संघ (Federation)

संघ (Federation) [भाग V (अनुच्छेद 52-151)]

संघीय कार्यपालिका

राष्ट्रपति

  • अनुच्छेद-53(1) में कहा गया है कि संघ (Federation) की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा करेगा। राष्ट्रपति भारत के संविधान का अभिरक्षक (Custodian) भी है।
  • राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है, लेकिन भारतीय संसद राष्ट्रपति, लोकसभा व राज्यसभा से मिलकर बनती है। राष्ट्रपति को संसद का अंग माना जाता है। हालाँकि राष्ट्रपति को संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है।
  • संविधान में राष्ट्रपति के शपथ का प्रारूप अनुच्छेद 60 में दिया गया है जबकि अन्य पदाधिकारियों तथा संसद तथा राज्य विधानमंडल के सदस्यों के शपथ का प्रारूप तीसरी अनुसूची में दिया गया है।

भारत के राष्ट्रपति

संख्या                 नाम           कार्यकाल
1 ऱाजेन्द्र प्रसाद 1950 से 1962
2 सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1962 से 1967
3 जाकिर हुसैन 1967 से 1969
वी.वी. गिरि (कार्यवाहक अध्यक्ष) 1969 से 1969
मोहम्मद हिदायतुल्ला (कार्यवाहक अध्यक्ष) 1969 से 1969
4 वी.वी. गिरि 1969 से 1974
5 फखरुद्दीन अली अहमद 1974 से 1977
बसप्पा दानप्पा जट्टी (कार्यवाहक अध्यक्ष) 1977 से 1977
6 नीलम संजीव रेड्डी 1977 से 1982
7 ज्ञानी जेल सिंह 1982 से 1987
8 आर.वेंकटरमन 1987 से 1992
9 शंकर दयाल शर्मा 1992 से 1997
10 के.आर. नारायणन 1997 से 2002
11 एपीजे अब्दुल कलाम 2002 से 2007
12 प्रतिभा पाटिल 2007 से 2012
13 प्रणव मुखर्जी 2012 से 2017
14 राम नाथ कोविंद 2017 से 2022

15.            द्रौपदी मुर्मू                                                             2022 से वर्तमान 

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  • वी.वी. गिरि ने कार्यवाहक राष्ट्रपति व राष्ट्रपति के तौर पर कार्य किया।
  • जाकिर हुसैन और फखरुद्दीन अली अहमद का कार्यकाल के दौरान निधन हुआ।
  • नीलम संजीव रेड्डी एकमात्र राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के रूप में भी काम किया।
  • ज्ञानी जैल सिंह, शंकर दयाल शर्मा, बी.डी. जत्ती (कार्यवाहक), नीलम संजीव रेड्डी ने राज्यों के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया।
  • अभी तक पाँच राष्ट्रपतियों-एस. राधाकृष्णन (1954), राजेंद्र प्रसाद (1962), जाकिर हुसैन (1963), एपीजे अब्दुल कलाम (1997) और प्रणव मुखर्जी (2019) को ‘भारत रत्न’ दिया जा चुका है।

भारत के राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति तुलनात्मक अध्ययन

तुलना का आधार राष्ट्रपति ( अनुच्छेद 52 ) उपराष्ट्रपति अनुच्छेद 63)
पद हेतु अर्हताएँ भारतीय नागरिक, 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो, लोकसभा सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता, लाभ के पद पर न हो, भारतीय नागरिक, 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो, राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता, लाभ के पद पर न हो
निर्वाचकगण संसद के दोनों सदनों व राज्य की विधानसभाओं (विधान परिषद् नहीं) के निर्वाचित सदस्य, दिल्ली व पुदुच्चेरी विधानसभा के निर्वाचित सदस्य (70वाँ संविधान संशोधन 1992) संसद के निर्वाचित एवं मनोनीत सदस्य
चुनाव पद्धति अप्रत्यक्ष निर्वाचन, आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन, आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत द्वारा
पदावधि पद धारण करने के तिथि से पाँच वर्ष (उत्तराधिकारी के पद ग्रहण करने तक पाँच वर्ष बाद भी) पद ग्रहण करने से लेकर पाँच वर्ष तक (उत्तराधिकारी के पद ग्रहण करने तक पाँच वर्ष बाद भी)
पदच्युत त्याग पत्र द्वारा, महाभियोग द्वारा (अनुच्छेद 61) निर्वाचन अवैध होने पर, पद ग्रहण करने की पात्रता न होने पर त्याग पत्र द्वारा, राज्यसभा के संकल्प द्वारा उपराष्ट्रपति को 14 दिन पूर्व नोटिस देकर व इसका लोकसभा द्वारा समर्थन, निर्वाचन की अवैधता पर
पुनर्निर्वाचन हो सकता है। (अनुच्छेद 57) हो सकता है।

 

यदि राष्ट्रपति के चुनाव के समय किसी विधानसभा में कुछ स्थान खाली हैं या किसी राज्य की विधानसभा भंग है तो इससे राष्ट्रपति का चुनाव बाधित नहीं होगा। जो सदस्य उस समय विधानसभाओं में हैं, उन्हीं के मतदान को पर्याप्त समझा जाएगा।

 

  • लाभ के पद के प्रयोजन के लिये भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, किसी राज्य के राज्यपाल, केंद्र या राज्य सरकार के किसी मंत्री को लाभ के पद का धारक नहीं समझा जाएगा।
  •  भारत का राष्ट्रपति होने के लिये जन्म से भारत का नागरिक होना आवश्यक नहीं है, जैसा कि अमेरिका में है।
  • यदि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का पद मृत्यु, त्याग पत्र, निष्कासन के कारण रिक्त होता है तो राष्ट्रपति का चुनाव 6 महीने में व उपराष्ट्रपति का चुनाव यथाशीघ्र संपन्न कराने का प्रावधान है। दोनों नवनिर्वाचित राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति पद ग्रहण अवधि से 5 वर्षों तक अपने पद पर बने रहेंगे।  राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित सभी शंकाओं और विवादों की जाँच तथा फैसला सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाएगा और इस संबंध में उसका निर्णय अंतिम होगा।
  • राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव में व्हिप जारी नहीं हो सकती है।
  • राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश (अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश) शपथ दिलाता है।
  • राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिये किसी प्रत्याशी का नाम कम-से-कम 50 मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित और कम-से-कम 50 द्वारा अनुमोदित होना चाहिये।
  • उपराष्ट्रपति पद के नामांकन के लिये कम-से-कम 20 प्रस्तावक तथा 20 अनुमोदक मतदाताओं की आवश्यकता होती है।
  • राष्ट्रपति अपना त्याग पत्र उपराष्ट्रपति को देकर पदमुक्त हो सकता है।

अनुच्छेद- 65 राष्ट्रपति की मृत्यु, त्याग पत्र या पद से हटाए जाने की स्थिति में राष्ट्रपति का पद उपराष्ट्रपति द्वारा सँभालने का प्रावधान करता है। द प्रेसीडेंट (डिस्चार्ज ऑफ फंक्शन्स) एक्ट 1969 के अनुसार यदि उपराष्ट्रपति का पद खाली है तो भारत का मुख्य न्यायाधीश इस पद पर आसीन होगा और उसका पद भी रिक्त होने पर सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश राष्ट्रपति का पद सँभालेगा, ऐसी एक परिस्थिति वर्ष 1969 में उत्पन्न हुई थी, जब भारत के मुख्य न्यायाधीश मो. हिदायतुल्ला ने राष्ट्रपति का पद सँभाला था।

