बजट एवं लोक वित्त
राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)
- लोक व्यय, कराधान, सार्वजनिक ऋण तथा हीनार्थ प्रबंधन से संबंधित नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है।
- इसके माध्यम से सरकार अर्थव्यवस्था में आंतरिक तथा बाह्य आर्थिक स्थिरता, उत्पादन, रोज़गार, आर्थिक समता आदि को प्राप्त करने का प्रयास करती है।
- इसे बजेटरी नीति के नाम से भी जाना जाता है।
भारत में बजट व्यवस्था
- संविधान का अनुच्छेद-112 प्रत्येक वित्त वर्ष (1 अप्रैल-31 मार्च) के लिये केंद्र सरकार की अनुमानित प्राप्तियों (Receipts) तथा व्ययों (Expenditure) का एक विवरण पार्लियामेंट के सामने प्रस्तुत करने की व्यवस्था करता है जिसे बजट कहते हैं।
- बजट में आने वाले वर्ष के लिये बजट अनुमान, चालू वर्ष के लिये संशोधित अनुमान तथा पिछले वर्ष की वास्तविक प्राप्तियों तथा व्यय का विवरण रहता है।
- भारत में बजट प्रणाली की शुरुआत का श्रेय लार्ड कैनिंग को जाता है।
- 7 अप्रैल, 1860 को वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य सर जेम्स विल्सन ने प्रथम बजट प्रस्तुत किया। जिसे भारत में बजट का संस्थापक माना जाता है।
- स्वतंत्र भारत का पहला बजट नवंबर 1947 में पहले वित्त मंत्री आर. के. षणमुखम शेट्टी द्वारा तथा गणतंत्र भारत का पहला केंद्रीय बजट वर्ष 1950 में जॉन मथाई द्वारा पेश किया गया था।
बजट के प्रकार
निष्पादन बजट (Performance Budget)
- ऐसा बजट जिसका स्वरुप परिणामो को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है
जीरो बेस बजट
- इसमें पूर्व में किये गए व्यय को ध्यान में न रखकर नए वर्ष के लिये कार्यक्रम की दक्षता तथा आवश्यकता के आधार पर बजट तैयार किया जाता है। यह बजट जीरो आधार से शुरू होता है।
जेंडर बजट
- यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक प्रयास है जिसका प्रारंभ ऑस्ट्रेलिया द्वारा वर्ष 1984 में किय्या गया इसके तहत सर्कार महिलाओं के विकास, कल्याण और सशक्तीकरण से संबंधित योजनाओं और कार्यक्रमों के लिये प्रतिवर्ष एक निर्धारित राशि की व्यवस्था करती है।
- भारत में वर्ष 2005-06 के बजट से जेंडर बजट का प्रारंभ हुआ।
प्रमुख प्राप्तियाँ तथा व्यय
राजस्व प्राप्ति
- इसमें केंद्र सरकार के करों तथा अन्य शुल्क, सरकारी निवेश पर ब्याज और लाभांश तथा सरकार द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के लिये फीस और अन्य प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं।
- ऐसी प्राप्तियों से सरकार की देयता में वृद्धि नहीं होती।
राजस्व व्यय
- आंतरिक एवं बाह्य ब्याज अदायगी, सरकारी कर्मचारियों की सैलरी तथा पेंशन, रक्षा व्यय, डाक व्यय, कानून एवं व्यवस्था पर व्यय, राज्य सरकारों तथा अन्य देशों को अनुदान, सामाजिक सेवा, यथा
- स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी आदि राजस्व व्यय में शामिल हैं।
- इस व्यय के परिणामस्वरूप संपत्ति एवं पूंजी का सृजन नहीं होता है।
पूंजीगत प्राप्ति
- सरकार द्वारा जनता से लोन, RBI, विदेशी सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से लिया गया लोन।
- राज्य सरकारों तथा संघ क्षेत्रों से ऋण की वसूली, विनिवेश से प्राप्त पूंजी, छोटी बचत योजनाओं- पोस्ट ऑफिस जमा, किसान विकास पत्र, राष्ट्रीय बचत पत्र आदि से प्राप्त राशि 15 इसमें शामिल है।
- यह ऐसी प्राप्ति होती है जो या तो सरकार की देयता का सृजन करती है या परिसंपत्तियों में कमी करती है।
पूंजीगत व्यय
- इसमें सरकार द्वारा भूमि, भवन या मशीनरी की खरीद, शेयर बाज़ार में निवेश, राज्य सरकारों, सरकारी कंपनियों, विदेशी सरकारों को दिये गए लोन, कीमती सामनों का अधिग्रहण आदि तथा ऋण का पुनर्भुगतान शामिल है।
- ऐसे व्यय जो या तो परिसंपत्तियों का सृजन करते हैं या फिर सरकार की देयता को कम करते हैं पूंजीगत व्यय कहलाते हैं।
राजस्व व्यय को दो भागों में बाँटा जाता है
