प्रकाश (Light)
- प्रकाश वह साधन है, जिसके माध्यम से हम प्रकृति में उपस्थित वस्तुओं को देख पाते हैं।
- दूसरे शब्दों में प्रकाश विद्युत चुंबकीय विकिरणों का एक समूह है, जो हमारी दृष्टि में संवेदना उत्पन्न करता है।
- प्रकाश में तरंग और कण दोनों की प्रवृत्ति पाई जाती है।
- यह ऊर्जा का एक रूप है, जो विद्युत चुंबकीय तरंग के रूप मे संचरित होता है।
प्रकाश का परावर्तन (Reflection of Light)
प्रकाश में किसी चिकने पृष्ठ से टकराकर वापस लौटने की प्रवृत्ति होती है।
प्रकाश द्वारा प्रदर्शित इस गुण को ‘प्रकाश का परावर्तन’ कहते हैं।
परावर्तन के नियम (Law of Reflection ) :
- आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण एक ही तल में होते हैं।
- आपतन कोण व परावर्तन कोण बराबर होते हैं।
समतल दर्पण से प्रकाश का परावर्तन
- समतल दर्पण (Plane Mirror): कोई भी ऐसा दर्पण, जिसका पृष्ठ समतल तथा परावर्तक हो, उसे समतल दर्पण कहते हैं।
- हमारे घरों में प्रयुक्त होने वाले दर्पण समतल दर्पण के उदाहरण हैं।
- समतल दर्पण की वक्रता त्रिज्या अनंत होती है।
समतल दर्पण से निर्मित प्रतिबिंब की विशेषताएँ
- वस्तु समतल दर्पण से जितनी दूर होती है, समतल दर्पण में उसका प्रतिबिंब उतनी ही दूरी पर बनता है।
- समतल दर्पण द्वारा निर्मित यह प्रतिबिंब वस्तु के बराबर होता है, काल्पनिक होता है, पार्श्व (lateral) स्थिति में यह उल्टा होता है।
- रोगीवाहन (AMBULANCE) में सामने विचित्र प्रकार से ƎƆИA⅃UઘMA लिखे जाने का कारण यही है,
- जिससे सामने वाली गाड़ी का चालक आसानी से अपने सामने के दर्पण में देखकर आसानी से पढ़ सके।
- यदि कोई व्यक्ति अथवा वस्तु समतल दर्पण की ओर V चाल से गतिमान हो तो व्यक्ति अथवा वस्तु का प्रतिबिंब दर्पण के सापेक्ष V चाल से तथा वस्तु के सापेक्ष 2V चाल से गतिमान प्रतीत होता है।
- किसी वस्तु का पूर्ण प्रतिबिंब समतल दर्पण में दिखे, इसके लिये आवश्यक है कि समतल दर्पण की लंबाई वस्तु की लंबाई की कम से कम आधी हो।
- यदि आपतित किरण की स्थिति को स्थिर रखते हुए समतल दर्पण को 0 कोण पर घुमा दिया जाए तो परावर्तित किरण 20 कोण से घूम जाती है।
- यदि दो समतल दर्पण समानांतर रखे जाएँ तो उनके बीच में रखी गई वस्तु के अनंत प्रतिबिंब बनते हैं।
- यदि दो समतल दर्पण ऐसे रखे गए हों कि उनके बीच निर्मित कोण समकोण (90°) हो तो ऐसी स्थिति में इन दर्पणों के बीच रखी वस्तु के प्रतिबिंबों की संख्या 3 होती है।
समतल दर्पण का उपयोग
- अपना प्रतिबिंब देखने, सोलर कुकर, पेरिस्कोप में इत्यादि ।
गोलीय दर्पण से प्रकाश की किरणों का परावर्तन एवं निर्मित प्रतिबिंब
- गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के केंद्र को ‘दर्पण का ध्रुव’ कहते हैं।
- इसे प्राय: P अक्षर से निरूपित करते हैं।
- गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ जिस गोले का भाग होता है,
- उस गोले का केंद्र गोलीय दर्पण का वक्रता केंद्र कहलाता है।
- इसे C अक्षर से निरूपित करते हैं। यह परावर्तक पृष्ठ के बाहर होता है।
- गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ जिस गोले का भाग है,
- उसकी त्रिज्या दर्पण की वक्रता त्रिज्या कहलाती है।