राष्ट्रपति की शक्तियाँ

  • अनुच्छेद 77(1) के अनुसार, “भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाहियाँ राष्ट्रपति के नाम से की हुई कही जाएंगी। “
  •  सभी नियुक्तियाँ राष्ट्रपति को अपने विवेक से नहीं, मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार करनी होती है।
  • कुछ पदों के मामले में उसे भिन्न व्यक्तियों की सलाह लेनी होती है।
  • राष्ट्रपति देश की सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति है। उसे किसी देश के साथ युद्ध घोषित करने तथा शांति स्थापित करने की शक्ति दी गई है, किंतु यह शक्ति औपचारिक है।
  • राष्ट्रपति संसद के समक्ष निम्नलिखित प्रतिवेदन प्रस्तुत कराएगा-
  •  बजट या वार्षिक वित्तीय विवरण (अनुच्छेद 112)
  •  नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सी.ए.जी.) का प्रतिवेदन(अनुच्छेद 151)
  •  वित्त आयोग की सिफारिशें (अनुच्छेद 281)
  • संघ लोक सेवा आयोग का वार्षिक प्रतिवेदन (अनुच्छेद 323)
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का प्रतिवेदन (अनुच्छेद-338)
  •  राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का प्रतिवेदन (अनुच्छेद 338क)
  •  राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का प्रतिवेदन (अनुच्छेद 340)
  • अनुच्छेद-117 (1) में उपबंध है कि कोई भी धन विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश से ही संसद में पेश किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति (अनुच्छेद 123)

  • अनुच्छेद 123 के अनुसार अध्यादेश जारी करने की निम्नलिखित परिस्थितियाँ होती हैं
  • संसद के दोनों सदन अथवा एक सदन सत्र में न हो।
  • यदि राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत हो कि विधि के निर्माण की तत्काल आवश्यकता हो।
  • सरकार के समक्ष आकस्मिक परिस्थिति विद्यमान हो।
  • राष्ट्रपति संघ (Federation) सूची और समवर्ती सूची से संबंधित विषयों पर अध्यादेश जारी करता है।
  • यदि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन हो अथवा राष्ट्रीय आपातकाल लगा हो तो राष्ट्रपति राज्य सूची पर भी अध्यादेश जारी कर सकता है।

अध्यादेश की अवधि

  • अध्यादेश संसद की बैठक होने पर दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत पर कार्रवाई नहीं की जाती है तो संसद की बैठक के छह सप्ताह किया जाता है। यदि संसद के दोनों सदन अध्यादेश को पारित कर देते हैं तो अध्यादेश कानून का रूप ले लेता है। यदि संसद द्वारा इस
  • बाद यह अध्यादेश समाप्त हो जाता है। यदि संसद के दोनों सदनों की बैठक अलग-अलग तिथि को बुलाई जाती है तो यह छह सप्ताह वाली अवधि बाद वाली तिथि से गिनी जाती है।

 

                राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियाँ (अनुच्छेद 72)

लघुकरण (Commute)- किसी कठोर प्रकृति के दंड के स्थान पर हल्की प्रकृति का दंड दिया जाना, जैसे- कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदल देना।

परिहार (Remission)- इसका अर्थ है- दंड के आदेश की प्रकृति बदले बिना दंड की मात्रा को कम कर देना, जैसे- पाँच वर्ष के कठोर कारावास को कम करके दो वर्ष के कठोर कारावास में परिवर्तित कर देना।

विराम (Respite)- इसका अर्थ है- दंड पाए हुए व्यक्ति की विशिष्ट अवस्था के कारण उसके दंड की कठोरता को कम करना- जैसे गर्भवती स्त्री के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल देना। प्रविलंबन (Reprive)- इसका अर्थ है- मृत्युदंड को अस्थायी तौर पर निलंबित कर देना।

क्षमा (Pardon)- इसका अर्थ है- अपराधी को दंड या दंडादेश से पूरी तरह मुक्त कर देना।

 

  • यदि संसद के दोनों सदन अध्यादेश पर निरनुमोदन कर दें तो यह निर्धारित छह सप्ताह की अवधि से पहले ही समाप्त हो जाएगा।
  • चूँकि संसद के दो सत्रों के बीच अधिकतम अवधि 6 महीने की होती है एवं संसद द्वारा अध्यादेश पर कार्रवाई न करने की स्थिति में यह अध्यादेश प्रथम बैठक के 6 सप्ताह पश्चात् समाप्त हो जाता है। अतः इस तरह अध्यादेश की अधिकतम अवधि 6 महीने 6 सप्ताह होती है।

आपातकालीन शक्तियाँ

आपात उपबंध [भाग XVIII अनुच्छेद (352-360) के अंतर्गत राष्ट्रपति के पास निम्नलिखित शक्तियाँ हैं अनुच्छेद 352 में वर्णित है कि यदि राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि युद्ध (War), बाह्य आक्रमण (External Aggression) या सशस्त्र विद्रोह (Armed Rebellion) के होने (या इनमें से किसी की संभावना) के कारण भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह संपूर्ण देश या उसके किसी भाग में आपातकाल की उद्घोषणा कर सकेगा। 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 के द्वारा अनुच्छेद-352 में आंतरिक अशांति को सशस्त्र विद्रोह शब्द से विस्थापित किया गया।

अनुच्छेद-356 के अंतर्गत यदि किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है तो राष्ट्रपति उस राज्य में आपात की उद्घोषणा कर सकता है। इसके लिये राज्यपाल की रिपोर्ट या उसके बिना राष्ट्रपति आपात् की उद्घोषणा कर सकता है।

अनुच्छेद-360 में बताया गया है कि यदि राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि भारत या उसके किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व (Financial Stability) या साख (Credit) संकट में है तो वह वित्तीय आपात की उद्घोषणा कर सकेगा। अभी तक भारत में वित्तीय आपातकाल की घोषणा नहीं की गई है।

 

राष्ट्रपति की वीटोया निषेधाधिकारशक्ति

आत्यंतिक वीटो (Absolute Veto)- ऐसा वीटो जो विधायिका द्वारा पारित विधेयक को पूरी तरह खारिज कर सकता हो।

विशेषित वीटो (Qualified Veto)- ऐसी वीटो शक्ति, जिसे एक विशेष बहुमत से विधायिका द्वारा खारिज किया जा सकता है। भारतीय राष्ट्रपति के पास ऐसी वीटो शक्ति नहीं है ।

 

             राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया

महाभियोग एक अर्द्धन्यायिक प्रक्रिया है, जो निम्नवत् है-

  • सर्वप्रथम संसद का कोई सदन राष्ट्रपति पर ‘संविधान के अतिक्रमण’ का आरोप लगाए। इसकी कुछ शर्तें हैं
  • यह आरोप एक संकल्प (Resolution) के रूप में होना चाहिये।
  • कम-से-कम 14 दिनों की पूर्व सूचना के बाद प्रस्तावित हो।
  • सदन की कुल संख्या का कम-से-कम 1/4 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित संकल्प प्रस्ताव हो।
  • सदन की कुल सदस्य संख्या के कम-से-कम 2/3 बहुमत से संकल्प पारित हो।
  • दूसरा सदन उस आरोप का अन्वेषण करेगा तथा राष्ट्रपति स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से अपना बचाव कर सकेगा।
  • यदि संकल्प दूसरे सदन से आरोप सिद्ध होने के बाद उस सदन के भी कुल सदस्य संख्या के 2/3 बहुमत से पारित हो जाता है तो संकल्प पारित होने की तिथि से राष्ट्रपति अपने पद से हटा दिया जाएगा।
  • संसद के दोनों सदनों के नामांकित सदस्य महाभियोग प्रक्रिया में भाग व मतदान कर सकते हैं।

 

निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto)- कार्यपालिका के प्रमुख द्वारा किये गए वीटो को विधायिका पुनर्विचार करके साधारण बहुमत से पुनः पारित करके खारिज कर सकती है।

जेबी वीटो (Pocket Veto)- कार्यपालिका के प्रमुख द्वारा विधेयक पर स्वीकृति या अस्वीकृति देने के बजाय उसे अपने पास पड़े रहने देना। 1986 में भारतीय डाकघर संशोधन अधिनियम पर राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इस वीटो का प्रयोग किया था।

 

