प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत अनेक और विविध प्रकार के हैं। हम उन्हें दो श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं- एक साहित्यिक और दूसरा पुरातात्त्विक।
साहित्यिक स्रोत-
ब्राह्मण साहित्य-
वेद-
वेद भारत के प्राचीनतम ग्रंथ हैं। जिनका संकलनकर्त्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है। वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद।
ऋग्वेद
यह प्राचीनतम वेद माना जाता है। इसमें कुल 10 मंडल तथा 1028 सूक्त हैं। इस वेद के पढ़ने वाले ऋषि को ‘होतृ’ कहते हैं। ऋग्वेद का पहला एवं 10वाँ मंडल सबसे अंत में जोड़ा गया है।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता ‘सवितृ’ को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है।
9वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख है तथा 10वें मंडल में चतुर्वर्ण्य व्यवस्था का उल्लेख है।
नोट: यूनेस्को द्वारा ‘ऋग्वेद’ की 30 पांडुलिपियों को ‘यूनेस्को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड रजिस्टर’ में शामिल किया गया है।
यजुर्वेद
इसमें यज्ञों के नियमों या विधानों का संकलन मिलने के कारण इसे कर्मकांडीय वेद भी कहा जाता है।
यजुर्वेद के दो भाग हैं- शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद। शुक्ल यजुर्वेद केवल पद्य में है जबकि कृष्ण यजुर्वेद, गद्य एवं पद्य दोनों में है।
शुक्ल यजुर्वेद को ‘वाजसनेयी संहिता’ कहा जाता है।
यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाला पुरोहित ‘अध्वर्यु’ कहलाता है।
सामवेद
‘साम’ का अर्थ ‘गान’ होता है। सामवेद में मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है। सामवेद से ही भारतीय संगीत की उत्पत्ति मानी जाती है। इस ग्रंथ में कुल 1875 ऋचाएँ हैं जिनमें मूल रूप से 99 ऋचाएँ ही सामवेद की हैं, शेष ऋग्वेद से ली गई ऋचाएँ हैं।
सामवेद के मंत्रों को गाने वाला ‘उद्गाता’ कहलाता है।
अथर्ववेद
तीन वेदों के बाद अंत में इसकी रचना अथर्व तथा अंगिरस ऋषि द्वारा की गई। इसीलिये इसे ‘अथर्वांगिरस वेद’ भी कहा जाता है।
इसमें ब्रह्म-ज्ञान, धर्म, औषधि प्रयोग, रोग निवारण, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र आदि अनेक विषयों का वर्णन है।
अथर्ववेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाला पुरोहित ‘ब्रह्मा’ कहलाता है।
वेदों को भली-भाँति समझने के लिये छः वेदांगों की रचना की गई शिक्षा (उच्चारण विधि), ज्योतिष (भाग्यफल), कल्प (कर्मकांड), व्याकरण (शब्द व्युत्पत्ति), निरुक्त (भाषा विज्ञान) तथा छंद (चतुष्पदी श्लोक) ।
महाकाव्य
वैदिक साहित्य के बाद भारतीय साहित्य में महाकाव्यों का समय आता है। इसमें रामायण और महाभारत प्रमुखतः शामिल हैं।
रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि तथा महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी।
पुराण
पुराणों की संख्या 18 है। पुराणों के आदि संकलनकर्त्ता लोमहर्ष अथवा उनके पुत्र उग्रश्रवा को माना जाता है। पुराणों में मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक है।
पुराणों की महत्ता वंशावलियों के कारण है। मत्स्य पुराण सातवाहन वंश से, विष्णु पुराण मौर्य वंश से तथा वायु पुराण गुप्त वंश से संबंधित है।
