महाजनपद काल क्या है?

इतिहास में महाजनपद क्या है??

  • ईसा पूर्व छठी सदी से पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बिहार में लोहे के व्यापक प्रयोग ने बड़े-बड़े प्रादेशिक राज्यों के निर्माण को प्रोत्साहित किया, जिन्हें महाजनपद कहा जाता था।
  • बौद्ध ग्रंथ ‘अंगुत्तर निकाय’ से 16 महाजनपदों का प्रमाण मिलता है। जैन ग्रंथ ‘भगवती सूत्र’ में भी महाजनपदों की चर्चा है।
  • 15 महाजनपद उत्तर भारत में स्थित थे तथा एक महाजनपद अश्मक नर्मदा नदी के दक्षिण में था।
  • यह काल द्वितीय नगरीकरण के नाम से जाना जाता है।
  • इस काल में मौद्रिक अर्थव्यवस्था मौजूद थी तथा चांदी के सिक्के आहत सिक्के के नाम से प्रचलित थे।
  • यह काल इन महाजनपदों के आपसी टकराव का काल था जिसमें अंततः मगध राज्य शक्तिशाली होकर उभरा।

 

महाजनपद राजधानी
काशी वाराणसी
कोसल श्रावस्ती/अयोध्या (फैज़ाबाद मंडल)
अंग चंपा (भागलपुर एवं मुंगेर)
मगध राजगृह/गिरिब्रज (दक्षिणी बिहार)
वज्जि वैशाली (उत्तरी बिहार)
मल्ल कुशीनगर (प्रथम भाग) एवं पावा (द्वितीय भाग) (पूर्वी उत्तर प्रदेश का गोरखपुर-देवरिया क्षेत्र)
चेदि सोत्थिवती / सुक्तिमति (आधुनिक बुंदेलखंड)
वत्स कौशांबी (इलाहाबाद एवं वांदा)
पांचाल उत्तरी पांचाल-अहिच्छत्र (रामनगर, बरेली) एवं दक्षिणी पांचाल-काम्पिल्य (फरुर्खाबाद)
मत्स्य विराट नगर [अलवर, भरतपुर (राजस्थान)
शूरसेन मथुरा (आधुनिक ब्रजमंडल)
अश्मक पोतना या पोटिल (दक्षिण भारत का एकमात्र महाजनपद)
अवन्ती उत्तरी-उज्जयिनी, दक्षिणी-महिष्मती
गांधार तक्षशिला [पेशावर तथा रावलपिंडी (पाकिस्तान)
कम्बोज राजपुर/हाटक (कश्मीर)
कुरु इंद्रप्रस्थ (मेरठ तथा दक्षिण-पूर्व हरियाणा)

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मगध साम्राज्य

  • हर्यक वंश (544-412 ई.पू.) के अधीन मगध साम्राज्य शक्तिशाली होकर उभरा।
  • हर्यक वंश का प्रथम शासक बिंबिसार (544-492 ई.पू.) था।
  • बिंबिसार ने अंग पर अधिकार कर उसका शासन अपने पुत्र अजातशत्रु को सौंप दिया।
  • बिंबिसार ने वैवाहिक संबंध द्वारा भी साम्राज्य को मज़बूत किया। उसने कोसलराज की पुत्री तथा प्रसेनजीत की बहन महाकोसला से विवाह कर दहेज में काशी प्राप्त किया।
  • उसने दूसरा विवाह वैशाली की लिच्छवी राजकुमारी चेल्लणा से किया जिसने अजातशत्रु को जन्म दिया। तीसरा विवाह मद्र कुल के प्रधान की पुत्री क्षेमा से किया।
  • मगध की असली शत्रुता अवंति से थी जिसका राजा चंडप्रद्योत महासेन था। बाद में दोनों में मित्रता हो गई तथा प्रद्योत की चिकित्सा के लिये बिंबिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को भेजा।
  • मगध की पहली राजधानी राजगीर थी जिसे गिरिव्रज कहा जाता था।
  • 492 ई.पू. में अपने पिता की हत्या कर अजातशत्रु (कुणिक) मगध की गद्दी पर बैठा।
  • अजातशत्रु ने लंबे संघर्ष के बाद काशी तथा वज्जि को अपने साम्राज्य में मिला लिया। वस्सकार अजातशत्रु का मंत्री था।
  • 460 ई.पू. में अजातशत्रु के पुत्र उदयिन ने अपने पिता की हत्या कर साम्राज्य पर आधिपत्य स्थापित किया।
  • उदयिन ने पाटलिपुत्र की स्थापना की तथा उसे मगध की राजधानी बनाया।
  • इस वंश का अंतिम शासक नागदशक था जिसे उसके अमात्य शिशुनाग ने मारकर शिशुनाग वंश की स्थापना की।
  • शिशुनाग ने अवंति तथा वत्स राज्य पर अधिकार कर लिया। शिशुनाग ने वैशाली को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। शिशुनाग का उत्तराधिकारी कालाशोक पुनः राजधानी को पाटलीपुत्र ले गया।
  • इस वंश का अंतिम शासक नंदिवर्धन (महानंदिन) था।
  • शिशुनागों के बाद मगध पर शक्तिशाली नंद वंश का शासन प्रारंभ हुआ जिसका संस्थापक महापद्मनंद था। विशाल साम्राज्य स्थापित करने के कारण इसने ‘एकराट’ और ‘एकछत्र’ की उपाधि धारण की।
  • घनानंद इस वंश का अंतिम शासक था जिसे यूनानी विवरण में अग्रमीज कहा गया है। घनानंद सिकंदर का समकालीन था।
मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्व वेद में मिलता है। अभियान चिन्तामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है। मगध बुद्धकालीन समय में एक शक्‍तिशाली राजतन्त्रों में से एक था। यह दक्षिणी बिहार में स्थित था जो कालान्तर में उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्‍तिशाली महाजनपद बन गया।
अपनी सामरिक स्थिति के कारण मगध शक्तिशाली हो गया। इसके माध्यम से बहने वाली गंगा नदी ने इस क्षेत्र को उपजाऊ बना दिया और परिवहन में सुधार किया। इसके बाहरी वन क्षेत्रों ने भी इसे अपनी सेनाओं के लिए हाथियों को पकड़ने और प्रशिक्षित करने में सक्षम बनाया।

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