उपयोग खिड़कियों के निर्माण, दर्पण निर्माण एवं अन्य साधारण कार्यों के लिये होता है।
कठोर काँच
- यह पोटैशियम कार्बोनेट और चूना-पत्थर मिलाकर बनाया जाता है। इसका उपयोग कठोर काँच के उपकरणों के निर्माण में किया जाता है।
पाइरेक्स काँच
- इसके निर्माण में बोरेक्स का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग प्रयोगशाला उपकरण जैसे- बीकर, फ्लास्क आदि के निर्माण में किया जाता है।
फोटोक्रोमिक काँच
- यह तेज धूप में काला हो जाता है। इसका प्रयोग धूप से पर हेतु चश्मे के निर्माण में किया जाता है।
ग्लास फाइबर
- ऑप्टिकल फाइबर का निर्माण इन्हीं काँच से होता है। शल्यक्रियाओं में प्रयुक्त होने वाले काँच के पदार्थ इन्हीं से बनते हैं। दूरसंचार में भी इनका उपयोग होता है।
रासायनिक मिश्रणों को पृथक करने की विधियाँ
क्रिस्टलन (Crystallization)
- इस विधि के द्वारा अकार्बनिक ठोस पदार्थों में उपस्थित अशुद्धियों को दूर किया जाता है। यह विलेयता के सिद्धांत पर आधारित है। इस विधि में अशुद्धि युक्त ठोस मिश्रण को उचित विलायक में घोलकर गर्म किया जाता है तथा गर्म अवस्था में ही कीप द्वारा छान लिया जाता है, फिर विलयन को धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है, विलेय जब ठंडा होता है तो शुद्ध पदार्थ क्रिस्टल के रूप में अलग हो जाते हैं।
- उदाहरण- कॉपर सल्फेट का क्रिस्टलाइजेशन
आसवन (Distillation)
- यह द्रवों के मिश्रण को पृथक् करने की एक प्रमुख विधि है। इस विधि का उपयोग उन द्रवीभूत (Liquefied) मिश्रणों के लिये किया जाता है, जिनके क्वथनांकों में अंतर अधिक होता है। खनिज तेल (Crude Oil) से इस विधि द्वारा पेट्रोल, डीज़ल, पैराफिन मोम और मिट्टी के तेल को अलग किया जाता है।
वर्णलेखन (Chromatography)
- यह विधि मिश्रण के घटकों की भिन्न-भिन्न अधिशोषण (absorption) क्षमता पर आधारित है। जब उन्हें किसी अधिशोषक (absorbent) के साथ मिलाया जाता है तो अलग-अलग घटकों द्वारा तय = की गई दूरी अलग-अलग होती है।
उर्ध्वपातन (Sublimation)
- कुछ पदार्थ गर्म करने पर ठोस अवस्था से सीधे गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं, जो पदार्थ इस गुण को प्रदर्शित करते हैं, उन्हें ‘उर्ध्वपातज’ (sublimate) तथा इस पूरी प्रक्रिया को ‘उर्ध्वपातन’ (sublimation) कहते हैं।
- इस विधि से ऐसे मिश्रण को पृथक् किया जाता है, जिसमें एक उर्ध्वपातज होता है, जबकि दूसरा उर्ध्वपातज नहीं होता। उदाहरण कपूर, बेंजीन तथा अमोनियम क्लोराइड जैसे मिश्रणों को इस विधि से पृथक् करते हैं।
कुछ अन्य रासायनिक परिघटनाएँ
स्फुरदीप्ति (Phosphorescence)
- किसी रासायनिक पदार्थ, द्वारा प्रदर्शित वह घटना है, जिसमें वह पदार्थ सूर्य के प्रकाश में रखे जाने पर विकिरण को अवशोषित कर लेता है तथा प्रकाश से हटाए जाने के पश्चात् उनका उत्सर्जन करता है। यह अवशोषण तथा उत्सर्जन की प्रक्रिया शीघ्र घटित होती है। उदाहरण – कैल्सियम सल्फाइड
प्रतिदीप्ति (Fluorescence)
- ऐसी घटना जिसमें पदार्थ प्रकाश अथवा अन्य विद्युत चुंबकीय विकिरणों का अवशोषण करता है, जिससे पदार्थ के इलेक्ट्रॉन उत्तेजित अवस्था में आ जाते हैं, लेकिन जब प्रकाश स्त्रोत या अन्य किसी विद्युत चुंबकीय ऊर्जा स्रोत को हटा लिया जाता है तब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर में लौटते हैं, तथा प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं, इस घटना को ‘प्रतिदीप्ति’ कहते हैं।
- प्रतिदीप्ति और स्फुरदीप्ति में मुख्य अंतर यह होता है कि जहाँ स्फुरण प्रकाश का उत्सर्जन, प्रकाश स्रोत से पदार्थ को हटाने के बाद भी होता रहता है, वहीं प्रतिदीप्ति में पदार्थ प्रकाश सामने से हटने के पश्चात् तुरंत (immediate) प्रकाश का उत्सर्जन बंद कर देता है। उदाहरण- जेलीफिश द्वारा उत्सर्जित प्रतिदीप्ति, क्लोरोफिल अवयवों द्वारा उत्सर्जित प्रतिदीप्ति ।
उत्फुल्लन (Efflorescence)
- कुछ रासायनिक पदार्थों की (लवणों में) क्रिस्टलीय संरचना में जल की मात्रा अधिक होती है और ऐसे पदार्थ जब वायु के संपर्क में आते हैं तो जल वाष्प बनकर उड़ जाता है और वह रासायनिक पदार्थ क्रिस्टलयुक्त चूर्ण बन जाता है।
- उदाहरण: कॉपर सल्फेट- (CuSO4 5H2O) फेरस सल्फेट (FeSO4.7H2O)
भंजन (Cracking)
- जब उच्च अणुभार वाले हाइड्रोकार्बन ताप की उपस्थिति में निम्न अणु भार वाले अणुओं में टूटते हैं तो उस प्रक्रिया को भंजन कहते हैं।
किण्वन (Fermentation)
- जटिल कार्बनिक यौगिकों के अणुओं का एंजाइम (नाइट्रोजन युक्त पदार्थ) की उपस्थिति में टूटकर सरल कार्बनिक यौगिकों में बदलने की क्रिया को ‘किण्वन’ कहते हैं, उदाहरण- दूध का खट्टा होना, गन्ने के रस से शराब बनाना, फलों से बीयर (Beer) बनाना आदि।