- मौर्य साम्राज्य के अध्ययन के लिये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कौटिल्य रचित ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ है।
- मौर्य साम्राज्य के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मेगस्थनीज के इंडिका से भी प्राप्त होती हैं।
- मेगस्थनीज यूनानी शासक सेल्यूकस का दूत था। मेगस्थनीज के अनुसार भारतीय समाज 7 जातियों में बँटा हुआ था तथा भारत में दास प्रथा नहीं थी।
- यूनानी ग्रंथों में चंद्रगुप्त मौर्य के लिये ‘सैंड्रोकोट्टस’ तथा ‘एंड्रोकोट्स’ नाम का प्रयोग हुआ है। सबसे पहले विलियम जोंस ने सैंड्रोकोट्टस की पहचान चंद्रगुप्त मौर्य से की।
चंद्रगुप्त मौर्य (322-298 ई. पू.)
- चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से घनानंद की हत्या कर मौर्य साम्राज्य की नींव डाली।
- चंद्रगुप्त के शत्रुओं के विरुद्ध चाणक्य की कूटनीतिक चालों का वर्णन विशाखदत्त रचित मुद्राराक्षस में मिलता है।
- 305 ई.पू. में चंद्रगुप्त ने यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को परास्त कर उससे हेरात, कंधार, काबुल और मकरान का क्षेत्र प्राप्त किया।
- सेल्यूकस ने अपनी पुत्री कार्नेलिया की शादी चंद्रगुप्त मौर्य से की।
- चंद्रगुप्त के सोहगौरा तथा महास्थान अभिलेखों से यह ज्ञात होता है कि मौर्य काल में अकाल के दौरान राजकीय सहायता दी जाती थी।
- जैन ग्रंथों के अनुसार अपने जीवन के अंतिम चरण में चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन परंपरा के अनुसार श्रवणबेलगोला में अपने शरीर का त्याग कर दिया।
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बिंदुसार (298-273 ई.पू.)
- चंद्रगुप्त मौर्य के पश्चात् उसका पुत्र बिंदुसार गद्दी पर बैठा। यूनानी लेखकों ने इसे अमित्रोचेट्टस (अमित्रघात) कहा है।
- बिंदुसार आजीवक संप्रदाय का अनुयायी था।
- इसके दरबार में ‘डायमेकस’ आया था जो सीरिया के शासक एंटियोकस का दूत था।
- एथीनियस के अनुसार बिंदुसार ने एंटियोकस से मदिरा, सूखे अंजीर एवं एक दार्शनिक भेजने की प्रार्थना की थी।
- बिंदुसार के दरबार में टॉलमी फिलाडेल्फस (मिस्र) का राजदूत डायनोसियस भी आया था।
- बिंदुसार के समय तक्षशिला में विद्रोह हुए जिसे दबाने के लिये पहली बार सुसीम को और बाद में अशोक को भेजा गया।
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अशोक (273-232 ई. पू.)
