भारतीय सेना के नई रक्षा प्रणाली “F-INSAS” क्या है?

F-INSAS
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F-INSAS ख़बरों में क्यों?

भारतीय सेना में भी मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिन हथियारों को भारत अब तक विदेशों से निर्यात करता था उनका अब देश में ही निर्माण शुरु हो गया है ,रक्षा मंत्रालय ने सेना की आधुनिकीकरण योजनाओं के एक भाग के रूप में भारतीय सेना को F-INSAS, एंटी पर्सनल माइन, लैंडिंग क्राफ्ट असॉल्ट (LCA) सहित कई नई रक्षा प्रणालियाँ सौंपी हैं।

F-INSAS प्रणाली क्या है?

F-INSAS Future Infantry Soldier As a System

F-INSAS हर मौसम में काम करने वाली यह तकनीक दुश्मनों का काल मानी जाती है, इसकी रेंज से बच पाना आसान नहीं होता है, यह एक तरह का प्रोजेक्ट होता है, इसके तहत पैदल सेना को हाईटेक तकनीक से लैस किया जाता है, सैनिक के पास वह सभी अत्याधुनिक और हल्के हथियार होते हैं जिनकी किसी मिशन में जरूरत होती है, सैनिकों को एडवांस्ड कम्युनिकेशन सिस्टम से भी लैस किया जाता है, F-INSAS में बैलिस्टिक हेलमेट और बैलिस्टिक गॉगल्स शामिल होता है, यह दुनिया की सबसे हाईटेक तकनीक है. सैनिकों के हेलमेट में खास नाइट विजन तकनीक से युक्त डिवाइस भी लगाया जाता है. सैनिकों को बुलेट प्रूफ जैकेट दी जाती है जिससे वह दुश्मनों की गोलियां का सामना कर सकें, इन हेलमेट और जैकेट को पहने हुए सैनिक को AK-47 की गोलियां भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती हैं, F-INSAS को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और आयुध कारखानों के पारिस्थितिकी तंत्र सहित भारतीय संस्थाओं द्वारा स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किया गया है।

F-INSAS प्रणाली के अंतर्गत शामिल सैन्य-हथियार और उपकरण:

AK-203 असॉल्ट राइफल:

यह रूस की गैस एवं मैगजीन से चलने वाली, सेलेक्ट फायर असॉल्ट राइफल है। इसकी रेंज 300 मीटर है। AK की यह असॉल्ट राइफल अपनी मारक क्षमता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, AK-203 को रूस के सहयोग से भारत में ही तैयार किया जा रहा है, इन राइफल का निर्माण उत्तर प्रदेश के अमेठी में किया जा रहा है, AK सीरीज की यह पहली बंदूक है जिसे भारत में बनाया जा रहा है, इसे बनाने के लिए भारत ने रूस के साथ इसके लिए 500 करोड़ रुपये की डील की है, इसके तहत भारत कुल 7 लाख राइफलों का निर्माण करेगा |

मल्टी-मोड हैंड ग्रेनेड:

इसका उपयोग रक्षात्मक और आक्रामक मोड में किया जा सकता है। रक्षात्मक मोड में, हैंड ग्रेनेड तब फेकें जाते हैं, जब फेंकने वाले  के पास  कवर  मौजूद  होता है। आक्रामक मोड में, हैंड ग्रेनेड फ्रग्मेंट नहीं होते हैं और विरोधी को इसके विस्फोट से हानि पहुँचती है।

बैलिस्टिक हेलमेट और बैलिस्टिक गॉगल्स:

यह बुलेट-प्रूफ वेस्ट के साथ सैनिकों को छोटे प्रोजेक्टाइल और फ्राग्मेंट्स से सुरक्षा के लिये बैलिस्टिक हेलमेट तथा बैलिस्टिक गॉगल्स प्रदान करता है। हेलमेट और बुलेट प्रूफ जैकेट एके-47 राइफल से दागी गई 9 एमएम की गोलियों और गोला-बारूद से सैनिक की रक्षा करने में सक्षम हैं।

