विद्युत (Electricity)

विद्युत आवेश (Electric Charge)

  • विद्युत आवेश किसी पदार्थ का वह भौतिक गुण है, जिसकी वजह से पदार्थ विद्युत क्षेत्र एक बल का अनुभव करता है। (IN)

कूलॉम का नियम (Coulomb’s Law)

  • कूलॉम के नियम के अनुसार दो बिंदु आवेशों के बीच लगने वाला बल,
  • आवेशों के परिमाणों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है
  • तथा यह बल दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा की दिशा में कार्य करता, है।

F = K×q1q2/r2

F-दोनों आवेशों के बीच लगने वाला बल

r- दोनों आवेशों के बीच की दूरी I

k- एक नियतांक है, जिसका मान 9 x 109 न्यूटन-मीटर2 प्रति कूलॉम2

q1 तथा q2 आवेशित वस्तुओं पर उपस्थित आवेश के परिमाण हैं।

विद्युत आवेश का पृष्ठ घनत्व किसी चालक के एक इकाई क्षेत्रफल पर स्थित आवेश की मात्रा होती है।

पृष्ठ घनत्व = आवेश/क्षेत्रफल

  • किसी चालक का पृष्ठ घनत्व चालक के आकार और चालक के नजदीक स्थित किसी अन्य चालक और विद्युत रोधी पदार्थों पर निर्भर करता है।

विद्युत क्षेत्र (Electric field)

  • विद्युत आवेशित क्षेत्र के चारों ओर स्थित वह क्षेत्र, जिसमें आवेशित वस्तु का प्रभाव रहता है, ‘विद्युत क्षेत्र’ कहलाता है।

विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (Intensity of Electric field)

  • विद्युत (Electricity) क्षेत्र मे किसी बिंदु पर स्थित एकांक धन आवेश पर क्रियाशील बल को ‘विद्युत क्षेत्र की तीव्रता’ कहते हैं।

विद्युत क्षेत्र रेखा (Electric Field lines)

  •  यह वह काल्पनिक रेखा है, जिससे किसी विद्युत क्षेत्र की दिशा का पता लगता है।

विद्युत विभव (Electrical Potential)

  • किसी धन आवेश को अनंत से विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य होता है।
  • विद्युत विभव V =W/ q0
  • q0– धनावेश का परिमाण
  • W- किया गया कार्य
  • विद्युत विभव एक आदिश राशि होती है तथा इसका SI मात्रक वोल्ट होता है।
  • दो बिंदुओं पर स्थित वस्तुओं के बीच विभव की मात्राओं के अंतर को विभवांतर कहते हैं।

किसी खोखले चालक के भीतरी भाग का विभव

  • जब कोई खोखला चालक आवेशित किया जाता है तो संपूर्ण आवेश चालक के बाहरी पृष्ठ पर वितरित हो जाता है,
  • परंतु यहाँ ध्यान देने की बात है कि चालक के भीतर विद्युत विभव समान होता है।
  • यदि विभिन्न चालकों को अलग-अलग आवेशित किया जाए और उन्हें एक-दूसरे के संपर्क में लाया जाए तो चालकों का संपूर्ण आवेश संरक्षित रहेगा।

बहुत विद्युत धारिता (Electric Capacity)

  • विद्युत धारिता आवेश की वह मात्रा है, जिसे किसी चालक को देने से उसके आवेश में एकांक वृद्धि होती है।
  • विद्युत धारिता (C) = qआवेश की मात्रा (कूलॉम में) /V विद्युत विभव (वोल्ट में)
  • विद्युत धारिता का मात्रक फैरड होता है।
  • विद्युत धारिता, विद्युत चालक के पृष्ठ क्षेत्रफल, चालक के चारों के माध्यम के साथ-साथ चालक के आस-पास उपस्थित अन्य चालकों की उपस्थिति पर निर्भर करती है।

विद्युत धारा (Electric current)

  • विद्युत चालक पदार्थों में कुछ इलेक्ट्रॉन एक परमाणु से दूसरे परमाणु में जाने के लिये स्वतंत्र होते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों को ‘मुक्त इलेक्ट्रॉन’ कहते हैं।
  • किसी विद्युत सुचालक पदार्थ (जैसे ताँबे के तार) में किसी ऊर्जा के स्रोत से निरंतर ऊर्जा की आपूर्ति इस तरह से की जाए कि तार में मुक्त इलेक्ट्रॉनों का सतत प्रवाह बना रहे,
  • तो हम यह कहते हैं कि तार में विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है।
  • विद्युत धारा के स्रोत की भूमिका सिर्फ इलेक्ट्रॉनों को गति प्रदान करने तक होती है, न कि इलेक्ट्रॉनों को उत्पन्न करने में।
  • विद्युत धारा में परिमाण और दिशा दोनों होने के बावजूद यह एक अदिश राशि है, क्योंकि यह जोड़ के त्रिभुज नियम का पालन नहीं करती है।

