पवन | Wind
- पृथ्वी पर वायुदाब की विषमताओं के कारण हवाएँ उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती हैं।
- क्षैतिज रूप से प्रवाहित इन हवाओं को पवन Wind कहते हैं।
- कोरिऑलिस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं।
- पवन की उत्पत्ति और उनका प्रवाह कई कारकों का प्रतिफल होता है,
- यथा- वायुदाब प्रवणता बल, कोरिऑलिस बल, अभिकेंद्रीय त्वरण (Centripetal Acceleration), घूर्णन बल आदि।
पवन के प्रकार | Types Of Wind
स्थायी पवन
- स्थायी या प्रचलित पवन तीन प्रकार की होती हैं
व्यापारिक पवन
- ये पवनें उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पेटी से विषुवतीय निम्न दाब पेटी की ओर दोनों गोलार्द्ध में सतत् रूप से प्रवाहित होती रहती हैं।
- ये 30° से 35° उत्तर व दक्षिणी अक्षांशों के बीच चलती हैं।
पछुआ पवन
- ये पवनें दोनों गोलार्द्ध में उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पेटी (30°−35°) से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी (60°–65°) की ओर प्रवाहित होती हैं।
- 40° से 65° दक्षिणी अक्षांशों में इन पवनों की प्रचंडता के कारण इन्हें ‘गरजता चालीसा, प्रचंड पचासा व चीखता साठा’ के नाम से भी जाना जाता है।
ध्रुवीय पवन | Wind
- ध्रुवीय क्षेत्रों से प्रवाहित पवन को ध्रुवीय पवन कहते हैं।
- ध्रुवीय पवन में तापमान कम होने के कारण जलवाष्प धारण करने की क्षमता कम होती है।
मौसमी पवन | Wind
- सामयिक पवनें सामान्यत: तीन प्रकार की होती हैं
मानसूनी पवन | Wind
- इनकी उत्पत्ति स्थल एवं जल के तापमान में विषमता के कारण होती है।
- ग्रीष्मकाल में स्थलखंड के तेज़ी से तप्त होने के कारण यहाँ की वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है
- जिससे यहाँ निम्न वायुदाब की दशा में अंततः दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवन की उत्पत्ति होती है।
- शीतकाल में वायुदाब की प्रवणता उलट जाती है जिससे स्थल से समुद्र की ओर उत्तर-पूर्वी मानसूनी पवनों का विकास होता है।
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समुद्री समीर एवं स्थल समीर
- दिन के समय स्थलखंड पर निम्न वायुदाब के कारण समुद्र से स्थल की ओर आर्द्र तथा ठंडी वायु चलती है जिसे समुद्र समीर कहते हैं तथा. रात्रि के समय सागर पर निम्न वायुदाब के कारण वायु स्थल से समुद्र की ओर चलती है, जिसे स्थलीय समीर कहते हैं।
घाटी समीर एवं पर्वतीय समीर
- दिन के समय पर्वतीय ढाल के अधिक तप्त होने से गर्म वायु पर्वतों की ढलान के साथ-साथ ऊपर उठती है जिसके कारण घाटी समीर की उत्पत्ति होती है तथा रात में पर्वतीय ढाल की अपेक्षा घाटी के उष्ण होने से वायु ठंडी होकर पर्वत की ढलान के साथ-साथ नीचे की ओर उतरती है जिससे पर्वत समीर का विकास होता है।
नोट: उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में, व्यापारिक पवन के प्रभाव के कारण पूर्वी खंडों की तुलना में महासागरों के पश्चिमी खंड़ अधिक उष्ण होते हैं। शीतोष्ण क्षेत्र में, पश्चिमी पवन पश्चिमी खंडों की तुलना में महासागरों के पूर्वी खंडों को अधिक उष्ण बनाती है।
स्थानीय पवन | Wind
- स्थानीय पवनें, स्थानीय दाब प्रवणता जनित कारकों के कारण विकसित होती हैं।
- ये अपनी उत्पत्ति क्षेत्र की प्रकृति के अनुसार उष्ण एवं शीतल दो रूपों में पाई जाती हैं।
- चिनूक– रॉकी पर्वत, अमेरिका एवं कनाडा
- सांता आना– कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका
- हरमट्टन या डॉक्टर विंड, पश्चिम अफ्रीका
- सिरोको– सहारा रेगिस्तान से भूमध्य सागर की ओर। इटली में इसे ‘रुधिर (रक्त) वर्षा’ कहते हैं।
- लू- उत्तर भारत एवं पाकिस्तान
जेट स्ट्रीम
- क्षोभ सीमा के समीप क्षोभमंडल की ऊपरी परतों में या समतापमंडल की निचली परतों में ‘रॉजबी तरंग’ के रूप में ‘भूविक्षेपी पवन’ (Geostrophic Wind) के समान ‘पश्चिम से पूरब की ओर वायुमंडलीय विक्षोभ के रूप में होने वाले ‘विसर्पण’ (Meandering) को ही जेट स्ट्रीम कहा जाता है।
- सामान्यतः इनका संचरण दोनों गोलार्द्ध में 20° अक्षांश से ध्रुवों के मध्य परिध्रुवीय भँवर के रूप में होता है।
- ग्रीष्म ऋतु में जेट प्रवाह 35° से 60° अक्षांश पर होता, परंतु शीत ऋतु में यह भूमध्य रेखा की ओर खिसक कर 20° से 45° अक्षांशों पर स्थापित हो जाता है।
जेट स्ट्रीम के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं
उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम (Subtropical Western Jet Stream)
- इसकी उत्पत्ति धरातलीय उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायु दाब के उत्तर (हेडले कोशिका की ध्रुवीय सीमा के निकट) में क्षोभ सीमा के समीप वायु के अभिसरण से निर्मित वाताग्र पर होती है।
ध्रुवीय वाताग्र जेट स्ट्रीम (Polar Front Jet Stream)
- फेरल और पोलर (ध्रुवीय) कोशिका के द्वारा वायु के अभिसरण से निर्मित वाताग्र पर इसकी उत्पत्ति होती है।
- उष्ण कटिबंध में पूर्व से पश्चिम की ओर संचरित ‘पूर्वी जेट स्ट्रीम’ तिब्बत पठार के ऊष्मन से जनित होकर भारतीय मानसून को ऊर्जान्वित व सशक्त बनाती हैं।
भूविक्षेपी पवन | Wind
- वायुदाब प्रवणता बल (PGF) और कोरिऑलिस बल में संतुलन स्थापित हो जाने के कारण जब वायु की दिशा समदाब रेखाओं के समानांतर हो जाती है तो इसे भूविक्षेपी पवन कहते हैं।