- इसे R अक्षर से निरूपित करते हैं।
- ध्रुव तथा वक्रता त्रिज्या से गुजरने वाली सीधी रेखा को मुख्य अक्ष कहते हैं।
अवतल दर्पण (Concave Mirror) से निर्मित प्रतिबिंब की विशेषताएँ:
(1) यदि वस्तु अनन्त पर स्थित हो :
- वस्तु AB के B बिंदु से चलने वाली प्रकाश (Light)किरण यदि मुख्य फोकस से गुजरती है
- तब यह परावर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के समान्तर हो जाती है
- बिंदु B से चलने वाली दूसरी प्रकाश किरण यदि वक्रता केंद्र से गुजरती है
- तब यह परावर्तन के पश्चात् पुनः उसी मार्ग पर लौटती है तथा प्रथम परावर्तित प्रकार किरण को बिंदु B’ पर प्रतिच्छेद करती है जिससे प्रतिबिम्ब A’B’ की रचना होती है।
- प्रतिबिम्ब वस्तु से छोटा बनेगा।
- प्रतिबिम्ब उल्टा होगा।
- प्रतिबिम्ब वास्तविक होगा।
- प्रतिबिम्ब मुख्य फोकस पर बनता है।
(2) यदि वस्तु अनंत व वक्रता केंद्र पर स्थित हो :-
- यदि वस्तु को अनन्त व वक्रता केंद्र के मध्य रखने पर बिंदु B से चलने वाली प्रथम प्रकाश किरण मुख्य फोकस से गुजरती है तथा परावर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के समान्तर हो जाती है तथा दूसरी प्रकाश किरण वक्रता केंद्र से गुजरती है।
- यह परावर्तन के पश्चात् प्रथम परावर्तित प्रकाश किरण को बिंदु B’ पर प्रतिच्छेद करते हुए उसी मार्ग से लौट आती है तथा प्रतिबिम्ब A’B’ की रचना होती है।
- प्रतिबिम्ब वस्तु से छोटा होगा।
- प्रतिबिम्ब उल्टा बनेगा।
- प्रतिबिम्ब वास्तविक होगा।
- वक्रता केंद्र तथा फोकस के मध्य बनेगा।
(3) यदि वस्तु वक्रता केंद्र पर स्थित हो :-
- यदि वस्तु को वक्रता केंद्र तथा फोकस के मध्य रखा जाता है
- तब वस्तु AB के B बिंदु से चलने वाली प्रथम प्रकाश किरण मुख्य अक्ष के समान्तर होती है
- अत: यह परावर्तन के पश्चात् मुख्य फोकस से गुजरती है।
- बिन्दु B से चलने वाली दूसरी प्रकाश किरण मुख्य फोकस से गुजरती है
- अत: यह परावर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के समान्तर लौटती है तथा प्रथम परावर्तित प्रकाश किरण को B’ पर प्रतिच्छेद करती है तथा प्रतिबिम्ब A’B’ की रचना होती है।
- यह प्रतिबिम्ब वस्तु के आकार से बढ़ा , उल्टा तथा वास्तविक होता है।
- यह प्रतिबिम्ब अनंत व वक्रता केंद्र के मध्य बनता है।
(5) यदि वस्तु फोकस पर स्थित हो :
- यदि वस्तु को दर्पण के फोकस पर रखा जाता है तब वस्तु AB को B बिंदु से चलने वाली प्रथम प्रकाश किरण मुख्य अक्ष के समांतर होती है
- जिससे यह परावर्तन के पश्चात् मुख्य फोकस से गुजरती है।
- B बिंदु से चलने वाली दूसरी प्रकाश किरण वक्रता केंद्र से गुजरती है
- अत: यह परावर्तन के पश्चात् उसी मार्ग से लौटती है तथा प्रथम परावर्तित किरण के समान्तर होती है।
- दोनों परावर्तित प्रकाश किरणें अनंत पर वस्तु से बड़ा उल्टा तथा वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाती है।
(6) यदि वस्तु फोकस व ध्रुव के मध्य स्थित हो :
- यदि वस्तु को फोकस व ध्रुव के मध्य रखा जाता है तब वस्तु AB के B बिंदु से चलने वाली प्रथम प्रकाश (Light) किरण मुख्य अक्ष के समान्तर होती है
