अकार्बनिक रसायन (Inorganic Chemistry)

अकार्बनिक रसायन (Inorganic Chemistry)

परमाणु त्रिज्या (Atomic Radii)

  • परमाणु त्रिज्या, परमाणु के नाभिक व उसके बाह्यतम इलेक्ट्रॉन कक्षक के बीच की दूरी होती है।

आयनन एन्थैल्पी (Ionization Enthalpy)

  • एक विलगित गैसीय परमाणु (Isolated Gaseous Atom) की सबसे बाहरी कक्षा में स्थित अंतिम इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिये आवश्यक ऊर्जा को प्रथम ‘आयनन एन्थैल्पी’ कहते हैं।
  • दूसरा इलेक्ट्रॉन निकालने के लिये आवश्यक ऊर्जा को द्वितीय आयनन एन्थैल्पी कहते हैं।
  • द्वितीय आयनन एन्थैल्पी का मान प्रथम आयनन एन्थैल्पी से अधिक होता है क्योंकि उदासीन परमाणु की तुलना में धनात्मक आयन से इलेक्ट्रॉन पृथक् करना कठिन होता है।
  • द्वितीय आयनन एन्थैल्पी > प्रथम आयनन एन्थैल्पी इसी तरह से तृतीय आयनन एन्थैल्पी > द्वितीय आयनन एन्थैल्पी और यह प्रक्रिया ऐसे ही आगे बढ़ती है।

इलेक्ट्रॉन बंधुता (Electron affinity)

  • जब एक गैसीय परमाणु इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने के पश्चात् ऋणायन में परिवर्तित होता है तो इस दौरान उत्सर्जित हुई ऊर्जा को ‘इलेक्ट्रॉन बंधुता’ कहते हैं।

विद्युत ऋणात्मकता (Electronegativity)

  • परमाणु के रासायनिक यौगिक में सहसंयोजक आबंध के इलेक्ट्रॉन युग्म को अपनी ओर आकर्षित करने की योग्यता का गुणात्मक माप विद्युत ऋणात्मकता है।

तत्त्व एवं उनका वर्गीकरण

  • तत्त्वों को व्यवस्थित रूप से रखने के क्रम में आवर्त सारणी का विकास हुआ और इसी क्रम में प्रसिद्ध रसायनज्ञ दमित्री इवानोविच मेंडलीव ने अपनी आवर्त सारणी प्रस्तुत की, जो तत्त्वों के वर्गीकरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण बिंदु था, फिर 1913 में प्रसिद्ध अंग्रेज़ भौतिक वैज्ञानिक हेनरी मोजले ने तत्त्वों के अभिलाक्षणिक X- किरण स्पेक्ट्रमों में नियमितता के आधार पर अपना सिद्धांत प्रस्तुत किया। मोजले के सिद्धांतों के आधार पर मेंडलीव की आवर्त सारणी में संशोधन किया गया और आधुनिक आवर्त सारणी का विकास हुआ।

आधुनिक आवर्त नियम

  • तत्त्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांकों के आवर्ती फलन (Periodic) होते हैं।

आधुनिक आवर्त सारणी (Modern Periodic Table)

  • आवर्त सारणी में दिखने वाली क्षैतिज लाइनों को आवर्त तथा उर्ध्वाधर स्तंभों को ‘वर्ग’ कहते हैं।
  • आवर्त सारणी में तत्त्वों के वर्गीकरण का मूल आधार ऑफबाऊ का सिद्धांत है।
  • सामान्यतया एक वर्ग में स्थित तत्त्व समान गुणधर्म दर्शाते हैं तथा सभी तत्त्वों का विभाजन उनके गुणों में भिन्नता के आधार पर s, p, d और f ब्लॉक किया गया है।

S ब्लॉक के तत्त्व

  • ये सभी तत्त्व अभिक्रियाशील धातुएँ हैं। वर्ग में क्रमशः नीचे की ओर बढ़ने पर इन तत्त्वों का धात्विक गुण तथा अभिक्रियाशीलता क्रमशः बढ़ती है। जैसे: हाइड्रोजन (H), लिथियम (Li), सोडियम (Na) इत्यादि ।

