वाताग्र (Front)

  • जब दो भिन्न भौतिक लक्षणों (ताप, आद्रता, घनत्व) को धारण करने वाली वायुराशियों का किसी क्षेत्र में अभिसरण होता है तो उनके मध्य एक त्रि-आयामी सीमा क्षेत्र का निर्माण होता है, जिसे ‘वाताग्र’ कहते हैं।
  • सामान्यतः वाताग्र जनन समशीतोष्ण क्षेत्र (30° – 60° उत्तर एवं दक्षिण) की विशेषता मानी जाती है।
  • वाताग्र के निर्मित होने को वाताग्र जनन (Frontogenesis) तथा समाप्त होने को वाताग्र क्षय (Frontolysis) कहते हैं।
  • वाताग्र जनन में दो वायुराशियों का अभिसरण तथा वाताग्र क्षय में वायुराशियों का एक-दूसरे पर अध्यारोहण होता है।
  • वाताग्र जनन तथा संबंद्ध मौसम के आधार पर वाताग्र  मुख्यतः चार प्रकार में वर्गीकृत किये जाते हैं
    1. स्थायी वाताग्र (Stationary Front)
    2. उष्ण वाताग्र (Warm Front )
    3. शीत वाताग्र (Cold Front)
    4. संरोधी या अधिविष्ट वाताग्र (Occluded Front )
  • वाताग्र विनाशक्षय की अवस्था में जब ठंडी वायु गर्म वायु को पूरी तरह विस्थापित कर सतह पर बैठ जाती है, तब तापमान में तेज़ी से कमी आने के साथ उच्च वायुदाब के विकास के कारण वाताग्र समाप्त हो जाता है।
  • जब ध्रुवीय प्रदेश की शीतल वायु राशि, उष्ण प्रदेश की गर्म वायु राशि में मिलती है तो असंतत् सतह के रूप में शितोष्ण चक्रवातों की उत्पत्ति होती है।
वाताग्र का निर्माण सामान्यतः उन मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में होता है जहाँ पछुआ पवन तथा ध्रुवीय पूर्वी पवन का अभिसरण होता है।
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