Uniform civil code क्यों है जरुरी ? जानिए सबकुछ :

Uniform civil code (UCC) के बारे में सबकुछ

UNIFORM CIVIL CODE

चर्चा में क्यों है?

केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर एक विवादित बयान दिया है । जिसकी वजह से यह एक बार फिर से चर्चा का विषय बना है।

समान नागरिक संहिता क्या है?

कानून: यह नियमों और विधियों का एक समूह होता है जो किसी विशिष्ट क्षेत्र में लागू होता है । इसका उद्देश्य लोगों को न्याय प्रदान करना है । कानून की श्रेणियां– इसकी दो श्रेणियां हैं। सिविल कानून– इसके माध्यम दो संगठनों या दो व्यक्तियों के बीच विवादों को सुलझाने की कोशिश की जाती है । इसके अंतर्गत संपत्ति ,धन, आवास, तालाब, बच्चों को गोद लेना आदि आते हैं। आपराधिक कानून –यह समाज के खिलाफ हुए अपराधों से संबंधित है । इसके अंतर्गत हत्या, रेप ,आगजनी ,डकैती ,हमला आदि आते हैं। भारत में अपराधिक कानून सभी पर एक समान लागू होते हैं चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो । लेकिन भारत के सिविल कानूनों में अधिकांश विषयों में समानता नहीं है ।  सिविल कानून धर्म और आस्था के आधार पर बदलते हैं। जैसे – यदि यदि आप हिंदू धर्म से हैं तो आप पर अलग तरह के कानून लागू होंगे । यदि आप मुस्लिम या किसी अन्य धर्म से हैं तो आप पर अलग तरह के कानून लागू होंगे। अधिकांश सिविल मामलों में कानून धार्मिक ग्रंथों के आधार पर तय होते हैं । हिंदू में विवाह ,तलाक और बच्चों को गोद लेने के लिए अलग कानून लागू होता है। मुस्लिम में विवाह ,तलाक और बच्चों को गोद लेने के लिए अलग कानून लागू होता है।

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समान नागरिक संहिता – 

उद्देश्य –देश में एक ऐसे कानून का निर्माण करना है जिसमें विवाह, तलाक ,विरासत, गोद लेने आदि जैसे मामलों पर सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू हो। जिसमें धार्मिक ग्रंथों का हस्तक्षेप न हो ।  इसका उद्देश्य न केवल धर्मों के बीच बल्कि धर्म के अंदर भी महिला और पुरुषों के बीच समानता सुनिश्चित करना है।

समान नागरिक संहिता का इतिहास

इसकी उत्पत्ति औपनिवेशिक भारत के दौरान हुई। 1835 में ब्रिटिश सरकार ने एक रिपोर्ट पेश की जिसमें अपराधों ,सबूतों और अनुबंधों से संबंधित कानून में एकरूपता लाने पर जोर दिया गया था । साथ ही हिंदू और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इससे बाहर रखा जाना था।  1941 में देश का धार्मिक ढांचा और अधिक जटिल हो गया । हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया । इस समिति ने आजादी के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की। इस समिति के आधार पर हिंदुओं और सिखों के कानूनो का संहिताकरण किया गया। इसके बाद हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम पारित किया गया । हालांकि इसके बाद भी मुस्लिम ,ईसाई और पारसियों के लिए अलग-अलग कानून लागू रहे । भारत में समान नागरिक संहिता का इतिहास काफी पुराना है।

भारतीय संविधान और सर्वोच्च न्यायालय का मत

  • अनुच्छेद 44 में कहा गया है राज्य समग्र भारतीय क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा ।
  • अनुच्छेद 44  राज्य के नीति निदेशक तत्वों (DPSP) का हिस्सा है ।
  • अनुच्छेद 35 में कहा गया है कि DPSP गैर प्रवर्तनी है । संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करने की गारंटी नहीं दी गई है । 
  • न्यायपालिका के द्वारा समय-समय पर समान नागरिक संहिता लागू करने पर जोर दिया गया है। उदाहरण के लिए– शाह बानो विवाद (1985)– न्यायपालिका ने संसद को समान नागरिक संहिता पारित करने का आदेश दिया था । सरला मुग्दुल केश (1995)– न्यायपालिका ने द्विविवाह प्रथा के मुद्दे को संबोधित करते हुए समान नागरिक संहिता लागू करने का आदेश दिया था ।

