मध्यकालीन इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण राजवंश

मध्यकालीन इतिहास

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मध्यकालीन भारत का इतिहास

पाल वंश

  • पाल वंश का संस्थापक गोपाल (750-770) था। गोपाल बौद्ध मतानुयायी था।
  • गोपाल के बाद धर्मपाल (770-810) शासक बना।
  • धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय (भागलपुर) और सोमपुरी विहार की स्थापना करवाई।
  • धर्मपाल के बाद देवपाल शासक बना। जावा शासक बालपुत्रदेव के अनुरोध पर देवपाल ने उसे नालंदा में बौद्ध विहार बनवाने के लिये पाँच गाँव दान में दिये थे।
  • महिपाल-I के समय चोल शासक राजेंद्र चोल ने गंगा का अभियान किया।
  • महिपाल-II के समय कैवर्त जाति ने विद्रोह कर दिया और महिपाल की हत्या कर दी।

सेन वंश

  • 12वीं सदी के अंत तक बंगाल में पाल के स्थान पर सेन वंश स्थापित हो गया।
  • सेन शासक बल्लाल सेन ने दान सागर एवं अद्भूत सागर ग्रंथों की रचना की।
  • लक्ष्मणसेन के दरबार में गीतगोविंद के लेखक जयदेव तथा ‘ब्राह्मण सर्वस्व’ के लेखक हलायुध रहते थे।

कश्मीर के राजवंश

  • इस काल में कश्मीर के तीन प्रमुख राजवंश क्रमश: कार्कोट, उत्पल तथा लोहार वंश थे।
  • कार्कोट शासक ललितादित्य मुक्तापीड (724-760) ने कश्मीर में मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था।
  • कल्हण की राजतरंगिणी में लोहार वंश के अंतिम शासक जयसिंह (1128-1155) तक का विवरण है।

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गुर्जर-प्रतिहार

  • मालवा के शासक नागभट्ट-1 (730-756) को गुर्जर-प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है।
  • नागभट्ट-II (800-833) इस वंश का एक अन्य प्रमुख शासक मध्यकालीन इतिहासथा।
  • मिहिरभोज (836-885) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रतिहार शासक था।
  • वह विष्णु का उपासक था और उसने ‘आदिवराह’ और ‘प्रभास’ की उपाधि ली थी।
  • मिहिरभोज की उपलब्धियों की चर्चा उसके ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख में की गई है।
चंदबरदाई के ‘पृथ्वीराजरासो’ ग्रंथ में अग्निकुंड से उत्पन्न चार राजपूत जातियों- प्रतिहार, चालुक्य, परमार और चौहान की कथाएँ हैं।

 

 

जेजाकभुक्ति के चंदेल

  • जेजाकभुक्ति (बुंदेलखंड) में 9वीं सदी में चंदेल वंश स्थापित हुआ।
  • इसका संस्थापक नन्नुक था। इसकी राजधानी खजुराहो थी।
  • चंदेल शासक धंग ने जल समाधि ले ली थी।
  • चंदेल शासक विद्याधर ने महमूद गजनवी के आक्रमण का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया।
  • प्रसिद्ध सेनापति ‘आल्हा ऊदल’ चंदेल शासक परमार्दिदेव के दरबार में थे।
  • ‘पृथ्वीराज चौहान’ से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
  • आल्हा ऊदल जगनिक के ‘आल्हा-खंड’ के नायक थे।
  • इस काल में निर्मित कंदरिया महादेव का मंदिर शैव धर्म तथा चतुर्भुज मंदिर वैष्णव धर्म से संबंधित था।

गहड़वाल वंश (कन्नौज)

  •  इसका संस्थापक चंद्रदेव था।
  • गोविंदचंद्र इस वंश का एक विद्वान शासक था।
  • उसके मंत्री लक्ष्मीधर ने कृत्यकल्पतरु नामक एक ग्रंथ लिखा था।
  • गहड़वाल शासक जयचंद का समकालीन पृथ्वीराज-III था।
  • चंदावर का युद्ध (1194) जयचंद और मोहम्मद गौरी के बीच हुआ जिसमें जयचंद पराजित हुआ।
  • श्री हर्ष जयचंद के दरबार में रहते थे जिन्होंने नैषधचरित ग्रंथ लिखा।

