सूर्याताप किसे कहते है?

सूर्याताप (Insolation)

  • पृथ्वी लघु तरंगों के रूप में सौर विकिरण को प्राप्त करती है।
  • पृथ्वी के किसी निश्चित क्षेत्र पर किसी निश्चित समय में सौर विकिरण का जो अंश प्राप्त किया जाता है, वह सूर्यातप कहलाता है।
  • पृथ्वी तल पर सूर्यातप के वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में शामिल हैं:
  • पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना, सूर्य किरणों का तिरछापन, दिन की अवधि एवं लंबाई, वायुमंडल की पारदर्शिता, धरातलीय विशेषता तथा जल एवं स्थल का प्रभाव।
  • विषुवत् रेखा पर सौर किरणों की लंबवत् अवस्थिति के कारण अधिकतम सूर्यातप की प्राप्ति होती है तथा ध्रुवों की ओर सौर किरणों का तिरछापन बढ़ते जाने से सूर्यातप की मात्रा घटती जाती है।
  • किसी भी सतह को प्राप्त होने वाले सूर्यातप की मात्रा एवं उसी सतह से परावर्तित किये जाने वाले सूर्यातप की मात्रा के बीच का अनुपात एल्बिडो कहलाता है।
  • वायुमंडल में ऊष्मा का स्थानांतरण तीन विधियों, यथा- विकिरण,चालन एवं संवहन की प्रक्रिया द्वारा होता है।
  • विकिरण की प्रक्रिया में ऊष्मा के स्थानांतरण हेतु किसी माध्यम की जरूरत नहीं होती है,
  • पृथ्वी सौर विकिरण के रूप में सूर्यातप को प्राप्त करती है एवं भौमिक विकिरण के रूप में इसका उत्सर्जन करती है।
  • पृथ्वी का वायुमंडल संवहन विधि द्वारा गर्म होता है।

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तापमान (Temperature )

  • तापमान का आशय ऊष्मा की तीव्रता की मात्रा की माप से है। यह तीव्रता कम या अधिक हो सकती है।
  • वस्तुतः ऊष्मा ऊर्जा का एक रूप है। इससे ऊर्जा की मात्रा का बोध होता है।
  • तापमान को नियंत्रित करने वाले प्रमुख कारकों में शामिल हैं- अक्षांश, सागर तल से ऊँचाई, सागर से दूरी, स्थलीय एवं जलीय स्वभाव, धरातल की प्रकृति, ढाल की तीव्रता, प्रचलित पवनें, समुद्री धाराएँ, उच्चावच, मेघाच्छादन तथा वनस्पतियाँ।

तापीय व्युत्क्रमण (Thermal Inversion)

  • ऊँचाई के साथ तापमान में कमी के बजाय वृद्धि दर्ज की जाती है तो इसे तापमान का व्युत्क्रमण या तापीय प्रतिलोमन कहते हैं।
  • धरातलीय प्रतिलोमन सामान्यतः मध्य तथा उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में जाड़े में रात्रि के समय होता है।
  • शीतकालीन लंबी रातें, स्वच्छ एवं बादल रहित आकाश, शांत वायुमंडल, शुष्क वायु, हिमाच्छादित धरातल आदि इसके लिये आदर्श दशाएँ उपलब्ध कराते हैं।
  • तापीय व्युत्क्रमण के निम्नांकित प्रभाव दृष्टिगत होते हैं:
  • यह घने कुहरे को जन्म देता है जिससे दृश्यता कम हो जाती है एवं परिवहन में अवरोध उत्पन्न होता है।
  • यह चाय, कहवा की खेती को लाभ पहुँचाता है।
  • मौसमी स्थिरता को जन्म देकर वर्षण की संभावना को क्षीण करता है तथा हिम वर्षा (Freezing Rain) के लिये उत्तरदायी है।

वायुमंडलीय आर्द्रता

  • वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को ‘आर्द्रता’ कहते हैं।
  • वायुमंडल के संघटन में जलवाष्प का योगदान औसतन 2 से 5 प्रतिशत होता है।
  • वायुमंडलीय तापमान में परिवर्तन होने से वायुमंडल की आर्द्रता भू-पृष्ठ पर ओस (Dew), पाला (Frost), धुंध (Mist) तथा वर्षण आदि रूपों में प्रकट होती है।
  • किसी निश्चित ताप पर एक घन मीटर वायु जितने ग्राम जलवाष्प धारण कर सकती है, उसे उसका ‘आर्द्रता सामर्थ्य’ कहते हैं।
  • ‘आर्द्रता सामर्थ्य’ तापमान के समानुपाती होता है। सामान्यतया आर्द्रता के तीन प्रकार होते हैं

निरपेक्ष आर्द्रता

  • वायुमंडल के किसी भाग में उपस्थित जलवाष्प की कुल मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे ग्राम प्रति घन सेमी. (gm/cm3) में मापा जाता है।

सापेक्षिक आर्द्रता

  • यह एक आनुपातिक अभिव्यक्ति है। यह एक निश्चित ताप पर वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा तथा उसी ताप पर वायु के जलवाष्प धारण करने की क्षमता का अनुपात है।

सापेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity) का वायु के तापमान से व्युत्क्रमानुपाती संबंध होता है।

विशिष्ट आर्दता

  • वायु की प्रति इकाई मात्रा में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं।
  • इस पर वायुदाब तथा तापमान में परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • इसकी इकाई ग्राम प्रति किलोग्राम (gm/kg) है।

संघनन (Condensation)

  • संघनन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वायुमंडल में विद्यमान जलवाष्प का जलकण या हिमकण में परिवर्तन होता है।
  • संघनन की क्रिया वायु में उपस्थित सापेक्षिक आर्द्रता की मात्रा पर निर्भर करती है।
  • जब हवा में सापेक्षिक आर्द्रता शत-प्रतिशत हो जाती है तो उस हवा को संतृप्त हवा कहते हैं।
  • जिस तापमान पर वायु के संतृप्त होने पर संघनन की क्रिया प्रारंभ हो जाती है उसे ‘ओसांक बिंदु’ (Dew Point) कहते हैं।
  • संघनन की क्रिया यदि हिमांक से नीचे होती है तो पाला या तुषार (Frost) उत्पन्न होते हैं,
  • जबकि इसके हिमांक से ऊपर होने पर जल-वर्षा, कुहरा, कुहासा, ओस आदि बनते हैं।

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