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ओम का नियम (Ohm’s Law)

  • यदि किसी चालक के सिरों के मध्य विभवांतर V हो तो चालक में प्रवाहित होने वाली धारा (I) विभवांतर (V) के अनुक्रमानुपाती होती है।
  • V ∞ I
  • V = IR
  • यहाँ पर R एक स्थिरांक है, जो चालक का प्रतिरोध कहलाता है।

विद्युत प्रतिरोध (Resistance)

  • प्रवाहित धारा का विरोध करने का गुण चालकों में पाया जाता है जिसे ‘प्रतिरोध’ कहते हैं।
  • प्रतिरोध (R) =v/I
  • V विभवांतर
  • I – धारा (एंपीयर)
  • विद्युत प्रतिरोध का SI मात्रक ओम (Ὠ) होता है।

किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है:

  • चालक के पदार्थ की प्रकृति ।
  • चालक का ताप बढ़ने पर प्रतिरोध बढ़ता है, परंतु अर्द्धचालकों में ताप बढ़ने पर प्रतिरोध घटता है।
  • चालक की लंबाई बढ़ने पर प्रतिरोध बढ़ता है तथा चालक की मोटाई बढ़ने पर चालक का प्रतिरोध घटता है।

ओमीय तथा अनओमीय प्रतिरोध (Ohmic and Non-Ohmic Resistance)

  • जो चालक ओम के नियम का पालन करते हैं, उनके प्रतिरोध को ओमीय प्रतिरोध तथा जो चालक ओम के नियम का पालन नहीं करते हैं, उनके प्रतिरोध को ‘अनओमीय प्रतिरोध’ कहते हैं।
  • चाँदी, सोने, एल्युमिनियम इत्यादि धातु ओमीय प्रतिरोध प्रदर्शित करते हैं, जबकि डायोड, ट्रायोड इत्यादि के प्रतिरोध अनओमीय प्रतिरोध के उदाहरण है।

विशिष्ट प्रतिरोध (Specific Resistance)

  • किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लंबाई (L) के अनुक्रमानुपाती तथा उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) के व्युत्क्रमानुपाती होता है। R∞L/A,R=P,L/A
  • जहाँ P एक नियतांक है इसे चालक का विशिष्ट प्रतिरोध कहते है।
  • यह प्रतिरोध की वह मात्रा है, जो 1 मी. लंबे एवं 1 मी.2 अनुप्रस्थ काल के क्षेत्रफल वाले पदार्थ द्वारा विद्युत विभव लगाने पर प्रदर्शित की जाती है।

चालकता (Conductance)

  • किसी चालक के प्रतिरोध का व्युत्क्रम उसकी ‘चालकता’ कहलाती है।
  • चालकता (G) = 1 /R
  • चालकता का SI मात्रक ‘ओम’ होता है, जिसे ‘म्हो’ (Mho) कहते हैं, इसे सीमेन भी कहते हैं।
  • चालकता के आधार पर ठोसों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

चालक

  • ऐसे पदार्थ जिनकी चालकता अधिक होती है जैसे-ताँबा, एल्युमिनियम, सोना, चाँदी जैसी धातुएँ। इनका उपयोग विद्युत परिपथों में किया जाता है।

विद्युतरोधी

  • ऐसे पदार्थ जिनकी चालकता बहुत कम अर्थात् लगभग शून्य तथा प्रतिरोध अनंत होता है, जैसे लकड़ी, अभ्रक, प्लस्टिक इत्यादि।
  • इनका उपयोग विद्युतरोधी पदार्थों के निर्माण में किया जाता है।

अर्द्धचालक

  • ऐसे पदार्थ जिनकी चालकता चालकों से कम, लेकिन विद्युतरोधी से अधिक होती है, जैसे सिलिका (Si), जर्मेनियम (Ge) इत्यादि। इनका उपयोग डायोड, ट्रांजिस्टर इत्यादि बनाने में किया जाता है।
  • ताप बढ़ाने पर अर्द्धचालकों की चालकता बढ़ जाती है, क्योंकि प्रतिरोध कम हो जाता है, जबकि परमताप पर अर्द्धचालकों की चालकता शून्य तथा प्रतिरोध अनंत हो जाता है।

अतिचालकता (Superconductivity)