गुजरात के चालुक्य या सोलंकी

  • इसके संस्थापक मूलराज थे तथा अन्हिलवाड़ इसकी राजधानी थी।
  • चालुक्य शासक भीम-I के समय 1025 में महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया गया।
  • भीम-I के मंत्री विमल ने दिलवाड़ा के जैन मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • मोढेरा (गुजरात) के सूर्य मंदिर का निर्माण सोलंकी शासकों के काल में ही हुआ था।
  • चालुक्य शासक भीम-II (कुछ स्रोतों में मूलराज-II) ने मोहम्मद गौरी को 1178-79 में पराजित किया।

मालवा का परमार वंश

  • परमारों की राजधानी उज्जैन थी। कालांतर में भोज परमार ने धार को राजधानी बनाया।
  • भोज (1000-1055) परमार वंश का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शासक था।
  • वह शिक्षा और साहित्य का संरक्षक था। उसने भोजपुर नगर की स्थापना करवाई और सरस्वती मंदिर का निर्माण करवाया। उसकी उपाधि ‘कविराज’ थी।
  • परमार भोज की मृत्यु को ‘निरालम्बा सरस्वती’ कहा गया।

शाकंभरी (अजमेर) के चौहान

  • इसके संस्थापक वासुदेव थे।
  • अजयराज ने अजमेर नगर की स्थापना की।
  • चौहान शासक वीसलदेव (विग्रहराज-IV) ने ‘हरिकेलि’ नामक संस्कृत नाटक की रचना की।
  • पृथ्वीराज-III सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा अंतिम चौहान शासक था। इन्हें ‘रायपिथौरा’ कहा जाता था।
  •  तराइन के प्रथम युद्ध (1191) में उसने मुहम्मद गौरी को पराजित किया। तराइन पराजित किया। दूसरे युद्ध (1192) में पृथ्वीराज को गौरी ने
  • पृथ्वीराज-III के दरबार में जयानक और चंदबरदाई रहते थे, जिन्होंने क्रमशः पृथ्वीराज विजय एवं पृथ्वीराजरासो की रचना की।

दिल्ली के तोमर

  • 736 में आनंदपाल ने ‘दिल्ली’ में तोमर वंश की स्थापना की।

राष्ट्रकूट

  • राष्ट्रकूट चालुक्यों के सामंत थे। राष्ट्रकूट वंश की स्थापना दंतिदुर्ग ने की।
  • राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेत (गुलबर्गा, कर्नाटक) थी।
  • दंतिदुर्ग ने मालवा का अभियान किया और हिरण्यगर्भदान यज्ञ किया ने जिसमें प्रतिहारों ने द्वारपाल की भूमिका निभाई।
  • एलोरा के कैलाश मंदिर का निर्माण कृष्ण-I ने करवाया था।
  • ध्रुव त्रिपक्षीय संघर्ष में भागीदारी करने वाला प्रथम राष्ट्रकूट शासक था।
  • अमोघवर्ष ने ‘कविराज मार्ग’ ग्रंथ की रचना कन्नड़ भाषा में की।
  • इंद्र-III के समय अलमसूदी भारत आया।
  • तक्कोल्लम की लड़ाई में (949) राष्ट्रकूट शासक कृष्ण-III और चोल शासक परांतक-I ने भाग लिया जिसमें चोल शासक पराजित हुआ।
  • पोन्न, कृष्ण-III के दरबार में रहते थे जिन्होंने शांतिपुराण की रचना की।
  • राष्ट्रकूट राजा कर्क-II को तैलप-II ने पराजित किया और उत्तरवर्ती चालुक्यों की स्थापना की।

उत्तरवर्ती चालुक्य (कल्याणी के चालुक्य)

