काशी तमिल संगम | Kashi Tamil Sangam

काशी तमिल संगमम

काशी तमिल संगम ख़बरों में क्यों है?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में महीने भर चलने वाले काशी तमिल संगम का उद्घाटन किया। यह कार्यक्रम “आज़ादी का अमृत महोत्सव” के भाग के रूप में और एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को बनाए रखने के लिये भारत सरकार द्वारा की गई एक पहल है।

काशी तमिल संगमम क्या है?

काशी तमिल संगम भारत के उत्तर और दक्षिण के बीच ऐतिहासिक एवं सभ्यतागत संबंधों के कई पहलुओं का जश्न है। इसका व्यापक उद्देश्य ज्ञान और सांस्कृतिक परंपराओं (उत्तर एवं दक्षिण की) को करीब लाना, हमारी साझा विरासत की समझ विकसित करने के साथ इन क्षेत्रों के लोगों के बीच संबंध को और मज़बूत करना है। इसे भी पढ़ें : COP-27 जलवायु शिखर सम्मेलन | COP-27 Climate Summit

यह शिक्षा मंत्रालय द्वारा अन्य मंत्रालयों जैसे संस्कृति, कपड़ा, रेलवे, पर्यटन, खाद्य प्रसंस्करण, सूचना और प्रसारण आदि तथा उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के अनुरूप है, जो समकालीन ज्ञान प्रणालियों के साथ भारतीय ज्ञान प्रणालियों की समृद्धि के सामंजस्य पर जोर देती है। IIT मद्रास और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) इस कार्यक्रम के लिये कार्यान्वयन एजेंसियाँ हैं।

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काशी तमिल संगम का सांस्कृतिक महत्त्व-

15वीं शताब्दी में मदुरै के आसपास के क्षेत्र पर शासन करने वाले राजा पराक्रम पांड्या भगवान शिव का एक मंदिर बनाना चाहते थे और उन्होंने एक शिवलिंग को वापस लाने के लिये काशी (उत्तर प्रदेश) की यात्रा की। वहाँ से लौटते समय वे रास्ते में एक पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिये रुके और फिर जब उन्होंने यात्रा हेतु आगे बढ़ने की कोशिश की तो शिवलिंग ले जा रही गाय ने आगे बढ़ने से बिल्कुल मना कर दिया।

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पराक्रम पंड्या ने इसे भगवान की इच्छा समझा और शिवलिंग को वहीं स्थापित कर दिया, जिसे बाद में शिवकाशी, तमिलनाडु के नाम से जाना जाने लगा। जो भक्त काशी नहीं जा सकते थे उनके लिये पांड्यों ने काशी विश्वनाथर मंदिर का निर्माण करवाया था, जो आज दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु में तेनकासी के नाम से जाना जाता है और यह केरल के साथ इस राज्य की सीमा के करीब है।

श्रोत– Pib. gov

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