रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI)
- केंद्रीय बैंक के रूप में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की स्थापना की संस्तुति ‘हिल्टन यंग आयोग’ द्वारा की गई थी।
- रिज़र्व बैंक ने RBI Act, 1934 के तहत 1 अप्रैल, 1935 से कार्य करना आरंभ किया।
- 1 जनवरी, 1949 को इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
- रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने वर्ष 1947 तक बर्मा (म्यांमार) सरकार तथा वर्ष 1948 तक पाकिस्तान सरकार के बैंकर के रूप में कार्य किया था।
- आरबीआई के प्रथम गवर्नर सर आस्बोर्न स्मिथ थे। राष्ट्रीयकरण के समय (1 जनवरी, 1949) इसके गवर्नर सी.डी. देशमुख थे।
- आरबीआई का लेखा वर्ष 1 जुलाई से 30 जून होता है।
रिज़र्व बैंक के प्रमुख कार्य
- यह पत्र मुद्रा का निर्गमन करता है। इसके तहत ₹2 से लेकर ₹10,000 तक के नोटों का निर्गमन कर सकता है।
- सरकार के बैंकर के रूप केंद्र तथा राज्य सरकारों के बैंक का कार्य करता है।
- बैंकों के बैंक के रूप में यह बैंकों के अंतिम ऋणदाता की भूमिका अदा करता है।
- अर्थव्यवस्था में साख नियंत्रण के लिये यह मौद्रिक नीति के निर्माण का कार्य करता है।
- रिज़र्व बैंक रुपये की तुलना में विदेशी मुद्रा की विनिमय दर को नियंत्रित करता है तथा विदेशी मुद्रा भंडार के परिरक्षक (Custodian) का कार्य करता है।
बैंक दर (Bank Rate)
- वह दर जिस पर रिज़र्व बैंक बिलों की पुनर्कटौती करता है उसे बैक दर कहते हैं।
- सामान्यतः यह वह दर होती है जिस पर रिज़र्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को दीर्घावधिक ऋण देता है।
- यह दर वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिये जाने वाले उधार पर ब्याज दर की न्यूनतम सीमा निर्धारित करती है।
सीमांत स्थायी सुविधा दर (MSF Rate)
- इसके तहत बैंक अपनी निवल मांग और सावधि देयताओं (NDTL)के एक प्रतिशत तक का ऋण रातभर (Overnight) के लिये प्राप्त कर सकते हैं।
- बैंक इसका उपयोग अपनी तात्कालिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये करते हैं
- MSF दर का निर्धारण रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया RBI द्वारा किया जाता है।
प्रधान उधारी दर (Prime Lending Rate)
- वह न्यूनतम दर जिस पर कोई बैंक अपने सबसे विश्वसनीय ग्राहक को उधार देता है।
आधार दर (Base Rate)
- RBI द्वारा पीएलआर प्रणाली के स्थान पर जुलाई 2010 से आधार दर प्रणाली को लागू किया गया है।
- जिसके अनुसार आधार दर वह दर है जिससे नीची ब्याज दर पर कोई बैंक उधार नहीं दे सकता।
- इसमें आधार दर का निर्धारण फंड की लागत के अनुसार होता है।
- इसका उद्देश्य बैकिंग सिस्टम की उधार देने की दरों में पारदर्शिता लाना है।
खुले बाज़ार की क्रिया (Open Market Operation)
- इसके अंतर्गत रिज़र्व बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति को नियंत्रित करने के लिये मुद्रा बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करता है।
स्विच ऑपरेशन
- RBI द्वारा प्रतिभूतियों (सामान्यतः अल्प अवधि वाली) का क्रय करना तथा उसके स्थान पर दूसरी प्रतिभूतियों (सामान्यत: लंबी अवधि वाली) का विक्रय करना जिससे प्रतिभूतियों की परिपक्वता अवधि लंबी हो स्विच ऑपरेशन कहलाता है।
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तरलता समायोजन सुविधा(Liquidity Adjustment Facility-LAF)
- यह बैंकों की अल्पकालीन तरलता को वांछनीय रूप से समायोजित करने का एक प्रभावी मौद्रिक अस्त्र है जो बैंकों को पुनक्रय समझौते के आधार पर उधार लेने-देने की सुविधा प्रदान करता है।
- RBI, LAF के तहत रेपो तथा रिवर्स रेपो के माध्यम से प्रतिदिन आधार पर तरलता समायोजन करता है।
- नरसिंहम समिति-II (1998) की सिफारिश पर वर्ष 2000 में LAF को लागू किया गया।
रेपो तथा रिवर्स रेपो रेट– वह दर जिस पर कोई वाणिज्यिक बैंक देश के केंद्रीय बैंक (भारत में RBI) से अपनी अल्पकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उधार लेता है रेपो रेट कहलाता है तथा केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों से जिस दर पर उधार लेता है रिवर्स रेपो रेट कहलाता है।
भारत में RBI तथा वाणिज्यिक बैंकों के बीच रेपो तथा रिवर्स रेपो दर पर लेन-देन स्वीकृत प्रतिभूतियों के रूप में होता है। नकद कोष अनुपात (CRR)अनुसूचित बैंकों द्वारा रिज़र्व बैंक के पास अपनी संपूर्ण जमा देयता (मांग जमा + समय जमा) का एक निश्चित अनुपात नकद रूप में रखना अनिवार्य होता है, इसे ही CRR कहते हैं। इसका निर्धारण समय-समय पर RBI द्वारा किया जाता है। वर्तमान में CRR 4 प्रतिशत है।
वैधानिक तरलता अनुपात (SLR)
- वाणिज्यिक बैंकों को अपने पास अपनी जमा का एक निर्धारित प्रतिशत (अधिकतम 40 प्रतिशत) नकद, सोना, विदेशी मुद्रा या स्वीकृत प्रतिभूतियों में रखना अनिवार्य है जिसे SLR कहते हैं।