भारत का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court)

सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय supreme court

भाग – V अनुच्छेद 124 – 147

भारत की न्यायिक व्यवस्था इकहरी और एकीकृत है, जिसके सर्वोच्च शिखर पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय है । सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली में स्थित है, भारत का सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक समीक्षा की शक्ति के साथ देश का शीर्ष न्यायालय है एवं यह भारत के संविधान के तहत न्याय की अपील हेतु अंतिम न्यायालय है।

सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकारिता, शक्तियों के विनियमन से संबंधित विधि-निर्माण की शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है सर्वोच्च न्यायालय का गठन संबंधी प्रावधान अनुच्छेद-124 में दिया गया है।

गठन के समय सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 8 न्यायाधीशों की व्यवस्था  की गई थी, जिसमे से 1 मुख्य न्यायाधीश और 7 अन्य न्यायाधीस थे, बाद में काम के बढ़ते दबाव को देखते हुए 1956 ई. में सर्वोच्च न्यायालय अधिनियम में संशोधन कर न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 11 की गई। सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) संशोधन विधेयक-2019 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 33 अन्य न्यायाधीश हैं।

सर्वोच्च न्यायालय की पृष्ठभूमि

वर्ष 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के प्रवर्तन से कलकत्ता में पूर्ण शक्ति एवं अधिकार के साथ कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड के रूप में सर्वोच्च न्यायाधिकरण (Supreme Court of Judicature) की स्थापना की गई। बंगाल, बिहार और उड़ीसा में यह सभी अपराधों की शिकायतों को सुनने तथा निपटान करने के लिये एवं किसी भी सूट या कार्यों की सुनवाई एवं निपटान हेतु स्थापित किया गया था। मद्रास एवं बंबई में सर्वोच्च न्यायालय जॉर्ज तृतीय द्वारा क्रमशः वर्ष 1800 एवं वर्ष 1823 में स्थापित किये गए थे। इन उच्च न्यायालयों को भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत भारत के संघीय न्यायालय की स्थापना तक सभी मामलों के लिये सर्वोच्च न्यायालय होने का गौरव प्राप्त था।

वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। साथ ही भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी अस्तित्व में आया एवं इसकी पहली बैठक 28 जनवरी, 1950 को हुई। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून भारत के सभी न्यायालयों के लिये बाध्यकारी है। इसे न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्राप्त है – संविधान के प्रावधानों एवं संवैधानिक पद्धति के विपरीत विधायी तथा शासनात्मक कार्रवाई को रद्द करने की शक्ति, संघ एवं राज्यों के बीच शक्ति का वितरण या संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के विरुद्ध प्रावधानों की समीक्षा।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति

निवर्तमान सीजीआई अपने उत्तराधिकारी की सिफारिश करता है। हमेशा से इस सिद्धांत का पालन किया जाता रहा है, सिफारिश हमेशा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश की करते हैं (इस सिद्धांत का उल्लंघन 1970 के दशक में देखने को मिला था)। सिफारिश : CJI (SC कोंलेजियम)  कानून मंत्री – प्रधानमंत्री – राष्ट्रपति और राष्ट्रपति अनुच्छेद 124 (2) के तहत नियुक्ति करता है।

सर्वोच्च न्यायालय के समस्त न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय वह इसी न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों से परामर्श कर सकता है; परंतु अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति सदैव मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से करता है। वह चाहे तो सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्य के उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश से भी परामर्श कर सकता है । सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए न्यूनतम आयु-सीमा निर्धारित नहीं की गयी है। एक बार नियुक्ति होने के बाद इनके अवकाश ग्रहण करने की आयु-सीमा 65 वर्ष है।सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए योग्यताएँ

  1. यह भारत का नागरिक हो।
  2. वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम-से-कम 5 वर्षों तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो।किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो
  3. राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो।

न्यायाधीश के वेतन एवं भत्ते (अनु० 125]

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ₹2,80,000 प्रति माह व अन्य न्यायाधीशों को ₹ 2,50,000 प्रतिमाह वेतन मिलता है। इसके अलावे उन्हें निःशुल्क आवास और अन्य सुविधाएं, जैसे चिकित्सा, कार, टेलीफोन आदि भी मिलती है। न्यायाधीशों का वेतन एवं उसे मिलनेवाली अन्य सुविधाएँ उसके कार्यकाल में कम नहीं किया जा सकता। सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों का पेंशन उनके अंतिम माह के वेतन का 50% निर्धारित है।

पद विमुक्त-

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पद विमुक्ति के लिए संसद के दोनों सदन एक प्रस्ताव पारित करते है जिसे प्रार्थना कहते हैं जिसमें वह किसी न्यायाधीश को सिद्ध भ्रष्टाचार अथवा असमर्थता के कारण पद से हटाना चाहते हैं। यह प्रस्ताव दोनों सदनों में, कुल सदस्य संख्या के स्पष्ट बहुमत से पारित होना चाहिए तथा साथ ही यह भी आवश्यक है कि प्रस्ताव पर मतदान के समय जितने सदस्य उपस्थित हैं व मतदान में भाग लेते हैं उनका दो-तिहाई बहुमत उस प्रस्ताव का समर्थन करें। जब इस प्रकार पास हुआ प्रस्ताव संसद राष्ट्रपति के पास प्रार्थना (समावेदन) के रूप में भेजती हैं तभी वह आदेश जारी करके संबद्ध न्यायाधीश को हटा सकता है। पद विमुक्ति प्रस्ताव 100 सदस्यों (लोकसभा में) या 50 सदस्यों (राज्यसभा में) द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद अध्यक्ष/सभापति को दिया जाना चाहिए। सबसे अधिक समय तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहने वाले न्यायाधीश यशवंत विष्णु चन्द्रचूड़ (22 फरवरी, 1978 से 11 जुलाई 1985 तक 2696 दिन) थे।सबसे कम समय तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहने वाले न्यायाधीश कमल नारायण सिंह (25 नवंबर, 1991 से 12 दिसंबर 1991 तक 17 दिन ) थे।