‘त्रिपिटक’ बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन है। इसे तीन भागों में विभाजित किया गया है- विनयपिटक, सुत्तपिटक तथा अभिधम्मपिटक।
विनयपिटक, संघ संबंधी नियम तथा आचार संबंधी शिक्षाओं का संग्रह है। सुत्तपिटक, धार्मिक सिद्धांत तथा धर्मोपदेश का संग्रह है। वहीं, अभिधम्मपिटक दार्शनिक सिद्धांतों का संग्रह है।
बौद्ध ग्रंथ पालि भाषा में लिखे गए। जातकों में बुद्ध के पूर्वजन्म की घटनाओं का वर्णन है। ‘दीपवंश’ तथा ‘महावंश’ नामक दो पालि ग्रंथों से मौर्यकालीन इतिहास के विषय में भी जानकारी मिलती है।
बौद्ध धर्म के हीनयान संप्रदाय का प्रमुख ग्रंथ ‘कथावस्तु’ है जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवनचरित अनेक कथानकों के साथ वर्णित है। महायान संप्रदाय के ग्रंथ ‘ललितविस्तार’, ‘दिव्यावदान’ आदि हैं।
जैन साहित्य
जैन साहित्य को ‘आगम’ कहा जाता है। जैन ग्रंथों में परिशिष्टपर्वन, भद्रबाहुचरित, आचरांगसूत्र, भगवतीसूत्र, कालिका पुराण आदि प्रमुख हैं।
जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास तथा तीर्थंकरों की जीवनी, ‘कल्पसूत्र’ में है, जिसकी रचना भद्रबाहु ने की थी।
लौकिक साहित्य
प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ
रचना
रचनाकार
विशेष तथ्य
अष्टाध्यायी
पाणिनी
व्याकरण ग्रंथ
मुद्राराक्षस
विशाखदत्त
मौर्य काल के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है।
महाभाष्य (अष्टाध्यायी पर टीका)
पतंजलि
पुष्यमित्र शुंग के विषय में जानकारी मिलती है।
अर्थशास्त्र (विषय-राजनीति)
कौटिल्य
मौर्य काल के विषय में जानकारी मिलती है।
मालविकाग्निमित्रम्
कालिदास
शुंग वंश के बारे में जानकारी।
मृच्छकटिकम्
शूद्रक
गुप्तकालीन समाज का वर्णन।
हर्षचरित
बाणभट्ट
हर्ष की उपलब्धियों का वर्णन
पृथ्वीराज रासो
चंदबरदाई
पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियों का वर्णन।
राजतरंगिणी
कल्हण
कश्मीर के राजवंशों की क्रमबद्ध जानकारी।
साहित्य
साहित्यकार
हितोपदेश
नारायण पंडित
पंचतंत्र
विष्णु शर्मा
किरातार्जुनीयम
भारवि
शिशुपाल वध
माघ
कामसूत्र
वात्स्यायन
ब्रह्मसिद्धांत
ब्रह्मगुप्त
मेघदूतम्, ऋतुसंहार, रघुवंश, अभिज्ञान शाकुंतलम्
कालिदास
यूनान एवं रोम के लेखक
हेरोडोटस-
‘हेरोडोटस’ को ‘इतिहास का पिता’ कहा जाता है। इसने 5वीं सदी ई. पू. ‘हिस्टोरिका’ की रचना की थी।
सिकंदर के साथ आने वाले लेखक थे- नियार्कस, ऑनेसिक्रिटस और ऑरिस्टोबुलस।
सिकंदर के पश्चात् के लेखकों में तीन राजदूतों- मेगस्थनीज, डाइमेकस तथा डायोनीसियस के नाम उल्लेखनीय हैं।
प्लिनी-
इसने पहली सदी में ‘नेचुरल हिस्ट्री’ नामक पुस्तक लिखी, जिसमें भारत के पशुओं, पौधों और खनिज पदार्थों की जानकारी मिलती है।
टॉलेमी की पुस्तक ‘ज्योग्राफी’ और किसी अज्ञात लेखक की पुस्तक ‘पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी’ महत्त्वपूर्ण हैं। इनसे भारत के भूगोल तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी मिलती है।
चीनी यात्रियों के विवरण
फाहियान-
यह 5वीं सदी के प्रारंभ में चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के शासनकाल में भारत आया था। इसने भारतीय समाज, यहाँ की संस्कृति एवं आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डाला है।
ह्वेनसांग –
यह 7वीं सदी में हर्षवर्धन के समय भारत आया था।
इसकी रचना ‘सी-यू-की’ है।
इत्सिंग-
