गुप्तोत्तर काल

गुप्तोत्तर काल

  • गुप्त वंश के पतन के बाद उत्तर भारत में बहुराज्यीय व्यवस्था कायम हुई।
  • कन्नौज में मौखरि वंश, थानेश्वर में पुष्यभूति वंश, वल्लभी में मैत्रक वंश, मगध और मालवा में गुप्तों की गौण शाखा और गौड़ (बंगाल) में शशांक का राज्य स्थापित था।
  • पुष्यभूति वंश का संस्थापक पुष्यभूति था।
  • प्रभाकरवर्धन इस वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता तथा प्रथम प्रभावशाली शासक था।

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हर्षवर्धन

  • हर्षवर्धन प्रभाकरवर्धन का पुत्र था।
  • हर्ष की बहन राजश्री का विवाह मौखरि नरेश ग्रहवर्मा से हुआ था, जिसकी हत्या मालवराज देवगुप्त ने कर दी।
  • हर्षवर्धन का बड़ा भाई राज्यवर्धन जब इसका बदला लेने गया तो देवगुप्त ने गौड़ शासक शशांक के साथ मिलकर धोखे से उसकी हत्या कर दी।
  • 606 ई. में हर्ष को थानेश्वर की गद्दी पर बैठाया गया।
  • हर्षवर्धन को ‘शिलादित्य’ भी कहा जाता था। उसने परमभट्टारक नरेश की उपाधि धारण की थी।
  • हर्ष के विषय में सूचना उसके बाँसखेड़ा अभिलेख से तो प्राप्त होती ही है, साथ ही उसके दरबारी कवि बाणभट्ट द्वारा रचित ‘हर्षचरित’ और उसके शासनकाल में आए एक चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग द्वारा रचित ‘सी-यू-की’ से होती है।
  • पुलकेशिन – II के ऐहोल अभिलेख से यह सूचना मिलती है कि उसने नर्मदा नदी के तट पर हर्ष को पराजित किया था।
  • हर्षवर्धन आरंभ में शैव मतानुयायी था। आगे चलकर वह बौद्ध मतानुयायी बन गया और महायान पंथ का महान संरक्षक साबित हुआ।
  • ह्वेनसांग के विवरण से ज्ञात होता है कि हर्षवर्धन प्रत्येक पाँच वर्ष पर प्रयाग में एक धर्म संसद का आयोजन करता था और वहीं सारा धन दान कर देता था।

ह्वेनसांग को यात्रियों का राजकुमार कहा जाता है।

 

  • हर्ष स्वयं भी महान लेखक था। उसने नागनंद, प्रियदर्शिका और रत्नावली नामक तीन नाटक लिखे।
  • हर्ष के पश्चात् कन्नौज विभिन्न शक्तियों के आकर्षण का केंद्र बन गया।
  • आठवीं शताब्दी की तीन बड़ी शक्तियाँ- गुर्जर-प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट के मध्य कन्नौज पर आधिपत्य के लिये त्रिकोणीय संघर्ष प्रारंभ हो गया, जिसमें अंततः प्रतिहारों को सफलता मिली।

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