खाद्यान्न फसलें क्या होती हैं?
खाद्यान्न का अभिप्राय घासकुल (ग्रेमिनी) के उन पौधों से है, जिन्हें दाने के लिए उगाया जाता है। ये खाद्यान्न फसलें सम्पूर्ण विश्व में भरण पोषण को प्रमुख आधार (Staple food) प्रदान करती हैं। सामान्यत: खाद्यान्न वर्ग की फसलों को अधोलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है।
- प्रमुख खाद्यान्न (Majore Cereals) – इसके अन्तर्गत आजकल गेहूं, धान तथा जौ को सम्मिलित किया जाता है।
- मोटे खाद्यान्न (Millets/Minore Cereals) – इसके अन्तर्गत मक्का, ज्वार तथा बाजरा को सम्मिलित किया जाता है।
- लघु खाद्यान्न (Smaller Millets) – इसके अन्तर्गत मंडुवा या रागी, कोदों, साँवा, काकुन, चेना तथा कुटकी आदि सम्मिलित किये जाते हैं।
- मधुमेह रोगियों के लिए मंडुवा एक उत्तम आहार है।
- खाद्यान्नों की कृषि सर्वप्रथम नव पाषाण काल में प्रारम्भ हुई थी।
चावल महत्वपूर्ण तथ्य-
- गुणसूत्र संख्या 2n = 24
- कुल – ग्रेमिनी
- वानस्पतिक नाम – ओराइजा सेटाइवा
- उत्पत्ति– दक्षिण पूर्व एशिया
- जलवायु– उष्ण कटिबंधीय
- औसत तापमान– 24°C
- औसत वर्षा– 150 सेमी
- चावल एक स्वपरागित फसल है। बुआई का समय जून-जुलाई है।
- सामान्यतः धान में पोषक तत्व की आवश्यकता क्रमशः 80-120 kg N; 40-60 kg P तथा 40-50 kg पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
- अजोला और नील हरित शैवाल का उपयोग धान की फसल में नत्रजन (N) की आपूर्ति हेतु जैव उर्वरक के रूप में किया जाता है।
- बीज की मात्रा/हेक्टेयर– सीधी बुआई हेतु 75-100 kg
- रोपाई हेतु– 23-30 kg
Critical Stages for water
- Booting Stage: Most critical stage
- Tillering stage (0-20 days) DRE
- Primordia growth to Flowering (40-60 days) इन सभी चरणों में चावल के खेत में सतह से 5 cm ऊपर तक जल जमाव जरूरी है।
Hybrid Rice-
चीन ने सर्वप्रथम संकर तकनीक का प्रयोग कर 1970 के अंतिम दशक में संकर धान विकसित किया। चीन के बाद भारत में व्यावसायिक उत्पादन हेतु 1994 ई. में पाँच संकर किस्मों का पहला सेट वितरित किया गया। जिसमें चार किस्में, यथा-APRH 1, APRH 2, KRH 1, MGR 1 आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्य द्वारा निर्गत किया गया। दो वर्ष बाद तीन अन्य संकर किस्में CNRH 1, KRH 3 तथा DRRH 1 क्रमशः पश्चिम बंगाल तथा आंध्र प्रदेश द्वारा निर्गत किया गया। PHB 71 ही एकमात्र संकर किस्म है जो निजी संस्था द्वारा विकसित किया गया है। ध्यातव्य है कि चीन में संकर धान की कृषि सर्वाधिक लोकप्रिय है। यहाँ धान के अन्तर्गत आने वाले कुल क्षेत्रफल के आधे से अधिक भाग पर संकर धान की कृषि की जाती है।
Dapog Method —
चावल उत्पादन की यह विधि फिलीपीन्स तथा जापान में प्रचलित है इस विधि में रोपनी (Transplanting) हेतु पौध (Seedlings) 12वें दिन तैयार हो जाती है। नर्सरी में अंकुरित बीज को लकड़ी के तख्त पर व कंक्रीट सतह पर, पोलिथीन सीट से ढंके बीज को सैय्या पर 1.5 kg/m या test wt. से 50 गुना अधिक बीज प्रति वर्ग मीटर की दर से फैलाया जाता है। एक वर्ग मीटर से प्राप्त पौध 200 वर्गमीटर खेत की बोआई के लिये पर्याप्त होती है। इसमें अन्य विधि की अपेक्षा 2.5 गुना अधिक बीज लगता है। इस विधि से तैयार धान के पौधे में 4 दिन पहले ही पुष्प दिखाई देने लगते हैं।
Transplanting —
