मुद्रा (Money)
- अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से मुद्रा ऐसी कोई भी वस्तु है जिसे वस्तुओं एवं सेवाओं के बदले (विनिमय के माध्यम के रूप में) व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।
मुद्रा के प्रकार
- वस्तु मुद्रा (Commodity Money)
- धातु मुद्रा (Metallic Money)
- पत्र मुद्रा (Paper Money)
- बैंक मुद्रा (Bank Money)
- प्लास्टिक मुद्रा (Plastic Money)
मुद्रा पूर्ति की माप
तरलता के अंश के आधार पर मुद्रा पूर्ति की माप निम्नलिखित है
M0(Reserve Money/High Powered Money)
M0 = परिसंचरण में मुद्रा + RBI के पास बैंकों का जमा + RBI के पास अन्य जमा
M1(संकीर्ण मुद्रा- Narrow Money )
M1 = जनता के पास मुद्रा + बैंकों के पास मांग जमा (DD) +RBI के पास अन्य जमा
इसमें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक तथा किसी विदेशी सरकार के पास जमा शामिल नहीं होता है। अंतर बैंक जमा (Interbank Deposit) भी इसमें शमिल नहीं होता है।
M2
M2 = M1 + पोस्ट ऑफिस में बचत बैंक जमा राशियाँ
M3(वृहद् मुद्रा-Broad Money )
M3 = M1 + बैंकों तथा सहकारी बैंकों की समय जमा राशियाँ (Time Deposits)
इसे समस्त मुद्रा (Money Aggregate) भी कहते हैं।
M4 = M3 + पोस्ट ऑफिस में कुल (मांग एवं समय जमा दोनों)
तरलता (Liquidity)
- तरलता, किसी संपत्ति या साख के मूल्य को प्रभावित किये बिना बाज़ार में उसे कितनी जल्दी बेचा या खरीदा जा सकता है, के स्तर को दर्शाता है।
- ऐसी संपत्तियाँ जो पूर्णतः तरल नहीं हैं किंतु आसानी से अत्यंत कम हानि पर मुद्रा में परिवर्तित की जा सकती हैं
- नज़दीकी मुद्रा (Near Money) या क्वासी मुद्रा (Quasi Money) कहलाती हैं। जैसे- बचत खाता, बॉण्ड आदि ।
- मुद्रा पूर्ति मापों की तरलता का क्रम M1 > M2> M3 > M4
हमारा YouTube Channel, Shubiclasses अभी Subscribe करें !
भारत में मुद्रा तथा करेंसी
- वर्ष 1935 में पत्र मुद्रा निर्गमन का अधिकार RBI को दिया गया।
- स्वतंत्रता पूर्व पत्र मुद्रा पर जार्ज पंचम तथा जार्ज षष्ठम के चित्र अंकित किये थे।
- वर्ष 1947 में पत्र मुद्रा पर अशोक स्तंभ के सिंहों के चित्र अंकित किये गए।
- वर्ष 1987 पहली बार महात्मा गांधी के चित्र वाले 500 रुपये के नोट जारी किये गए।
- एक रुपये का नोट वित्त मंत्रालय द्वारा निर्गत होता है जिस पर वित्त सचिव के हस्ताक्षर होते हैं।
- अन्य सभी नोटों का निर्गमन RBI द्वारा होता है जिन पर RBI के गवर्नर के हस्ताक्षर रहते हैं।
- RBI द्वारा निर्गत सभी नोटों पर उसका मूल्य 17 भाषाओं (हिंदी और अंग्रेजी सहित) में लिखा होता है।
वित्तीय प्रणाली
- यह संस्थाओं, आर्थिक साधनों तथा बाज़ारों का समूह है जो अर्थव्यवस्था में बचत बढ़ाने तथा उनका कुशलतम एवं इष्टतम प्रयोग करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। भारतीय वित्तीय प्रणाली के मुख्यत: दो भाग हैं
मुद्रा बाजार
- वह बाज़ार जिसमें उच्च तरलता एवं बहुत कम परिपक्वता अवधि वाले
- वित्तीय साधनों का कारोबार होता है। इन साधनों द्वारा रिज़र्व बैंक अर्थव्यवस्था में तरलता की मात्रा नियंत्रित करता है। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है
असंगठित मुद्रा बाज़ार–
- ऐसा मुद्रा बाजार जिसकी गतिविधियाँ विनियमित नहीं होतीं। जैसे- चिटफंड, स्थानीय देशी बैंकर, साहूकार आदि।
संगठित मुद्रा बाजार–
- इस बाजार की गतिविधियाँ रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा संचालित तथा विनियमित होती हैं। इस बाज़ार के विनिमय के साधन निम्न हैं