  • किसी पदार्थ की ऐसी अवस्था जहाँ उसका वैद्युत प्रतिरोध शून्य तथा चालकता अनंत हो जाती है, ‘अतिचालकता’ कहलाती है।
  • ऐसे पदार्थ अतिचालक कहलाते हैं। परमशून्य ताप पर विशेष पदार्थ अतिचालकता का गुण प्रदर्शित करते हैं।
  • जैसे-जस्ता, एल्युमिनियम इत्यादि ।
  • अतिचालकता एक अत्यधिक उपयोगी परिघटना है, परंतु इसके लिये आवश्यक अत्यंत कम तापक्रम इसे अत्यधिक व्ययसाध्य और जटिल बना देती है,
  • जिससे इसका व्यावहारिक उपयोग अधिक प्रचलित नहीं हो सका है।

प्रतिरोधों का संयोजन (Combination of Resistance)

श्रेणी क्रम संयोजन (Series Combination)
  • यदि प्रतिरोधों का संयोजन इस प्रकार किया जाए कि उनमें प्रवाहित होने वाली धारा तो समान हो,
  • परंतु विभवांतर भिन्न-भिन्न हो तो ऐसा संयोजन ‘श्रेणी क्रम संयोजन’ कहलाता है।
  • हमें जब अधिकतम प्रतिरोध प्राप्त करना होता है तो प्रतिरोधों का संयोजन श्रेणी क्रम में करते हैं। I
प्रतिरोधों का समानांतर क्रम में संयोजन के किसी(Parallel Combination of Resistance)
  • जब प्रतिरोधों को समानांतर क्रम में संयोजित किया जाता है तो सभी प्रतिरोधों पर विभवांतर समान होता है।
  • जब हमें न्यूनतम प्रतिरोध प्राप्त करना होता है तो प्रतिरोधों का संयोजन समानांतर क्रम में करते हैं।

विद्युत शक्ति (Electric power)

  • विद्युत शक्ति, विद्युत परिपथ में ऊर्जा के क्षय या खपत होने की निमन दर है।
  • विद्युत शक्ति का SI मात्रक वाट होता है। विद्युत शक्ति के बड़े मात्रक किलोवाट तथा मेगावाट आदि होते हैं।
  • 1 यूनिट : विद्युत ऊर्जा की वह मात्रा, जो किसी परिपथ में में क्षय होती है, जबकि परिपथ में एक किलोवाट की शक्ति हो।
  • एक किलोवाट घंटा को ‘एक यूनिट’ कहते हैं। इसका मान 3.6×10% जूल होता है। 1 घंटे

किलोवाट घंटा=(w) वाट x (t) घंटा/1000

विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव (Heating effect of Electricity)

  • जब किसी तार से विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो तार का ताप बढ़ जाता है।
  • ताप की यह वृद्धि तार में प्रवाहित धारा तथा तार के प्रतिरोध पर निर्भर करती है।
  • चालक में ताप उत्पन्न होने का कारण यह होता है कि जब इलेक्ट्रॉन चालक में से गुजरते समय प्रतिरोध का अनुभव करते हैं
  • तो अपनी ऊर्जा चालक के परमाणुओं में स्थानांतरित कर देते हैं, जिससे चालक के ताप में वृद्धि हो जाती है।
  • विद्युत चालक में घटित होने वाली इस घटना को ‘विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव’ कहते हैं।
  • जूल का ताप का नियम H = I2 RT
  • विद्युत धारा के ऊष्मीय प्रभाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली ऊष्मा निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है
  • यदि प्रतिरोध व समय नियत रहे तो उत्पन्न होने वाली ऊष्मा, प्रवाहित विद्युतधारा के वर्ग के समानुपाती होती है।

विद्युत धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित कुछ प्रमुख युक्तियाँ