P ब्लॉक के तत्त्व

  • आवर्त सारणी में बाएँ से दाएँ बढ़ने पर इन तत्त्वों का धात्विक गुण घटता है।
  • वहीं ऊपर से नीचे (वर्ग में) बढ़ने पर इस वर्ग के धात्विक गुणों में वृद्धि होती है। जैसे: बोरान (B), कार्बन (C), नाइट्रोजन (N) इत्यादि ।

d ब्लॉक के तत्त्व

  • इस ब्लॉक के तत्त्वों की रासायनिक क्रियाशीलता S ब्लॉक के तत्त्वों से कम तथा P ब्लॉक के तत्त्वों से अधिक होती है। इन तत्त्वों को संक्रमण तत्त्व कहते हैं। जैसे: कोबाल्ट (Co), कॉपर (Cu), जिंक (Zn) इत्यादि ।

f ब्लॉक के तत्त्व

  • इन तत्त्वों को इनके रासायनिक गुणों के आधार पर दो श्रेणियों में बाँटा गया है—लैंथेनाइड व एक्टिनाइड। जैसे: यूरेनियम (U), प्लूटोनियम(Pu) इत्यादि।

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अष्टक नियम (Octet Rule)

  • यह नियम रासायनिक आबंध (बंध) के इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस नियम के अनुसार परमाणुओं का युग्मन (Bonding, जुड़ाव) संयोजी इलेक्ट्रॉन के एक परमाणु से दूसरे परमाणु पर स्थानांतरण के द्वारा अथवा संयोजी इलेक्ट्रॉनों की सहभागिता (sharing) द्वारा होता है।
  • इस जुड़ाव की प्रक्रिया में सभी परमाणु अपने संयोजकता कोश में आठ इलेक्ट्रॉन प्राप्त करते हैं, इसी वजह से उस नियम को ‘अष्टक नियम’ कहते हैं।

संयोजी इलेक्ट्रॉन (Valence Electron)

  • परमाणुओं के बाह्य कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों को ‘संयोजी इलेक्ट्रॉन’ कहते हैं।

धनायन (Cation)

  • परमाणु जब अपनी बाहरी कक्षा में स्थित इलेक्ट्रॉन को त्याग कर धन आवेशित होते हैं तो उसे ‘धनावेशित’ अथवा ‘धनायन’ कहते हैं।

ऋणायन (Anion)

  • कोई परमाणु जब इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणावेशित होता है तो उसे  ‘ऋणायन’ कहते हैं।

संयोजकता (Valency)

  • किसी तत्त्व के
  • से उस तत्त्व की ‘संयोजकता’ कहते हैं। संयोजकता के स्थान पर अब ऑक्सीकरण अवस्था शब्द का प्रयोग किया जाता है।

रासायनिक बंध (Chemical Bond)

  • किसी रासायनिक अणु या यौगिक के विभिन्न अवयवों (अणु, परमाणु या आयन) के बीच लगने वाले आकर्षण बलों को रासायनिक बंध (Chemical Bond) कहते हैं।
  • रासायनिक आबंध के तीन प्रकार हैं- वैद्युत संयोजक आबंध, सहसंयोजक आबंध, उपसहसंयोजक आबंध।
  • वैद्युत संयोजक आबंध (Electrovalent Bond)
  •  दो परमाणुओं के बीच इस प्रकार के बंध तब बनते हैं, जब एक तत्त्व से दूसरे तत्त्व की ओर एक या अधिक इलेक्ट्रॉन का स्थानांतरण होता है।
  • इसे ‘आयनिक आबंध’ भी कहते हैं।

सहसंयोजक आबंध (Covalent Bond)

  • जब दो परमाणु अपनी बाह्यतम कक्षा के इलेक्ट्रॉनों का आपस में साझा करके संयोग करते हैं, तब उनके बीच स्थित बंध को ‘सहसंयोजक बंध’ कहते हैं।
  • सहसंयोजी आबंध परमाणु कक्षकों के अतिव्यापकता से बनते हैं, उदाहरणस्वरूप हाइड्रोजन का अणु बनने में इसके दो परमाणुओं 1s कक्षकों का अति व्यापन होता है। कक्षकों के अति व्यापन के आधार पर सहसंयोजी आबंध दो प्रकार का होता है।
  1. सिग्मा आबंध
  2. पाई आबंध