- अत: यह परावर्तन के पश्चात् मुख्य फोकस से आती हुई प्रतीत होती है तथा बिम्ब B से आने वाली दूसरी प्रकाश किरण वक्रता केंद्र के शीर्ष से गुजरती है
- अत:यह परावर्तन के पश्चात् वक्रता केन्द्र से आती हुई प्रतीत होती है इन दोनों परावर्तित प्रकाश किरणों से बनने वाला प्रतिबिम्ब वस्तु से बड़ा , सीधा तथा आभासी होता है तथा यह दर्पण के पीछे बनता है।
नोट: किरण आरेख में यदि किरणें वास्तविक रूप से एक दूसरे से मिलती हैं तो प्रतिबिंब वास्तविक बनता है, जबकि यदि किरण आभासी रूप से मिलती हुई प्रतीत होती हैं तो आभासी प्रतिबिंब बनता है। आभासी किरणों को डैश लाइन से प्रदर्शित किया जाता है।
अवतल दर्पण का उपयोग
- इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में, दंत चिकित्सकों द्वारा दाँत का बड़ा प्रतिबिंब देखने के लिये सेविंग मिरर के रूप में।
- टॉर्च, सर्चलाइट तथा वाहनों की हेडलाइटों (headlights) में।
- सौर भट्ठियों में सूर्य के प्रकाश को केंद्रित करने के लिये। सोलर कुकर में।
उत्तल दर्पण से निर्मित प्रतिबिंब की विशेषताएँ
- उत्तल दर्पण द्वारा निर्मित प्रतिबिंब की दो स्थितियों पर हम विचार करते हैं
- प्रथम, यदि वस्तु अनंत पर रखी होती है तो उत्तल दर्पण द्वारा निर्मित प्रतिबिंब बहुत छोटा (बिंदु के आकार का), आभासी तथा सीधा होता है।
- इस प्रतिबिंब की स्थिति उत्तल दर्पण के फोकस पर दर्पण के पीछे की ओर होती है।
उत्तल दर्पणों का उपयोग
- वाहनों में पार्श्व शीशे के रूप में इनका प्रमुख उपयोग होता है, क्योंकि इससे निर्मित प्रतिबिंब सीधा होता है।
- दूरदर्शी में धूप के चश्मों में प्रकाश परावर्तक के रूप में।
प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light)
- प्रकाश की किरणें जब तिर्यक रूप से आपतित होकर एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं तो दूसरे माध्यम में प्रकाश किरणों पथ में परिवर्तन होता है।
- इस घटना को ‘प्रकाश का अपवर्तन’ कहते हैं। वस्तुतः यह घटना माध्यम में परिवर्तन से प्रकाश की चाल में परिवर्तन होने से होती है।
- माध्यम जितना सघन होगा, प्रकाश की चाल उतनी ही कम होगी।
- निर्वात में प्रकाश की चाल सर्वाधिक होती है।
- एक माध्यम दूसरे माध्यम में संचरण के दौरान प्रकाश की आवृत्ति अपरिवर्तित रहती है।
अपवर्तन के नियम (Law of Refraction) स्नेल महोदय ने अपने प्रयोगों के आधार पर अपवर्तन के संबंध में निम्नलिखित नियम प्रतिपादित किया
- आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा दोनों माध्यमों के पृष्ठ के आपतन बिंदु पर अभिलंब सभी एक ही तल में होते हैं।
- आपतन कोण की ज्या (Sine) तथा अपवर्तन कोण की ज्या (Sine) का अनुपात स्थिर रहता है।
Sin i/Sin r=स्थिरांक (Constant)
नोट: इस स्थिरांक को पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहते हैं।
निरपेक्ष अपवर्तनांक
- निर्वात में प्रकाश की चाल तथा किसी अन्य माध्यम में प्रकाश की चाल के अनुपात को ‘अपवर्तनांक’ कहते हैं।
निरपेक्ष अपवर्तनांक (u)=निर्वात में प्रकाश की चाल/माध्यम में प्रकाश की चाल
प्रकाश के अपवर्तन के उदाहरण
- जब किसी छड़ का कुछ हिस्सा जल में डूबा रहता है तो वह टेढ़ी दिखाई देती है।