विद्युत बल्ब (Electric Bulb)
  • इसमें शीशे के खोल में टंगस्टन का तंतु लगा होता है।
  • टंगस्टन का तंतु प्रयोग करने का कारण यह होता है कि इस धातु का गलनांक बहुत उच्च (3422°C) होता है।
  • जब विद्युत बल्ब में धारा प्रवाहित की जाती है तो तंतु का ताप बहुत बढ़ जाता है और वह चमकने लगता है।
  • बल्ब के अंदर नाइट्रोजन अथवा ऑर्गन जैसी अक्रिय गैस भर दी जाती है।
  • इसका लाभ यह मिलता है कि टंगस्टन उच्च ताप पर वाष्पीकृत नहीं होता है।
विद्युत हीटर (Electric Heater)
  • विद्युत हीटर में नाइक्रोम का एक तंतु लगा होता है।
  • नाइक्रोम का गलनांक और प्रतिरोध बहुत उच्च होता है, जिससे जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो गर्म होकर ऊष्मा उत्पन्न करता है।
विद्युत फ्यूज तार (Electric Fuse Wire )
  • विद्युत फ्यूज विद्युत परिपथों की सुरक्षा के लिये प्रयोग में लाया जाता है।
  • जब कभी परिपथ में लघु पथन (Short circuiting) अथवा अतिभारण (overloading) के कारण अधिक मात्रा में धारा प्रवाहित हो जाती है तो फ्यूज तार पिघल कर नष्ट हो जाता है और धारा का प्रवाह रुक जाता है।
  • इससे हमारे विद्युत उपकरण सुरक्षित रहते हैं।
  • विद्युत फ्यूज किसी ऐसे पदार्थ का बनाया जाता है, जिसका गलनांक बहुत निम्न हो।
  • आजकल शीशे और टिन की मिश्रधातु का प्रयोग विद्युत फ्यूज बनाने में किया जाता है।

अमीटर (Ammeter): विद्युत धारा को एंपीयर में मापने के लिये इसका प्रयोग किया जाता है। आदर्श अमीटर का प्रतिरोध शून्य होना चाहिये।

वोल्ट मीटर (Voltmeter) : यह परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विभवांतर मापने में प्रयोग किया जाता है। यह सदैव समानांतर क्रम में जोड़ा जाता हैआदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनंत होना चाहिये।

गैल्वेनोमीटर (Galvanometer): विद्युत परिपथ में विद्युत धारा कम की उपस्थिति मापने का यंत्र है। इसकी सहायता से अत्यंत क विद्युत धारा 106 एंपीयर तक मापा जा सकता है।

शंट का उपयोगः यह एक अत्यंत कम प्रतिरोध का तार होता है, जिसे गैल्वनोमीटर के समानांतर क्रम में लगाकर अमीटर बनाया जाता है।

  • गैल्वनोमीटर के श्रेणीक्रम में यदि उच्च प्रतिरोध लगा दिया जाए तो यह वोल्टमीटर बन जाता है।
  • तड़ित चालक एक सुचालक छड़ होती है, जिसका उपयोग ऊँची इमारतों की आकाशीय बिजली से सुरक्षा के लिये किया जाता है।
  • यह एक नुकीली सिरे वाली संरचना होती है, जो इमारत के सबसे ऊपरी
  • हिस्से पर स्थापित की जाती है। उसके बाद इसे भूमि से एक विद्युत चालक की सहायता से जोड़ दिया जाता है।
ट्रांसफार्मर (Transformer)
  • यह विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करने वाला यंत्र है।
  • इसका उपयोग उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टेज को निम्न वोल्टेज तथा निम्न वोल्टेज को उच्च वोल्टेज में परिवर्तित करने के लिये किया जाता है
  • यदि यह उच्च वोल्टेज को निम्न वोल्टेज में परिवर्तित करता है तो इसे ‘स्टेप डॉउन ट्रांसफार्मर’ कहते हैं।
  • यदि यह निम्न वोल्टेज को उच्च वोल्टेज में परिवर्तित करे तो इसे ‘स्टेप-अप ट्रांसफार्मर’ कहते हैं।
  • हमारे घरों में विद्युत आपूर्ति के लिये स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर का उपयोग होता है।
  • जो सामान्यतः 11000 वोल्ट को 230 वोल्ट तक परिवर्तित कर देता है।
  • मोबाइल चार्जर भी स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर का उदाहरण है क्योंकि यह 230 वोल्ट को 5 वोल्ट तक परिवर्तित कर देता हैं।

विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव (Magnetic Effect of Electric Current)

  • विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव के अंतर्गत हम विद्युत और चुंबक के परस्पर संबंधों का अध्ययन करते हैं।
  • विद्युत और चुंबक के परस्पर संबंधों को सर्वप्रथम एच.सी. ओर्टेड ने प्रमाणित किया।
चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field)
  • जिस स्थान पर चुंबक स्थित होता है, उसके चारों ओर का वह क्षेत्र, जिसमें आकर्षण और प्रतिकर्षण बलों का प्रभाव अनुभव किया जाता है, उस संपूर्ण क्षेत्र को ‘चुंबकीय क्षेत्र’ कहते हैं।
चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ (Magnetic Field lines)
  • वे काल्पनिक रेखाएँ जो सतत् रूप से चुंबकीय क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करती हैं।
चुंबक (Magnet)
  • कोई भी ऐसा पदार्थ जिसका चुंबकीय क्षेत्र हो व जो आयरन तथा उससे बने पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है, ‘चुंबक ‘ कहलाता है।
  • यह आयरन, निकल, कॉपर, कोबाल्ट, एल्युमिनियम का बना हो सकता है।
चुंबकीय ध्रुव (Magnetic Pole)
  • चुंबक के किनारे के दोनों सिरे ‘चुंबक के ध्रुव’ कहलाते हैं।
  • विपरीत ध्रुव वाले चुंबकीय सिरे एक-दूसरे के प्रति आकर्षण का “गुण तथा समान ध्रुव वाले चुंबकीय सिरे एक-दूसरे के लिये प्रतिकर्षण का गुण प्रदर्शित करते हैं।
चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता (Magnetic Field Intensity)
  • यदि कोई एकांक लंबाई वाला चालक किसी चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तथा उसमें एकांक प्रबलता वाली धारा प्रवाहित होती है
  • तो चालक पर लगने वाले बल को ‘चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता’ कहते हैं।

चुंबकीय पदार्थ (Magnetic Material)

अनुचुंबकीय (Paramagnetic)
  • ये वे चुंबकीय पदार्थ होते हैं, जिनमें चुंबकीय गुण बहुत कम होता है
  • तथा चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की दिशा में मामूली रूप से चुंबकित हो जाते हैं।
  • उदाहरण-बिस्मथ, प्लैटिनम, एल्युमिनियम आदि ।
लौह चुंबकीय (Ferromagnetic)
  • वे पदार्थ जो चुंबकों द्वारा आकर्षित किये जाते हैं तथा जिन्हें चुंबकित भी किया जा सकता है, उदाहरण- लोहा (Fe), निकिल (Ni), कोबाल्ट (Co) ।
प्रतिचुंबकीय (Diamagnetic)
  • ये चुंबकीय पदार्थ बहुत कम चुंबकीय गुणों से युक्त होते हैं,
  • परंतु इन्हें बहुत शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर एक कम प्रभाव वाला चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न (Induce) होता है तथा विपरीत दिशा में चुंबकीय हो जाते हैं।
  • उदाहरण- सीसा, जल, हवा, चाँदी, ताँबा आदि।

धारावाही चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र

  • जब किसी तार से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।
  • किसी धारा प्रवाही चालक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने के लिये हम दाएँ हाथ के नियम का प्रयोग करते हैं।
  • इसके अनुसार हम अपने दाहिने हाथ में धारावाही चालक को इस तरह से पकड़ते हैं कि हमारा अँगूठा प्रवाहित धारा की दिशा में हो,
  • तो ऐसी स्थिति में हमारी अंगुलियों की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा बताती है।
  • किसी धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र, तार में प्रवाहित धारा पर निर्भर करता है तथा प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है।
  • यदि किसी तार में प्रवाहित होने वाली धारा नियत रहे तो जैसे-जैसे हम चुंबकीय क्षेत्र से दूर हटते जाते हैं,
  • धारा प्रवाही चालक (धारा के प्रवाहित होने के कारण) के कारण उत्पन्न होने वाला चुंबकीय क्षेत्र घटता जाता है।
  • किसी वृत्तीय धारा प्रवाही चालक के केंद्र पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र तार में प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती तथा धारा प्रवाही चालक द्वारा निर्मित वृत्त की त्रिज्या के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

विद्युत धारा

 

परिनलिका
  • बेलनाकार आकृति से लिपटे अनेक वृत्ताकार ‘परिनलिका’ कहते हैं।
  • परिनलिका द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के सभी गुणधर्म दंड चुंबक फेरों की कुंडली को द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के गुणों से समानता रखते हैं।

विद्युत चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction)

  • वह क्रिया जिसमें किसी चालक को परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है, ‘विद्युत चुंबकीय प्रेरण’ कहलाती है।
  • किसी चुंबकीय क्षेत्र में चालक पर आरोपित बल की दिशा को फ्लेमिंग के बाँयें हाथ के नियम द्वारा समझा जा सकता है।
  • इस नियम के अनुसार यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित धारा की दिशा व्यक्त करे तो चालक पर बल की दिशा अँगूठे की दिशा में होगी।
  • विद्युत चुंबकीय प्रेरण की घटना द्वारा प्रेरित धारा की दिशा, फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम के अनुसार ज्ञात की जाती है।

Electromagnetic Induction

 

विद्युत जनित्र (Dynamo)

  • यह विद्युत चुंबकीय प्रेरण की घटना पर आधारित होता है।
  • यह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।

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