उपसहसंयोजक आबंध (Coordinate bond)

  • इस प्रकार के बंध बनाने में साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म केवल एक ही परमाणु प्राप्त होता है, जबकि दूसरा परमाणु इन इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करता है।

संकरण (Hybridisation)

  • पॉलिंग ने परमाणु कक्षकों के संकरण का सिद्धांत दिया और यह बताया कि परमाणु कक्षक संयोजित होकर समतुल्य कक्षकों का समूह बनाते हैं, जिसे ‘संकर कक्षक’ कहते हैं और इस परिघटना को ‘संकरण’ कहते है। उदाहरणस्वरूप कार्बन का एक 2s कक्षक तथा तीन 2p कक्षक संकरण द्वारा चार नए sp3 संकर कक्षक का निर्माण करते हैं।

हाइड्रोजन आबंध (Hydrogen Bond)

  • यह बंध उन अणुओं के मध्य पाया जाता है, जिनमें अतिध्रुवीय N-H, O – H या H – F आबंध उपस्थित होते हैं।
  • क्लोरीन (CI) परमाणु भी हाइड्रोजन आबंधन में भाग लेते हैं।
  • हाइड्रोजन सल्फाइड और हाइड्रोजन क्लोराइड की तुलना में जल का क्वथनांक अधिक होने का कारण हाइड्रोजन बंध ही है।

जालक एन्थैल्पी (जालक ऊर्जा)

  • किसी आयनिक ठोस के एक मोल यौगिक को गैसीय अवस्था में संघटक आयनों में पृथक् करने के लिये आवश्यक ऊर्जा को उस यौगिक की जालक एन्थैल्पी कहते हैं।

आबंध लंबाई

  • किसी अणु में आबंधित परमाणुओं के नाभिकों के बीच साम्यावस्था दूरी ‘आबंध लंबाई’ कहलाती है।

आबंध कोटि (Bond Order)

  • सहसंयोजी आबंध में किसी अणु में दो परमाणुओं के मध्य आबंधों की संख्या ‘आबंध कोटि’ कहलाती है।
  • एक इलेक्ट्रॉन युग्म द्वारा संयुमित दो परमाणु एकल सहसंयोजी आबंध (Single Covalent Bond) द्वारा ‘आबंधित’ कहलाते हैं। जैसे हाइड्रोजन अणु ।
  • जब दो परमाणुओं के मध्य दो इलेक्ट्रॉन युग्मों का साझा हो तो उनके बीच के बंध को ‘द्वि-आबंध’ (Double Bond) कहते हैं। जैसे ऑक्सीजन का अणु
  • जब संयोजी परमाणुओं के मध्य तीन इलेक्ट्रॉन युग्मों का साझा हो तो इसे ‘त्रि – आबंध’ कहते है। जैसे-N, अणु ।

बंधन ऊर्जा (Bond Energy)

  • गैसीय स्थिति में दो परमाणुओं के बीच विशिष्ट आबंधों के एक मोल को तोड़ने के लिये आवश्यक ऊर्जा को ‘बंधन ऊर्जा’ कहते है।
  • बंधन ऊर्जा का क्रमः एकल बंध < द्विबंध < त्रिबंध
  • बंध दूरी का क्रम: एकल बंध > द्विबंध > त्रिबंध
  • बंध की क्रियाशीलता: एकल बंध < द्विबंध < त्रिबंध
  • जब दो परमाणुओं के बीच आबंध बनता है तो निकाय की ऊर्जा पहले से कम हो जाती है।

रासायनिक अभिक्रियाओं में ऊर्जा का उत्सर्जन तथा अवशोषण

ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया (Exothermic Reaction) वे रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमें रासायनिक अभिक्रिया के दौरान ऊर्जा का उत्सर्जन होता है, ‘ऊष्माक्षेपी अभिक्रियाएँ’ कहलाती हैं।

उदाहरण: C + O2 → CO2 + ऊष्मा

ऊष्माशोषी अभिक्रियाएँ (Endothermic Reaction)

