समुद्र विज्ञान (Oceanography)

समुद्र विज्ञान

  • पृथ्वी के लगभग 71 प्रतिशत भूभाग पर महासागरों का विस्तार है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध में इसका विस्तार अधिक है।
  • प्रशांत महासागर विश्व का सबसे बड़ा महासागर है।
  • अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, आर्कटिक महासागर तथा अंटार्कटिक महासागर अन्य महासागर हैं।
  • विवर्तनिकी, ज्वालामुखीय व निक्षेपण आदि क्रियाओं के कारण महासागरीय नितल में विभिन्न प्रकार के उच्चावचों का निर्माण हुआ है, जिनका वर्णन निम्नांकित है

महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf)

  • यह तट से समुद्र की ओर मंद ढाल वाला जलमग्न धरातल है।
  • यह आर्कटिक महासागर में सर्वाधिक चौड़ा है।
  • प्रकाश की उपस्थिति के कारण यहाँ जैव घनत्व उच्चतम होता है।
  • इसकी गहराई 150 मीटर से 200 मीटर तक होती है तथा औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है।
  • ये मत्स्यन के प्रमुख क्षेत्र हैं। विश्व के कुल खनिज तेल और गैस उत्पादन का लगभग एक-चौथाई भाग महाद्वीपीय मग्नतट से ही प्राप्त होता है।

महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope)

  • इसका विस्तार मग्नतट से नितल की ओर होता है और ढाल 2-50 के बीच होती है।
  • सागरीय कैनियन व गर्त यहाँ की प्रमुख भू-आकृतिक विशेषता है।
  • इसकी सीमा ही महाद्वीप की अंतिम सीमा मानी जाती है।

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नितल मैदान (Abyssal Plain)

  • यह महासागर का सबसे गहरा भाग है जिसकी गहराई 3000 मीटर से 6000 मीटर तक होती है।
  • ये महासागरीय क्षेत्र के लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र में विस्तृत हैं। इसका सर्वाधिक विस्तार प्रशांत महासागर में पाया जाता है।

महासागरीय गर्त (Oceanic Trenches)

  • ये महासागर के सबसे गहरे भाग होते हैं। ये महासागरीय नितल के लगभग 7 प्रतिशत भाग पर फैले हैं।
  • विश्व का सबसे गहरा गर्त (Trench) मेरियाना गर्त है जो प्रशांत महासागर में अवस्थित है।
  • विश्व के पाँच सर्वाधिक गहरे गर्त प्रशांत महासागर में ही अवस्थित हैं जो मेरियाना, टोंगा, कुरिल-कमचटका, फिलीपींस तथा कर्माडेक गर्त हैं।

महासागरीय जल का तापमान और लवणता

तापमान (Temperature)

  • महासागरीय जल के तापमान को निर्धारित करने में ‘सौर ऊर्जा’ का मुख्य योगदान है।
  • समुद्री जीवों तथा वनस्पतियों के प्रकार तथा वितरण को निर्धारित करने में सागरीय जल के तापमान की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • समुद्री जल के तापमान में लंबवत् एवं क्षैतिज दोनों स्तरों पर विषमताएँ देखी जाती हैं।
  • सामान्यत: समुद्री जल का तापमान गहराई बढ़ने के साथ-साथ घटता जाता है।
  • समुद्री जल का तापमान अक्षांशों के सापेक्ष परिवर्तनशील होता है।
  • विषुवत् रेखा के समीप समुद्री जल का तापमान सर्वाधिक रहता है तथा यह ध्रुवों की ओर क्रमशः घटता जाता है।
  • आकार में अंतर के कारण अटलांटिक महासागर में वार्षिक तापांतर,प्रशांत महासागर की अपेक्षा अधिक होता है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलीय विस्तार की अधिकता के कारण तापांतर,दक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा अधिक होता है।
  • खुले सागरों की अपेक्षा बंद सागरों में सागरीय जल का तापमान अधिक होता है।
  • महासागरों पर समताप रेखाएँ, अक्षांश रेखाओं के समानांतर नहीं चलती हैं।
  • ये प्रचलित पवनों तथा महासागरीय जलधाराओं से प्रभावित होती हैं।
  •  उष्ण कटिबंध में महासागरों के पश्चिमी भाग इसके पूर्वी भाग की अपेक्षा अधिक गर्म रहते हैं जबकि शीतोष्ण कटिबंध में महासागरों के पूर्वी भाग, इसके पश्चिमी भाग की अपेक्षा अधिक गर्म रहते हैं।
  • महासागरों में विषुवत् रेखा की अपेक्षा 20° अक्षांश पर तापमान सर्वाधिक होता है तथा इससे ऊपरी अक्षांश की ओर समुद्री तापमान में निरंतर कमी आती जाती है।

