प्रायद्वीपीय भारत का पठार

यह भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीन भाग है। इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है

मध्यवर्ती उच्चभूमियाँ

  • यह प्रायद्वीपीय भू-भाग का उत्तरी भाग है जो कठोर आग्नेय तथा कायांतरित शैलों से निर्मित है। यह पठार पश्चिम में अत्यधिक चौड़ा तथा पूर्व की ओर अपेक्षाकृत कम चौड़ा है। इसके पूर्वी भाग को बुंदेलखंड तथा बघेलखंड के नाम से तथा दक्षिणी भाग को छोटा नागपुर पठार के नाम से जानते हैं।

दक्कन का पठार

  • यह विंध्याचल पर्वत श्रेणी से लेकर प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर के मध्य तक विस्तृत है। उत्तर में इसकी चौड़ाई सर्वाधिक तथा दक्षिण में सबसे कम है। इस पठार की ऊँचाई पश्चिम में अधिक तथा पूर्व बंगाल की खाड़ी की ओर कम होती चली जाती है। यही कारण है कि प्रायद्वीपीय क्षेत्र की अधिकांश नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। नर्मदा और तापी अरब सागर में गिरती हैं, क्योंकि ये नदियाँ भ्रंश घाटियों से होकर प्रवाहित होती हैं जिनका ढाल अरब सागर की ओर है।

मालवा पठार राजस्थान एवं मध्य प्रदेश का हिस्सा है जो अरावली एवं विंध्य श्रृंखला के मध्य स्थित है। यहाँ पश्चिम एवं पूर्व दोनों ओर बहने वाली नदियाँ हैं।

दंडकारण्य पठारः छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश राज्य तक फैला हुआ है।

भारत का सबसे ऊँचा पठार लद्दाख का पठार है।

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