पूंजी बाजार (Capital Market)
- वित्तीय प्रणाली का महत्त्वपूर्ण अंग तथा दीर्घकालीन फंड का बाज़ार जिसमें दोनों ही इक्विटी (अंश पत्रों) तथा ऋण (Debt) के माध्यम से पूंजी प्राप्त की जाती है। इस बाज़ार को दो भागों में बाँटा जा सकता है
प्राथमिक बाज़ार (Primary Market)
- यह नए निर्गमनों (New Issues) का बाज़ार है जिसमें प्रतिभूतियाँ पहली बार बिकने के लिये जारी की जाती हैं।
- इस बाज़ार से दोनों ही घरेलू और विदेशी फंड की उगाही हो सकती है।
- इसमें निर्गमित प्रतिभूतियाँ समता अंश (Equity) या ऋण प्रपत्र हो सकती हैं।
प्राथमिक बाज़ार में जारी की जाने वाली प्रतिभूतियाँ
- घरेलू कंपनियों द्वारा निर्गमित समता अंश
- कंपनियों, सरकार तथा वित्तीय मध्यस्थों द्वारा निर्गमित ऋण प्रपत्र
- ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट (GDR) तथा अमेरिकन डिपॉजिटरी रिसीट (ADR) के माध्यम से निर्गमित समता अंश
- विदेशी वाणिज्यिक उधारी, समता अंश तथा ऋणों के रूप में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) तथा विदेशी संस्थागत निवेश (FII)
- गैर-प्रवासी भारतीय जमा (NRI Deposits)
- इंडियन डिपॉजिटरी रिसीट (IDR) जिसके द्वारा विदेशी कंपनी भारतीय बाज़ार से पूंजी उगाही करती है, आदि।
प्राइमरी मार्केट से फंड प्राप्त करने के साधन
- पब्लिक इश्यू: जनता के लिये शेयरों (अंशों) का निर्गमन।
- निजी आवंटन: कुछ चुने हुए विनियोजकों को नए निर्गत शेयर प्रत्यक्ष निर्गमित किये जाते हैं।
- राइट इश्यूः नए शेयरों का निर्गमन वर्तमान शेयर धारकों को उनकी शेयर धारिता के आधार पर किया जाता है।
- बोनस शेयर: ये वर्तमान शेयर धारकों को अतिरिक्त मुफ्त दिये जाते हैं।
आई.पी.ओ. (Initial Public Offer-IPO)
- जब किसी कंपनी द्वारा अपने शेयरों की बिक्री आम जनता के लिये पहली बार की जाती है तब इसे प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) कहते हैं, आई.पी.ओ. निर्गमन के बाद कंपनी को अपने शेयरों को शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध कराना आवश्यक होता है, ताकि द्वितीयक बाज़ार में उसकी खरीद-बिक्री की जा सके IPO लाने के दो रूट हैं
- बुक बिल्डिंग रूट
- फिक्स्ड प्राइस रूट
द्वितीयक बाज़ार (Secondary Market)
- वह बाज़ार जिसमें पूर्व निर्गमित प्रतिभूतियों में व्यापार होता है। यहाँ प्राथमिक शेयर धारकों द्वारा अपने शेयरों की खरीद-बिक्री की जाती है।
- एफ.पी.ओ. (Follow on Public Offer-FPO)
- जब शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध कंपनी बाज़ार से पुनः पूंजी प्राप्त करने के लिये अपने शेयर निर्गत करती है तो उसे FPO कहा जाता है।
स्टॉक एक्सचेंज (Stock Exchange)
- एक संगठित बाज़ार जहाँ सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों का व्यापार किया जाता है।
- यहाँ केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, सार्वजनिक संस्थाओं, संयुक्त स्टॉक कंपनियों द्वारा निर्गमित पहले से बिकी हुई प्रतिभूतियों में व्यापार किया जाता है।
