भारत की मृदा

 

indian soil | भारत की मृदा
भारत की मृदा | indian soil

भारत की मृदा

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR) द्वारा संरचनात्मक मृदा, खनिज, मृदा के रंग व संसाधनात्मक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए भारतीय मृदा को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया गया है-

जलोढ़ मिट्टी

  • जलोढ़ को काँप, दोमट, कछारी या चीका मिट्टी भी कहा जाता है।
  • इस मिट्टी का निर्माण नदियों द्वारा बहाकर लाये गये अवसाद के जमाव द्वारा होता है।
  • यह मिट्टी हल्के भूरे रंग की होती है। खुदाई करने पर यह मिट्टी 490 मीटर की गहराई तक पाई गई है।
  • इस मिट्टी मे नेत्रजन, फास्फोरस और वनस्पति अंशों की कमी होती है, परन्तु पोटाश और चूना पर्याप्त मात्रा मे पाया जाता है।
  • यह मिट्टी भारत के काफी बड़े क्षेत्र मे पाई जाती है। यह मिट्टी भारत के 40% भाग पर पाई जाती है।
  • भारत मे यह मिट्टी हिमालय से निकलने वाली तीन बड़ी नदियों-सतलज, गंगा एवं ब्रह्रापुत्र और उनकी सहायक नदियों-द्वारा बहाकर लाई गई कांप मिट्टी से निर्मित हुई है। मिट्टी के इन बारीक कणों को जलोढ़क कहते है।
  • इस मिट्टी मे विभिन्न मात्रा मे रेत, गाद तथा मृत्तिका (चीका मिट्टी) मिली होती है।
  • भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या की खाद्यान्न आपूर्ति तथा औद्योगिक कृषि उपजें, इसी मिट्टी की देन है।

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काली या रेगड़ मिट्टी

  • इस मिट्टी को रेगड़ या कपास वाली काली मिट्टी भी कहते है।
  • इसका रंग गहरा काला और कणों की बनावट बारीक व घनी होती है।
  • इस मिट्टी की रचना अत्यंत बारीक मृतिका (चीका) के पदार्थों से हुई है।
  • इसलिए इस मिट्टी मे अधिक समय तक नमी धारण करने की क्षमता पाई जाती है।
  • भारत मे यह मिट्टी गुजरात से अमरकंटक तक और बेलगांव से गुना तक पाई जाती हैं।
  • यह मिट्टी महाराष्ट्र के विदर्भ, खानदेश एवं मराठवाड़ा, मध्यप्रदेश मे, उड़ीसा के दक्षिण भाग, कर्नाटक के उत्तरी जिलों, आन्ध्रप्रदेश के दक्षिणी और तटवर्ती भाग, तामिलनाडु के भाग तथा राजस्थान के कुछ जिलों तथा उत्तरप्रदेश के बुन्देलखण्ड संभाग मे मिलती है।
  • यह मिट्टी कपास, दाले, आदि के लिए अत्यधिक उपयुक्त है।

 

लाल मिट्टी

  • यह मिट्टी शुष्क और तर जलवायु मे प्राचीन रवेदार और परिवर्तित चट्टानों के टूट-फूट से बनती है।
  • यह मिट्टी लाल, पीली, भूरी, आदि विभिन्न रंगों की होती है।
  • प्राय: इसमे लौह-अयस्क होने के कारण इसका रंग लाल होता है।
  • ताप्ती नदी घाटी मे पहाड़ियों के ढ़ालो पर लगातार अधिक गर्मी पड़ने से चट्टानों के टूटने पर उसमे मिला हुआ लोहा मिट्टी मे फैल जाता है जिससे इसका रंग लाल हो गया है।
  • इस मिट्टी मे अनेक प्रकार की चट्टानों से बनी होने के कारण गहराई और उर्वरा शक्ति मे भिन्नता पाई जाती है।
  • यह मिट्टी अत्यंत रन्ध्रयुक्त है। यह अत्यंत बारीक तथा गहरी होने पर ही उपजाऊ होती है।
    यह मिट्टी उत्तरप्रदेश के बुन्देलखण्ड से लेकर दक्षिण के प्रायद्वीप तक पायी जाती हैं।
  • यह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, मेघालय, नागालैण्ड, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र मे मिलती है।
  • इस मिट्टी मे बाजरा की फसल अच्छी पैदा होती है, किन्तु गहरे लाल रंग की मिट्टी कपास, गेहूं, दालें, और मोटे अनाज के लिए उपयुक्त है।

