प्रमुख संवैधानिक संस्थाएँ

निर्वाचन आयोग [भाग-XV (अनुच्छेद 324-329) ]

  • निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जो संसद व राज्य विधानमंडलों के चुनाव, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का निर्वाचन करवाता है।
  • वर्तमान चुनाव आयोग तीन सदस्यीय (एक मुख्य निर्वाचन व दो निर्वाचन आयुक्त) संस्था है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • इनका कार्यकाल 6 वर्षों या 65 वर्षों की उम्र तक, जो भी पहले हो राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया गया है।
  • मुख्य निर्वाचन आयुक्त को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के आधार पर ही हटाया जा सकता है, जबकि अन्य निर्वाचन या प्रादेशिक आयुक्त को राष्ट्रपति द्वारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर ही हटाया जा सकता है।
  • निर्वाचन आयोग चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन, मतदाता सूची व आचार संहिता (राजनीतिक दलों हेतु) तैयार करना, राजनीतिक दलों को मान्यता व चुनाव चिह्न प्रदान करना व चुनाव करवाना जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।
राज्यों में होने वाले पंचायतों व निगम चुनावों के लिये संविधान में अलग से राज्य निर्वाचन आयोगों की व्यवस्था है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पुनर्निर्वाचन हो सकता है। भारत में मताधिकार और निर्वाचित होने का अधिकार संवैधानिक अधिकार है।

हमारा YouTube Channel, Shubiclasses अभी Subscribe करें !

किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल का दर्जा तब प्रदान किया जाता है, जब

उसे लोकसभा अथवा विधानसभा के आम चुनावों में चार या अधिक राज्यों के वैध मतों का 6 प्रतिशत मत हासिल हुए हों और इसके साथ उसे किसी राज्य या राज्यों से लोकसभा की 4 सीटें प्राप्त हुई हों या

उसे लोकसभा में सीटों की संख्या की 2 प्रतिशत सीटें मिली हों और ये सदस्य अलग-अलग तीन राज्यों से चुने गये हों या

यदि कोई दल कम-से-कम चार राज्यों में राज्यस्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो।

भारत का नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) [भाग-V (अनुच्छेद 148-151) ]

  • कैग एक संवैधानिक पद है। जो लोक वित्त का संरक्षक एवं लेखापरीक्षा व लेखा विभाग का मुखिया होता है। कैग की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। इसका कार्यकाल 6 वर्षों या 65 वर्षों (जो भी पहले हो) की आयु तक होता है। वह भारतीय नागरिक जो लोक वित्त का विशेषज्ञ हो अथवा लोकसेवक (10 वर्ष न्यूनतम) हो, कैग बन सकता है। यह योग्यता संसद द्वारा निर्धारित है। कैग को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही पद से हटाया जा सकता है। कैग का नियंत्रण केंद्र व राज्य दोनों स्तरों पर होता है। कैग का वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान होता है और सेवानिवृत्ति के पश्चात् वह भारत या राज्य सरकार के अधीन किसी पद को धारण करने का पात्र नहीं होगा। [अनुच्छेद 148 (4)]
  • कैग सरकारी कंपनियों, प्राधिकरण व निकाय (केंद्र व राज्य सरकार से अनुदान प्राप्त) व अन्य निगमों या निकायों (विधि अथवा संबंद्ध नियमों के तहत) का भी लेखा परीक्षण कर सकता है। कैग विनियोग, वित्त व सरकारी उपक्रमों की लेखापरीक्षा कर राष्ट्रपति के समक्ष प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है, जिसे राष्ट्रपति संसद के समक्ष रखवाता है। कैग लोक लेखा समिति की बैठकों में भाग लेता है और उसे इस समिति का मित्र (अ एवं मार्गदर्शक भी कहा जाता है।
  • वर्ष 1976 से नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक का कार्य केवल सरकारी लेखाओं की लेखापरीक्षा तक सीमित रह गया है।