- अशोक का वास्तविक राज्यभिषेक 269 ई. पू. में हुआ। पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा गया है।
- राज्याभिषेक से पूर्व अशोक उज्जैन का राज्यपाल था।
- भारत में शिलालेख का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने किया।
- अपने राज्याभिषेक के 8वें वर्ष अर्थात् 261 ई.पू. में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया।
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प्रमुख अशोककालीन अभिलेख
अशोक के अभिलेखों का विभाजन निम्नलिखित वर्गों में किया जा सकता है
- शिलालेख, 2. स्तंभलेख, 3. गुहालेख।
शिलालेख
वृहद् शिलालेख (Major Rock Edicts)
- ये वस्तुतः राजाज्ञाएँ या राजकीय उद्घोषणाएँ हैं। इनकी संख्या 14 है तथा ये आठ विभिन्न स्थलों- शाहबाजगढ़ी, मानसेहरा, कालसी, गिरनार, धौली, जौगढ़, एर्रगुडि एवं सोपारा से प्राप्त हुए हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण वृहद् शिलालेखों का वर्णन इस प्रकार है
- प्रथम शिलालेख में अशोक कहता है कि संपूर्ण प्रजा उसकी संतान है। इसी में पशुबलि की निंदा की गई है।
- द्वितीय शिलालेख में मनुष्यों एवं पशुओं के लिये निःशुल्क चिकित्सालय की स्थापना करने की चर्चा है।साथ ही चेर, चोल, पांड्य तथा ताम्रपर्णी (श्रीलंका) जैसे दक्षिणावर्ती राज्यों का उल्लेख भी मिलता है।
- तीसरे शिलालेख में युक्त, रज्जुक तथा प्रादेशिक नामक अधिकारियों की चर्चा है।
- पाँचवा शिलालेख ‘धम्म महामात्रों’ की नियुक्ति का उल्लेख करता है।
- आठवें शिलालेख में धम्म यात्रा का वर्णन है तथा नौवें शिलालेख में अशोक आनुष्ठानिक रीतियों की आलोचना करता है।
- अशोक के 13वें शिलालेख में प्रसिद्ध कलिंग युद्ध का वर्णन है।
- इसी में अशोक ने आटविक जातियों को चेताया है। 13वें शिलालेख में निम्नांकित पड़ोसियों की चर्चा है
- सीरिया का राजा – एंटियोकस द्वितीय
- मिस्र का शासक- टॉलेमी II (फिलाडेल्फस)
- मकदूनिया का राजा – एंटिगोनस
- सीरिन का राजा -मगस
- एपिरस का शासक -एलेक्जेंडर
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लघु शिलालेख (Minor Rock Edicts)
- ये शिलालेख 14 वृहद् शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं।
- ये शिलालेख विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुए हैं, यथा- ब्रह्मगिरी, रूपनाथ, मास्की, उद्गोलम, भाब्रू, नेटूर, गुर्जरा आदि ।
- मास्की, गुर्जरा, उद्गोलम तथा नेट्टूर लघु शिलालेखों में ‘अशोक’ नाम का उल्लेख है जबकि अन्य शिलालेखों में अशोक का नाम ‘देवानाम पियदस्सी’ मिलता है।
- भाब्रू लघु शिलालेख अशोक की बौद्ध धर्म में आस्था के संदर्भ में सूचना देता है।
स्तंभ लेख
दीर्घ स्तंभ लेख (Major Pillar Edicts)
- इसके अंतर्गत 7 राजाज्ञाएँ/प्रज्ञापन हैं जो स्तंभों पर उत्कीर्ण हैं।
- इनमें से सातवाँ लेख (राजाज्ञा) सर्वाधिक लंबा है। ये स्तंभ लेख विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुए हैं। यथा
- प्रयाग स्तंभ लेख- यह पहले कौशाम्बी में स्थित था। इस स्तंभ लेख को अकबर ने इलाहाबाद के किले में स्थापित कराया।
- दिल्ली-टोपरा– यह स्तंभ लेख फिरोजशाह तुगलक के से दिल्ली लाया गया।
- दिल्ली-मेरठ– इस स्तंभ लेख को भी फिरोज़शाह तुगलक द्वारा मेरठ से दिल्ली लाया गया।
लघु स्तंभ लेख (Minor Pillar Edicts)
- इसके अंतर्गत कुछ लघु राजाज्ञाएँ/प्रज्ञापन हैं। ये विभिन्न स्थलों से प्राप्त हैं। यथा- साँची, सारनाथ, कौशाम्बी, रुम्मिनदेई, निग्नीवा आदि।