रोपाई के लिए धान पौध का उचित समय (Ideal age) वह है जब पौध (4) पत्तियों युक्त हो। वैसे 4 पत्तियों की जगह 3 पत्तियाँ भी हो सकती हैं लेकिन किसी भी हालत में 5 पत्तियों युक्त पौध नहीं। अतः 3-4 पत्तियों युक्त पौधों (Seedlings) की रोपाई करनी चाहिये। अर्थात् खरीफ में 20-30 दिन के पौध (spacing 20 cm x 15 cm) तथा रबी में 30-35 दिन के पौध (spacing 15 cm x 15 cm) की रोपाई होती है। ज्ञातव्य है कि धान के खेत में पंकभंजन (Pudding) की जाती है- मुख्यतः पानी के रिसाव को कम करने हेतु।
SRI System (श्री पद्धति)–
इसका विकास सन् 1983 में मेडागास्कर के कृषि वैज्ञानिक फ्रेंच जेसूट (कादर हेनरी डे लोलेनी) ने किया था। इस पद्धति का पूरा नाम है- System of Rice Intensification : SRI अर्थात् चावल गहनीकरण पद्धति। इस पद्धति के अन्तर्गत धान को जलमग्न नहीं किया जाता अपितु वानस्पतिक अवस्था के दौरान मिट्टी को आर्द्र बनाए रखा जाता है, बाद में सिर्फ एक इंच जल गहनता पर्याप्त होती है। इस प्रकार SRI तकनीक में सामान्य की तुलना में सिर्फ आधे जल की आवश्यकता होती है. और उपज भी अच्छी मिलती है। इस पद्धति में सामान्य की अपेक्षा कम उर्वरक एवं सुरक्षा रसायन की आवश्यकता होती है।
इस तकनीक में धान का पौधा प्राकृतिक स्थिति में अच्छे ढंग से वृद्धि करता है और इसकी जड़ भी बड़े पैमाने पर बढ़ती है। यह अपने लिए पोषक तत्व मिट्टी की गहरी परतों से प्राप्त करता है। यह प्रणाली कृषि कीटों के विरुद्ध प्रतिरक्षण क्षमता रखती है, क्योंकि यह धान की फसल को प्राकृतिक रूप से मिट्टी से पोषक तत्वों को लेने में मदद करती है।
‘SRI’ तकनीक से लाभ–
- अनाज व चारा दोनों की अधिक उपज दर प्राप्त होगी,
- अधिक पोषक और स्वादिष्ट चावल की पैदावार,
- तैयार होने की अवधि में कमी, कम-से-कम 10 दिनों का फायदा,
- कम रासायनिक खाद का उपयोग,
- कम पानी की आवश्यकता,
- कम भूसी अनाज की प्रतिशतता,
- अनाज के आकार में बदलाव हुए बिना अनाज के वजन में वृद्धि,
- उच्चतर स्तर के चावल की प्राप्ति (धान से चावल बनाने की प्रक्रिया के दौरान),
- चक्रवाती तूफान में भी पौधा खड़ा रहता है,
- ठण्ड सहने में सक्षम,
- जैविक क्रियाकलाप द्वारा मिट्टी को उपजाऊ बनाता है।
- ज्ञातव्य है कि बिहार के किसान सुमंत कुमार ने इस विधि का प्रयोग कर धान उत्पादन में विश्व रिकार्ड तोड़ दिया। उन्होंने चीन की ओर से धान उत्पादन में बनाए गए रिकार्ड के मुकाबले प्रति हेक्टेयर 22.4 टन धान की उपज लेकर यह विश्व रिकार्ड अपने नाम किया है।
- चावल में सामान्यतः 6-7% प्रोटीन, 76% कार्बोहाइड्रेट, 2.5% वसा तथा 1.1% खनिज पाये जाते हैं।
- विश्व में उत्पादित खाद्यान्न की समस्त फसलों में क्षेत्रफल और उत्पादन दोनों ही दृष्टिकोण से वर्ष 2019-20 एवं 2020 21 में गेहूं का प्रथम स्थान है। उक्त वर्षों के पूर्व यह स्थान धान का था।
- भारत में भूमि के सबसे बड़े क्षेत्रफल (2020-21 में 45.1 मि.हे.) पर धान की ही खेती की जाती है। जो समस्त संसार का 13.90% धान उत्पादित कर दूसरा स्थान रखता है। वर्ष 2017 में भारत, थाईलैण्ड को पीछे छोड़ते हुए विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश बन गया था तथा 2020 में भी अपना प्रथम स्थान बनाए हुए है। उल्लेखनीय है कि चीन विश्व का सबसे बड़ा चावल आयातक देश है ।
- संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2004 को अन्तर्राष्ट्रीय चावल वर्ष के रूप में मनाया था। पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु में चावल की तीन फसलें उगाई जाती हैं। ऑस (सितम्बर-अक्टूबर में), अमन (जाड़े में) तथा बोरो (गर्मी में)।
