भारत का अपवाह तंत्र

 

  • भारत का अपवाह तंत्र का नियंत्रण मुख्यतः भौगोलिक स्थलाकृतियों के द्वारा होता है।
  • इस आधार पर भारतीय नदियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है
    1. हिमालय की नदियाँ
    2. प्रायद्वीपीय नदियाँ
  • हिमालय की अधिकांश नदियाँ बारहमासी हैं।
  • इनमें वर्षभर जल उपलब्ध रहता है क्योंकि इन्हें वर्षा के अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों से पिघलने वाले हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता है।
  • हिमालय की दो मुख्य नदियाँ- सिंधु तथा ब्रह्मपुत्र इस पर्वतीय श्रृंखला के उत्तरी भाग से निकलती हैं।
  • इन नदियों ने पर्वतों को काटकर गॉर्जों का निर्माण किया है।
  • ये नदियाँ अपने पर्वतीय मार्ग (युवावस्था) के साथ V-आकार की घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जलप्रपात का निर्माण करते हुए मैदानी भाग में प्रवेश करने के उपरांत अनेक स्थलाकृतियों, यथा-समतल घाटियाँ, गोखुर झील, बाढ़कृत मैदान, गुंफित वाहिकाएँ तथा डेल्टा का निर्माण करती हैं।
  • अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी हैं क्योंकि इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है।
  • जबकि कुछ नदियाँ, जैसे- गोदावरी, कृष्णा जो विशाल अपवाह क्षेत्र वाली नदियाँ हैं, वर्षभर बहती हैं क्योंकि ये नदियाँ ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में दक्षिण-पश्चिम मानसून से तथा निम्न क्षेत्रों में उत्तर-पूर्वी मानसून से वर्षा का जल प्राप्त करती हैं।
  • प्रायद्वीपीय पठार पर पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ ज्वारनदमुख (एश्चुरी) का निर्माण करती हैं।
  • नर्मदा व ताप्ती के अलावा शरावती, मांडवी, जुआरी, भरतपूझा, पेरियार तथा पंबा आदि नदियाँ पश्चिम ( अरब सागर में) की ओर प्रवाहित होती हैं।
  • प्रायद्वीपीय नदियों का उत्तर से दक्षिण की ओर क्रम-महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार, कावेरी एवं वैगई है।
  • प्रायद्वीपीय पठार की मुख्य नदियाँ, जैसे- महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी पूर्व की ओर बहती हैं
  • तथा बंगाल की खाड़ी में गिरने से पूर्व डेल्टा का निर्माण करती हैं।
  • नदियाँ जब डेल्टा न बनाकर सीधे समुद्र में मिल जाती हैं तब एश्चुरी का निर्माण होता है।
  • माही, तापी, नर्मदा, मांडवी आदि नदियाँ एश्चुरी बनाती हैं।
  • प्रायद्वीपीय नदियों का लंबाई के अनुसार घटता क्रम-गोदावरी, कृष्णा,नर्मदा, महानदी, कावेरी एवं ताप्ती प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र हिमालयी अपवाह तंत्र से पुराना है।
  • प्रायद्वीपीय नदियाँ एक निश्चित मार्ग पर चलती हैं। इनमें विसर्पण का अभाव होता है।
  • तटीय नदियाँ, विशेष रूप से पश्चिमी तट की नदियाँ अपेक्षाकृत कम लंबी हैं तथा इनका जलग्रहण क्षेत्र सीमित है।
  • 1960 के भारत-पाकिस्तान के सिंधु नदी समझौते के अंतर्गत तीन पूर्वी नदियों- व्यास, रावी, सतलज के 80% जल का उपयोग भारत करेगा, जबकि सिंधु, चेनाब तथा झेलम के 80% जल का उपयोग पाकिस्तान करेगा।

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File:Devprayag Bhagirathi Alaknanda.jpg - Wikimedia Commons

