मुद्रास्फीति (Inflation)

मुद्रास्फीति

inflation

  • मुद्रास्फीति (Inflation) का सामान्य शब्दों में अर्थ होता है वस्तुओं के मूल्य स्तर – में वृद्धि।
  • यदि अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की मांग में वृद्धि हो जाए परंतु इसकी तुलना में पूर्ति में वृद्धि न हो तो वस्तुओं के मूल्य स्तर में वृद्धि हो जाती है, ऐसी स्थिति को ही मुद्रास्फीति कहा जाता है।
  • वस्तुओं के मूल्य स्तर में वृद्धि मुद्रा की क्रयशक्ति का गिरना प्रदर्शित करेगी (क्योंकि इस स्थिति में पहले की अपेक्षा मुद्रा से कम ही क्रय किया जा सकेगा) तथा मूल्य स्तर की कमी मुद्रा के क्रयशक्ति में क वृद्धि को प्रदर्शित करेगी। तात्पर्य यह है कि मुद्रा के मूल्य और वस्तुओं की कीमत के बीच प्रतिलोम (Inverse) संबंध होता है।

मुद्रास्फीति अथवा कीमतों में वृद्धि के कारक

मांगपक्ष से संबंधित कारक

  • लोगों की मौद्रिक आय में वृद्धि, सरकारी व्यय में वृद्धि, प्रत्यक्ष कर की दर में कमी, बैंक द्वारा ऋण ब्याज दर में कमी, बैंक द्वारा लोगों को दिये जाने वाले ऋण की मात्रा में वृद्धि आदि।
  • आपूर्ति पक्ष से संबंधित कारक उत्पादकता में कमी, आयात कमी, कच्चे माल की कीमत में वृद्धि आदि।
  • ‘फिलिप्स वक्र’ बेरोज़गारी और मुद्रास्फीति दर के संबंध को प्रतिलोमतःदर्शाता है।

मुद्रास्फीति का प्रभाव

  •  मुद्रास्फीति (Inflation) से ऋणी, कृषक, उत्पादक, विनियोजक, परिवर्तनशील आय समूह वाले लोग, व्यापारी वर्ग इत्यादि को लाभ पहुँचता है।
  • साथ ही सार्वजनिक व्यय, आयात, रोजगार, करारोपण इत्यादि में वृद्धि होती है।
  • मुद्रास्फीति से उपभोक्ता, ऋणदाता, स्थिर आय समूह, पेंशनभोगी वर्ग तथा जिनके पास संपत्ति के रूप में बॉण्ड या डिबेन्चर हों, को हानि होती है।
  • सार्वजनिक बचत, निर्यात इत्यादि में कमी आती है।
  • मुद्रास्फीति से आर्थिक विषमता में वृद्धि होती है, भुगतान संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा विकास में बाधा पहुँचती है।

मुद्रास्फीति को रोकने के उपाय

  • बैंकों द्वारा संकुचनकारी मौद्रिक नीति अपनाकर, जैसे- बैंक दूर वृद्धि, खुले बाजार की क्रियाओं के अंतर्गत प्रतिभूतियों का विक्रय, सीआरआर तथा एसएलआर में वृद्धि।
  • संकुचनकारी राजकोषीय नीति का प्रयोग जिसमें करारोपण में वृद्धि, सार्वजनिक व्यय में कमी, घाटे की वित्त व्यवस्था पर रोक।
  • आवश्यक वस्तुओं के आयात को प्रोत्साहित करना तथा निर्यात में कमी, संवेदनशील वस्तुओं की जमाखोरी पर प्रतिबंध आदि।
  • मुद्रा पूर्ति को कम करके मुद्रास्फीति रोकने की प्रक्रिया विस्फीति (Disinflation) कहलाती है।

भारत में मुद्रास्फीति के मापक के रूप में प्रयोग में लाए जा रहे प्रमुख मूल्य सूचकांक

थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index-WPI)

  • यह व्यापार के प्रारंभिक चरण में वस्तुओं की थोक ब्रिकी की कीमतों में औसत परिवर्तन का मूल्यांकन करता है।
  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) वस्तुओं के थोक मूल्य को प्रदर्शित करने वाला सूचकांक है।
  • इस सूचकांक का संकलन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग में आर्थिक सलाहकार कार्यालय द्वारा मासिक स्तर पर होता है।
  • थोक मूल्य सूचकांक में सर्वाधिक भारांश विनिर्मित वस्तुओं का है। इसके पश्चात् क्रमश: प्राथमिक वस्तुओं तथा ईंधन और विद्युत के भारांश हैं।
  • वर्तमान में इसका आधार वर्ष (Base year) 2011-12 है तथा इसकी वस्तु टोकरी में 697 वस्तुएँ शामिल हैं।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index – CPI)

  •  उपभोक्ता मूल्य सूचकांक लोगों के प्रतिदिन उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तन को मापता

मुद्रा अवस्फीति (Deflation)

  • मुद्रास्फीति की सर्वथा विपरीत स्थिति जिसमें वस्तुओं तथा सेवाओं के सामान्य मूल्य स्तर में कमी होने से मुद्रास्फीति की दर शून्य से नीचे चली जाती है।
  • यह किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा परिचालन में संकुचन या मौद्रिक आय की तुलना में वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में तीव्र वृद्धि के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। इस स्थिति में मुद्रा की क्रय शक्ति सामान्य स्तर से ज़्यादा हो जाती है।
  • अवस्फीति से निपटने के लिये सार्वजनिक अतिव्यय (Pump Priming )एक प्रमुख उपाय है।

स्टैगफ्लेशन (Stagflation)

  • ऐसी स्थिति जिसमें स्फीति तथा मंदी, दोनों ही स्थितियाँ साथ-साथ बनी रहें स्टैगफ्लेशन कहलाती है।
  • धीमा आर्थिक विकास, अपेक्षाकृत उच्च बेरोज़गारी की स्थिति,मुद्रास्फीति तथा सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट, अर्थव्यवस्था में स्टैगफ्लेशन की स्थिति उत्पन्न करते हैं।

रेशेसन (Recession)

  • एक ऐसी स्थिति जिसमें मांग कम हो, वास्तविक उत्पादन बढ़ नहीं रहा हो तथा बेरोज़गारी बढ़ रही हो रेशेसन कहलाती है तथा वह स्थिति जिसमें रेशेसन नियंत्रण के उपाय विफल हो जाते हैं तथा अर्थव्यवस्था उच्च बेरोज़गारी एवं अति निम्न उत्पादन से ग्रस्त हो जाती है मंदी (Depression) कहलाती है।

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