- भारत में कृषि निदेशालय द्वारा विकसित धान की प्रथम बौनी प्रजाति ‘जया’ थी।” साकेत, गोविन्द, कावेरी, रतना, जया, सरजू, महसूरी, पूसा 33, बाला, लूनाश्री, जमुना, करुणा, काँची, जगन्नाथ, कृष्णा, हंसा, विजय, पद्मा, अन्नपूर्णा, माही सुगन्धा, पूसा सुगन्धा-5 बरानी दीप तथा शुष्क सम्राट आदि धान की प्रमुख किस्में हैं।
- ज्ञातव्य है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं छत्तीसगढ़ आदि राज्यों के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए शुष्क सम्राट एक उपयुक्त एवं उत्पादक किस्म हैं।
- पूसा RH-10, PHB-71, गंगा, सुरुचि, K.R.H. 2, सह्याद्रि आदि बासमती चावल की संकर प्रजातियाँ हैं।
- महाधान (सुपर राइस) का विकास फिलीपींस स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के मुख्य प्रजनक जी. एस. खुश द्वारा किया गया है। इन्होंने 1989 में महाधान पर अनुसंधान कार्य प्रारम्भ किया था।
- केन्द्रीय धान अनुसंधान संस्थान, कटक (ओडीशा) द्वारा विकसित धान की अधिक उत्पादन देने वाली किस्म, लूनीश्री है।
धान की विकसित नवीनतम किस्में हैं–
धनराशि, RH 204 (संकर, उपज 6.0 6.5 टन/हे.), G.R.-8, डांडी, शाह सरंग, गौरी, श्वेता, भूदेव, वर्षा, पंतधान- 15, चिंगम, धान आदि।
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DRR-45–
- धान की उच्च जिंकयुक्त प्रजाति है। धान की सूखारोधी नवीनतम प्रजाति है।
- जापान के वैज्ञानिकों ने धान की ऐसी प्रजाति विकसित की है, जिसमें हैजे की बीमारी का टीका समाहित है एवं जल्दी ही वे टीके वाले चावल को विकासशील देशों के गरीबों तक पहुँचाएंगे।
- खैरा धान में जिंक की कमी से लगने वाला एक प्रमुख रोग है।
- गोल्डेन धान की किस्म में सर्वाधिक मात्रा विटामिन A की होती है।
- चावल के धुलने पर सामान्यतः विटामिन बी, (थाइमिन) नष्ट हो जाता है । इसके अलावा पालिश किये हुए
- चावल के ऊपरी पर्त से भी थाइमिन नष्ट हो जाता है। फलतः इसके अधिकांश सेवन वाले क्षेत्र में लोग बेरी-बेरी रोग से पीड़ित मिलते हैं|
IARI द्वारा हाल के वर्षों में विकसित की गई बासमती चावल की उन्नत किस्में है–
पूसा 1460, एवं पूसा-1401; पूसा 1460, जिसका ब्रांड नाम ‘सुगंध’ है, दुनिया का पहला सुपर फाइन अनाज है। यह (पूसा-1460) किसानों तक पहुँचने वाला पहला बायोटेक चावल है।
- भारत के बासमती चावल (पूसा बासमती-1 और पूसा बासमती 1121 ) निर्यात में 75% योगदान पूसा बासमती 1121 किस्म का है।
- बासमती चावल की रोपाई हेतु उपयुक्त बीज दर 15 से 20 किग्रा./हे. है।
- 6 नवम्बर, 2011 को चावल की नवीन किस्म ‘कोहसर’ का विकास जम्मू-कश्मीर घाटी के ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिए की गई थी।
- ICAR द्वारा 19 फरवरी, 2012 को धान की नवीन किस्म पूसा-1509 रिलीज की गई है। यह किस्म पूसा 1121 किस्म की प्रमुख समस्या धान की रोग के प्रति प्रतिरोधी है। शेष गुणों में यह पूसा 1121 के समान है।
- 5 फरवरी, 2016 को ‘बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड'(Intellectual Property Appellate Board-IPAB) ने चेन्नई स्थित ‘भौगोलिक उपदर्शन रजिस्ट्री’ (GIR) : Geographical Indication) को भारतीय बासमती चावल को जीआई टैग प्रदान किये जाने का निर्देश दिया।