वित्त आयोग | भाग-XII (अनुच्छेद 280) |

  • वित्त आयोग (संवैधानिक निकाय, अनुच्छेद 280) का गठन राष्ट्रपति द्वारा सामान्यतः प्रत्येक पाँच वर्षों पर केंद्र व राज्यों के मध्य करों के वितरण आदि के लिये किया जाता है। यह एक अर्द्धन्यायिक सलाहकारी निकाय है, ऐसा व्यक्ति जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो या समकक्ष योग्यता का हो या आर्थिक विशेषज्ञ हो, इसका सदस्य बन सकता है। जबकि अध्यक्ष को लोक मामलों का ज्ञाता होना चाहिये। यह एक पाँच सदस्यीय निकाय (एक अध्यक्ष व चार सदस्य) है, जिसके सदस्य पुनर्नियुक्ति के पात्र होते हैं। आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है, जो इसे संसद के समक्ष रखवाता है।

संघ और राज्य लोक सेवा आयोग /भाग-XIV (अनुच्छेद 315-323) ]

  • संघ और राज्य लोक सेवा आयोग एक अध्यक्ष व अन्य सदस्यों से मिलकर बनता है, जिनकी नियुक्ति क्रमशः राष्ट्रपति और राज्यपाल करते हैं। आयोग के आधे सदस्यों को केंद्र या राज्य सरकारों के अधीन न्यूनतम 10 वर्षों का कार्य अनुभव होना आवश्यक है। इनकी सदस्य संख्या को राष्ट्रपति व राज्यपाल समय-समय पर निर्धारित करते हैं। संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य 6 वर्षों या 65 वर्षों की आयु तक, जबकि राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य 6 वर्षों या 62 वर्षों की आयु तक पद धारण करते हैं।
  • संघ व राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों को सिर्फ राष्ट्रपति (राज्यपाल नहीं) हटा सकता है, जबकि कदाचार व दुर्व्यवहार के आधार पर हटाने के लिये उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच व सलाह (बाध्यकारी) आवश्यक है। इन आयोगों का कार्य केंद्र व राज्य स्तर पर लोक सेवकों की नियुक्ति के लिये परीक्षाओं का आयोजन, परीक्षा प्रक्रिया व पाठ्यक्रम, पदोन्नति व अनुशासनात्मक मामलों में सरकार को सलाह देना है।
दो या दो से अधिक राज्यों के निवेदन पर संसद अधिनियम पारित कर संयुक्त राज्य सेवा आयोग का गठन कर सकती है। (अनुच्छेद 315) जिसकी सेवा शर्ते, नियुक्ति, बर्खास्तगी राष्ट्रपति करता है। इसके सदस्य 6 वर्षों या 62 वर्षों की आयु तक पद धारण करते हैं।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग [भाग-XVI (अनुच्छेद-338) ]

  • यह एक पाँच सदस्यीय (अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व तीन सदस्य) संवैधानिक निकाय है। इन सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • आयोग अनुसूचित जातियों के उत्पीड़न, अत्याचार वाले मामले या विधायन संबंधी मामलों में स्वतः संज्ञान ले सकता है।
  • इसे सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्राप्त हैं। साथ ही अनुसूचित जातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के क्रियान्वयन का निरीक्षण व इससे संबंधित वार्षिक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को सौंपना इसका दायित्व है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग [भाग-XVI अनुच्छेद-338क)

  • 89वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2003) द्वारा संविधान में अनुच्छेद-338क जोड़कर इसका गठन किया गया।
  • यह भी पाँच सदस्यीय (अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, व तीन सदस्य) संवैधानिक आयोग है, जिसके सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • आयोग अनुसूचित जनजातियों के उत्पीड़न, अत्याचार में स्वतः संज्ञान ले सकता है। इसे भी सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • इसके 6 क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं। अनुसूचित जनजातियों से संबंधित वार्षिक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को सौंपना इसका दायित्व है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग

  • संविधान में 102वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद-338ख स्थापित (123वाँ संविधान संशोधन विधेयक) करके राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया है।
  • पहली बार उच्चतम न्यायालय निर्देश पर भारत सरकार द्वारा 1993 के राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम के तहत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया था।

Leave a comment