- द्वितीय बाज़ार में प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय पूंजी निर्माण नहीं करता बल्कि मार्केट में विक्रय के लिये आए हुए अंश पत्रों तथा ऋण पत्रों को तरलता तथा विनिमय क्षमता प्रदान करता है।
- विश्व में पहले स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना नीदरलैंड के एम्स्टर्डम में एम्स्टर्डम स्टॉक एक्सचेंज के नाम से 1602 में हुई थी।
- विश्व के प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं- न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज (NYSE), नैस्डेक (NASDAQ), टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज (TSE) लंदन स्टॉक एक्सचेंज (LSE) तथा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) I
- एशिया के पहले स्टॉक एक्सचेंज के रूप में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना वर्ष 1875 में की गई।
वस्तु वायदा बाज़ार (Commodity Future Market)
- शेयर बाज़ार की तरह वस्तुओं का बाज़ार जहाँ शेयर की जगह वास्तविक भौतिक वस्तुओं, यथा-अनाज, सोना, चांदी, कच्चा तेल इत्यादि की खरीद-बिक्री की जाती है, वस्तु बाज़ार कहलाता है।
- इस बाज़ार में वस्तु का विनिमय ‘वस्तु वायदा अनुबंध’ के तहत किया जाता है जो भविष्य की तारीख में किसी विशिष्ट महीने के दौरान विशिष्ट मात्रा तथा गुणवत्ता की वस्तु को अनुबंध के समय निर्धारित कीमत पर स्वीकार करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- पहले वायदा कारोबार का विनिमय फॉरवर्ड मार्केट कमीशन द्वारा किया जाता था। 28 सितंबर, 2015 को FMC का विलय Securities and Exchange Board of India (SEBI) में कर दिया गया।
प्रमुख वायदा बाजार
- मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (MCX), मुंबई ।
- नेशनल कमोडिटी और डेरिवेटिव एक्सचेंज लिमिटेड (NCDEX),मुंबई।
- नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (NMCE), अहमदाबाद।
स्पॉट एक्सचेंज (Spot Exchange)
- ऐसा इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म जहाँ कृषिगत वस्तुओं, धातु और सोने-चांदी सहित विशिष्ट उत्पादों का क्रय और विक्रय तत्काल सुपुर्दगी प्रसंविदा के अंतर्गत किया जाता है।
- स्पॉट एक्सचेंज वस्तुओं के व्यापार के लिये स्टॉक एक्सचेंज ढाँचे में उपलब्ध अद्यतन प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है।
- जहाँ वायदा बाज़ार अग्रवर्ती प्रसंविदा (Forward Contract) पर आधारित है वहीं स्पॉट एक्सचेंज तत्काल सुपुर्दगी प्रसंविदा (Ready Delivery Contract) पर आधारित है।
प्रमुख स्पॉट एक्सचेंज
- नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (NSEL)
- नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (NCDEX)
पूंजी बाज़ार से संबंधित अन्य महत्त्वपूर्ण शब्दावलियाँ
ट्रेडिंग एंड सेटलमेंट चक्र
- प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय संबंधी व्यवहार के शुरू होने तथा अंतिम भुगतान (Last Settlement) के बीच लगने वाले समय को ट्रेडिंग एंड सेटलमेंट चक्र कहते हैं।
डी-मैट खाता
- यह एक प्रकार का बैंक खाता होता है जिसमें प्रतिभूतियों अथवा बॉण्ड को इलेक्ट्रॉनिक मोड में रखा जाता है।
