फैमिली कोर्ट क्या होता है?
परिचय:
वर्ष 1984 में तत्कालीन सरकार ने देश में शादी और पारिवारिक मामलों तथा उनसे संबंधित आपसी विवादों का आपसी समझ से त्वरित निवारण करने के लिए परिवार निवारण कानून पारित किया। इसका मकसद पारिवारिक विवादों से जुड़े मामलों में सुलह और तेजी से समाधान के लिए देश के सभी राज्यों में परिवार न्यायालय या फैमिली कोर्ट की स्थापना करना था ।
इस कानून का पालन करते हुए लगभग सभी राज्यों ने अपने यहां परिवार न्यायालय बनाए, लेकिन कुछ राज्य ऐसा करने में थोड़ा पिछड़ गए ,इनमें हिमाचल प्रदेश और नागालैंड शामिल हैं । हालांकि की बाद में हिमाचल प्रदेश में 15 फरवरी 2019 को एक अधिसूचना जारी कर शिमला, धर्मशाला और मंडी जिले में तीन फैमिली कोर्ट का गठन किया गया और नागालैंड में 12 सितंबर 2008 को अपने एक सरकारी आदेश के तहत दीमापुर और कोहिमा में दो फैमिली कोर्ट बनाएं, तब से यह न्यायालय वहां निरंतर कार्यरत हैं ।
लेकिन इन सरकारों के यह फैसले नौकरशाही औपचारिकताओं में उलझ कर रह गए , सालों तक 1984 में बने कानून के तहत ही कोर्ट स्थापित करने के बावजूद प्रादेशिक न्यायालयों को केंद्र सरकार की हरी झंडी नहीं मिली और लगातार यह असमंजस बना रहा कि न्यायालय द्वारा लिए गए फैसले वैध माने जाएं या नहीं ।
परिवार न्यायालय 1984 की धारा 1 की उपधारा 3 के मुताबिक राज्य सरकार द्वारा इन फैमिली कोर्ट के गठन का आदेश जारी करने के बाद केंद्र सरकार को उनकी मंजूरी देनी होगी और इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी करना होगा , लेकिन केंद्र सरकार अभी तक ऐसा नहीं कर सकी, ऐसी स्थिति में इन दोनों राज्यों के क्षेत्राधिकार प्रस्ताव पर सवाल उठना स्वाभाविक था क्योंकि मंजूरी न मिलने का कानूनी अर्थ होगा कि कोर्ट के सभी फैसले अवैध हैं ।
इसी विषय को लेकर 2021 में हिमाचल प्रदेश के कोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिसमें केंद्र सरकार को भी एक पार्टी बनाया गया । असमंजस की स्थिति को दूर करने के लिए सरकार परिवार न्यायालय कानून में संशोधन कर रही है और मानसून सत्र में हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में पहले से स्थापित परिवार न्यायालयों को वैधता देने और उनके द्वारा की गई कार्यवाही को पूर्वव्यापी रूप से मान्यता देने के लिए परिवार न्यायालय संशोधन पारित किया गया है ।
खबरों में क्यों है?
हाल ही में भारत के कानून एवं न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने 18 जुलाई 2022 को लोकसभा में परिवार न्यायालय संशोधन विधेयक पेश किया इसका मकसद हिमाचल प्रदेश और नागालैंड की परिवार अदालतों के सभी फैसलों ,आदेशों ,नियमों, नियुक्तियों आदि को वैधता देना है ।
कानून की मुख्य विशेषताएं क्या है?
इस कानून को शादी और पारिवारिक मामलों में सुलह को बढ़ावा देकर उन्हें निपटाने के लिए बनाया गया था। इसमें प्रावधान है कि राज्य सरकार उच्च न्यायालय की सहमति से एक या अधिक व्यक्तियों को परिवार न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकती है ।
राज्य सरकार को अधिकार है कि समाज कल्याण में लगे संस्थान ,परिवार कल्याण को बढ़ावा देने में पेशेवर रूप से लगे व्यक्ति तथा समाज के कल्याण के क्षेत्र में काम कर करने वाले व्यक्ति आदि के लिए परिवार न्यायालय की व्यवस्था कर सकती है ।
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संशोधन विधेयक के मुख्य प्रावधान क्या है?