वे रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमें रासायनिक अभिक्रियाँ के दौरान ऊर्जा का अवशोषण होता है, ‘ऊष्माशोषी रासायनिक अभिक्रियाएँ’ कहलाती हैं। उदाहरण: N2 +O2+ ऊर्जा → 2NO

उत्क्रमणीय अभिक्रिया (Reversible Reaction): वे सभी रासायनिक अभिक्रियाएँ जो दोनों दिशाओं में होती हैं अर्थात् अभिकारक, उत्पाद में तथा उत्पाद, अभिकारक में परिवर्तित हो सकते हैं, ‘उत्क्रमणीय अभिक्रियाएँ’ कहलाती हैं।उदाहरण: N2(g) + 3H2 (g)2NH3 (g)

अनुत्क्रमणीय अभिक्रियाएँ (Irreversible Reactions): वे रासायनिक अभिक्रियाएँ जो एक दिशा में (One directional) होती है अर्थात् उत्पाद, अभिकारक में परिवर्तित नहीं होते, ‘अनुत्क्रमणीय अभिक्रियाएँ’ कहलाती हैं।उदाहरण: NaOH + HCl → NaCl + H2O

रासायनिक अभिक्रिया के वेग को प्रभावित करने वाले कारक

अभिकारकों की सांद्रता: अभिकारकों की सांद्रता अधिक होने पर अभिक्रिया का वेग भी अधिक होता है।

ताप: साधारणतया ताप में वृद्धि से रासायनिक अभिक्रियाओं के वेग में वृद्धि होती है, क्योंकि उच्च ताप के कारण आणविक गति बढ़ जाती है। (उष्माशोषी अभिक्रिया में)

अभिकारकों की प्रकृतिः अभिकारकों की प्रकृति भी अभिक्रिया के वेग को प्रभावित करती है।  अभिकारकों की अवस्थाएँ (ठोस, द्रव, गैस) भी अभिक्रिया के वेग को प्रभावित करती हैं।

उत्प्रेरक की उपस्थितिः उत्प्रेरक की उपस्थिति रासायनिक अभिक्रिया के वेग को तीव्र अथवा मंद कर सकती है।

विकिरण भी रासायनिक अभिक्रिया के वेग को प्रभावित करते हैं।

ऑक्सीकरण (Oxidation)

ऑक्सीकरण वह रासायनिक अभिक्रिया है जिसमें रासायनिक स्पीशीज (परमाणु-आयन) द्वारा इलेक्ट्रॉन का त्याग किया जाता है।

Cu → Cu2+ + 2e

अपचयन (Reduction)

  • वह रासायनिक अभिक्रिया जिसमें रासायनिक स्पीशीज द्वारा इलेक्ट्रॉन ग्रहण किया जाता है, अपचयन अभिक्रिया कहलाती है। उदाहरण: I2 +2e2I

अपचयोपचय अभिक्रिया (Redox Reaction)

  • ऐसी रासायनिक अभिक्रिया जिसमें आक्सीकरण, अपचयन दोनों हों, ‘अपचयोपचय अभिक्रिया’ (Redox Reaction) कहलाती है।

संक्षारण (Corrosion)

  • संक्षारण में धातुएँ वायु में उपस्थित ऑक्सीजन से क्रिया करके ऑक्सीकृत हो जाती हैं और धातुओं पर ऑक्साइड की एक पतली परत बन जाती है, उदाहरण- लोहे पर जंग लगना, चांदी का रंग उड़ना, कॉपर एवं पीतल पर हरे रंग का लेप चढ़ना इत्यादि ।

अम्ल व क्षार (Acid and Base)

अम्ल (Acid)

  • कोई ऐसा पदार्थ जो क्षारकों (bases) से क्रिया करने पर जल व लवण बनाता हो या जिसमें एक अथवा एक से अधिक हाइड्रोजन आयन विद्यमान हों, ‘अम्ल’ कहलाता है।
  • आरहेनियस के अनुसार, “वे पदार्थ जो जल में घुलने के पश्चात् हाइड्रोजन आयन (H+) देते हैं।”
  • HCl + जल H ++ Cl