लैटेराइट मिट्टी

  • इस मिट्टी का निर्माण ऐसे भागों मे हुआ है जहाँ शुष्क व तर मौसम बारी-बारी से होता है।
  • यह मिट्टी लैटेराइट चचट्टानों की टूट फूट से बनती है। यह मिट्टी चौरस उच्च भूमियों पर मिलती है।
  • इसमे लोहा ऑक्साइड और पोटाश की मात्रा अधिक होती है।
  • लैटेराइट मिट्टी तीन प्रकार की होती है–
    (अ) गहरी लाल लैटेराइट मिट्टी
    (ब) सफेद लैटेराइट मिट्टी
    (स) गहरी जल वाली लैटेराइट मिट्टी
  • यह तमिलनाडु के पहाड़ी भागों और निचले क्षेत्रों, कर्नाटक के कुर्ग जिले, केरल राज्य के चौड़े समुद्री तट, महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले, पश्चिम बंगाल के बेसाल्ट और ग्रेनाइट पहाड़ियों के बीच तथा उड़ीसा के पठार के ऊपरी भागों और घाटियों मे मिलती है।
  • यह मिट्टी चावल, कपास, गेहूँ, दाल, मोटे अनाज, सिनकोना, चाय, कहवा आदि फसलों के लिए उपयोगी है।

मरूस्थलीय मिट्टी

  • यह बालू प्रधान मिट्टी है जिसमे बालू के कण मोटे कण होते है।
  • यह मिट्टी दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा कच्छ के रन की ओर से उड़कर भारत के पश्चिमी शुष्क प्रदेश मे जमा हुई है।
  • इसमे खनिज नमक अधिक मात्रा मे पाया जाता है।
  • मरूस्थलीय मिट्टी मे नमी कम रहती है तथा वनस्पति के अंश भी कम ही पाये जाते है, किन्तु सिंचाई करने पर यह उपजाऊ हो जाती है।
  • इस मिट्टी मे गेहूँ, गन्ना, कपास, ज्वार, बाजरा, सब्जियां आदि पैदा की जाती है।
  • सिंचाई की सुविधा उपलब्ध न होने पर यह बंजर पड़ी रहती है।
  • यह मिट्टी शुष्क प्रदेशों विशेषकर पश्चिमी राजस्थान, गुजरात, दक्षिण पंजाब, दक्षिणी हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश मे मिलती है।

पर्वतीय मिट्टी

  • यह मिट्टी हिमालयी पर्वत श्रेणियों पर पायी जाती है।
  • अधिकांशतः यह मिट्टी पतली, दलदली और छिद्रमयी होती है।
  • नदियों की घाटियों और पहाड़ी ढ़ालों पर यह अधिक गहरी होती है।
  • हिमालय के दक्षिणी ढ़ालों के अधिक खड़ा होने के कारण यहाँ इसका जमाव अधिक नही होता।
  • पहाड़ी ढ़ालों के तलहटी मे टरशियरीकालीन मिट्टी पाई जाती है जो हल्की बलुई, छिछली, छिद्रमय और कम वनस्पति अंश वाली है।
  • पश्चिमी हिमालय के ढ़ालों पर बलुई मिट्टी मिलती है, मध्य हिमालय के क्षेत्र मे अधिक वनस्पति अंशों वाली उपजाऊ मिट्टी मिलती है।
  • अच्छी वर्षा होने पर इस मिट्टी मे दून एवं कांगड़ा घाटी मे, चाय की अच्छी पैदावार होती है।

 

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