15 फरवरी 2019 से हिमाचल प्रदेश और 12 सितंबर 2008 से नागालैंड में फैमिली कोर्ट की स्थापना के लिए प्रावधान करना चाहता है । इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश और नागालैंड की राज्य सरकारों और उन राज्यों में परिवार न्यायालय द्वारा किए गए उक्त अधिनियम के तहत सभी कार्यों को पूर्वव्यापी रूप से मान्यता प्रदान करने के लिए एक नई धारा 3(a) शामिल की गई है विधेयक के अनुसार परिवार न्यायालय के जज की नियुक्ति के सभी आदेश और अधिनियम के तहत ऐसे जज की पोस्टिंग, प्रमोशन या ट्रांसफर भी दोनों राज्य में मान्य होंगे ।
संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
मौजूदा वक्त में भारत में 715 फैमिली कोर्ट कार्यरत हैं जिनमें से हिमाचल प्रदेश राज्य के 3 फैमिली कोर्ट और नागालैंड के दो फैमिली कोर्ट शामिल हैं हिमाचल और नागालैंड के लिए इन राज्यों में उक्त अधिनियम को लागू करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी नहीं की गई थी।
ऐसे में हिमाचल प्रदेश राज्य में परिवार न्यायालय के अधिकार क्षेत्र की कमी के मुद्दे को प्रदेश के उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई , यह कहा गया था कि केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश में परिवार न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की है ऐसे में न्यायालय अधिकार क्षेत्र के बिना कार्य कर रहे हैं और उक्त अधिनियम के तहत किया गया कोई भी कार्य या की गई कोई भी कार्यवाही शुरू से ही शून्य प्रतीत होती है।
नागालैंड में भी परिवार न्यायालय का संचालन वर्ष 2008 से बिना किसी कानूनी अधिकार के किया जा रहा था इस विधेयक का उद्देश्य दोनों राज्यों के न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को कानूनी संरक्षण एवं मान्यता देना है ।
फैमिली कोर्ट के समक्ष क्या-क्या चुनौतियां हैं?
ऐसे कोर्ट की कार्यवाही में किसी अन्य संस्थान की कार्यवाही कार्यप्रणाली की तरह अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ,कुछ राज्यों में ऐसा देखा गया है कि हर 3 माह में मध्यस्थों को बदल दिया जाता है जिससे केस की गति प्रभावित होती है , कार्यक्षेत्र का विस्तार अधिक होने के कारण लंबित मामलों की संख्या भी अधिक है । फैमिली कोर्ट के अंतर्गत शादी, तलाक, बच्चे की कस्टडी,आदि आते हैं | फैमिली कोर्ट में किसी भी प्रकार की पैरवी करने के लिए एक अधिकार के रूप में वकील को पेश नहीं किया जा सकता है केवल न्यायालय के आदेश के बाद ही किसी न्याय मित्र या वकील की नियुक्ति संभव है । वकील की व्यवस्था ना रखने के पीछे का तर्क साधारण है क्योंकि केस की प्रक्रिया बिना वजह जटिल ना हो और कानूनी दांव–पेच में फसकर आपसी मत–भेद कोर्ट में ही ना रह जाए ।
लेकिन इस प्रक्रिया का दुरुपयोग तब होता है जब परिवार का एक पक्ष शिक्षित हो तथा दूसरा पक्ष अशिक्षित हो ,अपने अधिकारों और न्यायालय की प्रक्रिया से अनभिज्ञ पक्ष को कई बार केस गवाकर इसका परिणाम भुगतना पड़ता है ।
निष्कर्ष –
भारत में लंबित मामले न्यायपालिका के लिए बहुत बड़ी चुनौती हैं फैमिली कोर्ट की समझौतावादी प्रकृति कुछ लोगों को अस्वीकार हैं ।
कानून एवं न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने सभी राज्यों से यह अनुरोध किया है कि वह अपने राज्यों के हर जिले में कम से कम एक परिवार न्यायालय की स्थापना करें ,भारत में अभी तक 715 परिवार न्यायालय हैं भारत में लंबित मामलों की संख्या मई 2022 में बढ़कर 11,49,907 हो गई है । ऐसे में राज्य सरकार किसी भी जिले में कुटुंब न्यायालय (कुटुंब न्यायालय को सरल शब्दों में पारिवारिक न्यायालय भी कहा जाता है।) की स्थापना कर सकती है ,जिसकी आबादी 10,00,000 से ज्यादा है या जहां भी वह आवश्यक समझे ऐसे न्यायालय स्थापित कर सकती है , लेकिन इसकी संख्या में इतनी गति से बढ़ोतरी नहीं हो रही जितनी कि मामलों की संख्या में हो रही है इसके साथ ही फैमिली कोर्ट में अधिकार स्वरूप अधिवक्ता के प्रयोग पर भी विचार किया जाना चाहिए।