उपराष्ट्रपति

  • अनुच्छेद 64 के अनुसार उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होगा।
  • उपराष्ट्रपति राज्यसभा की कार्यवाहियों की अध्यक्षता करता है।
  • उसे निर्णायक मत देने का भी अधिकार है। हालाँकि वह सदन का सदस्य नहीं होता है।
  • उपराष्ट्रपति आकस्मिक स्थितियों, यथा-राष्ट्रपति की मृत्यु, पद-त्याग या पद से हटाए जाने की स्थिति में राष्ट्रपति पद के दायित्वों का निर्वाह करता है।
  • इस दौरान उसे राष्ट्रपति की परिलब्धियाँ प्राप्त होंगी।
  • उपराष्ट्रपति अपना त्याग पत्र राष्ट्रपति को देकर पदमुक्त हो सकता है।

भारत के उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति निर्वाचन वर्ष
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1952
डॉ. ज़ाकिर हुसैन 1962
वी.वी. गिरि 1967
जी.एस. पाठक 1969
बी.डी. जत्ती 1974
एम. हिदायतुल्ला 1979
आर. वेंकटरमण 1984
डॉ. शंकर दयाल शर्मा 1987
के. आर. नारायणन 1992
कृष्णकांत 1997
बी. एस. शेखावत 2002
मो. हामिद अंसारी 2007
वैंकैया नायडू 2017

 

डॉ. एस. राधाकृष्णन व मोहम्मद हामिद अंसारी ने लगातार दो बार इस पद पर कार्य किया।

 

प्रधानमंत्री

  • राष्ट्रपति भारत का वैधानिक (De-Jure) प्रमुख है, जबकि प्रधानमंत्री ‘वास्तविक’ (De-facto) प्रमुख होता है।
  • प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • अनुच्छेद-75 में प्रधानमंत्री के पद का प्रावधान है।
  • जिसके अनुसार राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिये एक मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा।

 

प्रधानमंत्री कार्यकाल
जवाहरलाल नेहरू   1947 – 64
गुलजारीलाल नंदा 1964
लाल बहादुर शास्त्री 1964 – 66
गुलजारीलाल नंदा 1966 – 66
इंदिरा गाँधी 1966 – 77
मोरारजी देसाई 1977 – 79
चरण सिंह 1979 – 80
इंदिरा गाँधी   1980 – 84
राजीव गाँधी 1984 – 89
वी.पी. सिंह 1989 – 90
चंद्रशेखर  1990 – 91
पी.वी. नरसिम्हा राव 1991 – 96
अटल बिहारी वाजपेयी 1996
एच.डी. देवेगौड़ा 1996 – 97
आई.के. गुजराल 1997 – 98
अटल बिहारी वाजपेयी 1998 – 2004
मनमोहन सिंह 2004 – 2014
नरेंद्र मोदी   2014 से अब तक

 

  • संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन का सदस्य हो सकता है। इंदिरा गांधी (1966), एच.डी. देवगौड़ा (1996), डॉ. मनमोहन सिंह (2004, 2009) राज्यसभा के सदस्य थे।
  • मोरारजी देसाई, चौ. चरण सिंह, वी.पी. सिंह, पी. वी. नरसिम्हा राव, एच.डी. देवगौड़ा, नरेंद्र मोदी वे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया।

प्रधानमंत्री के दायित्व

  • वह राष्ट्रपति को सिफारिश करे कि किन व्यक्तियों को मंत्री पद पर नियुक्त किया जाए।
  • वह मंत्रियों को विभिन्न मंत्रालयों का आवंटन करता है और आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन करता है।
  • राष्ट्रपति को संसद सत्र आहूत करने या सत्रावसान करने या लोकसभा के विघटन की सलाह दे सकता है।
  • प्रधानमंत्री का कार्यकाल सामान्यतः पाँच वर्षों का होता है। प्रधानमंत्री द्वारा त्याग पत्र देना या उसकी मृत्यु होना दोनों ही परिस्थितियों में मंत्रिपरिषद् को स्वतः समाप्त हो जाती है।
  • प्रधानमंत्री ‘नीति आयोग, अंतर-राज्यीय परिषद्, राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद् एवं राष्ट्रीय एकता परिषद् का अध्यक्ष होता है।

संघीय मंत्रिपरिषद्

  • संघीय मंत्रिपरिषद् का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है। संविधान के अनुच्छेद 74(1) में राष्ट्रपति को सलाह के लिये मंत्रिपरिषद् का उपबंध किया गया है। मंत्रिपरिषद् मंत्रिमंडल से बड़ा समूह होता है। मंत्रिमंडल (Cabinet) में केवल प्रमुख मंत्री शामिल होते हैं, जबकि मंत्रिपरिषद् में सभी मंत्री शामिल होते हैं।

मंत्रियों के विभिन्न स्तर

कैबिनेट मंत्री- कैबिनेट मंत्री मंत्रिपरिषद् के सबसे महत्त्वपूर्ण मंत्री होते हैं और वे अपने विभाग या मंत्रालय के प्रमुख होते हैं। सामान्यतः कैबिनेट मंत्री और प्रधानमंत्री से मिलकर मंत्रिमंडल का निर्माण होता है।

राज्य मंत्री- इन्हें कैबिनेट की बैठकों में भाग लेने का अधिकार नहीं होता। इनकी दो श्रेणियाँ हैं जिनमें स्वतंत्र प्रभार का मंत्री अपने विभाग का प्रमुख होता है, जबकि बिना स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री कैबिनेट मंत्री के अधीन कार्य करते हैं।

उपमंत्री– उपमंत्री कनिष्ठ (Junior) मंत्री होता है, जो किसी कैबिनेट मंत्री अथवा स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री के अधीन कार्य करता है।

किचन कैबिनेट प्रभावशाली मंत्रियों एवं कुछ विश्वासपात्र सहयोगियों का समूह है, जिनसे प्रधानमंत्री ज्यादातर सलाह-मशविरा करता है।

संसदीय सचिव– संसदीय सचिव, विभिन्न मंत्रियों की सहायता करते हैं, इसलिये इनका दर्जा लगभग मंत्रियों के समान होता है।

    • संविधान में निर्धारित मंत्रिपरिषद् के आकार का अतिक्रमण न हो, इसलिये संसदीय सचिव को सैद्धांतिक रूप में मंत्रिपरिषद् के समूह में नहीं रखा जाता।
    • भारत में मंत्रियों का कोई विधिक उत्तरदायित्व नहीं होता है, जबकिब्रिटेन में इस प्रकार की व्यवस्था है।
    • ब्रिटिश राजनीतिक व्यवस्था में ‘शैडो कैबिनेट’ (छाया मंत्रिमंडल) एक अनोखी व्यवस्था है, जिसे विपक्षी दलों द्वारा सरकार के साथ तुलना के लिये बनाया जाता है।

मंत्रियों के दायित्व

व्यक्तिगत उत्तरदायित्व- अनुच्छेद 75 (2) के अनुसार मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।

सामूहिक उत्तरदायित्व– अनुच्छेद 75(3) के अनुसार मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।

  • अनुच्छेद 75(5) में यह कहा गया है, ‘कोई मंत्री जो निरंतर छह मास की अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है। उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
  • 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से अंतः स्थापित अनुच्छेद 75 (1क) के अनुसार मंत्रिपरिषद् में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा सदस्यों की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

भारत का महान्यायवादी (Attorney General of India)

  • संविधान का अनुच्छेद-76 ‘भारत का महान्यायवादी’ के पद का प्रावधान करता है जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा यह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपना पद धारण करता है।
  • यह भारत सरकार का सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है।
  • तीन अधिकारियों को विधि अधिकारी माना गया है, ये हैं- भारत का महान्यायवादी, भारत का महाधिवक्ता (Solicitor General of India) तथा भारत के अपर महाधिवक्ता (दोनों वैधानिक पद) (Additional Solicitor General of India)। इनमें महान्यायवादी सर्वोच्च स्तर पर है।
  • महान्यायवादी नियुक्त होने के लिये उन योग्यताओं का होना आवश्यक है जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये होती हैं।