लवणता (Salinity)

  • वस्तुतः 1000 ग्राम समुद्री जल में विद्यमान लवणों की मात्रा को सागरीय लवणता कहते हैं। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
  • समुद्री जल की औसत लवणता 35 प्रतिशत होती है अर्थात् 1000 ग्राम समुद्री जल में 35 ग्राम घुलित लवण विद्यमान होते हैं।
  • सबसे अधिक लवणता वाले क्षेत्र उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब के समीप पाए जाते हैं क्योंकि यहाँ स्वच्छ आकाश, उच्च तापमान तथा नियमित व्यापारिक पवनों के कारण वाष्पीकरण की अधिकता होती है।
  • उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब कटिबंध के दोनों ओर विषुवत् वृत्त तथा ध्रुवों की ओर लवणता में कमी दर्ज की जाती है।
  • ध्रुवीय क्षेत्रों में वाष्पीकरण की निम्नतर स्थिति तथा हिमखंडों के पिघलने से ताज़े जल की आपूर्ति लवणता को कम कर देती है।
  • अंशत: या पूर्णतः बंद सागरों की अपेक्षा खुले सागरों लवणता कम होती है।
  • तापमान का लवणता से सीधा संबंध होता है।
  • विश्व की सर्वाधिक लवणतायुक्त जलराशियों में तुर्की की वान झील, मृत सागर, ग्रेट साल्ट लेक और लाल सागर आते हैं।

ज्वार-भाटा (Tide & Ebb)

  • ज्वार-भाटा सागरीय जल की ऊर्ध्वाधर गति से संबंधित है।
  • सागरीय जल के सामान्य स्तर से ऊपर उठने की घटना को ज्वार तथा उसके सामान्य स्तर से नीचे गिरने की घटना को भाटा कहते हैं।
  • ज्वार-भाटा पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की पारस्परिक आकर्षण क्रिया तथा पृथ्वी के घूर्णन से उत्पन्न अपकेंद्रीय बल के सम्मिलित प्रभाव के कारण उत्पन्न होते हैं।
  • चंद्रमा की पृथ्वी से निकटता के कारण उसकी आकर्षण शक्ति सूर्य के आकर्षण शक्ति से बहुत अधिक होती है। अत: सूर्य की अपेक्षा यह जल को अधिक आकर्षित करता है और ज्वार-भाटा को प्रभावित करता है।
  • चंद्रमा के सम्मुख वाले पृथ्वी के जलीय भाग पर चंद्रमा के आकर्षण बल के प्रभाव से ‘प्रत्यक्ष ज्वार’ की उत्पत्ति होती है।
  • इसी समय पृथ्वी के चंद्रमा विमुख भाग पर अपकेंद्रीय बल के प्रभाव के कारण दूरी समुद्र जलस्तर में वृद्धि से ‘अप्रत्यक्ष ज्वार’ की उत्पत्ति होती है।
  • इन दोनों ज्वार के कारण जल के खिंचाव से 90° देशांतरीय पर जलस्तर में आने वाली कमी भाटा को जन्म देती है।
  • इस प्रकार एक ही समय दो ज्वार और दो भाटा की उत्पत्ति होती है।
  • पृथ्वी एवं चंद्रमा की परस्पर संबंधित गतियों के कारण यदि किसी स्थान पर प्रात: 8 बजे ज्वार आता है तो अगला ज्वार रात्रि को बजकर 26 मिनट पर आएगा और तीसरा ज्वार अगले दिन प्रात: 8 बजकर 52 मिनट पर आएगा।
  • ज्वार प्रतिदिन एक ही ऊँचाई के नहीं होते। पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिन चंद्रमा, सूर्य एवं पृथ्वी की सरल रेखिक अवस्थिति (सिजिगी) के कारण ‘उच्च ज्वार’ ( सामान्य से 20% अधिक )की उत्पत्ति होती है।
  • शुक्ल एव कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य एवं चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं जिसके कारण पृथ्वी पर सूर्य व चंद्रमा के आकर्षण बल का प्रभाव सीमित हो जाता है। इस स्थिति में ‘निम्न ज्वार’ (सामान्य से 20% कम ) की उत्पत्ति होती है।