योजनागत व्यय– यह केंद्रीय योजनाओं को पूरा करने के लिये दी गई बजेटरी सहायता है। इसमें राज्य तथा संघ क्षेत्रों को उनकी योजनाओं पर दी जाने वाली सहायता भी शामिल होती है।
गैर-योजनागत व्यय– योजनागत व्ययों के अतिरिक्त सभी व्यय जो सरकार के सामान्य, सामाजिक तथा आर्थिक सेवाओं से संबंधित होते हैं, गैर-योजनागत व्यय कहलाते हैं। गैर-योजनागत व्यय में तीन प्रमुख व्यय- ब्याज अदायगी, रक्षा व्यय तथा सब्सिडी है। बजट 2016-17 में वित्त वर्ष 2017-18 से योजनागत और गैर-योजना वर्गीकरण को समाप्त करने का निर्णय लिया गया।
व्यय के इस विभाजन को समाप्त करने का पहला सुझाव रंगराजन समिति ने दिया था।
सब्सिडी तथा अनुदान
- जब सरकार किसी वस्तु या सेवा को उसके उत्पादन लागत या आर्थिक लागत से कम मूल्य पर निर्धारित व्यक्तियों को उपलब्ध कराती है तो इस मूल्य अंतर को जो सरकार वहन करती है सब्सिडी कहते हैं।
- जब सरकार वस्तु या सेवा की पूर्ति न करके व्यक्ति द्वारा की जाने वाली क्रिया, जैसे- गृह निर्माण, शौचालय निर्माण, सोलर पंप आदि के खर्च का कुछ भाग वहन करती है तो यह अनुदान कहलाता है।
- ऋण अदायगी ‘पूंजीगत व्यय’ तथा ऋण पर ब्याज भुगतान ‘राजस्व व्यय’ होता है।
- इसी प्रकार ऋण की वसूली से प्राप्ति ‘पूंजीगत प्राप्ति’ तथा उस पर ब्याज की प्राप्ति ‘राजस्व प्राप्ति’ होती है।
विभिन्न घाटे तथा घाटे की वित्त व्यवस्था
बजट घाटा
बजट घाटा = (कुल राजस्व प्राप्ति + कुल पूंजीगत प्राप्ति) – (कुल राजस्व व्यय + कुल पूंजीगत व्यय) =कुल प्राप्ति – कुल व्यय
अथवा
बजट घाटा = (कुल राजस्व प्राप्ति- कुल राजस्व व्यय) + (कुल पूंजीगत प्राप्ति – कुल पूंजीगत व्यय) = राजस्व घाटा + पूंजीगत घाटा
बजट घाटा को पूरा करने के लिये सरकार रिज़र्व बैंक से नकदी शेष की निकासी, ट्रेजरी बिल का निर्गमन या मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि कराती है जिसे घाटे की वित्त व्यवस्था कहते हैं।
1997 से पूर्व भारत सरकार अपने बजटीय घाटे को पूरा करने के लिये रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को एडहॉक ट्रेजरी बिल्स जारी करती थी और इसके बदले में RBI से अतिरिक्त मुद्रा प्राप्त करती थी। 1997-98 के बजट इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया और इसके स्थान पर अर्थोपाय अग्रिम (Ways and Means Advances) की व्यवस्था अपना ली गई। अर्थोपाय अग्रिम के अंतर्गत सरकार अपनी तात्कालिक आवश्यकता की पूर्ति के लिये RBI से एक निर्धारित ब्याज दर पर ऋण लेती है। जिसे वह अपनी प्राप्तियों के पश्चात् RBI को लौटा देती है।
राजस्व घाटा
- राजस्व घाटा = कुल राजस्व प्राप्ति – कुल राजस्व व्यय
प्रभावी राजस्व घाटा
- प्रभावी राजस्व घाटा = राजस्व घाटा – पूंजी संपत्ति सृजन हेतु राज्यों को अनुदान
विनिवेश (Disinvestment)
- सार्वजनिक उद्यमों में सरकार की अंशधारिता में कमी लाना विनिवेश कहलाता है।
- 10 दिसंबर, 1999 को अलग विनिवेश विभाग की स्थापना की गई थी।
- 14 अप्रैल, 2016 को इसका नाम बदलकर डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक असेट मैनेजमेंट (DIPAM) कर दिया गया।
उद्देश्य
- सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में लोगों की हिस्सेदारी को प्रोत्साहन देना।
- आर्थिक विकास में तेजी लाने तथा सरकार की व्यय क्षमता में वृद्धि के लिये सार्वजनिक विनिवेश का कुशल प्रबंधन करना है।
राष्ट्रीय निवेश कोष (National Investment Fund)
- केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेश से प्राप्त होने वाली आय के कुशल प्रबंधन तथा उपयोग के लिये नवंबर 2005 में राष्ट्रीय निवेश कोष का गठन किया गया। व्यावसायिक रूप से इसका प्रबंधन UTI कोष प्रबंधन कं.लि., SBI कोष प्रबंधन कं.लि. तथा LIC कोष प्रबंधन कं. लि. द्वारा सरकार को टिकाऊ लाभ प्रदान करने के लिये किया जाता है। यह कोष सार्वजनिक लेखा (Public Account) का भाग है।