मानसिक स्वास्थ्य क्या है?
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मानसिक स्वास्थ्य कल्याण को इस प्रकार परिभाषित किया है –
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- व्यक्ति अपनी पूर्ण क्षमता का एहसास करता है ।
- सामान्य तनाव का सामना कर सकता है ।
- उत्पादक और फलदाई रूप से काम कर सकता है ।
- शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है मानसिक स्वास्थ्य।
- इससे हमारे दैनिक कामकाज प्रभावित होते हैं।
भारत में और दुनिया में क्या स्थिति है?
- WHO की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 300 मिलियन लोग गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित हैं ।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार भारत भर में 15 करोड़ लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता है ।
- जिसमें से एक से दो करोड़ लोग गंभीर मानसिक बीमारियों से पीड़ित हैं ।
- जिसमें सिजोफ्रेनिया बाइपोलर डिसऑर्डर शामिल हैं।
- भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर हर वर्ष अपनी GDP का 0.06 प्रतिशत खर्च किया जाता है ।
भारत में क्या चुनौतियां हैं?
संसाधनों का अभाव :
- भारत में मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का अनुपात काफी कम है ।
- यह प्रति 100000 लोगों पर मनो चिकित्सकों की संख्या मात्र 0.3 है नर्सों की संख्या मात्र 0.12 है और मनोवैज्ञानिकों की संख्या मात्र 0.07 है।
- भारत में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता का अभाव है ।
- भारत में इसे सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- जिसकी वजह से वह सामाजिक अलगाव स्थिति में आ जाते हैं ।
- इस वजह से वे मानसिक बीमारी का उपचार नहीं ले पाते हैं।
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भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास
संवैधानिक प्रावधान:
- बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद –21 के तहत स्वास्थ्य सेवा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी थी।
- यह अनुच्छेद कहता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP):
- साल 1982 में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी से निपटने के लिए इस कार्यक्रम को शुरू किया गया था ।
- 2003 में इसमें कुछ बदलाव किए गए थे।
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017:
- इस अधिनियम के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को सरकार द्वारा संचालित या वित्त पोषित इकाइयों से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और उपचार सुविधा प्राप्त करने की गारंटी दी गई है ।
- पहले धारा 309 का स्कोप काफी था लेकिन इस अधिनियम के पारित होने के बाद से इसका केवल सीमित उपयोग ही रह गया है।
किरण हेल्पलाइन: (1800–599–0019)
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 2020 में इसकी शुरुआत की थी ।
- इसे पीड़ित लोगों की सहायता के लिए शुरू किया गया।
यह चर्चा में क्यों है?
अवसाद (डिप्रेशन) को लेकर नया अनुसंधान:
- पिछले कई दशकों से यह माना जा रहा है कि मस्तिष्क में सेरोटोनिन नामक रसायन का असंतुलन ही अवसाद के लिए जिम्मेदार है।
- इसी दृष्टिकोण के चलते दुनिया भर में अवसाद रोधी दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है ।
- लेकिन हाल ही में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन ने यह शोध किया है कि अवसाद सेरोटोनिन की कमी के कारण नहीं होता है।
- इस शोध के माध्यम से अवसाद के सेरोटोनिन के सिद्धांत को चुनौती देने का प्रयास किया गया है ।
- साथ ही अवसादरोधी दवाओं के प्रयोग को भी चुनौती दी गई है।
अवसाद का सेरोटोनिन सिद्धांत:
- इस सिद्धांत का मानना है कि अवसाद मस्तिष्क में रसायनों (सेरोटोनिन) के असंतुलन के कारण होता है।
- यह धारणा दशकों से प्रचलित और प्रभावी रहा है।
- अवसाद और सेरोटोनिन की कम मात्रा की धारणा पहली बार 1960 में प्रचलित हुई ।
- 1990 के दशक में सेलेक्टिव सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर(SSRI) एंटीडिप्रेसेंट के आगमन से यह धारणा और प्रचलित हो गई।
- यह मस्तिष्क में सेरोटोनिन की उपलब्धता को अस्थाई रूप से बढ़ा देता है ।
- मौजूदा समय में यह काफी प्रचलित है ।
- अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन इसी सिद्धांत को मानते है और एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का सुझाव देते हैं।
सेरोटोनिन :
- यह एक तरह का रसायन होता है जो न्यूरोट्रांसमीटर कि रूप में काम करता है ।
- यह मस्तिष्क में संदेशों या संकेतों का एक तंत्रिका से दूसरी तंत्रिका कोशिका तक पहुंचाता है ।
- यह हमारे मन: स्थिति नींद, भूख, और दैनिक कामकाज को नियंत्रित करने का कार्य करता है।
अवसाद के क्या कारण है?
- इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं है ।
- तनावपूर्ण जीवन अवसाद का सबसे प्रमुख कारण है।
- गरीबी, असुरक्षित कार्य, लैंगिक आधार पर भेदभाव, नक्सलवाद, पारस्परिक संघर्ष, आदि अवसाद के कारण है ।
- इनमें से लैंगिक आधार पर भेदभाव अवसाद का एक प्रमुख कारण है।
- वर्तमान समय में भारत में बेरोजगारी भी अवसाद का एक प्रमुख कारण है।