ट्रेजरी बिल (Treasury Bill):
- ये अल्प अवधि की प्रतिभूतियाँ होती हैं जिनके माध्यम से सरकार उधार लेती है। इनका निर्गमन सरकार के लिये RBI द्वारा किया जाता है। वर्तमान में RBI द्वारा 91,182 तथा 364 दिनों के ट्रेजरी बिल जारी किये जाते हैं। ये सरकार के लिये अल्पावधि निवेश के रास्ते भी खोलते हैं तथा बैंकिंग संस्थानों के SLR ज़रूरतों में मदद भी करते हैं।
जमा प्रमाण पत्र (Certificate of Deposit):
- इसे बैंक अपने ग्राहकों को अधिसूचित अवधि के लिये निर्दिष्ट स्थिर ब्याज दर पर अपने तात्कालिक धन की कमी की पूर्ति हेतु जारी करते हैं। यह विनिमेय (Negotiable) तथा विपणन योग्य होता है जो अखिल भारतीय वित्त संस्थानों द्वारा 1 से 3 वर्षों एवं बैंकों द्वारा 7 से 364 दिनों तक के लिये जारी किया जाता है।
वाणिज्यिक पत्र (Commercial Paper):
- यह एक असुरक्षित अल्पकालिक ऋण साधन है जो निगमों या वित्तीय संस्थाओं द्वारा अपनी अल्पकालिक ज़रूरतों को पूर्ण करने के लिये जारी किया जाता है। यह पत्र न्यूतनम 7 दिनों तथा अधिकतम 1 वर्ष के लिये जारी किया जा सकता है।
वाणिज्यिक बिल (Commercial Bill):
- ऐसा लिखित आदेश जो एक पार्टी द्वारा भविष्य की एक निश्चित तिथि को दूसरी पार्टी को भुगतान के लिये बाध्य करता है। यह अखिल भारतीय वित्त संस्थानों (AIFIs), गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (NBFCs), अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, मर्चेंट बैंकों, सहकारी बैंकों तथा म्यूचुअल फंड कंपनियों द्वारा जारी किया जाता है।
कॉल मुद्रा बाज़ार (Call Money Market) :
- यह एक अंतर-बैंक (Interbank) मुद्रा बाज़ार है जिसमें एकदिवसीय धन का लेन-देन होता है जिसे Overnight Borrowing कहते हैं। इसकी कॉल दर को ‘रातभर की दर’ के रूप में जाना जाता है।
- इस बाज़ार से उधार, प्रतिभूतियों या बिना प्रतिभूतियों के भी लिया जा सकता है।
- यहाँ से अधिकतम 14 दिनों के लिये उधार लिया जा सकता है, लेकिन दरें भिन्न-भिन्न हो सकती हैं।
- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक तथा सहकारी बैंक ऋण आवंटित करने के साथ ऋण लेते भी हैं, वहीं LIC, GIC, UTI, IDBI तथा NABARD केवल ऋण आवंटनकर्त्ता के रूप में कार्य करते हैं।
म्यूचुअल फंड (Mutual Fund):
- म्यूचुअल फंड पेशेवर रूप से प्रबंधित निवेश योजना है जो आमतौर पर एक परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी द्वारा चलाया जाता है जो लोगों के पैसे का निवेश स्टॉक, बॉण्ड या अन्य प्रतिभूतियों में कुशलता के साथ करता है जिससे जोखिम की संभावना न्यूनतम होती है। भारत में वर्ष 1963 में स्थापित यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (UTI) प्रथम म्यूचुअल फंड कंपनी है।
रेपो तथा रिवर्स रेपो:
- जब कोई समझौते या विकल्प के साथ कोई प्रतिभूति किसी को बेचता है कि वह उसे एक निश्चित अवधि के बाद क्रय कर लेगा तब इसे पुनर्क्रय विकल्प या रेपो कहते हैं तथा जब कोई क्रेता इस समझौते के अंतर्गत कोई प्रतिभूति क्रय करता है। कि एक निश्चित अवधि के बाद उसे विक्रेता को बेच देगा तो इसे रिवर्स रेपो कहते हैं। भारत में रेपो तथा रिवर्स रेपो का प्रचालन RBI तथा बैंकों के बीच होता है।
नकद प्रबंधन बिल (Cash Management Bill):
- अल्पावधि बिल जिसका उपयोग केंद्र सरकार की तात्कालिक धन की कमी को पूरा करने के लिये किया जाता है।
- इसकी परिपक्वता अवधि 91 दिनों से कम होती है।