आजाद हिंद फौज
- आज़ाद हिंद फौज की स्थापना का विचार सर्वप्रथम ब्रिटिश भारतीय सेना के अधिकारी मोहन सिंह के दिमाग में आया।
- सितंबर 1942 में आज़ाद हिंद फौज के पहले डिवीज़न का गठन किया गया।
- जुलाई 1943 में सुभाषचंद्र बोस सिंगापुर पहुँचे जहाँ इन्हें आज़ाद हिंद फौज का सर्वोच्च सेनापति घोषित कर दिया गया।
- सिंगापुर में सैनिकों का आह्वान करते हुए सुभाषचंद्र बोस ने कहा था- “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा । “
- सुभाषचंद्र बोस ने 21 अक्तूबर, 1943 को सिंगापुर में भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की तथा रंगून को मुख्यालय बनाया।
- जर्मनी तथा जापान ने इस अस्थायी सरकार का समर्थन किया।
- सुभाषचंद्र बोस ने रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर रानी झाँसी रेजीमेंट नामक स्त्री सैनिकों का एक दल बनाया।
- नवंबर 1943 में जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप सुभाषचंद्र बोस को सौंप दिये।
- सुभाषचंद्र बोस ने इनका नाम क्रमश: शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप रखा।
- अप्रैल 1944 में भारत की मुख्य भूमि पर आज़ाद हिंद फौज (INA) द्वारा सर्वप्रथम मोइरांग नगर (वर्तमान मणिपुर में) में अपना झंडा फहराया गया।
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- 1945 में आज़ाद हिंद फौज के सिपाहियों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
- इसके पश्चात् सरकार द्वारा इन पर लाल किले में मुकदमा चलाने का फैसला किया गया।
- बचाव पक्ष के वकीलों में भूलाभाई देसाई प्रमुख थे तथा सप्रू, काटजू एवं आसफ अली इनके सहायकों में थे।
- सरकार ने लाल किले में चले संक्षिप्त मुकदमे के तहत आज़ाद हिंद फौज के सिपाहियों गुरुबख्श सिंह ढिल्लों, प्रेम कुमार सहगल, शाहनवाज खाँ को फाँसी की सज़ा दी।
- सरकार इस निर्णय के विरुद्ध व्यापक जनविरोध के कारण विवश होकर वायसराय को माफी दे दी।
- अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग कर इन कैदियों वेवेल योजना तथा शिमला सम्मेलन (1945)
- 14 जून, 1945 को भारत के वाससराय लॉर्ड वेवेल ने एक योजना प्रस्तुत की, जिसमें निम्नलिखित बातें थीं
- केंद्र में एक कार्यकारी परिषद् का गठन किया जाना था जिसमें वायसराय एवं कमांडर इन चीफ के अतिरिक्त शेष सदस्य भारतीय रहेंगे।
- परिषद् में हिंदू एवं मुसलमानों की संख्या बराबर रखी जाएगी।
- इस कार्यकारी परिषद् को तभी तक शासन कार्य का संचालन करना था जब तक नए संविधान पर आम सहमति न बन जाए।
- वेवेल द्वारा प्रस्तुत की गई इस योजना पर विचार-विमर्श करने के उद्देश्य से 25 जून, 1945 को शिमला सम्मेलन का आयोजन किया गया।
- शिमला सम्मेलन में कांग्रेस के प्रतिनिधि के तौर पर अबुल कलाम आज़ाद ने हिस्सा लिया तथा मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के तौर पर जिन्ना शामिल हुए।
- सम्मेलन में जिन्ना द्वारा प्रस्तुत यह प्रस्ताव कि वायसराय की कार्यकारिणी के सभी मुस्लिम सदस्य मुस्लिम लीग से ही लिये जाएँ
- क्योंकि मुस्लिम लीग ही मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था है, सम्मेलन की असफलता का कारण बना।
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1945 का चुनाव
- चुनाव में कांग्रेस ने केंद्रीय परिषद् में आधे से अधिक सीटों पर विजय प्राप्त की।
- प्रांतीय चुनावों के पश्चात् कांग्रेस ने मद्रास, बंबई, संयुक्त प्रांत, बिहार, उड़ीसा, असम तथा मध्य प्रांत में अपनी सरकार गठित की।
- जबकि मुस्लिम लीग को केवल बंगाल एवं सिंध में ही पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ।
- पंजाब में खिज्र हयात खाँ के नेतृत्व में यूनियनिस्ट पार्टी की सरकार बनी।
नौ-सेना विद्रोह (1946)
- 18 फरवरी, 1946 को रॉयल इंडियन नेवी के एच.एम.आई.एस. तलवार के 1100 नाविकों ने नस्लवादी भेदभाव, खराब भोजन तथा कम वेतन प्रतिवाद में हड़ताल कर दी।
- इन सैनिकों ने बी.सी. दत्त नामक नाविक को, जिसे जहाज़ की दीवारों पर भारत छोड़ो लिखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था छोड़ने की मांग की।
- सरकार के दमनात्मक रुख को देखते हुए वल्लभभाई पटेल तथा मुहम्मद अली जिन्ना ने नाविकों को आत्मसमर्पण के लिये तैयार किया।