एंटी पर्सनल माइन:

एंटी पर्सनल माइन स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और विकसित की गई हैं, जिन्हें DRDO ने ‘सॉफ्ट टारगेट ब्लास्ट मूनिशन’ कहा है। एंटी-पर्सनल माइंस का इस्तेमाल इंसानों के खिलाफ किया जाता है, जबकि एंटी-टैंक माइंस का इस्तेमाल भारी वाहनों के लिये किया जाता है। रूस के PFM-1 और PFM-1S को आमतौर पर ‘बटरफ्लाई माइन’ या ‘ग्रीन पैरट’ के रूप में जाना जाता है। बटरफ्लाई माइन एक अत्यंत संवेदनशील कार्मिक-विरोधी बारूदी सुरंग है। ये माइंस घुसपैठियों और दुश्मन की पैदल सेना के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में कार्य करते हैं। वे आकार में छोटे होते हैं और बड़ी संख्या में तैनात किये जा सकते हैं। वे सीमाओं पर सैनिकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं |

लैंडिंग क्राफ्ट असॉल्ट (LCA):

लैंडिंग क्राफ्ट असॉल्ट (LCA) पैंगोंग त्सो झील में वर्तमान में उपयोग की जाने वाली सीमित क्षमताओं वाली नावों के रिप्लेसमेंट के रूप में काम करने के लिये है। इसने पूर्वी लद्दाख में पानी की बाधाओं को पार करने की क्षमता को बढ़ाया है। इसी तरह के जहाज़ पहले से ही भारतीय नौसेना में परिचालन में हैं।

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अन्य रक्षा प्रणालियाँ:

सौर फोटोवोल्टिक ऊर्जा परियोजना:

देश के सबसे चुनौतीपूर्ण इलाके और परिचालन क्षेत्रों में से एक सियाचिन ग्लेशियर है। विभिन्न उपकरणों को संचालित करने हेतु क्षेत्र में बिजली की पूरी आवश्यकता केवल कैप्टिव जनरेटर आपूर्ति के माध्यम से पूरी की जाती थी। समग्र ऊर्जा आवश्यकताओं में सुधार और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिये सौर फोटो-वोल्टेइक संयंत्र स्थापित किया गया है। रक्षा मंत्रालय ने सेना को T-90 टैंकों के लिये थर्मल इमेजिंग साइट, हैंड हेल्ड थर्मल इमेजर और लंबी दूरी पर सामरिक संचार के लिये फ्रीक्वेंसी-हॉपिंग रेडियो रिले भी प्रदान किया। इसके अलावा निगरानी मिशनों में हेलीकॉप्टरों की मदद के लिये रिकॉर्डिंग सुविधा के साथ डाउनलिंक उपकरण भी सौंपे गए। इस प्रणाली का उपयोग करते हुए टोही डेटा रिकॉर्ड किया जाता है और इसे तभी उपयोग किया जा सकता है जब हेलीकॉप्टर बेस पर वापस आ जाए। कुछ अन्य रक्षा प्रणालियों में इन्फैंट्री प्रोटेक्टेड मोबिलिटी व्हीकल क्विक रिएक्शन फाइटिंग व्हीकल और मिनी रिमोटली पायलटेड एरियल सिस्टम सर्विलांस, इन्फैंट्री बटालियन और मैकेनाइज़्ड यूनिट स्तर पर डिटेक्शन तथा टोही शामिल हैं।

अन्य देशों के रक्षा प्रणाली 

F-INSAS की तरह ही अमेरिका के पास लैंड वॉरियर और यूके के पास FIST (फ्यूचर इंटीग्रेटेड सोल्जर टेक्नोलॉजी) है। विश्व भर में 20 से अधिक सेनाएँ ऐसे कार्यक्रमों का अनुपालन कर रही हैं।

श्रोत – इंडियन एक्सप्रेस

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