शक्तियाँ (Powers)

  • अनुच्छेद 76(3) के अनुसार महान्यायवादी को सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 88 में कहा गया है कि महान्यायवादी को संसद के किसी भी सदन, दोनों सदनों की संयुक्त बैठक तथा संसद की किसी समिति, जिसका वह सदस्य है, की कार्यवाहियों में भाग लेने तथा बोलने का भी अधिकार है। हालाँकि उसे संसद के सदनों में मत देने का अधिकार नहीं है।
  •  अनुच्छेद 105(4) के अनुसार महान्यायवादी को अपने कार्यकाल के दौरान संसद सदस्यों को प्राप्त होने वाली सभी उन्मुक्तियाँ व विशेषाधिकार भी प्राप्त होते हैं।

 संघीय विधायिका

राज्यसभा ( उच्च सदन)

  •   राज्यसभा: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 80 राज्यसभा के गठन 5 का प्रावधान करता है। राज्यसभा का गठन वर्ष 1952 में किया गया था। इसके सदस्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति द्वारा एकल संक्रमणीय मत द्वारा चुने जाते हैं व 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करता है। राज्यसभा स्थायी सदन है अर्थात् इसका विघटन नहीं होता। इसके एक-तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष की समाप्ति पर अवकाश प्राप्त करते हैं।
  • राज्यसभा में प्रत्येक राज्य से कितने सदस्य होंगे, इसके लिये राज्य विशेष की जनसंख्या को आधार बनाया गया है।
  • संसद ने 2003 में ‘लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 ‘ में संशोधन करते हुए राज्यसभा के निर्वाचन के लिये निवास संबंधी शर्त को हटा दिया है।

राज्यसभा के पदाधिकारी

  • राज्यसभा में दो प्रमुख पदाधिकारी होते हैं-सभापति (Chairman) तथा उपसभापति (Deputy Chairman)। भारत का उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा का पदेन सभापति (Ex-officio Chairman) होता है। हालाँकि वह राज्यसभा का सदस्य नहीं होता। राज्यसभा अपने सदस्यों में से किसी एक को उपसभापति के तौर पर निर्वाचित करती है।

राज्यसभा के कार्य तथा शक्तियाँ

  • गैर-वित्तीय विधेयकों के संबंध में राज्यसभा को उतनी ही शक्तियाँ प्राप्त हैं, जितनी लोकसभा को
  • धन विधेयकों के मामले में उसे 14 दिनों के भीतर विचार करके अपनी राय (लोकसभा पर अबाध्यकारी) लोकसभा को भेजनी होती है।
  • संविधान संशोधन विधेयकों के मामले में राज्यसभा की शक्तियाँ लोकसभा के बराबर हैं। ध्यातव्य है कि संविधान संशोधन विधेयक के मामले में संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है।

राज्यसभा को दो ऐसे विशिष्ट अधिकार प्राप्त हैं, जो लोकसभा के पास नहीं हैं:

  • अनुच्छेद 249 के तहत राज्यसभा को अधिकार है कि वह उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से राज्य-सूची में शामिल किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित कर सकती है। राज्यसभा द्वारा पारित यह संकल्प एक वर्ष की अवधि के लिये प्रवृत्त रहेगा। ऐसा किये जाने पर संसद को राज्य-सूची के उस विषय पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है।
  • अनुच्छेद 312 के अंतर्गत राज्यसभा को शक्ति दी गई है कि वह उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन से कोई नई अखिल भारतीय सेवा या सेवाएँ स्थापित करने का अधिकार संसद को दे सकती है।

लोकसभा (निम्न सदन)

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 81 लोकसभा के गठन का प्रावधान करता है। इसके सदस्य जनता द्वारा प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा एकल सदस्यीय निर्वाचित क्षेत्र में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा निर्वाचित होते हैं। भारत में मंत्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है, जो कि संसदीय प्रणाली सरकार की मुख्य विशेषता है। लोकसभा चुनाव को ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट वोटिंग सिस्टम’ (सर्वाधिक मत प्राप्त व्यक्ति की विजय) कहा जाता है।                                       

 

                                               परिसीमन

  • प्रत्येक जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों को पुनः विभाजित करने के लिये संसद परिसीमन आयोग गठित करती है। (अनुच्छेद 82) •परिसीमन का प्रभाव उस लोकसभा पर नहीं होता, जो कार्यरत होती है।
  • 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा लोकसभा में राज्यों को आवंटित स्थानों की संख्या तथा राज्य में निर्वाचन क्षेत्रों के निर्धारण को 1971 की जनगणना के आधार पर वर्ष 2000 तक के लिये निश्चित कर दिया गया।
  • 84वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2001 द्वारा लोकसभा में राज्यों को आवंटित स्थानों की संख्या को अगले 25 वर्षों यानी कि वर्ष 2026 तक पूर्ववत रखते हुए 1991 की जनगणना की बढ़ी हुई जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का पुन: समायोजन तथा संयुक्तिकरण किया गया।
  • वर्ष 2003 में 2001 की जनगणना की बढ़ी हुई जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के पुनः समायोजन तथा संयुक्तिकरण के लिये 87वाँ संविधान संशोधन, 2003 पारित किया गया।

 

लोकसभा की शक्तियाँ तथा कार्य

  • धन विधेयक (अनुच्छेद 110) तथा वित्त विधेयक (अनुच्छेद 117) सिर्फ लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं और राज्यसभा की शक्तियाँ इन मामलों में काफी कम हैं।
  • धन विधेयक तथा संविधान संशोधन विधेयक पर संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है।
  • कार्यपालिका अर्थात् सरकार पर लोकसभा का प्रभावी नियंत्रण होता है। मंत्रिपरिषद् उसी समय तक कार्य कर सकती है, जब तक उसे लोकसभा का विश्वास हासिल हो
  • कोई व्यक्ति एक ही समय संसद या राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में उसे 14 दिनों के अंदर राज्य के विधानमंडल की सीट खाली करनी होती है, अन्यथा संसद में उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।

लोकसभा अध्यक्ष

  • अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा अपने सदस्यों में से एक को अध्यक्ष और एक को उपाध्यक्ष यथाशीघ्र निर्वाचित करेगी।
  • इसका प्राथमिक कार्य लोकसभा की बैठकों का संचालन करना तथा कार्यवाही को व्यवस्थित व नियंत्रित करना है। संचालन संबंधी किसी भी संशय या मतभेद की अवस्था में उसका निर्णय अंतिम होता है।
  • विधेयक धन विधेयक है या नहीं, यह निश्चित करने का दायित्व लोकसभा अध्यक्ष का ही है। (अनुच्छेद 110 )
  • दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों का दायित्व है कि सदन की कार्यवाही संचालित करने के पूर्व आवश्यक न्यूनतम सदस्य संख्या या कोरम सुनिश्चित करें, सदनों में कोरम कुल सदस्य संख्या का
  • 1/10वाँ भाग होता है। (अनुच्छेद 100)
  • लोकसभा अध्यक्ष किसी प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में प्रथमतः मत नहीं देता, किंतु मत के बराबर होने की दशा में वह निर्णायक मत देता है। आज तक लोकसभा अध्यक्ष को इस अनन्य निर्णायक मतदान के अधिकार का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं पड़ी है। ( अनुच्छेद 100)
  •  लोकसभा अध्यक्ष अपना त्याग पत्र लोकसभा उपाध्यक्ष को सौंपता है और लोकसभा अध्यक्ष को लोकसभा के कुल सदस्यों के बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव से हटाया जा सकता है।
  • 10वीं अनुसूची अर्थात् दल-बदल विरोधी कानून के तहत लोकसभा के किसी सदस्य के संबंध में दल-बदल संबंधी शिकायत मिलने पर उसकी निर्हता के प्रश्न पर फैसला लोकसभा अध्यक्ष करता है। लोकसभा अध्यक्ष की यह शक्ति न्यायिक पुनर्विलोकन के अधीन है।
  • लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा की संसदीय समितियों पर नियंत्रण रखता है एवं सभी समितियों के प्रमुखों की नियुक्ति करता है। कार्य मंत्रणा समिति, नियम समिति और सामान्य प्रयोजन समिति में वह स्वयं ही अध्यक्ष की भूमिका में होता है।
  • लोकसभा उपाध्यक्ष अध्यक्ष का अधीनस्थ नहीं है; उसका उत्तरदायित्व अध्यक्ष के प्रति नहीं बल्कि लोकसभा के प्रति है। उसे एक विशेषाधिकार भी प्राप्त है कि यदि उसे किसी संसदीय समिति का सदस्य बनाया जाता है तो वह स्वतः ही समिति का अध्यक्ष बन जाता है। लोकसभा उपाध्यक्ष अपना त्याग पत्र लोकसभा अध्यक्ष को सौंपता है।
  • लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर थे।

