खबरों में क्यों है?
- भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रामना ने ने एक वक्तव्य में कंगारू कोर्ट मीडिया ट्रायल का जिक्र करते हुए कहा कि देश में बढ़ते मीडिया ट्रायल से लोगों के समक्ष एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो रहा है और साथ ही इस तरह की अवधारणाओ की वजह से न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में भी बाधा उत्पन्न हो रही है।
कंगारू कोर्ट क्या होता है?
- ऐसी स्थिति जहां अभियुक्त के खिलाफ निर्णय पहले से ही निर्धारित होता है ।
- कंगारू कोर्ट के तहत कुछ लोगों द्वारा एक अनौपचारिक अदालत आयोजित की जाती है ।
- जहां बिना किसी ठोस सबूत के ही आरोपी को दोषी साबित कर दिया जाता है ।
- इस अदालत में नियमों और कानूनों का कोई पालन नहीं होता ।
- मीडिया ट्रायल– कंगारू कोर्ट का एक बेहतरीन उदाहरण है ।
- बीते दिनों आपने आर्यन खान विवाद सुना होगा जहां मीडिया द्वारा बिना किसी ठोस सबूत के केवल भावना के आधार पर ही ड्रग्स के मामले में दोषी ठहरा दिया गया ।
- बाद में मामला जब न्यायालय के पास पहुंचा तो न्यायालय ने सबूतों की जांच करते हुए इस मामले को पूरी तरह रद्द कर दिया ।
कंगारू कोर्ट की उत्पत्ति
- इसके उत्पत्ति का कोई ज्ञात स्रोत नहीं है ।
- इसका उपयोग 19वीं शताब्दी से शुरू हुआ ।
इसे कंगारू कोर्ट ही क्यों कहा जाता है?
- इसके कई प्रचलित सिद्धांत हैं ।
- जिस तरह कंगारू एक लंबी छलांग मारता है वैसे ही इस तरह के कोर्ट में नियम कानूनों से छलांग मार ली जाती है और सीधा निर्णय दे दिया जाता है ।
- अनुमानित है कि इस शब्द का जन्म 1849 से 1850 के दौरान कैलिफोर्निया में हुआ था ।
- इस अवधि को गोल्ड रस के नाम से जाना जाता है।
- इस दौरान कैलिफोर्निया और आसपास के क्षेत्रों में सोने के भंडार की खोज के बाद ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया भर से लोग इस स्थान पर पहुंचे थे और अनौपचारिक तौर पर भूमि के टुकड़ों पर अपना दावा करने लगे ।
- यहीं से शब्द का जन्म हुआ था ।
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कंगारू कोर्ट का प्रभाव
न्यायपालिका का कामकाज प्रभावित –
- लंबित मुद्दों पर मीडिया में गैर–सूचित पछता पूर्ण और एजेंडा आधारित बहस से कामकाज प्रभावित होता है ।
- एजेंडा आधारित बहस और सोशल मीडिया (ट्विटर) पर ट्रेंड से न्यायाधीशों और आम लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है ।
सही गलत के बीच पहचान करना मुश्किल –
- मीडिया ट्रायल में बहुत अधिक फेक न्यूज़ प्रसारित की जाती है ।
- जहां आम जनता और न्यायपालिका को गुमराह कर दिया जाता है ।
दोषी साबित होने तक बेगुनाह के सिद्धांत के विरुद्ध –
- कोई व्यक्ति तक तक दोषी नहीं कहलाता जब तक कि न्यायालय के समक्ष दोष सिद्ध नहीं हो जाता।
- कंगारू कोर्ट में बिना किसी सबूत के दोषी करार दिया जाता है ।
- कंगारू कोर्ट में न्यायपालिका के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है ।
- कंगारू कोर्ट की वजह से कई लोगों का करियर भी समाप्त हो जाता है ।
लोकतंत्र के लिए खतरा
- मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है।
- मीडिया का काम केवल सूचनाएं प्रदान करना होता है ।
- जिससे लोग बेहतर निर्णय ले सके ।
- लेकिन अब मीडिया ट्रायल में सूचनाएं देने के बजाय निर्णय दिए जाते हैं ।
- मीडिया का कंगारू कोर्ट लोकतंत्र के लिए एक खतरा उत्पन्न करता है ।
निजता के अधिकार का उल्लंघन अनुच्छेद (अनु.21)–
- कंगारू कोर्ट में लोगों की निजता के हनन की कोशिश की जाती है ।
मीडिया ट्रायल पर संविधान क्या कहता है?
- अनुच्छेद 19(1)(a)–मौलिक अधिकार के रूप में वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है।
- अमेरिका के संविधान की तरह भारतीय संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लेख नहीं किया गया है ।
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि प्रेस की स्वतंत्रता वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है ।
- सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया ट्रायल के विरुद्ध में कहा प्रेस की स्वतंत्रता और मीडिया ट्रायल जैसे शब्दों का उल्लेख संविधान में नहीं है।
भारत में मीडिया पर नियंत्रण
- मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र के नियंत्रण हेतु केबल नेटवर्क अधिनियम 1995 और प्रसार भारती अधिनियम 1990 के तहत किया जाता है ।
- अधिनियम लागू करने की जिम्मेदारी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और प्रसार भारती द्वारा किया जाता है ।
मीडिया नियंत्रण के लिए भारत में 4 निकाय हैं–
- भारतीय प्रेस परिषद – इसका कार्य प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखना और प्रेस संबंधी मानक बनाना और उसका पालन सुनिश्चित करना है।
- समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण – यह न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) द्वारा बनाया गया उद्योग निकाय है जिसका कार्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मानकों का निर्धारण करना है।
- ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट काउंसिल – यह टीवी पर प्रसारित किसी भी प्रोग्राम के खिलाफ शिकायतों का निवारण करता है।
- न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन – यह NBA की तरह ही एक संस्था है।
निष्कर्ष
- मीडिया को निर्णय देने का काम न्यायपालिका पर छोड़ देना चाहिए ।
- मीडिया का काम आम जनता से जुड़े मुद्दों पर आवाज उठाना है ।
- मीडिया का काम उन लोगों की आवाज बनना है जो खुद अपनी आवाज नहीं उठा सकते या जिनकी आवाज को समाज के कुछ लोगों द्वारा दबाने की कोशिश की जाती है।
- इससे न्यायपालिका को मदद मिलेगी।
- मीडिया अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझें और मीडिया ट्राइल जैसी कुप्रथा को समाप्त किया जाए।