सामान्यतः विश्व में तीन प्रकार से वर्षा होती है
- संवहनीय वर्षा: यह वर्षा मूलत: विषुवतीय प्रदेश में होती है। धरातल के अधिक गर्म हो जाने से इसके संपर्क की वायु गर्म होकर ऊर्ध्वाधर संचरण कर शुष्क रुद्धोष्म ताप ह्रास दर से संघनित होकर वर्षा कराती है। इससे अल्पकालिक एवं मूसलाधार वर्षा होती है। ऐसी वर्षा दैनिक रूप से दोपहर के बाद होती है।
- पर्वतीय वर्षाः इसमें उष्णार्द्र वायु पर्वतीय ढालों के ऊ उठकर ठंडी होती है एवं संघनित होकर वर्षा करती है।
- चक्रवातीय/वाताग्री वर्षाः यह वर्षा मुख्यतः शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में उष्ण एवं शीत वायुराशियों के अभिसरण से पछुआ पवन के सहारे महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर होती है। महाद्वीप के अंदर की ओर आर्द्रता कम होने से वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
विश्व में वर्षा का वितरण
- विषुवत रेखा के 10° उत्तर से 10° दक्षिणी अक्षांशों में सर्वाधिक वर्षा होती है। दोनों गोलाद्धों में 100 से 20° अक्षांशों के मध्य व्यापारिक हवाओं द्वारा महाद्वीपों के पूर्वी भाग में वर्षा होती है, जबकि पश्चिमी भाग शुष्क रहता है।
- 30° से 40° अक्षांशों के मध्य महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में जाड़े में वर्षा होती है।
- दोनों गोलाद्धों में 40° से 60° अक्षांशों के मध्य पछुआ पवनों द्वारा वर्षा होती है। इस क्षेत्र को द्वितीय सर्वाधिक वर्षा की पेटी कहा जाता है।
- 60° अक्षांश से ध्रुवों की ओर वर्षा की मात्रा में कमी होती है तथा 75° अक्षांश से आगे वर्षा की मात्रा नगण्य हो जाती है।
हमारा YouTube Channel, Shubiclasses अभी Subscribe करें !
ऐसा क्षेत्र जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 25 सेमी. से कम होती है, मरुस्थल की श्रेणी में आता है। भारत एवं पाकिस्तान में स्थित थार मरुस्थल विश्व का सर्वाधिक जनघनत्व वाला मरुस्थल है।