  • ‘विक्रमांकदेवचरित’ के रचयिता विल्हण विक्रमादित्य-VI के दरबारी कवि थे। मिताक्षरा के लेखक विज्ञानेश्वर इनके मंत्री थे।
  • अपने राज्यारोहण उपलक्ष्य में विक्रमादित्य ने 1076 में चालुक्य संवत् प्रारंभ किया।

पंप, पोन्न और रन्न को कन्नड़ साहित्य का त्रिरत्न माना जाता है।

चोल

  • चोल पल्लवों के सामंत थे। इनका इतिहास मुख्यतः अभिलेखों से जाना जाता है जो कि संस्कृत, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ भाषाओं में लिखे गए हैं।
  • विजयालय (850-887) ने चोल राज्य की स्थापना की और उसने नरकेसरी की उपाधि धारण की थी।
  • चोलों की प्रारंभिक राजधानी तंजौर या तंजावुर थी।
  • अरमोलिवर्मन (राजराज-I) ने पांड्य, चेर तथा श्रीलंका के गठबंधन को पराजित किया।
  • उसने श्रीलंका के शासक महेंद्र पंचम को पराजित कर लंका के उत्तरी क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
  • राजराज-I ने मालदीव पर अपनी शक्तिशाली नौसेना की सहायता से विजय प्राप्त की।
  • यह प्रथम चोल शासक था जिसने भूमि की माप करवाई।
  • अपने जीवनकाल में ही अपने पुत्र राजेंद्र-I को सम्राट घोषित कर दिया।
  • राजराज-I ने तंजौर में ‘बृहदेश्वर (राजराजेश्वर) ‘ शिव मंदिर बनवाया।
  • राजेंद्र-I ने संपूर्ण श्रीलंका को जीत लिया। 1022 में गंगा-घाटी का अभियान किया।
  • पाल शासक महिपाल को पराजित किया। इस उपलक्ष्य में वापस आकर ‘गंगैकोंडचोलपुरम्’ नामक नगर की स्थापना की और ‘गंगैकोंडचोल’ की उपाधि धारण की। राजेंद्र प्रथम ने गंगैकोंडचोलपुरम् को चोल राज्य की नवीन राजधानी बनाया।
  • उसने दक्षिण पूर्व एशिया में सैन्य अभियान किया। उसने शैलेंद्र शासक श्री संग्राम विजय तुंग को पराजित करके कटाहा (कडारम) पर अधिकार कर लिया और ‘कडारकोंड’ की उपाधि ली। इस राज्य के अंतर्गत मलय, जावा, सुमात्रा आदि द्वीप थे।
  • कुलोतुंग- I चोल-चालुक्य रक्त मिश्रित था। इसने भूमि की दो बार माप कराई।
  • कुलोतुंग-II ने चिदंबरम मंदिर में स्थित गोविंद राज (विष्णु) की मूर्ति को समुद्र में फेंकवा दिया।
  • कालांतर में रामानुजाचार्य ने उस मूर्ति का पुनरुद्धार किया और उसे तिरूपति के मंदिर में प्रतिष्ठित किया।
  • राजेंद्र-III चोल वंश का अंतिम शासक था।

शासन प्रबंध

  • चोल प्रशासन में उच्च श्रेणी के अधिकारी को पेरूंदनम तथा निम्न श्रेणी के अधिकारी को शिरूंदनम कहा जाता था।
  • साम्राज्य का विभाजन प्रांतों में होता था। प्रांतों को मंडलम कहा जाता था जिन पर राजपरिवार के लोग नियुक्त होते थे।
  •  मंडलम → ‘वलनाडु’ (कोट्टम) →’नाडु’ (ज़िला) → ‘कुर्रम’ (गाँवों का समूह) → ग्राम

स्थानीय स्वायत्त शासन

चोल शासन की उल्लेखनीय विशेषता उनका ग्रामीण स्वशासन थी। ग्रामों में मुख्यतः दो प्रकार की संस्थाएँ कार्यरत थीं।