- साँची, सारनाथ लघु स्तंभ लेखों में अशोक अपने महामात्रों को संघभेद रोकने का आदेश देता है।
- कौशाम्बी स्तंभ लेख को ‘रानी का अभिलेख’ भी कहते हैं। इसमें अशोक की रानी कारुवाकी और उसके पुत्र तीवर का उल्लेख मिलता है।
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गुहालेख
- गया (बिहार) स्थित बराबर की पहाड़ी की तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण हैं जिनमें आजीवकों को ये गुफाएँ दान में दिये जाने का उल्लेख है।
अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में | हैं किंतु शाहबाजगढ़ी और मानसेहरा की लिपि खरोष्ठी है। तक्षशिला तथा लघमान से अरामेइक लिपि में तथा कंदहार के पास शरे-कुना से यूनानी और अरामेइक लिपियों में लिखा द्विभाषीय अभिलेख मिलता है। |
- बराबर की पहाड़ियों में अशोक ने आजीवक संप्रदाय के लिये चार गुफाओं का निर्माण कराया।
- अशोक के उत्तराधिकारियों में दशरथ ने भी देवानांप्रिय की उपाधि धारण की तथा नागार्जुनी पहाड़ी में आजीवक संप्रदाय के लिये गुफा बनवाई।
- अशोक के बाद मौर्य साम्राज्य कमज़ोर होता गया तथा 185 ई.पू. में मौर्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ की हत्या कर शुंग वंश की स्थापना की।
मौर्य प्रशासन
- मौर्य प्रशासन के शीर्षस्थ अधिकारी तीर्थ (महामात्य) कहलाते थे। ऐसे अधिकारियों की संख्या 18 बताई जाती है।
कुछ प्रमुख तीर्थ
- समाहर्ता – कर निर्धारण का सर्वोच्च अधिकारी (वित्त मंत्री)
- सन्निधाता – राजकीय कोषागार का संरक्षक
- कर्मातिक- उद्योग मंत्री
- अंत:पाल- सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक
- व्यावहारिक- नगर का प्रमुख न्यायाधीश
- तीर्थ के पश्चात् अधिकारीक्रम में अध्यक्षों का स्थान था तथा इनकी संख्या 27 थी। कुछ प्रमुख अध्यक्ष
- सीताध्यक्ष- कृषि विभाग का अध्यक्ष
- पौतवाध्यक्ष- माप-तौल का अध्यक्ष
- लक्षणाध्यक्ष- मुद्रा-टकसाल का अध्यक्ष
- पण्याध्यक्ष- व्यापार-वाणिज्य का अध्यक्ष
- विवीताध्यक्ष- चरागाहों का अध्यक्ष
- आकाराध्यक्ष- खानों का अध्यक्ष
मौर्य प्रांत | राजधानी |
अवंति राष्ट्र | उज्जयिनी |
उत्तरापथ | तक्षशिला |
कलिंग | तोसली |
दक्षिणापथ | सुवर्णागिरि |
प्राच्य या प्रासी (पूर्वी प्रांत) | पाटलिपुत्र |
- मौर्य काल में दीवानी न्यायालय ‘धर्मस्थीय’ तथा फौजदारी न्यायालय ‘कंटकशोधन’ मौजूद थे।
- गुप्तचर विभाग के प्रमुख को महामात्यसर्प कहा जाता था। अर्थशास्त्र गुप्तचर को गूढ़ पुरुष कहा गया है।
- एक स्थान पर कार्य करने वाले गुप्तचर को संस्था और भ्रमणशील गुप्तचर को संचारा कहा जाता था।
- प्रांतों के प्रशासक कुमार, आर्यपुत्र या राष्ट्रिक कहलाते थे।
- मेगस्थनीज के अनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यों का एक समूह करता था जो 6 समितियों में विभाजित था। प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।
- मौर्य प्रशासन में स्त्रियों को भी शामिल किया जाता था। चतुर स्त्रियाँ गुप्तचर होती थीं।
आर्थिक व्यवस्था
- चंद्रगुप्त के समय सौराष्ट्र प्रांत के राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य ने सुदर्शन झील का निर्माण कराया।
- अशोक के समय सौराष्ट्र के राज्यपाल तुषास्प ने सुदर्शन झील की मरम्मत करवाई तथा पानी के निकास के लिये नहर का निर्माण करवाया।
- ‘अदेवमातृक’ अर्थात् वह भूमि जिस पर बिना वर्षा के भी अच्छी खेती होती थी, उसे अच्छा माना जाता था।
- मौर्य काल में सोने के सिक्के को सुवर्ण या निष्क, चांदी के सिक्के को पण तथा तांबे के सिक्के को माषक कहते थे।