सामान नागरिक संहिता के मायने

संवेदनशील वर्ग का संरक्षण –

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि इसका उद्देश्य महिलाओं समेत अन्य संवेदनशील वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है ,साथ ही राष्ट्रवादी भावना को भी बढ़ावा देना है। धर्म के आधार पर बनाए गए कानूनों में महिलाओं को समान अधिकार नहीं दिए गए हैं । इस कानून के माध्यम से महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार मिल सकेगा। 

कानूनों का सरलीकरण–

देश के सभी धर्मों में विवाह ,तलाक ,विरासत ,उत्तराधिकार, गोद लेने संबंधी अलग-अलग कानून हैं। भारत ने पर्सनल लॉ फ्रेमवर्क काफी जटिल है । समान नागरिक संहिता से इन कानूनों को सरल किया जा सकता है।

व्यक्तिगत कानून विकास में बाधा

विकसित देशों (US,UK) में व्यक्तिगत कानून नहीं है। इस तरह के कानून तर्कहीन मान्यताओं पर आधारित होते हैं । समय के साथ समाज और देश के विकास में बाधा बनते हैं । समान नागरिक संहिता से इनको प्रथाओं को समाप्त किया जा सकता है ।

न्यायपालिका पर बोझ–

हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि उच्च न्यायालयों में 4.64 मिलियन और जिला न्यायालयों में 31 मिलियन मामले अभी पेंडिंग में है । पर्सनल लॉ की जटिलता इसका प्रमुख कारण है । ऐसे में यदि समान नागरिक संहिता लागू किया जाता है तो ऐसे मामलों में कमी आएगी । जिससे न्यायपालिका पर बोझ कम होगा।

UCC लागू करने में चुनौतियां 

संवेधानिक प्रावधानों के विरोधाभासी

अनुच्छेद 25– सभी व्यक्तियों के अंतः करण की स्वतंत्रता का और धर्म के आबाद रूप से मानने का अधिकार है।

अनुच्छेद 26– सभी धर्मों का अपने धार्मिक मामलों को प्रबंधित करने का अधिकार प्रदान करता है। समान नागरिक संहिता से इन अनुच्छेद का उल्लंघन होगा । समान नागरिक संहिता के लिए सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा।

देश की विविधता के लिए खतरा–

भारत में अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं । उनकी अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं और सिद्धांत हैं। उन्हें एक ही नजरिए से देखना भारत की विविधता के लिए खतरा है । 2018 में विधि आयोग ने भी समान नागरिक संहिता को नकार दिया था।

अल्पसंख्यकों पर प्रभाव–

समान नागरिक संहिता लागू होने से अल्पसंख्यकों के बीच अपनी पहचान खोने का डर भी है। अल्पसंख्यक UCC को बहुसंख्यकों के द्वारा लादे गए जबरन कानून के रूप में देखेंगे ।अल्पसंख्यकों को विश्वास दिलाना भी एक बड़ी चुनौती है।

सरकार क्या मानती है?

कोई हस्तक्षेप नहीं (1991–2014)

सरकार ने माना था कि UCC लाने से अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तिगत कानूनों में बदलाव लाना अनिवार्य हो जाएगा । सरकार ने कहा था कि अल्पसंख्यक समुदाय के कानूनों में हस्तक्षेप नहीं करेगी । जब तक ऐसे बदलावों की पहल समुदाय द्वारा नहीं किया जाता।

हित धारकों के परामर्श पर अधिक जोर (2014–19) –

UCC लागू करने के लिए सरकार ने अल्पसंख्यकों के साथ परामर्श पर जोर दिया। 2021 में भारत सरकार ने 21वे विधि आयोग से समान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच करने का आग्रह किया।

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