आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने पर चर्चा | Discussion on curbing the financing of terrorism

आज पूरी दुनिया में आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है। अस्पष्ट रूप एवं चरित्रों के विभिन्न आतंकवादी समूह, नए किस्म का साइबर आतंकवाद, बढ़ते ‘लोन वुल्फ’ हमले—ये सभी हिंसा के अशुभ खतरों को बढ़ा रहे हैं। भारत ने आतंकवाद का आघात झेला है और पिछले कुछ दशकों में कई बड़े शहरों में विवेकहीन हिंसक विस्फोटों में जान-माल की गंभीर हानि देखी है।

प्रौद्योगिकी और संचार में परिवर्तनों एवं प्रगति के साथ जैसे-जैसे दुनिया सिकुड़ती जा रही है, आतंकवादियों, हथियारों और धन का राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार जाना भी सरल होता जा रहा है। इस परिदृश्य में विभिन्न देशों के कानून प्रवर्तन प्राधिकारों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग स्थापित करना ऐसी सीमा पार चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये अनिवार्य हो गया है।

आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये भारत की प्रमुख पहलें

  • 26/11 आतंकवादी हमले के बाद भारत ने आतंकवाद को लेकर एक बेहद गंभीर रुख अपनाया है। जनवरी 2009 में आतंकी अपराधों से निपटने के लिये राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (National Investigation Agency- NIA) की स्थापना की गई थी।
  • भारत में गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Amendment Act- UAPA) प्राथमिक आतंकवाद विरोधी कानून है।
  • सुरक्षा से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिये नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) की स्थापना की गई है।
  • आतंकवादी हमलों पर त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (National Security Guard- NSG) हेतु एक ‘ऑपरेशनल हब’ का सृजन किया गया है ।

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आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पहलें

  • संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद विरोधी कार्यालय (UNOCT)
  • ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNDOC) की आतंकवाद निरोधक शाखा (TPB)
  • वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (FATF)
  • आतंकवाद के विरुद्ध भारत का वार्षिक संकल्प (India’s Annual Resolution on Counter-Terror)

आतंकवाद के वित्तपोषण

भारत में आतंकवाद से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • आतंकवाद की कोई वैश्विक परिभाषा नहीं: आतंकवाद के संघटन के संदर्भ में इसकी कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है, इसलिये किसी गतिविधि/कृत्य विशेष को आतंकवादी कृत्य के रूप में वर्गीकृत करना कठिन है, जो फिर आतंकवादियों को एक बढ़त प्रदान करती है और कुछ देशों को चुप रहने तथा वैश्विक संस्थाओं के पटल पर किसी भी कार्रवाई को वीटो करने का अवसर देती है।
  • आतंकवाद का बढ़ता जाल: इंटरनेट एक अपेक्षाकृत अनियमित एवं अप्रतिबंधित स्थान प्रदान करता है जहाँ आतंकवादी वेबसाइटों और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों की असीमित संख्या के माध्यम से अपना प्रचार-प्रसार कर सकते हैं। वे इनके इस्तेमाल से अपने संगठन में शामिल होने और उनकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिये हज़ारों संभावित नए रंगरूटों को लक्षित कर सकते हैं।
  • आतंकवाद का वित्तपोषण: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक के अनुसार अपराधियों द्वारा प्रत्येक वर्ष अनुमानित रूप से दो से चार ट्रिलियन डॉलर की मनी-लौन्डरिंग की जाती है। आतंकवादियों द्वारा धन के लेनदेन को दान और वैकल्पिक प्रेषण प्रणालियों की आड़ में भी अंजाम दिया जाता है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को कलंकित करता है और प्रणाली की अखंडता में जनता के भरोसे का क्षरण करता है।
    • इसके अलावा, क्रिप्टोकरेंसी के विनियमन की कमी इसे आतंकवादियों के लिये अनुकूल ‘ब्रीडिंग ग्राउंड’ बना सकती है।
  • जैव-आतंकवाद: जैव प्रौद्योगिकी मानव जाति के लिये वरदान है, लेकिन यह एक बड़ा खतरा भी है क्योंकि जैविक एजेंटों की छोटी मात्रा को आसानी से छिपाया जा सकता है, इसका परिवहन किया जा सकता है और इसे कमज़ोर आबादी पर छोड़ा जा सकता है।
    • विश्व भर में खाद्य सुरक्षा को बाधित करने के लिये उष्णकटिबंधीय कृषि रोगजनकों या कीटों को भी एंटीक्रॉप एजेंटों के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • साइबर हमला: दुनिया एक डिजिटल गाँव की ओर आगे बढ़ रही है जहाँ डेटा को ‘न्यू ऑइल’ के रूप में देखा जा रहा है। आतंकवादी किसी देश के साइबरस्पेस, नेटवर्क पर अवैध हमले करते हैं और अपने राजनीतिक या सामाजिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिये किसी सरकार या उसके लोगों को डराने-धमकाने के लिये सूचना का उपयोग करते हैं।