यह 7वीं सदी के अंत में भारत में आया था। इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है।
अरब यात्रियों के विवरण
अलबरूनी (अबूरेहान )
यह 11वीं सदी में महमूद गज़नवी के साथ भारत आया था। अरबी में लिखी गई उसकी कृति ‘तहकीक-ए-हिंद’ या ‘किताबुल हिंद’ आज भी इतिहासकारों के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। सर्वप्रथम एडवर्ड सचाऊ ने ‘तहकीक-ए-हिंद’ का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में किया।
इब्न बतूता
यह मोरक्को का रहने वाला था। इसके द्वारा लिखा गया यात्रा-वृत्तांत ‘रेहला’ (अरबी भाषा) 14 वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन के विषय में जानकारियाँ देता है। सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली में काजी के पद पर नियुक्त किया। बाद में उसे अपना राजदूत बनाकर चीन भेजा।
पुरातात्त्विक स्रोत
अभिलेख
सबसे प्राचीन अभिलेखों में मध्य एशिया के बोगजकोई से प्राप्त अभिलेख हैं। इस पर वैदिक देवता-मित्र, वरुण, इंद्र और नासत्य के नाम मिलते हैं। इनसे ऋग्वेद की तिथि ज्ञात करने में मदद मिलती है।
भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के हैं जो लगभग 300 ई.पू. के हैं।
अभिलेख
शासक
विषय
हाथीगुम्फा अभिलेख
खारवेल
कलिंग के चेदि शासक खारवेल के शासन की घटनाओं का क्रमबद्ध विवरण
जूनागढ़ अभिलेख
रुद्रदामन
इसमें रुद्रदामन की विजयों, व्यक्तित्व एवं कृतित्व का विवरण प्राप्त होता है।
नासिक अभिलेख
गौतमी बलश्री
सातवाहनकालीन घटनाओं का विवरण (गौतमीपुत्र शातकर्णी से संबंधित)
प्रयाग स्तंभ लेख
समुद्रगुप्त
इसकी विजय एवं नीतियों का पूरा विवरण
ऐहोल अभिलेख
पुलकेशिन द्वितीय
हर्ष एवं पुलकेशिन द्वितीय के युद्ध का विवरण
भितरी स्तंभ लेख
स्कंदगुप्त
इसके जीवन की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाओं का विवरण (हूण आक्रमण)
मंदसौर अभिलेख
मालवा नरेश यशोधर्मन
सैनिक उपलब्धियों का वर्णन
नोट: अभिलेखों के अध्ययन को ‘एपिग्राफी’ कहा जाता है।
सिक्के
प्राचीनतम सिक्कों को ‘आहत सिक्के’ कहा जाता है। आहत सिक्के या पंचमार्क सिक्के ई.पू. पाँचवीं सदी के हैं। ठप्पा मारकर बनाए जाने के कारण ही भारतीय भाषाओं में इन्हें ‘आहत मुद्रा’ कहते हैं। पंचमार्क या आहत सिक्कों पर पेड़, मछली, साँड़, हाथी, अर्द्धचंद्र आदि के चिह्न बने होते थे।
भारत के पश्चिमोत्तर भाग में लेखयुक्त सिक्के सर्वप्रथम यवन शासकों ने जारी किये थे।
नोट: सिक्कों के अध्ययन को ‘न्यूमिज़्मेटिक्स’ कहा जाता है।
लेखन प्रणाली आधार पर इतिहास को प्रागैतिहासिक काल, आद्य ऐतिहासिक काल तथा ऐतिहासिक काल में बाँटकर अध्ययन किया जाता है। जिस काल का संपूर्ण अध्ययन पुरातात्त्विक स्रोतों पर ही निर्भर है, अर्थात् जिस काल में लिपि का विकास नहीं हुआ था, उसे प्रागैतिहासिक काल कहते हैं। आद्य इतिहास से तात्पर्य उस कालखंड से है जिसमें लिपि तो थी। किंतु अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी थी। जैसे- हड़प्पा काल। जिस काल में लिपि का विकास हो गया था और लेखन प्रणाली परिपक्व हो चुकी थी उसे ऐतिहासिक काल कहते हैं।
4 thoughts on “प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत क्या हैं?”
Apka bahut bahut dhanyawad sir
thank you
सर सारे टॉपिक कवर करा दीजिए
bahut acha likhe hai sir padh kar maza a gaya hai aise ajj tak kahi nahi pade hai