चक्रवात (Cyclone)
- चक्रवात एक ऐसी चक्रीय वायु संचार प्रणाली है जिसके केंद्र में निम्न वायुदाब तथा बाहर की ओर उच्च वायुदाब की दशा होती है। ऐसी स्थिति में केंद्राभिमुख दाब प्रवणता के कारण केंद्र की ओर वायु का तीव्र चक्रीय प्रवाह होता है।
- इसमें चक्रीय वायु प्रवाह का प्रतिरूप उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सूई की विपरीत दिशा (Anticlockwise) में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सूई की दिशा (Clockwise) में होता है। चक्रवात दो प्रकार के होते हैं
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात
- भूमध्य रेखीय क्षेत्र में महासागरों के ऊपर जिसकी सतह का तापमान कम से कम 27°C हो, उच्च आर्द्रता हो तथा उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति होती है। सामान्यतः इनका व्यास 80 से 300 किमी. होता है।
- इनकी गति स्थल की अपेक्षा सागरों पर अधिक तेज़ होती है।
- सामान्यतः ये व्यापारिक पवनों के साथ पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते हैं।
- इनका विस्तार उष्ण कटिबंध में 5° से 30° अक्षांशों के बीच होता है।
- वायु के उर्ध्वाधर प्रवाह के कारण 0° से 5° अक्षांश के मध्य चक्रवात नहीं उत्पन्न होते।
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शीतोष्ण चक्रवात
- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात को गर्त चक्र अथवा निम्न दाब क्षेत्र भी कहा जाता है।
- इनकी उत्पत्ति दोनों गोलाद्धों में 30°- 65° अक्षांशों के बीच होती है। इन अक्षांशों के बीच जब उष्ण वायु राशियाँ एवं
- शीतल ध्रुवीय वायुराशियाँ मिलती हैं, गर्त चक्रों की उत्पत्ति होती है।
- शीत ऋतु में भूमध्य सागर पर शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात सक्रिय हो जाते हैं।
- इसका प्रभाव दक्षिणी स्पेन, द. फ्राँस, इटली, बाल्कन प्रायद्वीप, तुर्की, इराक, अफगानिस्तान तथा उत्तर-पश्चिमी भारत पर होता है।
- इनमें दाब प्रवणता कम तथा समदाब रेखाएँ ‘V’ आकार की होती हैं।
- ये जल तथा स्थल दोनों पर विकसित होते हैं एवं हज़ारों किमी. क्षेत्र पर इनका विस्तार होता है।
- ये अधिकतर शीत ऋतु में उत्पन्न होते हैं। इनका वायुवेग उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों से कम होता है।
- तीव्र बौछारों के साथ रुक-रुक कर वर्षा होती है, जो कई दिनों तक चलती रहती है।
- इसमें प्राय: दो वाताग्र होते हैं एवं वायु की दिशा वाताग्र के अनुसार तेजी से बदल जाती है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को कैरेबियन सागर और अमेरिका में हरिकेन पूर्वी चीन सागर, जापान तथा फिलीपिंस में टाइफून, आस्ट्रेलिया में ‘विली-विली‘ तथा भारत में ‘चक्रवात‘ कहते हैं।
प्रतिचक्रवात (Anticyclone)
- प्रतिचक्रवात ऐसी चक्रीय वायुसंचार प्रणाली है जिसके केंद्र में उच्च वायुदाब तथा बाहर की ओर निम्न वायुदाब के कारण वायु का केंद्र से परिधि की ओर प्रवाह होता है।
- प्रतिचक्रवात में हवाओं के प्रवाह की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सूई की दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सूई की विपरीत दिशा में होती है।
- प्रतिचक्रवात में वर्षा का अभाव होता है। इनमें वाताग्र जनन की प्रक्रिया नहीं होती है क्योंकि यहाँ विपरीत स्वभाव वाली वायुराशियों की अनुपस्थिति होती है। इनमें पवन का वेग मंद होता है।