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आगे की राह कैसे होगी ?

  • साइबर-रक्षा तंत्र का विकास: साइबर आतंकवाद से निपटने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है, चाहे वह साइबर सर्च अभियान के संचालन के संबंध में हो या साइबर हमलों के विरुद्ध प्रतिउपायों के दायरे का विस्तार करने के संबंध में हो।
    • साइबर सुरक्षा पर एक स्पष्ट सार्वजनिक रुख सरकार में नागरिकों के भरोसे को बढ़ावा देगा और इस प्रकार एक अधिक संलग्नकारी, स्थिर और सुरक्षित साइबर पारितंत्र को सक्षम करेगा।
  • वैश्विक आतंकवाद विरोधी उपाय: आतंकवाद की इसके सभी रूपों और अभिव्यक्तियों में निंदा की जानी चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर आतंकवाद की चुनौती को परास्त करना चाहिये।
    • आतंकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा को स्वीकार करना और आतंकवाद के प्रायोजक राष्ट्रों पर वैश्विक प्रतिबंध लगाना शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
  • क्षमता निर्माण: भारत को सीमा पार आतंकवाद से लड़ने के लिये सेना की विशेषज्ञता की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये ताकि आतंकी गतिविधियों की घुसपैठ को रोकने के लिये खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय सुनिश्चित किया जा सके।
    • इसके साथ ही, त्वरित परीक्षण (speedy trials) करने के लिये भारत को अपनी राष्ट्रीय आपराधिक न्याय प्रणाली को उन्नत करने और आतंकवाद के विरुद्ध सख्त कानूनी प्रोटोकॉल लागू करने की भी आवश्यकता है।
  • आतंकी वित्तपोषण पर नियंत्रण: आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने के लिये कानूनों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, जहाँ बैंकों के लिये आवश्यक हो कि वे अपने ग्राहकों के संबंध में सम्यक तत्परता रखें और किसी भी संदिग्ध लेनदेन की रिपोर्ट करें। इसके अलावा, भारत को क्रिप्टोकरेंसी के विनियमन की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिये।
    • भारत द्वारा दिल्ली में ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन की मेजबानी करना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
  • युवाओं को आतंकवाद के चंगुल में फँसने से रोकना: अहिंसा, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सहिष्णुता के मूल्यों को बढ़ावा देने में शैक्षिक प्रतिष्ठानों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए कट्टरपंथ विरोधी कार्यक्रमों में इन्हें प्रमुखता से शामिल किया जाना चाहिये।
    • इसके साथ ही, आर्थिक और सामाजिक असमानताओं से निपटने के लिये नीतियों के निर्माण से असंतुष्ट युवाओं को आतंकवाद की ओर आकर्षित होने से रोकने में मदद मिलेगी।

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