  1. उरः यह सामान्य गाँवों में कार्यरत संस्था थी। उर की बैठक में सभी ग्रामवासी भाग लेते थे।
  2. सभा या महासभा: यह अग्रहार (ब्राह्मणों को दान में दिये गए) ग्रामों में होती थी। इनके सदस्यों को पेरूमक्कल कहा जाता था।
  • सभा अपनी समितियों के माध्यम से कार्य करती थी जिसे वारियम कहते थे।
  • समिति के सदस्य का चुनाव लॉटरी पद्धति से किया जाता था। कुछ प्रमुख समितियाँ निम्न प्रकार थीं
    • तोत्तवारियम – उद्यान समिति
    • एरिवारियम – तालाब समिति
    • पोनवारियम – स्वर्ण समिति

सभा या महासभा की कार्यप्रणाली के संबंध में पर्याप्त विवरण हमें परांतक-I के उत्तरमेरूर अभिलेख से प्राप्त होती है।

चोलकालीन अर्थव्यवस्था

  • ब्राह्मणों को दी गई करमुक्त भूमि चतुर्वेदी मंगलम एवं दान में दी गई भूमि ब्रह्मदेय कहलाती थी।
  • मानक सिक्का ‘कलंजू’ या ‘कल्याणजू’ कहलाता था। सोने के सिक्के थे।
  • उत्तम चोल ने सर्वप्रथम सोने का सिक्का जारी किया।(उत्तम चोल या सुंदर चोल या परांतक-II)
  • चोल काल में मंदिर आर्थिक गतिविधियों के केंद्र थे। ये मंदिर बैंकिंग का कार्य भी करते थे।
  • मंदिरों को उपहार में दी गई भूमि देवदान कहलाती थी
  • कावेरीपट्टनम चोल काल का सबसे महत्त्वपूर्ण बंदरगाह था।
  • मणिग्रामम, नानादेशी इत्यादि व्यापारियों के संघ थे। नानादेशी अपने उद्यम के लिये पूरे विश्व में विख्यात थे।

संस्कृति

  • चोल राजाओं के समय तमिल प्रदेश में शैव तथा वैष्णव धर्मों का बोलबाला रहा।
  • विष्णु के उपासक को अलवार तथा शिव के उपासक को नयनार संत कहा जाता था।
  • कुलोतुंग प्रथम का राजकवि जयंगोंदर एक प्रसिद्ध तमिल कवि था, उसने कलिंगतुपर्णि की रचना की।
  • कंबन, औट्टक्कुट्टन और पुगलेंदि तमिल साहित्य के विद्वान थे।
  • पर्सी ब्राऊन ने तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर के विमान को भारतीय वास्तुकला का चरमोत्कर्ष माना है।

समकालीन अन्य राज्य

मदुरै के पांड्य

  • मारवर्मन सुंदरपांड्य के अधीन पांड्य सत्ता का उत्कर्ष हुआ।
  • मारवर्मन कुलशेखरवर्मन एक प्रमुख शासक था।

द्वारसमुद्र के होयसल

  • होयसल वंश का संस्थापक विष्णुवर्धन था। इसने द्वारसमुद्र को अपनी राजधानी बनाया था।
  • देवगिरि के समान यह भी यादव कुल से संबंधित था।
  • वीर वल्लाल द्वितीय के समय यह राज्य शक्तिशाली हुआ।
  • द्वारसमुद्र का आधुनिक नाम ‘हेलेबिड’ है।

वारंगल का काकतीय वंश

  • संस्थापक- बेत प्रथम
  • इसी वंश की शासिका रूद्रम्मा देवी थी।
  • इस वंश का अंतिम शासक प्रतापरूद्र (1295-1323) था।

देवगिरि का यादव वंश

  • संस्थापक- भिल्लम
  • इस वंश का सबसे प्रतापी राजा सिंहण (1210-1246) था।
  • इस वंश का अंतिम स्वतंत्र शासक रामचंद्र था, जिसने अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर के सामने आत्मसर्मपण किया।

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