अम्लराज (Aqua regia): यह ताजा सांद्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और सांद्र नाइट्रिक अम्ल को 3:1 के अनुपात में मिलाने पर प्राप्त होता है। यह अम्ल सोना और प्लेटिनम जैसी धातुओं को गलाने में सक्षम है।

अम्ल का उपयोग

  • फोटोग्राफी में कपड़े की रँगाई एवं कागज छापने में।
  • प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में।
  • खाद्य पदार्थों के संरक्षण में (बेंजोइक अम्ल का उपयोग)।
  • धातुओं की सफाई, जीवाणुनाशक एवं अन्य उपयोग में।

क्षारक (Bases)

  • वे पदार्थ जो अम्लों से क्रिया करके लवण एवं जल बनाते हैं, क्षार कहलाते हैं।
  • इनका स्वाद कड़वा होता है आरहेनियस के अनुसार, “वे पदार्थ जो जल में घुलने पर हाइड्रॉक्साइड आयन (OH) देते हैं।
  • लिटमस पेपर : ऐसे विलयन जो लाल लिटमस पेपर को नीला कर देते हैं, क्षारीय होते हैं तथा नीले लिटमस पेपर को लाल करने वाले विलयन अम्लीय होते हैं।
  • लिटमस रोसेला नामक लाइकेन से प्राप्त किया जाता है।

लवण (Salt)

  • जब अम्ल और क्षारक के बीच में रासायनिक अभिक्रिया होती है तो जल व लवण बनते हैं।
  • अम्लों और क्षारकों के बीच होने वाली इस अभिक्रिया को ‘उदासीनीकरण’ कहते हैं।
  • उदाहरण:HCl+ NaOH NaCl + H2O + ऊष्मा

pH स्केल

  • यह हाइड्रोजन आयन सांद्रता मापने का एक पैमाना (Scale) होता है।
  • यह मोल प्रति लीटर में हाइड्रोजन आयन सांद्रता का ऋणात्मक लागरिथम (बेस 10) है।
  • pH = -log [H+]
  • संक्षेप में pH मान के अनुसार ही हम पदार्थों की प्रकृति के संबंध में अनुमान लगाते हैं कि वह अम्लीय है कि क्षारीय अथवा उदासीन है।
  • बफर विलयन (Buffer solution)
  • वे सभी विलयन जिनमें अम्ल अथवा क्षार की अल्प मात्रा मिलाए जाने पर वे अपनी प्रभावी अम्लता अथवा क्षारकता बनाए रखते हैं तथा नए अम्ल अथवा क्षार की मात्रा से नगण्य रूप से प्रभावित होते हैं, उदाहरण- सोडियम एसीटेट एवं एसीटिक एसिड का मिश्रण।

विलयन की सांद्रता (Concentration of Solution) विलयन की सांद्रता विलायक में घुले हुए विलेय के द्रव्यमान के संदर्भ में व्यक्त करते हैं

% विलेय = विलेय का द्रव्यमान /विलयन का द्रव्यमान × 100

ठोसों की द्रवों में विलेयता

  • सामान्यतः ऊष्माशोषी अभिक्रिया (विलेय की विलायक में घुलते समय होने वाली क्रिया) हो तो ताप बढ़ने पर विलेयता बढ़ती है और यदि अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी हो तो विलेयता कम होती है।
  • ठोस जब द्रव में विलेय होता है तो साधारणतया दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

गैसों की द्रवों में विलेयता

  • जब कोई गैस किसी द्रव में विलेय होती है तो उस पर पड़ने वाले दाब के प्रभाव को हेनरी महोदय ने स्पष्ट किया।
  • उनके अनुसार, “यदि ताप स्थिर हो तो किसी गैस की द्रव में विलेयता द्रव अथवा विलयन के सतह पर पड़ने वाले गैस के आंशिक दाब के समानुपाती होती है।