- शेयर बाज़ार में निवेश करने के लिये इच्छुक व्यक्ति को डी-मैट खाता खोलना अनिवार्य होता है।
- सभी डी-मैट खातों का रख-रखाव नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) तथा सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विस लिमिटेड (CDSL) द्वारा किया जाता है।
शुद्ध परिसंपत्ति मूल्य (Net Asset Value)
- यह एक निधि की परिसंपत्ति का वह मूल्य है जो इसके प्रति इकाई पर मौजूद दायित्वों को घटाने पर प्राप्त होती है।
ब्रिज लोन
- किसी परियोजना में स्थायी वित्तीय व्यवस्था उपलब्ध होने तक अस्थायी एवं अल्पकालिक वित्त व्यवस्था को ब्रिज लोन कहते हैं।
जंक बॉण्ड
- ऐसे बॉण्ड जो एक या अधिक बॉण्ड रेटिंग ऐजेंसियों द्वारा निवेश ग्रेड बॉण्ड के नीचे ग्रेड किया जाता है।
- इन बॉण्डों पर ऊँची प्रतिफल दर होने एवं उनकी परिपक्वता (Maturity) के बाद कंपनी द्वारा प्रतिफल (Return) देने में विफलता की अत्यधिक संभावना के कारण इन्हें गैर-निवेश योग्य बॉण्डों की श्रेणी में रखा जाता है।
कर्ब ट्रेडिंग (Curb Trading)
- किसी शेयर बाज़ार के विनियमन के बाहर शेयरों के व्यापार को कर्ब ट्रेडिंग कहते हैं।
- यह सामान्यतः शेयर मार्केट के बंद होने के बाद ऑनलाइन या टेलीफोन द्वारा किया जाता है।
दिवालिया
- एक ऐसी स्थिति जब किसी फर्म की देनदारियाँ (दायित्व) उसकी संपत्ति से इतनी अधिक हो जाएँ कि वह अपने दायित्व को पूरा न कर पाए तो वह दिवालिया हो जाता है तथा उसे अपनी संपत्तियाँ कोर्ट को सौंप देनी होती है।
इनसाइडर ट्रेडिंग
- कंपनी की गोपनीय स्थिति से परिचित उसके कर्मचारियों द्वारा जब इस स्थिति का लाभ उठाकर ट्रेडिंग की जाती है तो इसे इनसाइडर ट्रेडिंग कहते हैं, जो अवैधानिक है।
बुल तथा बीयर
- शेयर बाज़ार में भाग लेने वाले ऐसे लोगों का समूह जो भविष्य में बाज़ार मूल्य के ऊपर उठने तथा पूंजी लाभ की उम्मीद करता है।
- बुल या तेजड़िया कहलाता है तथा ऐसे लोगों का समूह जो बाज़ार के गिरने तथा पूंजी हानि की प्रत्याशा करता है बीयर या मंदड़िया कहलाता है।
सर्किट ब्रेकर
- सेबी द्वारा आदेशित स्टॉक एक्सचेंज की व्यवस्था जो सेंसेक्स में होने वाले असामान्य उछाल या गिरावट तथा स्टॉक को नियंत्रित करती है।
पौंजी स्कीम
- निवेशकों को अल्प अवधि में उच्च प्रतिफल का प्रलोभन देकर उन्हें आकर्षित करने से संबंधित है। यह एक फ्रॉड स्कीम होती है।
ऐंजल निवेशक
- ऐसे निवेशक जो नव उद्यमियों को अपना व्यवसाय आरंभ करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
- इस सहायता बदले वे शेयर लेते हैं या इसे ऋण के रूप में प्रदान करते हैं।
डेरिवेटिव्स
- डेरिवेटिव्स ऐसे उत्पाद हैं जिनका मूल्य एक या एक से अधिक मूल चरों जिन्हें आधार कहा जाता है, से संविदागत तरीके से प्राप्त किया जाता है। यह निहित संपित्त इक्विटी, विदेशी मुद्रा, वस्तु या कोई अन्य परिसंपत्ति हो सकता है।
शेयर का पुनर्क्रय
- किसी कंपनी द्वारा अपने ही अंशों (शेयरों) को अंशधारियों से बाज़ार में क्रय किया जाना शेयर का पुनर्क्रय (Buy Back) कहलाता है।
क्रेडिट रेटिंग