- अंततः 23 फरवरी, 1946 को इस आश्वासन के बाद कि इनका दमन नहीं किया जाएगा,
- इन विद्रोही नाविकों ने सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
कैबिनेट मिशन (1946)
- 24 मार्च, 1946 को भारतीय नेताओं से भारत का संविधान तैयार करने के संबंध में बातचीत करने
- तथा एक अंतरिम सरकार के गठन करने के उद्देश्य से कैबिनेट मिशन दिल्ली पहुँचा।
- कैबिनेट मिशन के सदस्य थे- पेथिक लॉरेंस, स्टेफोर्ड क्रिप्स तथा ए.वी. एलेक्जेंडर।
- कैबिनेट मिशन का मुख्य कार्य संविधान निर्माण की प्रक्रिया को आरंभ करना था।
- संविधान को बनाने वाली संविधान सभा प्रांतीय विधान सभाओं के द्वारा चुनी जानी थी।
- कैबिनेट मिशन ने पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया।
संविधान सभा के लिये चुनाव
- संविधान सभा के लिये 1946 में चुनाव हुए जिसमें ब्रिटिश भारत की 296 सीटों में से 208 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की।
- चुनाव के पश्चात् वायसराय ने अंतरिम सरकार की स्थापना के लिये कांग्रेस एवं लीग के सामने एक प्रस्ताव रखा।
- इस प्रस्ताव के तहत अंतरिम सरकार में 14 सदस्यों को नियुक्त किया जाना था
- जिसमें से 6 सदस्यों को कांग्रेस द्वारा मनोनीत किया जाना तय हुआ,
- 5 मुस्लिम लीग तथा 3 अन्य अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित प्रतिनिधि नियुक्त किये जाने थे।
- मुस्लिम लीग ने वायसराय के इस प्रस्ताव को नामंजूर कर पाकिस्तान की मांग को मज़बूती प्रदान करने के उद्देश्य से 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाया।
- इस दिन पश्चिम बंगाल में वीभत्स सांप्रदायिक दंगे हुए जिसमें हज़ारों की संख्या में लोग मारे गए।
अंतरिम सरकार का गठन
- 2 सितंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल के 11 सदस्यों के साथ शपथ ली।
- 26 अक्तूबर, 1946 को मुस्लिम लीग भी सरकार में शामिल हो गई
- किंतु मुस्लिम लीग का सरकार में प्रवेश करने का उद्देश्य सरकार के कामकाज में बाधा पहुँचाना
- तथा पाकिस्तान की मांग की लड़ाई को आगे बढ़ाना था।
- 9 दिसंबर 1946 को दिल्ली में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में
- संविधान सभा की पहली बैठक का आयोजन किया गया जिसका मुस्लिम लीग ने बहिष्कार किया।
- 20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा की कि जून 1948 से पहले भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित कर दी जाएगी।
लॉर्ड माउंटबेटन योजना (3 जून योजना)
- मार्च 1947 में माउंटबेटन वायसराय बनकर भारत आया।
- 3 जून को माउंटबेटन ने भारत के विभाजन के साथ सत्ता हस्तांतरण की एक योजना प्रस्तुत की।
- इसे माउंटबेटन योजना अथवा 3 जून योजना के नाम से जाना जाता है।
- 3 जून योजना के अंतर्गत 15 अगस्त, 1947 को सत्ता हस्तांतरण का दिन निश्चित किया गया।
- ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई, 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनिमय पारित किया।
- उसके अनुसार 15 अगस्त, 1947 से भारत को दो स्वतंत्र प्रदेशों- भारत और पाकिस्तान में बाँट दिया गया।
देशी रियासतों की स्थिति (स्वतंत्रता के पश्चात्)
- भारत विभाजन योजना (3 जून योजना) में रियासतों को यह छूट प्रदान की गई थी कि वे किसी भी राज्य भारत अथवा पाकिस्तान में शामिल हो सकती हैं।
- जूनागढ़ की जनता ने भारत में शामिल होने की इच्छा जताई किंतु यहाँ का नवाब पाकिस्तान में शामिल होना चाह रहा था।
- इस परिस्थिति में भारतीय सैनिकों ने राज्य पर कब्ज़ा करके जनमत संग्रह (फरवरी 1948) कराया जो भारत के पक्ष में था।
- फलस्वरूप जूनागढ़ रियासत को भारत का अंग बना लिया गया।
- हैदराबाद का निज़ाम स्वतंत्र रूप से शासन करने का इच्छुक था,
- किंतु इसके तेलंगाना क्षेत्र में आंतरिक विद्रोह को देखते हुए भारतीय सेना ने हस्तक्षेप किया तथा 1948 में इसे भारत का अंग बना लिया गया।
- कश्मीर की जनता भारत में सम्मिलित होने की इच्छुक थी, किंतु वहाँ के तत्कालीन महाराजा अभी अनिर्णय की स्थिति थे।
- इसी दौरान पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर आक्रमण कर इसे पाकिस्तान में शामिल करना चाहा,
- किंतु कश्मीर के महाराजा ने भारत के साथ संधि कर भारत में शामिल होने का फैसला किया।