- मानव अतीत के उस भाग को प्रागितिहास कहते हैं जबकि मानव का अस्तित्व तो था परन्तु लेखन कला का आविष्कार अभी नहीं हुआ था |
- मानव सभ्यता के आरंभिक इतिहास को पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल तथा नवपाषाण काल के अंतर्गत विभाजित किया जाता है।
पुरापाषाण काल (आरंभ से 10,000 ई.पू.)
- आग का आविष्कार तथा होमोसेपियन्स (ज्ञानी मानव) का उदय इस काल की दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ हैं।
- पुरापाषाणकालीन स्थल ‘भीमबेटका’, रायसेन (म.प्र.) से अनेक चित्रित गुफाएँ प्राप्त हुई हैं।
रॉबर्ट ब्रुसफुट ने सर्वप्रथम 1863 ई. में भारत (पल्लावरम) में पुरापाषाणकालीन औज़ारों की खोज की। |
मध्यपाषाण काल (9,000 ई.पू. 4,000 ई.पू.)
- मध्यपाषाण काल में पत्थरों के बहुत छोटे औज़ार- माईक्रोलिथ, उपयोग में लाए जाने लगे। अस्थियों एवं सींग से निर्मित उपकरण भी इस काल से प्राप्त होते हैं।
- मध्य प्रदेश के आदमगढ़ तथा राजस्थान के बागोर नामक मध्यपाषाणिक स्थल से पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य मिलते हैं।
नवपाषाण काल (7,000 ई.पू.-1,000 ई.पू.)
- इस काल में कृषि कार्य प्रारंभ हुआ। फसलों में सर्वप्रथम गेहूँ और जौ उपजाए गए। कृषि का प्रारंभिक साक्ष्य मेहरगढ़ (बलूचिस्तान) से प्राप्त होता है। इलाहाबाद के कोल्डिहवा से चावल का प्राचीनतम साक्ष्य मिला है।
- इस युग के लोग पॉलिशदार पत्थर के उपकरणों और हथियारों का प्रयोग करते थे।
- इस काल में लोग स्थायी रूप से बसने लगे थे जिसका प्रमाण कश्मीर के बुर्जहोम में मिले गर्तावास से मिलता है। बुर्जहोम में मालिक के शव के साथ पालतू कुत्तों को भी दफनाए जाने का साक्ष्य मिला है। पटना के निकट चिरांद नामक नवपाषाणकालीन स्थल से हड्डी के उपकरण पाए गए हैं।
- पहिये का आविष्कार नवपाषाण काल की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी।
- दक्षिण भारत में नवपाषाण काल की तिथि 2500 ई.पू. से 1000 ई.पू. निर्धारित की गई है।
नोट: नवीनतम खोजों के आधार पर लहुरादेव (संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश) भारतीय उपमहाद्वीप प्राचीनतम कृषि साक्ष्य वाला स्थल है। |
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ताम्रपाषाणिक संस्कृतियाँ
- नवपाषाण युग का अंत होते-होते धातुओं का इस्तेमाल शुरू हो गया था। सर्वप्रथम धातु के रूप में तांबे का प्रयोग आरंभ हुआ।
- जिन संस्कृतियों का उद्भव पत्थर और तांबे के उपकरणों का साथ-साथ प्रयोग करने के कारण हुआ, उन्हें ताम्रपाषाणिक (कैल्कोलिथिक) संस्कृति कहते हैं।
- ताम्रपाषाण संस्कृतियों में अहार संस्कृति (राजस्थान) के प्रतिनिधि स्थल अहार का प्राचीन नाम ‘तांबवती’ है।
- मालवा संस्कृति से संबंधित नवदाटोली से कृषि फसलों के साक्ष्य मिले हैं।
- इनामगाँव तथा दैमाबाद जोर्वे संस्कृति से संबंधित प्रमुख स्थल हैं। दैमाबाद से भारी मात्रा में काँसे की वस्तुएँ मिली हैं।
- चित्रित मृदभांडों का उपयोग भी सर्वप्रथम ताम्रपाषाण काल में ही शुरू हुआ।
महापाषाणिक संस्कृतियाँ
- नवपाषाण की समाप्ति के पश्चात् दक्षिण भारत में महापाषाण संस्कृति (Megalithic Culture) का उदय हुआ। इनमें लोग मृतकों के अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिये बड़े-बड़े पत्थरों का प्रयोग करते थे। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के विभिन्न पुरास्थलों से इस प्रकार से की समाधियाँ मिली हैं।