क्रेडिट रेटिंग ऋणी या उधार लेने वाले की साख क्षमता या उधार लौटाने की क्षमता का निर्धारण है। भारत में प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसी CRISIL- क्रेडिट रेटिंग इनफॉर्मेशन सर्विसेज ऑफ इंडिया लिमिटेड ICRA- इनवेस्टमेंट इनफॉर्मेशन एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इंडिया लिमिटेड CARE- क्रेडिट एनालिसिस एंड रिसर्च लिमिटेड CIBIL- क्रेडिट इनफॉर्मेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड विश्व की प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैडर्ड एंड पूअर्स मूडीज फिच |
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अंश पत्र (शेयर) के रूप
वरीयता अंश (Preference Share)
- वे अंश पत्र (शेयर) जिन्हें सामान्य या समता अंशों की तुलना में लाभांश वितरण में वरीयता दी जाती है।
- इन्हें मताधिकार प्राप्त नहीं होता तथा कंपनी के दिवालिया हो जाने पर भुगतान में समता अंशों पर वरीयता मिलती है।
समता अंश (Equity Share)
- ये वे अंश हैं जिन्हें कंपनी से मताधिकार प्राप्त रहता है तथा ये अंशधारी ही धारित अंशों के अनुपात में कंपनी के स्वामित्वधारी होते हैं।
- समता अंशधारियों का सीमित उत्तरदायित्व होता है।
ॠण पत्र (Debentures)
- यह एक दीर्घकालिक अभिलेख या प्रपत्र है जिसके आधार पर कंपनियाँ ऋण प्राप्त करती हैं।
- ऋण पत्रधारी कंपनी का लेनदार होता है तथा इसे धारित ऋण पत्र पर अंकित ब्याज पाने का पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है, चाहे कंपनी को लाभ हो या हानि।
बॉण्ड (Bond)
- यह भी ॠण पत्र की तरह एक प्रतिभूति होता है जिसके आधार पर निर्गतकर्त्ता बाज़ार से ऋण प्राप्त करता है।
- इस पर ब्याज दर निर्धारित रहती है जिसे कूपन रेट कहते हैं। बॉण्ड अल्पकालीन होता है।
पार्टिसिपेटरी नोट्स (P-Notes)
- ये नोट्स विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) द्वारा उन निवेशकों को निर्गत किये जाते हैं जो भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश करना चाहते हैं पर अपना पंजीयन SEBI से नहीं कराना चाहते । विदेशी संस्थागत निवेशक, जो SEBI से पंजीकृत हैं पी-नोट निर्गत कर सकते हैं।
जीरो कूपन बॉण्ड
- वे बॉण्ड जिन पर ब्याज दर शून्य होती है ज़ीरो कूपन बॉण्ड कहलाते हैं।
- इन बॉण्ड को बट्टा पर निर्गत किया जाता है तथा सम मूल्य (Par Value) पर अदायगी होती है।
मसाला बॉण्ड
- कंपनियों या संस्थाओं द्वारा भारत में निवेश के इच्छुक विदेशी निवेशकों के लिये भारत के बाहर रुपये में जारी किये गए बॉण्ड को मसाला बॉण्ड कहा जाता है।
- पहला मसाला बॉण्ड अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) द्वारा भारत में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये जारी किया गया।
- भारत में जलवायु परिवर्तन से संबंधित निजी क्षेत्र में निवेश के लिये वर्ष 2015 में IFC द्वारा ग्रीन मसाला बॉण्ड जारी किया गया।
स्वेट इक्विटी
- कंपनी द्वारा अपने कर्मचारियों तथा संचालकों को नकदी के अतिरिक्त किसी अन्य प्रतिफल या कोई विशिष्ट सेवा उपलब्ध कराने के लिये निर्गत शेयरों को स्वेट इक्विटी कहते हैं।