प्रोटेम स्पीकर

  • प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो सामान्यतः लोकसभा का सबसे वरिष्ठ सदस्य होता है।
  • प्रोटेम स्पीकर लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव में सदन की मदद करता है एवं नवनिर्वाचित सदस्यों का शपथ ग्रहण करवाता है, तत्पश्चात् प्रोटेम स्पीकर का पद स्वतः समाप्त हो जाता है।

संसद के प्रमुख नेता

सदन का नेता (Leader of the House): इसकी चर्चा संविधान में नहीं, सदनों की नियमावलियों में है। सामान्यतः लोकसभा में सदन के नेता का अर्थ प्रधानमंत्री होता है। कभी प्रधानमंत्री राज्यसभा से हो तो वह अपनी मंत्रिपरिषद् के किसी ऐसे मंत्री को, जो लोकसभा का सदस्य है, लोकसभा में सदन के नेता की भूमिका के लिये मनोनीत करता है।

विपक्ष का नेता (Leader of the Opposition): संसद के दोनों सदनों में एक-एक ‘विपक्ष का नेता’ होता है। विपक्ष के नेता का दर्जा प्राप्त करने के लिये सबसे बड़े विपक्षी दल के पास सदन की कुल सदस्य संख्या का 1/10 भाग होना चाहिये।

सचेतक (Whip): ‘सचेतक’ का कार्य संसद में अपने राजनीतिक दल के सदस्यों को अनुशासन में रखना होता है। इसके अलावा यदि किसी मुद्दे पर संसद में मतदान होना हो तो वह अपने दल के सदस्यों को निर्देश जारी करता है कि उन्हें मतदान में प्रस्ताव का समर्थन करना है, विरोध करना है या तटस्थ रहना है

संसद में विधि निर्माण की प्रक्रिया अनुच्छेद (107-111)

  •  कोई भी विधि शुरुआत में विधेयक (Bill) होता है। विधेयक संसद द्वारा पारित होने और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अधिनियम (Act) बन जाता है।
  • संसद में प्रस्तुत किये जाने वाले विधेयक दो प्रकार के होते हैं- (i) सरकारी विधेयक (ii) ‘गैर-सरकारी विधेयक’ या ‘प्राइवेट सदस्य विधेयक’।
  • सरकारी विधेयक वे हैं, जो किसी मंत्री द्वारा पेश किये जाते हैं। मंत्रिपरिषद् के सदस्यों के अलावा किसी भी अन्य सदस्य द्वारा प्रस्तुत विधेयक ‘प्राइवेट सदस्य विधेयक’ कहलाते हैं, चाहे वह सदस्य सत्तारूढ़ दल का ही क्यों न हो। सभी धन विधेयक सरकारी विधेयक होते हैं।
  • सदन में गैर-सरकारी विधेयक को पेश करने से पहले एक महीने का नोटिस देना ज़रूरी होता है। लोकसभा में प्रायः प्रत्येक शुक्रवार को प्राइवेट विधेयकों के लिये कुछ समय देने की परंपरा है। साधारण विधेयक कानून बनने से पूर्व कई चरणों से गुज़रता है, जो निम्नलिखित हैं

प्रथम वाचन: इस चरण में विधेयक को संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें सामान्यतः विधेयक पर कोई चर्चा नहीं होती, सिर्फ सदन की अनुमति प्राप्त की जाती है।

द्वितीय वाचनः इसके अंतर्गत विधेयक के सभी उपबंधों पर विस्तृत विचार-विमर्श होता है। द्वितीय वाचन के अंतर्गत विधेयक तीन उप-चरणों से गुज़रता है।

तृतीय वाचन: इस चरण में सिर्फ संपूर्ण विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार करने के संबंध में चर्चा होती है। इस स्तर पर विधेयक के अंतर्गत कोई संशोधन नहीं किया जा सकता।

संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किये जाने के बाद विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है अनुच्छेद 111 के तहत राष्ट्रपति के पास ऐसे विधेयक के संबंध में तीन विकल्प होते हैं

  • वह विधेयक को स्वीकार कर सकता है। उसकी स्वीकृति मिलने पर विधेयक अधिनियम बन जाता है।
  • वह विधेयक को अपने पास रोक सकता है। रोकने का अर्थ ‘जेबी वीटो’ अर्थात् ‘पॉकेट वीटो’ का प्रयोग करना है।
  • उसमें संशोधन के कुछ सुझावों सहित उसे संसद के दोनों सदनों को पुनर्विचार के लिये लौटा सकता है। यदि दोनों सदन राष्ट्रपति के सुझावों को स्वीकार या अस्वीकार करते हुए विधेयक को पुनः पारित कर देते हैं तो राष्ट्रपति उस पर अनुमति देने के लिये बाध्य होता है।

अनुच्छेद 111 के तहत धन विधेयक के मामले में राष्ट्रपति को यह अधिकार नहीं है कि वह उसे संसद को पुनर्विचार के लिये लौटा सके।

वित्त विधेयक

वित्त विधेयक उन सभी विधेयकों को कहते हैं, जिनका संबंध वित्त से जुड़े मामलों से होता है, जैसे-सरकार के राजस्व या व्यय से संबंधित विधेयक। किसी कर को लगाना या उसमें परिवर्तन करना आदि वित्त विधेयकों के सामान्य विषय हैं। वित्त विधेयक तीन प्रकार के होते हैं

  1. धन विधेयक-अनुच्छेद 110;
  2. वित्त विधेयक (I) – अनुच्छेद 117 (1);
  3. वित्त विधेयक (II) – अनुच्छेद 117(3);

प्रत्येक धन विधेयक वित्त विधेयक होता है, किंतु प्रत्येक वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता।

 दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (अनुच्छेद 108)

संयुक्त बैठक निम्नलिखित तीन स्थितियों में बुलाई जा सकती है

  • यदि एक सदन द्वारा पारित विधेयक को दूसरे सदन ने अस्वीकार कर दिया हो।
  • यदि विधेयक में किये जाने वाले संशोधनों के संबंध में दोनों सदन अंतिम रूप से असहमत हो गए हों
  • यदि दूसरे सदन ने विधेयक प्राप्त होने की तारीख से 6 महीने पूरे होने तक विधेयक को पारित न किया हो।

संयुक्त बैठक साधारण विधेयक या वित्त विधेयक के मामलों में राष्ट्रपति द्वारा आहूत की जाती है। धन विधेयक या संविधान संशोधन विधेयक के मामलों में संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है।

संयुक्त बैठक की कार्यवाहियों का संचालन तथा उसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है। लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में लोकसभा का उपाध्यक्ष संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है। उपाध्यक्ष के अनुपस्थित होने पर राज्यसभा का उपसभापति (सभापति नहीं) यह भूमिका निभाता है और यदि वह भी न हो तो बैठक में उपस्थित सदस्यों द्वारा निर्णय लिया जाता है कि बैठक की अध्यक्षता कौन करेगा।