नदियाँ / उद्गम स्रोत | भारत का अपवाह तंत्र

नदी का नाम उद्गम स्थल सहायक नदियाँ व प्रवाह क्षेत्र
सिन्धु नदी मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत) सतलुज, व्यास, झेलम, चिनाब, रावी, शिंगार, गिलगित, श्योक (जम्मू और कश्मीर, लेह)
झेलम नदी शेषनाग झील, जम्मू-कश्मीर किशन, गंगा, पुँछ, लिदार, करेवाल, सिंध (जम्मू-कश्मीर, कश्मीर)
चिनाब नदी बारालाचा दर्रे के निकट चन्द्रभागा (जम्मू-कश्मीर)
रावी नदी रोहतांग दर्रा, कांगड़ा साहो, सुइल (हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब)
सतलुज नदी मानसरोवर के निकट राकसताल व्यास, स्पिती, बस्पा (हिमाचल प्रदेश, पंजाब)
व्यास नदी रोहतांग दर्रा तीर्थन, पार्वती, हुरला (हिमाचल प्रदेश)
गंगा नदी गंगोत्री के निकट गोमुख से यमुना, रामगंगा, गोमती, बागमती, गंडक, कोसी, सोन, अलकनंदा, भागीरथी, पिण्डार, मंदाकिनी (उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल)
यमुना नदी यमुनोत्री ग्लेशियर चम्बल, बेतवा, केन, टोंस, गिरी, काली, सिंध, आसन (उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली)
रामगंगा नदी नैनीताल के निकट एक हिमनदी से खोन (उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश)
घाघरा नदी मप्सातुंग (नेपाल) हिमनद शारदा, करनली, कुवाना, राप्ती, चौकिया (उत्तर प्रदेश, बिहार)
गंडक नदी नेपाल तिब्बत सीमा पर मुस्ताग के निकट काली, गंडक, त्रिशूल, गंगा (बिहार)
कोसी नदी नेपाल में सप्तकोशिकी (गोंसाईधाम) इन्द्रावती, तामुर, अरुण, कोसी (सिक्किम, बिहार)
चम्बल नदी मऊ के निकट जानापाव पहाड़ी से काली, सिंध, सिप्ता, पार्वती, बनास (मध्य प्रदेश)
बेतवा नदी भोपाल के पास उबेदुल्ला गंज के पास – (मध्य प्रदेश)
सोन नदी अमरकंटक की पहाड़ियों से रिहन्द, कुनहड़ (मध्य प्रदेश, बिहार)
दामोदर नदी छोटा नागपुर पठार से दक्षिण पूर्व कोनार, जामुनिया, बराकर (झारखण्ड, पश्चिम बंगाल)
ब्रह्मपुत्र नदी मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत में सांग्पो) घनसिरी, कपिली, सुवनसिती, मानस, लोहित, नोवा, पद्मा, दिहांग (अरुणाचल प्रदेश, असम)
महानदी सिहावा के निकट रायपुर सियोनाथ, हसदेव, उंग, ईब, ब्राह्मणी, वैतरणी (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा)
वैतरणी नदी क्योंझर पठार – (उड़ीसा)
स्वर्ण रेखा छोटा नागपुर पठार – (उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल)
गोदावरी नदी नासिक की पहाड़ियों से प्राणहिता, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, इन्द्रावती, मंजीरा, पुरना (महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश)
कृष्णा नदी महाबलेश्वर के निकट कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगप्रभा, मूसी (महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश)
कावेरी नदी केरकारा के निकट ब्रह्मगिरी हेमावती, लोकपावना, शिमला, भवानी, अमरावती, स्वर्णवती (कर्नाटक, तमिलनाडु)
नर्मदा नदी अमरकंटक चोटी तवा, शेर, शक्कर, दूधी, बर्ना (मध्य प्रदेश, गुजरात)
ताप्ती नदी मुल्ताई से (बेतूल) पूरणा, बेतूल, गंजल, गोमई (मध्य प्रदेश, गुजरात)
साबरमती जयसमंद झील (उदयपुर) वाकल, हाथमती (राजस्थान, गुजरात)
लूनी नदी नाग पहाड़ सुकड़ी, जनाई, बांडी (राजस्थान, गुजरात, मिरूडी, जोजरी)
बनास नदी खमनौर पहाड़ियों से सोड्रा, मौसी, खारी (कर्नाटक, तमिलनाडु)
माही नदी मेहद झील से सोम, जोखम, अनास, सोरन (मध्य प्रदेश, गुजरात)
हुगली नदी नवद्वीप के निकट जलांगी
उत्तरी पेन्नार नंदी दुर्ग पहाड़ी पाआधनी, चित्रावती, सागीलेरू
तुंगभद्रा नदी पश्चिमी घाट में गोमन्तक चोटी कुमुदवती, वर्धा, हगरी, हिंद, तुंगा, भद्रा
मयूसा नदी आसोनोरा के निकट मेदेई
साबरी नदी सुईकरम पहाड़ी सिलेरु
इन्द्रावती नदी कालाहाण्डी, उड़ीसा नारंगी, कोटरी
क्षिप्रा नदी काकरी बरडी पहाड़ी, इंदौर चम्बल नदी
शारदा नदी मिलाम हिमनद, हिमालय, कुमायूँ घाघरा नदी
तवा नदी महादेव पर्वत, पंचमढ़ी नर्मदा नदी
हसदो नदी सरगुजा में कैमूर पहाड़ियाँ महानदी
काली सिंध नदी बागलो, ज़िला देवास, विंध्याचल पर्वत यमुना नदी
सिन्ध नदी सिरोज, गुना ज़िला चम्बल नदी
केन नदी विंध्याचल श्रेणी यमुना नदी
पार्वती नदी विंध्याचल, मध्य प्रदेश चम्बल नदी
घग्घर नदी कालका, हिमाचल प्रदेश
बाणगंगा नदी बैराठ पहाड़ियाँ, जयपुर यमुना नदी