ज्वार-भाटा से संबंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • कनाडा के न्यू ब्रंसविक तथा नोवास्कोशिया के मध्य स्थित फंडी की खाड़ी में ज्वार की ऊँचाई सर्वाधिक (15-18 मी.) होती है।
  • इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथैम्पटन में प्रतिदिन चार बार ज्वार आता है।
  • टेम्स और हुगली नदियों में प्रवेश करने वाले ज्वारीय धाराओं के कारण ही क्रमशः लंदन व कोलकाता महत्त्वपूर्ण पत्तन हैं।
  • भारत में कच्छ की खाड़ी तथा कैम्बे की खाड़ी में सर्वाधिक ऊँचाई के ज्वार आते हैं जिससे यहाँ ज्वारीय ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा के उत्पादन की व्यापक संभावना है। यहाँ ज्वार की ऊँचाई 10 से 12 मीटर तक पहुँच जाती है।
  • भारत के पूर्वी तट पर स्थित सुंदरवन क्षेत्र में भी ज्वारीय ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा उत्पादन की व्यापक संभावना है।
  • भारत के पूर्वी तट पर स्थिति ओडिशा के चांदीपुर समुद्र तट पर भाटे के दौरान समुद्री जल लगभग 5 से 10 किलोमीटर तक तट से दूर चला जाता है तथा ज्वार के समय पुनः संपूर्ण तट जलमग्न हो जाता है।

महासागरीय धाराएँ (Oceanic Current)