संयुक्त बैठक की कार्यवाही लोकसभा के नियमों के अनुसार संचालित होती है, न कि राज्यसभा के नियमों के अनुसार।

 

संसद में बजट संबंधी प्रक्रिया

  • संविधान में ‘बजट’ शब्द का उल्लेख नहीं है, इसे ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ कहा गया है।
  • अनुच्छेद 112 में राष्ट्रपति को यह कर्त्तव्य सौंपा गया है कि वह प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिये भारत सरकार की अनुमानित प्राप्तियों तथा व्ययों का विवरण संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत कराएगा।
  • बज़ट पेश करने से कुछ दिन पूर्व सरकार दोनों सदनों के समक्ष आर्थिक सर्वेक्षण’ (Economic Survey) प्रस्तुत करती है, जिससे पता चलता है कि पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार के बज़ट अनुमान किस हद तक सही रहे।

बजट में दो तरह के व्यय अलग-अलग दिखाए जाते हैं

  • भारत की संचित निधि पर भारित व्यय।
  • भारत की संचित निधि से किये जाने वाले अन्य व्यय।
  • इन दोनों में अंतर यह है कि संचित निधि पर ‘भारित व्ययों’ के संबंध में कोई मतदान नहीं कराया जाता है।
  • इन पर केवल चर्चा की जा सकती है। शेष व्ययों के संबंध में संसद में चर्चा भी होती है और उनका लोकसभा में मतदान द्वारा पारित होना भी ज़रूरी होता है।
  • ‘भारित व्ययों’ में ऐसे व्यय शामिल किये जाते हैं, जो संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के वेतन आदि की सुरक्षा से जुड़े हैं या फिर भारत सरकार की साख को प्रभावित कर सकते हैं। इन व्ययों को राजनीतिक दबावों से दूर रखने के लिये व्यवस्था की गई है कि इन पर मतदान नहीं होगा।

बजट पारित करने की प्रक्रिया

संसद द्वारा बज़ट पारित किये जाने की प्रक्रिया। सामान्यतः निम्नलिखित 6 चरणों से गुज़रती है

  1. बजट की प्रस्तुति-सर्वप्रथम लोकसभा में
  2. बज़ट पर आम बहस

लेखानुदान पारित किया जाना- सामान्यत: सालभर के कुल खर्चों के अनुमान के आधार पर दो महीनों के व्यय के लिये अग्रिम संचित निधि से रूप में सरकार को दी जाती थी। इसे ही लेखानुदान

(Vote on Account) के नाम से जाना जाता है।

  1. विभागीय समितियों द्वारा मांगों की जाँच विभागीय समितियों द्वारा अनुदान मांगों की जाँच कर अपनी रिपोर्टों को सदनों में प्रस्तुत किया जाता है।
  2. अनुदान संबंधी मांगों पर मतदान

कटौती प्रस्ताव: आमतौर पर विपक्षी दल अनुदान संबंधी मांगों के प्रति असहमति व्यक्त करते हैं। सरकार की मांगों के प्रति असहमति व्यक्त करने का एक तरीका ‘कटौती प्रस्ताव’ पेश करना है। कटौती प्रस्ताव तीन प्रकार के होते हैं

नीतिगत कटौती प्रस्ताव- इस प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार की नीति के प्रति असहमति व्यक्त करना होता है। इसमें मांग की राशि को ₹1 तक कर दिया जाता है।

आर्थिक कटौती प्रस्ताव- इसमें नीति के प्रति नहीं बल्कि मांगी गई राशि के प्रति असहमति व्यक्त की जाती है। इसमें मांग की राशि को एक निश्चित सीमा तक कम कर दिया जाता है।

सांकेतिक कटौती प्रस्ताव इस प्रस्ताव का उद्देश्य सिर्फ अपनी असहमति का प्रदर्शन करना होता है। इसमें माँग की राशि में से ₹ 100 तक कम कर दिया जा सकता है।

  1.  विनियोग विधेयक का पारित होना

संविधान के अनुच्छेद 114 में कहा गया है कि संचित निधि में से कोई भी राशि विनियोग अधिनियम के माध्यम से ही निकाली जा सकेगी, किसी और तरीके से नहीं। विनियोग धन विधेयक होता है, इसलिये उस पर धन विधेयक के सभी नियम लागू होते हैं।

  1.  वित्त विधेयक का पारित होना

आगामी वित्त वर्ष के संबंध में सरकार के बज़ट संबंधी प्रस्तावों को लागू करने के लिये एक धन विधेयक वित्त मंत्री के बजट भाषण के बाद लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है। इसे ‘वार्षिक वित्त विधेयक’ कहते हैं।

विभिन्न प्रकार की निधियाँ

भारत की संचित निधि (अनुच्छेद-266)

  • भारत सरकार को प्राप्त होने वाला सारा राजस्व तथा सरकार द्वारा हुडिया निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिये गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशि भारत की संचित निधि में जमा कराए जाते हैं।

भारत का लोक लेखा [अनुच्छेद 266 (2)]

  • संचित निधि में जो राशियाँ शामिल होती हैं, उनके अलावा सभी सार्वजनिक राशियाँ ‘भारत के लोक लेखा’ में जमा होती हैं। मोटे तौर पर इसका संबंध बैंक-जमा राशियों, बचतों, भविष्य-निधि जमा राशियों इत्यादि से होता है।

भारत की आकस्मिकता निधि (अनुच्छेद 267)

  • जब किसी आकस्मिक खर्च के लिये संसद ने सरकार को प्राधिकृत न किया हो, तब तक राष्ट्रपति इसमें से आवश्यक धनराशि सरकार को अग्रिम तौर पर दे सकेगा। राष्ट्रपति की ओर से भारत सरकार का वित्त सचिव इसका संचालन करता है। इस राशि को बाद में संसद द्वारा प्राधिकृत करवाया जा सकता है।

संसद के सत्र, सत्रावसान तथा लोकसभा का विघटन

  • [अनुच्छेद 85(1)] राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर अधिवेशन (Meeting) के लिये बुलाएगा, जिसे वह उचित समझे।
  • संसद के दो सत्रों के मध्य किसी भी स्थिति में 6 महीनों से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिये अर्थात् वर्ष में न्यूनतम दो बार संसद सत्र अवश्य होना चाहिये।

संसद के सत्र

संसद के सत्र का तात्पर्य प्रथम बैठक से सत्रावसान के बीच की अवधि से है। साधारणतः वर्ष में तीन बार संसद सत्र आयोजित होते हैं

  • बजट सत्र (फरवरी से मई)
  • मानसून सत्र (जुलाई से सितंबर)
  • शीतकालीन सत्र (नवंबर से दिसंबर)
लेम डक सत्रका अर्थ है, नई लोकसभा के चुनाव के बाद पुरानी लोकसभा का अंतिम सत्र के लिये बैठना। इस बैठक में जो सदस्य नई लोकसभा के लिये नहीं चुने जाते, उन्हें ही लेम डककहा जाता है।

 

स्थगन (Adjournment)

  • स्थगन का अर्थ है-बैठक को अस्थायी तौर पर निलंबित करना।
  • स्थगन का प्रभाव सदन में विचाराधीन किसी भी विधेयक या प्रस्ताव आदि पर नहीं पड़ता है।
  • कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि सदन का पीठासीन अधिकारी सदन को स्थगित तो करे, किंतु सदन के पुनः एकत्रित होने के संबंध में कोई घोषणा न करे। इस प्रकार के स्थगन को ‘अनिश्चितकाल के लिये स्थगन’ या ‘साइन डाइ स्थगन’ कहते हैं।

सत्रावसान

  • सत्रावसान का अर्थ है-संसद के किसी सत्र का समाप्त होना। सत्रावसान सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा नहीं बल्कि राष्ट्रपति द्वारा घोषित किया जाता है।

विघटन

  • विघटन सत्रावसान से अलग होता है। सत्रावसान सदन के एक सत्र को समाप्त करता है, जबकि विघटन सदन को ही समाप्त कर देता है। ध्यातव्य है कि राज्यसभा का विघटन नहीं होता, सिर्फ लोकसभा विघटित की जाती है।

