फसल चक्र (Crop Rotation)

फसल चक्र

फसल चक्र क्या होता है?

किसी निश्चित क्षेत्र में एक नियत अवधि में फसलों का इस क्रम में उगाया जाना कि उर्वरा शक्ति का कम से कम ह्रास हो फसल चक्र कहलाता है। फसल चक्र का निर्धारण करने के लिए कुछ मूलभूत सिद्धान्तों पर अमल करना आवश्यक होता है। यथा:- कम गहरी जड़वाली फसलों के बाद उथली जड़वाली फसल उगाना चाहिए जैसे अरहर के बाद गेहूँ । दलहनी फसलों के बाद अदलहनी फसलें बोना चाहिए। अधिक खाद एवं पानी चाहने वाले फसलों के बाद कम खाद व पानी चाहने वाली फसलों को उगाना चाहिए। इसके अलावा कृषि के विभिन्न साधनों का वर्ष भर क्षमता पूर्ण उपयोग होना चाहिए।

फसल चक्र के लाभ-

फसल चक्र को अपनाने से बहुत से लाभ होते हैं। यथा मृदा की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। रोग, कीट व खरपतवार के नियंत्रण में सहायता मिलती है। सीमित साधनों का अधिकतम उपयोग कर अधिक उत्पादन करना सम्भव होता है। मृदाक्षरण से रक्षा, घरेलू एवं बाजार मांग की पूर्ति आदि।

फसल चक्र सघनता (Crop Rotation Intensity)=  फसल चक्र में फसलो की संख्या/ फसल चक्र के वर्ष ×100

देश के विभिन्न भागों में पारिस्थितिकीय अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के फसल चक्र अपनाए जा रहे हैं, जैसे- पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ‘धान-गेहूँ’, राजस्थान में बाजरा/ज्वार-सरसों, गुजरात, महाराष्ट्र में ‘कपास/अरहर-गेहूँ’ आदि जिनकी पादप पोषक तत्व आवश्यकता एवं फसलों की उत्पादकता अधिक है। लगातार उर्वरकों के अकेले प्रयोग से भूमि की उर्वरता एवं उत्पादकता (Fertility & Productivity) इन सघन पद्धतियों में निरन्तर घटती जा रही है। अतः एकीकृत पादप पोषक तत्व प्रबन्धन (IPNM-Integrated Plant Nutrient Management) को अपनाना जरूरी है, जिसमें खरीफ में 50% NPK तत्व जीवांश खाद से तथा 50% NPK उर्वरकों से दिये जाने चाहिए।

सस्यन प्रणाली (Cropping System) क्या होता है?

सिस्टम (System) का मतलब तत्वों या अवयवों के एक ऐसे समूह से हैं जो आपस में अंतर्क्रिया करते हैं और एक दूसरे से संबंधित होते हैं। सस्यन प्रणाली (Cropping System) का मतलब निम्न तरह से लगाया जाता है

  1. किसी निश्चित वातावरण में उपलब्ध संसाधनों से आय प्राप्त करने हेतु अपनाया गया सस्यन क्रम (Cropping Pattern) तथा इसका प्रबंधन सस्यन प्रणाली (Cropping System) कहलाता है। Cropping System = Cropping Pattern + Management                                                             यह स्थान और वातावरण के बदलने से बदल जाता है अर्थात् यह स्थान-विशिष्ट (Location-specific) होता है।
  2. किसी फार्म पर प्रयुक्त संस्थन क्रम (cropping pattern) तथा वहाँ उपलब्ध तकनीक, संसाधन और अन्य उद्यमों के परस्पर अंतर्क्रिया को सस्यन प्रणाली कहते हैं।
  3. फसलोत्पादन के सभी अवयवों तथा इनका आपसी संबंध और वातावरण के साथ समाविष्ट होना ही सस्यन प्रणाली (Cropping System) है।
  4. किसी भू-खंड पर निश्चित समय हेतु फसलों का व्यवस्था क्रम तथा मृदा प्रबंधन क्रियाएँ एवं अन्य प्रबंधन सस्यन प्रणाली (Cropping System) कहलाता है।

सस्यन प्रणाली (Cropping System) का मुख्य उश्य सभी संसाधनों, यथा भूमि, जल और सौर विकिरणों का समुचित उपयोग ‘करना है। ‘उत्पादन स्तर को स्थिर रखते हुए हम कैसे अधिकतम अभीष्ट उत्पादन ले सकते हैं, इसी का अध्ययन यहाँ किया जाता है।

एकल कृषि (Mono Culture)

किसी निश्चित भूमि पर एक ही फसल की बारम्बार खेती एकल कृषि (Mono culture) कहलाती है। जैसे- Rice Rice Rice; एक वर्ष हेतु ऐसी खेती में सस्यन सघनता (Cropping Intensity) हमेशा 100% से अधिक होती है।

एकल सस्यन (Mono Cropping)

एक वर्ष में किसी निश्चित भूमि पर एक ही फसल उपजाना एकल सस्यन (Mono cropping) कहलाता है। उदाहरणत: अगर एक वर्ष में केवल एक ही फसल जैसे धान उगाया जाता है तब इस प्रकार की खेती को एकल सस्यन (Mono Cropping) कहते हैं। इसमें सस्यन सघनता (Cropping Intensity) हमेशा 100% होती है।

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सस्यन क्रम (Cropping Pattern)

सस्यन क्रम का अर्थ निम्न प्रकार से लगाया जा सकता है-

  1. किसी निश्चित क्षेत्र में अधिकतर किसानों द्वारा अपनाया जाने वाला सस्यावर्तन (फसल चक्र) संस्थन क्रम कहलाता है। (Crop rotation practiced by a majority of the farmers in a given area of locality) एवं प्रकार ही
  2. समय तथा फैलाव में फसलों का व्यवस्थाक्रम सस्यन क्रम है।
  3. किसी निश्चित क्षेत्र में फसलों का या फसल एवं परती का वार्षिक क्रम और फैलाव वितरण व्यवस्था (Yearly sequence and spatial arrangement of crops or of crops and fallow on a given area)
  4. किसी निश्चित क्षेत्र एवं निश्चित समय में विभिन्न फसलों को उस क्षेत्र का प्राप्त भाग सस्यन क्रम (Cropping Pattern) दर्शाता है।

फसल सघनता (Cropping Intensity)

फसल सघनता कुल कृषित क्षेत्र (एक वर्ष में) व निवल कृषित क्षेत्र का अनुपात होता है, जिसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

शस्य सघनता (Cropping Intensity)= एक वर्ष में कुल बोया गया क्षेत्र/ शुद्ध कृषि क्षेत्र  x100

शस्य गहनता के आधार पर कृषि को गहन शस्यन (Intensive Cropping), जिसकी गहनता 200% या इससे अधिक हो तथा विरल शस्यन (Extensive Cropping) जिसकी गहनता 200% से कम हो, दो वर्गों में विभक्त किया जाता है। कृषि संगणना 2010-11 के अनुसार भारत की सस्य गहनता 138 प्रतिशत थी। जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 142% हो गई थी।

 

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