  • महासागरीय जलराशि का जब एक निश्चित दिशा में क्षैतिज प्रवाह हो तो उन्हें ‘महासागरीय धाराएँ’ कहते हैं।
  • महासागरीय धाराएँ अपनी प्रकृति के आधार पर दो प्रकार की होती हैं- गर्म जलधाराएँ एवं ठंडी जलधाराएँ।
  • निम्न अक्षांशीय विषुवतीय क्षेत्र से उच्च अक्षांशीय समशीतोष्ण और उपध्रुवीय कटिबंधों की ओर प्रवाहित होने वाली धाराएँ सामान्यतः ‘गर्म जलधाराएँ’ होती हैं। इसके विपरीत उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर प्रवाहित होने वाली धाराएँ ठंडी होती हैं, किंतु हमेशा ऐसा नहीं होता है क्योंकि जलधाराओं की उत्पत्ति को निर्धारित करने में तापमान के साथ-साथ अन्य कारक भी उत्तरदायी होते हैं।
  • महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति तथा उनकी गति पृथ्वी के घूर्णन, गुरुत्वाकर्षण बल, कोरिऑलिस बल, तापमान, पवन, वर्षा, महासागरीय जल की दाब प्रवणता, लवणता, घनत्व तथा बर्फ का पिघलना, तट की दिशा, आकार, नितल की स्थलाकृति आदि कारकों द्वारा प्रभावित होती है।
  • महासागरीय धाराएँ फेरेल के नियम का अनुसरण कर उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर मुड़कर प्रवाहित होती हैं।
  • सामान्यतः निम्न अक्षांशीय प्रदेशों में महाद्वीपों के पूर्वी तट पर ‘गर्म जलधाराएँ’ तथा इसके पश्चिमी तट पर ‘ठंडी जलधाराएँ’ प्रवाहित होती हैं।
  • जलधाराएँ अपने समीपवर्ती समुद्रतटीय क्षेत्रों के जलवायविक लक्षणों, यथा- तापमान, आर्द्रता, वर्षण आदि को प्रभावित करती हैं। गर्म जलधाराएँ जहाँ संबंधित क्षेत्र में वर्षण की तीव्रता को बढ़ाती हैं, वहीं ठंडी जलधाराएँ संबंधित क्षेत्र में उच्च वायुदाब की दशा सृजित कर मरुस्थलीकरण को बढ़ाती हैं।
  • गर्म जलधाराओं के कारण उच्च अक्षांशों में स्थित समुद्र तट तथा बंदरगाह व्यापार के लिये वर्षभर खुले रहते हैं, यथा-रूस का मुस्क बंदरगाह।
  • गर्म और ठंडी जलधाराओं के मिलन स्थल पर संसार के महत्त्वपूर्ण मत्स्यन क्षेत्र पाए जाते हैं, यथा-डॉगर बैंक (उत्तरी सागर), ग्रांड बैंक (न्यूफाउंडलैंड अटलांटिक महासागर), जार्ज बैंक आदि। साथ ही दोनों विपरीत स्वभाव वाली जलधाराओं के मिलने से घना कोहरा उत्पन्न होता है, जो जलयानों के परिवहन में बाधक होते हैं।
  • अटलांटिक महासागर की गर्म जलधाराएँ: उत्तरी विषुवतीय जलधारा, दक्षिणी विषुवतीय जलधारा, फ्लोरिडा की धारा, गल्फस्ट्रीम,नार्वे की धारा, ब्राज़ील की धारा तथा प्रति विषुवतीय जलधारा।
  • अटलांटिक महासागर की ठंडी जलधाराएँ: लैब्राडोर की धारा, पूर्वी ग्रीनलैंड धारा, कनारी धारा, बेंगुएला धारा, दक्षिण अटलांटिक तथा फॉकलैंड धारा।
  • प्रशांत महासागर की गर्म जलधाराः उत्तरी विषुवतीय जलधारा, दक्षिणी विषुवतीय जलधारा, क्यूरोशिवो जलधारा, उत्तरी प्रशांत प्रवाह, अलास्का की धारा, सुशिमा धारा, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया धारा, प्रति विषुवतरेखीय जलधारा।
  • प्रशांत महासागर की ठंडी जलधाराएँ: क्युराइल जलधारा (ओयाशिवो धारा), कैलीफोर्निया धारा, हम्बोल्ट अथवा पेरूवियन धारा, अंटार्कटिका प्रवाह तथा ओखोटस्क धारा।
  • हिंद महासागर की गर्म जलधाराएँ: दक्षिणी विषुवतरेखीय जलधारा, मोज़ाम्बिक, अगुल्हास तथा ग्रीष्मकालीन मानसून प्रवाह।
  • हिंद महासागर की ठंडी जलधाराएँ: पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई धारा, सोमाली धारा, दक्षिणी हिंद धारा।

                                                     सारगैसो सागर

उत्तरी अटलांटिक महासागर में गल्फस्ट्रीम तथा कनारी धारा द्वारा हुआ शांत एवं गतिहीन जलराशि क्षेत्र जिसमें सारगैसम घास घिरा बहुलता में पाई जाती है, सारगैसो सागर कहलाता है। यह अपनी जैव विविधता के लिये प्रसिद्ध है। यह विश्व का पहला ऐसा समुद्र है जिसकी कोई तट रेखा नहीं है।

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