विघटन का विधेयकों पर प्रभाव

  • लोकसभा के विघटन पर जो विधेयक लोकसभा में लंबित होते हैं, वे सभी व्यपगत अर्थात् समाप्त हो जाते हैं, चाहे उनकी शुरुआत लोकसभा में हुई हो या वे राज्यसभा से पारित होने के बाद लोकसभा पहुँचे हों।
  • जो विधेयक लोकसभा से पारित हो चुके हैं, किंतु राज्यसभा में लंबित हैं, वे भी लोकसभा का विघटन होने पर व्यपगत अर्थात् समाप्त हो जाते हैं।
  • जो विधेयक राज्यसभा में शुरू हुए हैं और राज्यसभा में ही लंबित हैं तथा लोकसभा द्वारा पारित नहीं किये गए हैं, वे विघटन पर समाप्त नहीं होते।
  • यदि कोई विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित किया जा चुका है और राष्ट्रपति को अनुमति के लिये भेज दिया गया है तो वह लोकसभा के विघटन पर समाप्त नहीं होगा।
  • जो विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा गया था, किंतु राष्ट्रपति द्वारा संसद को पुनर्विचार के लिये लौटा दिया गया था, वह भी लोकसभा के विघटन पर समाप्त नहीं होगा।
  • यदि किसी विधेयक पर संसद के दोनों सदनों में गतिरोध रहा हो और राष्ट्रपति ने उसके संबंध में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाए जाने के आशय की सूचना दे दी हो तो वह विधेयक भी लोकसभा के विघटन पर समाप्त नहीं होगा।

संसद का कामकाज

  • जिस समय संसद का सत्र चल रहा होता है तब उसका प्रत्येक कार्यदिवस एक अधिवेशन होता है।

प्रश्नकाल

  • संसद के कार्यदिवस का पहला घंटा अर्थात् 11 से 12 बजे तक का समय ‘प्रश्नकाल’ कहलाता है। इस समय मंत्री विभिन्न संसद-सदस्यों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हैं।

शून्यकाल

  • शून्यकाल प्रश्नकाल के तुरंत बाद अर्थात् 12 बजे शुरू होता है। इसमें संसद सदस्य बिना किसी पूर्व सूचना प्रश्न उठा सकते हैं। शून्यकाल की चर्चा संसद के प्रक्रिया संबंधी नियमों में नहीं की गई है। वस्तुतः यह भारतीय संसदीय व्यवस्था द्वारा विकसित किया गया एक नवाचार है।
तारांकित प्रश्नः ऐसे प्रश्नों का उत्तर मंत्री द्वारा मौखिक रूप से दिया जाता है एवं इन प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न पूछे जाने की अनुमति होती है।

अतारांकित प्रश्नः ऐसे प्रश्नों का उत्तर मंत्री द्वारा लिखित रूप में दिया जाता है। इन प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न पूछने का अवसर नहीं मिलता है।

अल्पसूचना प्रश्नः ऐसे प्रश्नों का संबंध किसी लोक महत्त्व के तात्कालिक विषय से होता है। इनका उत्तर भी मौखिक रूप से दिया जाता है एवं इस पर पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अल्पसूचना प्रश्न गैर-सरकारी सदस्य से नहीं पूछा जाता। अल्पसूचना प्रश्न का उत्तर प्रश्नकाल के तुरंत बाद दिया जाता है।

 

प्रस्ताव‘ (Motion) और संकल्प‘ (Resolution) का अर्थ

  • संसद की कार्यवाही विभिन्न प्रस्तावों और संकल्पों के माध्यम से चलाई जाती है।
  • संसद में किसी भी कार्य से संबंधित कार्यवाही को प्रस्ताव के रूप में ही प्रस्तुत किया जाता है।
  • संकल्प प्रस्ताव से भिन्न नहीं होता, वह प्रस्ताव का ही एक प्रकार है। जो प्रस्ताव अपने आप में पूर्ण होता है, प्रायः उसे ही संकल्प कहा जाता है।
  • संकल्प में सामान्यतः किसी मत, दृष्टिकोण, राय या उद्देश्य की प्रस्तुति होती है और यह उस उद्देश्य के प्रति सदन की सहमति व्यक्त करता है।

विश्वास प्रस्ताव (Confidence Motion)

  • यह प्रस्ताव मंत्रिपरिषद् की ओर से लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है और इसके पारित होने का आशय होता है कि मंत्रिपरिषद् को लोकसभा का समर्थन हासिल है।

अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion)

  • यह प्रस्ताव किसी विपक्षी सदस्य द्वारा 50 सदस्यों के अनुसमर्थन द्वारा सिर्फ लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रस्ताव के लिये कोई विशेष आधार का होना आवश्यक नहीं है। लोकसभा द्वारा इस प्रस्ताव के पारित होने पर सरकार गिर जाती है। अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख संविधान में ना होकर लोकसभा के नियम 198 में है।

निंदा प्रस्ताव (Censure Motion)

  • निंदा प्रस्ताव भी सिर्फ लोकसभा में विपक्ष के किसी सदस्य द्वारा सरकार के किसी मंत्री या मंत्रियों के समूह या संपूर्ण मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध उसके कुछ कार्यों या नीतियों के प्रति असहमति प्रदर्शित करने के लिये लाया जाता है।
  • यदि यह प्रस्ताव लोकसभा में पारित हो जाता है तो मंत्रिपरिषद् के लिये इस्तीफा देना ज़रूरी नहीं होता, किंतु उस पर यह दबाव आ जाता है कि वह जल्दी से जल्दी विश्वास प्रस्ताव या किसी अन्य माध्यम से लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करे।

विशेषाधिकार प्रस्ताव (Privilege Motion)

  • यह प्रस्ताव किसी भी सदस्य द्वारा किसी भी सदन में तब प्रस्तुत किया जाता है जब उसे लगता है कि किसी मंत्री या मंत्रियों ने गलत तथ्य देकर संसद सदस्यों के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है।

ध्यानाकर्षण प्रस्ताव (Calling Attention Motion)

  • ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से सदन का कोई सदस्य अध्यक्ष या सभापति की अग्रिम अनुमति से किसी मंत्री का ध्यान एक ऐसे विषय की ओर आकर्षित करता है, जो अविलंबनीय लोक महत्त्व का है।
  • मंत्री या तो उस विषय पर तुरंत भाषण दे सकता है या किसी और दिन भाषण देने के लिये समय की मांग कर सकता है।

स्थगन प्रस्ताव (Adjournment Motion)

  • इस प्रस्ताव का उद्देश्य अविलंबनीय लोक महत्त्व के किसी मामले पर सदन में चर्चा करने के लिये सदन की नियमित कार्यवाही को स्थगित कराना है।
  • 50 सदस्यों के समर्थन के साथ तथा पीठासीन अधिकारी की अनुमति से इसे दोनों सदनों में पेश किया जा सकता है तथा पक्ष या विपक्ष का कोई भी सदस्य इसे ला सकता है।

धन्यवाद प्रस्ताव (Motion of Thanks)

  • लोकसभा के प्रत्येक चुनाव के बाद पहले सत्र की शुरुआत में तथा वित्तीय वर्ष के पहले सत्र की शुरुआत में राष्ट्रपति दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन के समक्ष अभिभाषण देता है। राष्ट्रपति का अभिभाषण उसका व्यक्तिगत वक्तव्य न होकर मंत्रिपरिषद् द्वारा तैयार किया गया होता है तथा उसमें सरकार के कार्य निष्पादन तथा भावी योजनाओं का ज़िक्र होता है। राष्ट्रपति के इस अभिभाषण पर दोनों सदनों में चर्चा होती है तथा मतदान होता है। यह चर्चा ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ के रूप में ही होती है। इस प्रस्ताव का पारित होना सरकार के अस्तित्व की शर्त है, क्योंकि इसके पारित न होने का तात्पर्य है कि सरकार ने अपना समर्थन खो दिया है।