 

गंगा तंत्र में निर्मित विविध प्रयाग 

विष्णु प्रयाग– धौली गंगा एवं अलकनंदा नदी

कर्ण प्रयाग– पिंडार एवं अलकनंदा नदी

रुद्र प्रयाग– मंदाकिनी एवं अलकनंदा नदी

देव प्रयाग– भागीरथी एवं अलकनंदा नदी

प्रयाग– गंगा एवं यमुना

ब्रह्मपुत्र के विविध नाम

सांगपो– तिब्बत

दिहांग– अरुणाचल प्रदेश

ब्रह्मपुत्र– असम (सादिया से धुबरी के बीच)

जमुना- उत्तर बांग्लादेश

पदमा– मध्य बांग्लादेश (गंगा से मिलने के बाद)

  मेघना– दक्षिणी बांग्लादेश

 

संकोश नदी असम एवं पश्चिम बंगाल के बीच सीमा बनाती है।

 

नदियों का अपवाह प्रतिरूप

  • अपवाह प्रतिरूप में धाराएँ एक निश्चित प्रतिरूप का निर्माण हैं,
  • जो कि उस क्षेत्र की भूमि की ढाल, जलवायु संबंधी अवस्थाओं तथा अधःस्थ शैल संरचना पर आधारित होता है
  • जो अपवाह प्रतिरूप पेड़ की शाखाओं के अनुरूप हो, उसे ‘वृक्षाकार प्रतिरूप’ (Dendritic Pattern) कहा जाता है, जैसे उत्तरी मैदान की नदियाँ ।
  •  जब नदियाँ किसी पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में बहती हों, तो इसे ‘अरीय प्रतिरूप’ (Radial Pattern) कहा जाता है।
  • अमरकंटक पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली नदियाँ इस अपवाह प्रतिरूप के अच्छा उदाहरण हैं।
  • जब मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समानांतर बहती हों तथा सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर आकर मिलती हों,
  • तो ऐसे प्रतिरूप को ‘जालीनुमा प्रतिरूप’ (Trellis Pattern) कहते हैं।
  • छोटानागपुर पठार, विंध्याचल पर्वत पर बहने वाली नदियाँ इस प्रतिरूप के उदाहरण हैं।
  • जब सभी दिशाओं से नदियाँ बहकर किसी झील में विसर्जित होती हैं, तो ऐसे अपवाह प्रतिरूप को ‘अभिकेंद्री प्रतिरूप’ (Centripetal Pattern) कहते हैं। राजस्थान व गुजरात की वे नदियाँ इस प्रतिरूप के उदाहरण हैं जो झील या प्लाया में विसर्जित होती हैं।
  • अपकेंद्रीय अपवाह– इस प्रतिरूप में कई धाराएं एक ही स्थान से (झील आदि) निकलकर चारों ओर प्रवाहित होती हैं। जैसे- तिब्बत की नदियाँ।

अंतःस्थलीय अपवाह

  • अंतःस्थलीय अपवाह के अंतर्गत नदियाँ : में नहीं गिरती बल्कि स्थलीय क्षेत्र में ही इनका मुहाना होता है।
  • सागर राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र, लद्दाख के अक्साई चिन, पूर्वोत्तर लोकटक झील में अंतःस्थलीय अपवाह प्रतिरूप देखे जा सकते हैं।
  • राजस्थान में कई नदियाँ, जैसे-लूनी, माधू, घग्घर आदि समुद्र में न जाकर मरुस्थल में ही समाप्त (अंतःस्थलीय) हो जाती हैं।

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