सेबी (SEBI Securities and Exchange Board of India):
- वर्ष 1988 में शेयर बाज़ार की गतिविधियों को नियमित करने के लिये एक गैर-वैधानिक संस्था के रूप में सेबी की स्थापना की गई।
- सेबी को सेबी एक्ट, 1992 द्वारा वैधानिक संस्था का दर्जा प्रदान किया गया।
- पूंजी के निर्गमन, प्रतिभूतियों के हस्तांतरण तथा अन्य संबंधित मामलों के संबंध में सेबी को नियंत्रक शक्ति प्राप्त है। इसका मुख्यालय मुंबई में है।
हेज फंड
- यह कुछ निवशकों द्वारा परस्पर की गई एक व्यवस्था होती है।
- जिसके अंतर्गत वे प्रतिभूतियों के मूल्य परिवर्तन के कारण सट्टा लाभ तथा पूंजी अधिमूल्यन अर्जित करने के लिये विनियोग करते है।
बी.एस.ई. ग्रीनेक्स
- यह BSE द्वारा शुरू किया गया भारत का प्रथम ग्रीन स्टॉक एक्सचेंज है।
- यह ऊर्जा उपयोग में कुशल पर्यावरण मैत्री 20 कंपनियों के इक्विटी शेयरों का इंडेक्स है।
- इसमें सम्मिलित प्रमुख कंपनियाँ हैं- ICICI, SBI, L&T, टाटा मोटर्स, सनफार्मा, NTPC, सिप्ला आदि ।
टीजर लोन
- ऐसे ऋण जिसमें ब्याज दर इस प्रकार समायोजित होती है कि शुरू में ब्याज दर कम रहे तथा कुछ वर्षों बाद उसमें वृद्धि हो
पेंशन फंड रेगुलेटरी डेवेलपमेंट अथॉरिटी (PFRDA) –
- वर्ष 2003 में सरकार ने पेंशन फंड रेगुलेटर के रूप में PFRDA की स्थापना की।
- इसका प्रमुख उद्देश्य पेंशन फंड को स्थापित, विकसित तथा नियंत्रित कर वृद्धावस्था आय की सुरक्षा को प्रवर्द्धित करना है।
- PFRDA Act 2013 द्वारा इसे वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
बीमा(Insurance)
- ऐसा अनुबंध जिसके तहत एक कंपनी अथवा राज्य एक निर्दिष्ट प्रीमियम के भुगतान के बदले निर्दिष्ट नुकसान, क्षति, बीमारी या मृत्यु पर मुआवज़े की गारंटी प्रदान करता है।
भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC)
- वर्ष 1956 में करीब 245 देशी तथा विदेशी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर एलआईसी का गठन किया गया।
- इसकी स्थापना का प्रमुख उद्देश्य बेहतर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना तथा लोगों की बचत को राष्ट्र में लगाना है। इसका मुख्यालय मुंबई में है।
साधारण बीमा निगम (GIC)
- वर्ष 1972 सरकार ने 107 से ज़्यादा निजी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर जीआईसी का गठन किया।
- यह 1 जनवरी, 1973 से अपनी चार धारक कंपनियों- नेशनल इंश्योरेंस कं.लि., दि न्यू इंडिया अस्योरेंस कं. लि., युनाइटेड इंडिया इंश्योरेंश कं.लि. तथा दि ओरिएंटल इंश्योरेंस कं.लिमिटेड के साथ कार्य करना आरंभ कर दिया। इसका मुख्यालय मुंबई में है।
भारतीय बीमा नियामक विकास प्राधिकरण (IRDAI):
- बीमा क्षेत्र के नियमन के लिये भारत सरकार द्वारा वर्ष 1999 में आई.आर. डी.ए.आई. का गठन किया गया व इसका निगमन एक सांविधिक निकाय के रूप से वर्ष 2000 में किया गया।
- प्राधिकरण में एक अध्यक्ष तथा पाँच पूर्णकालिक तथा चार अल्पकालिक सदस्यों की व्यवस्था है।
- ..जिनकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है। इसका मुख्यालय हैदराबाद में है।