समापन प्रस्ताव (Closure Motion)

  • ‘क्लोज़र मोशन’ को हिंदी में ‘समापन प्रस्ताव’, ‘संवरण प्रस्ताव’ और ‘कटौती प्रस्ताव’ कहने का प्रचलन है।
  • इसके लिये ज़्यादा सटीक अनुवाद ‘समापन प्रस्ताव’ है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य सदन में चल रही चर्चा को बीच में ही रोकना होता है।
  • यदि यह प्रस्ताव पारित हो जाता है तो चर्चा को बीच में ही रोककर संबंधित विषय पर मतदान करा लिया जाता है।

अनियत दिन वाले प्रस्ताव (No-day-yet Named Motion)

  • ये वे प्रस्ताव हैं, जो लोकसभा अध्यक्ष द्वारा चर्चा के लिये स्वीकृत किये गए हैं पर अभी चर्चा के लिये कोई तिथि निर्धारित नहीं की।

औचित्य प्रश्न (Point of Order)

  • यदि सदन कार्यवाही के संचालन के सामान्य नियमों (संविधान में निर्दिष्ट नियमों या सदन के कार्यवाही संबंधी नियमों) का पालन नहीं करता है तो कोई सदस्य औचित्य प्रश्न के माध्यम से सदन का ध्यान इस ओर आकर्षित कर सकता है।

नियम 377

  • इसके अधीन वे मामले उठाए जाते हैं, जो औचित्य प्रश्न नहीं होते तथा जिन्हें प्रश्नकाल, अल्पकालीन चर्चा, स्थगन प्रस्ताव या किसी अन्य प्रस्ताव में नहीं उठाया जा सकता।

विशेष उल्लेख (Special Mention)

  • जिन प्रश्नों को लोकसभा में नियम 377 के अंतर्गत उठाया जाता है, उन्हें ही राज्यसभा में ‘विशेष उल्लेख’ के रूप में उठाया जाता है।

संविधान में संसदीय विशेषाधिकार

  • संविधान के अनुच्छेद 105 का संबंध संसदीय विशेषाधिकारों से है।
  • यह अनुच्छेद मूलतः दो विशेषाधिकारों की चर्चा करता है
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता [अनुच्छेद 105 (1) ]
  • कार्यवाहियों के प्रकाशन का अधिकार [(अनुच्छेद 105(2)]।

सामूहिक विशेषाधिकार (Collective Privileges )

  • कार्यवाहियाँ चलाने का अधिकार, बहस और कार्यवाहियों के प्रकाशन का अधिकार तथा प्रकाशन रोकने का अधिकार।
  • बाहरी व्यक्तियों को सदन से बाहर निकालने का अधिकार व संसद के दोनों सदनों को अधिकार है कि वे अपनी किसी भी बैठक को गुप्त सत्र में रूपांतरित कर सकते हैं।

व्यक्तिगत विशेषाधिकार (Individual Privileges )

सिविल गिरफ्तारी से मुक्ति- संसद के सदस्यों को संसद सत्र दौरान या उससे 40 दिन पहले तथा 40 दिन बाद तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। (यह विशेषाधिकार सिर्फ सिविल मामलों से जुड़ी गिरफ्तारियों तक सीमित है।)

संसद सत्र के दौरान गवाह के रूप में उपस्थित होने से स्वतंत्रता

संसद के भीतर वाक्-स्वातंत्र्य या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

संसद के बाहर संसद सदस्य भी साधारण नागरिकों के समान हैं।

संसदीय समितियाँ

  • संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं- स्थायी समितियाँ (Standing Committees) तथा अस्थायी या तदर्थ समितिया (Ad-hoc Committees ) ।
  • स्थायी समितियाँ वे हैं, जो हमेशा अस्तित्व में रहती हैं और जिनके सदस्यों का चयन प्रत्येक वर्ष या निर्धारित समय के अनुसार किया जाता है।
  • जैसे- लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति इत्यादि।
  • अस्थायी या तदर्थ समितियाँ वे हैं, जो किसी विशेष प्रयोजन के लिये बनाई जाती हैं तथा प्रयोजन पूरा होने पर जिनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
  • साधारणतः दो प्रकार की होती हैं-जाँच समितियाँ तथा सलाहकार समितियाँ।

संसद की प्रमुख स्थायी समितियाँ

  लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee)

  • यह सबसे पुरानी वित्तीय समिति है। इसमें कुल 22 सदस्य (15 लोकसभा, 7 राज्यसभा) होते हैं।
  • 1967 से प्रारंभ हुई एक परंपरा के अंतर्गत इसका अध्यक्ष विपक्षी दल से ही चुना जाता है।
  • यह नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक द्वारा प्रस्तुत किये गए वार्षिक प्रतिवेदनों की जाँच करती है।
  • इस समिति को प्राक्कलन समिति की जुड़वाँ बहन कहते हैं।

प्राक्कलन समिति, 1950 (Estimates Committee 1950)

  • इसके कुल 30 सदस्य (सिर्फ लोकसभा से) होते हैं।
  • इसके कार्यों में वार्षिक अनुदानों की जाँच करना, अतिरिक्त व पूरक अनुदानों पर चर्चा करना इत्यादि शामिल है।
  • इसे ‘स्थायी मितव्ययता समिति’ भी कहा जाता है।

लोक उपक्रम समिति, 1964 (Committee on Public Undertakings)

  • इसके कुल 22 सदस्य (15 लोकसभा, 7 राज्यसभा) होते हैं। यह लोक उपक्रमों के लेखों, रिपोर्ट और लोक उपक्रमों के संबंध में कैग रिपोर्ट की जाँच करती है।
  • इसका सभापति लोकसभा से ही होता है। लोक उपक्रमों का दैनिक प्रशासन और लोक उपक्रमों पर सरकारी नीति इसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।

विभागीय समिति, 1993 (Department Committees)

  • वर्तमान में ऐसी 16 समितियाँ लोकसभा व 8 राज्यसभा के अधीन कार्यरत हैं, जिनके अध्यक्षों की नियुक्ति क्रमश: लोकसभा अध्यक्ष व राज्यसभा सभापति करते हैं। जिनका मुख्य कार्य मंत्रालयों की अनुदान संबंधी मांगों की जाँच करना व उन पर रिपोर्ट देना है। प्रत्येक समिति में 31 सदस्य (21 लोकसभा व 10 राज्यसभा) होते हैं। जिन्हें क्रमशः लोकसभा अध्यक्ष व राज्यसभा सभापति चुनते हैं।

परामर्शदात्री समितियाँ (Consultative Committees)

  • ये विभिन्न मंत्रालयों से संबंधित होती हैं एवं मंत्री या राज्यमंत्री इनके अध्यक्ष होते हैं। ये तकनीकी तौर पर संसदीय समिति नहीं होतीं।

कार्य मंत्रणा समिति

  • इसका प्रमुख कार्य सदन की कार्यवाही तथा समय तालिका को विनियमित करना है।
  • ये दोनों सदनों के लिये पृथक्-पृथक् होती हैं। लोकसभा की समिति में 15 व राज्यसभा की समिति में 11 सदस्य होते हैं।
  • लोकसभा अध्यक्ष व राज्यसभा सभापति इनके अध्यक्ष होते हैं।

विशेषाधिकार समिति

  • इसका कार्य किसी समिति के सदस्यों के विशेषाधिकारों के हनन की जाँच करना है। इसका कार्य अर्द्ध न्यायिक प्रकृति का होता है।
  • लोकसभा व राज्यसभा की विशेषाधिकार समिति (पृथक्-पृथक्) में क्रमश: 15 व 10 सदस्य होते हैं।
लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति, लोक उपक्रम समिति, विभागीय समिति में किसी मंत्री को सदस्य नहीं बनाया जाता और किसी सदस्य के मंत्री बनने पर उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।

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