जब भारतीय न्यायिक पद्धति में लोकहित मुकदमा (PIL) लाया गया तब भारत के मुख्य न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती थे। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अवकाश प्राप्त करने के बाद भारत में किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीं कर सकते हैं। मुख्य न्यायाचीश, राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेकर, दिल्ली के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान पर सर्वोच्च न्यायालय की बैठके बुला सकता है। अब तक हैदराबाद और श्रीनगर में इस प्रकार की बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं।

तदर्थ न्यायाधीश

जब सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी सत्र को आयोजित करने या जारी रखने के लिये स्थायी न्यायाधीशों के कोरम गणपूर्ति की कमी होती है, तो भारत का मुख्य न्यायाधीश एक अस्थायी अवधि के लिये सर्वोच्च न्यायालय के तदर्थ न्यायाधीश के रूप में किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति कर सकता है। वह संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श और राष्ट्रपति की पूर्ण सहमति के बाद ही ऐसा कर सकता है। जिस न्यायाधीश को नियुक्त किया जाता है, उसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के योग्य होना चाहिये। तदर्थ न्यायाधीश का यह दायित्व है कि वह अपने अन्य दायित्वों की तुलना में सर्वोच्च न्यायालय की बैठकों में भाग लेने को अधिक वरीयता दे। ऐसा करते समय उसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सभी अधिकार क्षेत्र, शक्तियाँ और विशेषाधिकार (और पद त्याग) प्राप्त होते हैं।

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सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार

  1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार: यह निम्न मामलों में प्राप्त है- भारत संघ तथा एक या एक से अधिक राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों में। भारत संघ तथा कोई, एक राज्य या अनेक राज्यों और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवादों में दो या दो से अधिक राज्यों के बीच ऐसे विवाद में, जिसमें उनके वैधानिक अधिकारों का प्रश्न निहित है प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय उसी विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगा, जिसमें किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल है।
  1. अपीलीय क्षेत्राधिकार : देश का सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय है। इसे भारत के सभी उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है। इसके अन्तर्गत तीन प्रकार के प्रकरण आते हैं— 1. सांविधानिक, 2. दीवानी और 3. फौजदारी ।
  2. परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार : अनुच्छेद-143 के तहत राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक महत्व के विवादों पर सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श माँग सकता है । न्यायालय के परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है।सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ, न्यायालय के संचालन एवं प्रक्रिया को विनियमित करने के लिये नियम बना सकता है। संवैधानिक मामलों या संदर्भों को अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया जाता है और कम-से-कम पाँच न्यायाधीशों वाली एक खंडपीठ द्वारा तय किया जाता है। अन्य सभी मामले आमतौर पर तीन न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा तय तय किये जाते हैं। ये निर्णय खुले न्यायालय द्वारा दिये जाते हैं। सभी निर्णय बहुमत से लिये जाते हैं, लेकिन यदि अलग-अलग मत होते हैं, तो न्यायाधीश एक-दूसरे से असहमत निर्णय या राय दे सकते हैं।
  3. पुनर्विचार संबंधी क्षेत्राधिकार : संविधान के अनुच्छेद-137 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह स्वयं द्वारा दिये गये आदेश या निर्णय पर पुनर्विचार कर सके तथा यदि उचित समझे तो उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है।
  4. अभिलेख न्यायालय : संविधान का अनु.-129 सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्रदान करता है। इसका आशय यह है कि न्यायालय के सभी निर्णयों को रिकॉर्ड या अभिलेख के रूप में सुरक्षित रखा जाता है। इन विषयों को भविष्य में देश के किसी भी न्यायालय में नज़ीर के रूप में पेश किया जा सकता है।
  1. अधिकारों का रक्षक : भारत का सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का रक्षक है। अनुच्छेद-32 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष रूप से उत्तरदायी ठहराता है कि वह मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे। न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा-लेख और उत्प्रेषण के लेख जारी कर सकता है।

नोट : अनुच्छेद-145 (3) के तहत सर्वोच्च न्यायालय में संविधान के निर्वचन (Interpretation) से संबंधित मामले की सुनवाई करने के लिए न्यायाधीशों की संख्या कम-से-कम पाँच होनी चाहिए । 

सुप्रीम कोर्ट से सम्बंधित प्रश्न ( परीक्षा दृष्टि )

प्रश्न :  सर्वोच्च न्यायालय कहां स्थित है ?

उत्तर : तिलक मार्ग नई दिल्ली

प्रश्न : सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश का वेतन कितना होता है ?

उत्तर : 2,80000 रूपए

प्रश्न : क्या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को हटाया जा सकता है?

उत्तर : न्यायाधीशों को केवल प्रतिनिधि सभा द्वारा महाभियोग और सीनेट द्वारा दोषसिद्धि के माध्यम से हटाया जा सकता है ।

प्रश्न : भारत के प्रथम मुख्य न्यायाधीश कौन थे ?

उत्तर : हीरालाल जे. कानिया भारत के प्रथम मुख्य न्यायाधीश थे। इनका कार्यकाल 26 जनवरी, 1950 से 6 नवम्बर, 1951 तक रहा।

प्रश्न : भारतीय संविधान के किस भाग में  संघीय न्यायपालिका का उल्लेख है ?

उत्तर: भारतीय संविधान के भाग  V में  संघीय न्यायपालिका का उल्लेख है |

प्रश्न : सुप्रीम कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति आयु कितनी होती है ? 

उत्तर : 65 वर्ष

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