हेनरी के नियम का दैनिक जीवन में उदाहरण

  • शीतल पेय पदार्थों में CO2 की विलेयता बढ़ाने के लिये बोतल को अधिक दाब पर बंद किया जाता है।
  • अधिक ऊँचाई पर दाब कम होने की वजह से रक्त में ऑक्सीजन की सांध्रता में कमी के कारण आरोहकों को कमजोरी का अनुभव होना।
  • जब गोताखोर समुद्र में गहराई तक जाते हैं तो वहाँ दाब अधिक होने के कारण उनके रक्त में वायुमंडलीय गैसों की विलेयता बढ़ जाती है।

परासरण (Osmosis)

  • कम सांद्रता वाले विलयन से अधिक सांद्रता वाले विलयन की ओर अर्द्धपारगम्य झिल्ली ऐसी झिल्ली (Membrane), जो किसी पदार्थ को एक ही दिशा की ओर प्रवाहित होने देती है में से विलायक के गुजरने की क्रिया ‘परासरण’ कहलाती है।
  • परासरण की क्रिया में विलायक द्वारा अर्द्धपारगम्य झिल्ली पर आरोपित दाब ‘परासरण दाब’ कहलाता है।

प्रतिलोम परासरण (Reverse Osmosis)

  • परासरण की प्रक्रिया की ठीक विपरीत क्रिया अर्थात् विलायक का विलयन में से पलायन करना ‘प्रतिलोम परासरण’ कहलाता है, उदाहरण आजकल इस क्रिया का उपयोग समुद्री जल को शोधन के द्वारा पीने योग्य बनाने में किया जा रहा है।

वैद्युत अपघटन (Electrolysis)

  •  वह क्रिया, जिसमें जब किसी आयनिक यौगिक (द्रवित अवस्था) में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह सरल पदार्थों (substance) में अपघटित होता है।
  • वैद्युत अपघटनी सेल- वह बर्तन जिसमें वैद्युत अपघट्य पदार्थों को लेकर विद्युत अपघटन की क्रिया कराई जाती है, उसे ‘वैद्युत अपघटनी सेल’ कहते हैं।

वैद्युत अपघटन का उपयोग

  • विद्युत मुद्रण (Electrotyping) में।
  • निम्न कोटि की धातु सुरक्षा अथवा उसके सौंदर्य को बढ़ाने के लिये विद्युत लेपन किया जाता है।
  • धातुओं के विद्युत निष्कर्षण में- ताँबा (Cu), सोना (Au), चाँदी आदि का निष्कर्षण विद्युत अपघटन के माध्यम से किया जाता है।
  • विद्युत अपघटन की सहायता से बहुत सारे यौगिकों का भी निर्माण किया जाता है।

विद्युत रासायनिक सेल (Electrochemical Cell)

  • विद्युत रासायनिक सेल वह युक्ति होती है, जिसके माध्यम से रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है अथवा विद्युत ऊर्जा की सहायता से रासायनिक अभिक्रिया को तीव्र किया जाता है।

शुष्क सेल

  • शुष्क सेल जस्ते के बर्तन में मैगनीज डाइऑक्साइड, अमोनियम क्लोराइड, कार्बन आदि के मिश्रण को भरकर बनाया जाता है, जिसमें कार्बन की छड़ कैथोड तथा जस्ते का बर्तन एनोड का कार्य करता है।
  • जस्ते की दीवार और मिश्रण के बीच अमोनियम क्लोराइड की लुग्दी भर दी जाती है।
  • यह अमोनियम क्लोराइड विद्युत अपघट्य के रूप में कार्य करता है। इसके लिये जिंक क्लोराइड का भी उपयोग किया जाता है।
  • इस प्रकार के सेल एक बार प्रयोग में आ जाने के बाद दोबारा आवेशित नही किये जा सकते हैं।

ईंधन सेल (Fuel cell)

  • वे सभी गैल्वेनी सेल जो हाइड्रोजन, मीथेन एवं मेथेनाल जैसे ईंधनों की रासायनिक ऊर्जा (दहन ऊर्जा) को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं, उन्हें ‘ईंधन सेल’ कहते हैं।
  • जहाँ ऊष्मीय ऊर्जा संयंत्रों की दक्षता लगभग 40 फीसदी होती है, वहीं ईंधन सेलों की दक्षता 70 फीसदी होती है।
  • ये सेल अन्य ऊर्जा स्त्रोतों की अपेक्षा कम पर्यावरणीय प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।

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