प्रमुख संविधान संशोधन

प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 : चंपकम दोराइराजन बनाम मद्रास राज्य (1951) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित पिछड़े वर्गों के आरक्षण (शिक्षण संस्थाओं में) को वैध करना व संपत्ति के अधिकार को सीमित कर भूमि सुधारों को न्यायिक समीक्षा से मुक्त करने के लिये नौवीं अनुसूची जोड़ी गई।

7वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 : राज्यों का पुनर्गठन, चार श्रेणियों में बँटे राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करते हुए उन्हें राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में बाँटा गया।

10वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1961 : दादरा एवं नगर हवेली को भारत में शामिल किया गया।

12वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 : गोवा, दमन एवं दीव को भारत में शामिल किया गया।

24वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 : राष्ट्रपति अनुच्छेद 368 के तहत पारित किये गए संविधान संशोधन विधेयक पर अनुमति देने के लिये बाध्य होगा।

25वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 : मूल अधिकारों ( 14, 19,31) के उल्लंघन के आधार पर भी कानून को अवैध नहीं माना जाएगा। अगर राज्य अनुच्छेद 39 ख व 39ग में वर्णित नीति निदेशक तत्त्वों की प्राप्ति के लिये कानून बनाता है।

31वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1973 : लोकसभा सदस्यों की संख्या 525 से 545 की गई तथा केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व 25 से घटाकर 20 कर दिया गया।

34वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1974 : विभिन्न राज्यों द्वारा पारित भू-सुधार अधिनियमों को संवैधानिक वैधता के परीक्षण से मुक्ति के लिये नौवीं अनुसूची में प्रवेश ।

35वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1974 : सिक्किम को सहयुक्त राज्य के रूप में भारत में शामिल किया गया।

36वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 : सिक्किम को भारत में पूर्ण राज्य के रूप में शामिल किया गया।

42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 : इसे ‘लघु संविधान’ की संज्ञा भी दी जाती है। इसके माध्यम प्रस्तावना में तीन महत्त्वपूर्ण शब्द समाजवादी (Socialist), पंथ-निरपेक्ष (Secular) तथा अखंडता (Integrity) जोड़े गए साथ ही संविधान में एक नया अनुच्छेद 51क अंतःस्थापित कर 10 मौलिक कर्त्तव्य जोड़े गए।

44वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 इसके द्वारा अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा का आधार ‘आंतरिक अशांति’ को हटाकर सशस्त्र विद्रोह किया गया, जिसके लिये मंत्रिमंडल (कैबिनेट) की लिखित सलाह को अनिवार्य किया गया। आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 368 के तहत अनुच्छेद 19 का निलंबन सिर्फ तभी किया जा सकेगा, जब. आपात उद्घोषणा का आधार युद्ध या बाह्य आक्रमण हो। साथ ही अनुच्छेद 359 के आधार पर अनुच्छेद 20 और 21 का निलंबन नहीं किया जा सकेगा।

इसके द्वारा संपत्ति के अधिकार को (अनुच्छेद 31 के तहत मूल अधिकार को विलोपित कर) एक नया अनुच्छेद 300क जोड़कर सिर्फ कानूनी अधिकार बना दिया।

52वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 : इसके द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची शामिल कर दल-बदल संबंधी प्रावधान किये गए।

61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1988 : इसके द्वारा साधारण चुनावों में मतदान की आयु को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया।

65वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1990 : अनुच्छेद 338 का संशोधन कर अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग का गठन।

69वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 : दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) बनाया गया एवं दिल्ली के लिये विधानसभा और मंत्रिपरिषद् का उपबंध किया गया।

70वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 : राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में दिल्ली और पुदुच्चेरी विधानसभाओं के सदस्यों को शामिल किया गया।

73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 : इसके द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा और सुरक्षा व 11वीं अनुसूची को शामिल किया गया।

74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 : इसके द्वारा शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा और सुरक्षा व 12वीं अनुसूची को शामिल किया गया।

84वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2001 : लोकसभा तथा विधानसभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 तक कोई परिवर्तन न करने का प्रावधान।

86वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 : इसके द्वारा अनुच्छेद 45 में परिवर्तन व अनुच्छेद-51 क में नया मूल कर्त्तव्य व 21 क जोड़कर 6-14 वर्षों की आयु के सभी बच्चों के लिये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा को मूल अधिकार बनाया।

87वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 : परिसीमन में जनसंख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दिया गया।

89वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 : अनुसूचित जनजाति के लिये पृथक् राष्ट्रीय आयोग की स्थापना।

91वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 : केंद्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद् की अधिकतम सदस्य संख्या क्रमश: लोकसभा तथा विधानसभा की सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत होगा।

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97वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2011: इस संविधान संशोधन से निम्नलिखित बदलाव किये गए

सहकारी समिति के निर्माण के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया। (अनुच्छेद-19)

सहकारी समिति को बढ़ावा देने के लिये एक नए नीति निदेशक सिद्धांत को जोड़ा गया। (अनुच्छेद 43ख)

सहकारी समितियाँ नाम से नया खंड IX ख जोड़ा गया। (243ZH से 243 ZT तक)

98वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2012: कर्नाटक के राज्यपाल को हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के विकास सुनिश्चित करने हेतु संविधान में अनुच्छेद 371J को शामिल किया गया।

100वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2015: भारत और बांग्लादेश के मध्य भूमि हस्तांतरण।

101वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 : इसके द्वारा वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम के माध्यम से अनुच्छेद 248, 249, 250, 268,270, 271, 286, 316 व 368 में व 6वीं व 7वीं अनुसूची में संशोधन किया गया।

102वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 : 123वें संविधान संशोधन विधेयक (102वाँ संविधान संशोधन अधिनियम) द्वारा ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ को संवैधानिक दर्जा दिया गया है।

103वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 : इस अधिनियम द्वारा आर्थिक वंचना को पिछड़ेपन का आधार मानते हुए 10%आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

104वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2019: 25 जनवरी, 2020 को लागू हुए इस अधिनियम के द्वारा लोकसभा व राज्य की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण की अवधि को 70 वर्षों से बढ़ाकर 80 वर्षों यानी 10 वर्षों के लिये विस्तारित किया गया है जबकि आंग्ल-भारतीय समुदायों के व्यक्तियों के लिये स्थानों के आरक्षण का प्रावधान निष्प्रभावी कर दिया गया है। हालाँकि 17वीं लोकसभा और 25 जनवरी, 2020 से पूर्व गठित विधानसभाओं के विघटन तक इसमें आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्यों हेतु स्थान आरक्षित बने रहेंगे।

105वाँ संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2021: लोकसभा और राज्यसभा ने क्रमश: 10 अगस्त और 11 अगस्त, 2021 को 127वाँ संविधान (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया। यह विधयेक राष्ट्रपति की अनुमति के पश्चात 105वाँ संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2021 बन गया। इसका उद्देश्य 5 मई, 2021 को सर्वोच्च न्यायालय मराठा आरक्षण पर दिये निर्णय का प्रभाव समाप्त करके राज्य की अपनी ओबीसी सूची बनाने की शक्ति को बहाल करना है।

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