- सूर्यास्त के बाद एवं सूर्योदय से कुछ समय पूर्व सूर्य का दिखाई देना।
- जल के अंदर डूबी हुई मछली वास्तविक गहराई से कुछ ऊपर दिखती है।
- रात्रि के समय तारों का टिमटिमाना आदि।
प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection )
- जब प्रकाश की किरणें सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती हैं तो अपवर्तित होने के पश्चात् अभिलंब से दूर हटने लगती हैं।
- जैसे-जैसे हम आपतन कोण का मान बढ़ाते जाते हैं, अपवर्तित किरणें अभिलंब से दूर हटती जाती हैं।
- इसी क्रम में एक ऐसी स्थिति आती है कि एक विशेष आपतन कोण के लिये अपवर्तन कोण 90° हो जाता है।
- अपवर्तन कोण का मान 90° से अधिक नहीं हो सकता।
- अतः अब आपतन कोण का मान बढ़ाने पर प्रकाश किरणों का परावर्तन होने लगता है। यह घटना ‘पूर्ण आंतरिक परावर्तन’ कहलाती है।
- आपतन कोण का वह मान, जिसके लिये अपवर्तन कोण का मान 90° होता है। उसे ‘क्रांतिक कोण’ (Critical angle) कहते हैं।
- पूर्ण आंतरिक परावर्तन में प्रकाश की संपूर्ण मात्रा परावर्तित हो जाती है। प्रकाश (Light) की संपूर्ण मात्रा परावर्तित होने से, जहाँ से प्रकाश परावर्तित होता है, वह स्थान बहुत चमकने लगता है।
- पूर्ण आंतरिक परावर्तन के लिये दो स्थितियों का होना अनिवार्य है
- प्रकाशिक किरणें सघन माध्यम से विरल माध्यम में जा रही हो ।
- आपतन कोण, क्रांतिक कोण से बड़ा होना चाहिये।
प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के उदाहरण
- गहरे काले रंग से पोते गए पृष्ठ का चमकना ।
- काँच के चटके हुए हिस्से का चमकीला दिखाई देना।
- पानी में वायु से भरे बुलबुले का चमकना ।
- मृगमरीचिका (Mirage) का बनना।
- हीरे का चमकना इत्यादि।
प्रकाशिक तंतु (Optical Fiber)
- प्रकाशिक तंतु वह युक्ति (Device) है, जिसके माध्यम से प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटना अनुप्रयोग में लाकर प्रकाश संकेतक (Signal) को उसकी तीव्रता में बिना किसी विशेष क्षय के एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है।
प्रकाशिक तंतु का उपयोग
- विद्युत संकेतों को प्रकाश संकेतों में परिवर्तित कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रेषित करने में।
- शरीर के आंतरिक भागों की जानकारी प्राप्त करने के लिये प्रयोग में लाए जाने वाले यंत्र इंडोस्कोप भी प्रकाश (Light) के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के सिद्धांत पर आधारित हैं।
प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of light)
- जब प्रकाश की किरणें वायुमंडल से गुजरती हैं तो वायुमंडल में उपस्थित छोटे कणों से टकराकर प्रकीर्णित हो जाती हैं।
- लार्ड रैल महोदय ने बताया कि जिस प्रकाश की तरंगदैर्ध्य सबसे कम होगी वह सबसे अधिक प्रकीर्णित होगा और जिस प्रकाश की तरंगदैध्य सबसे अधिक होगी, वह सबसे कम प्रकीर्णित होगा।
- प्रकाशिक किरणों के समूह में बैंगनी रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे कम परंतु होती है। अतः बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है।
- आकाश में बैंगनी प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक होता है
- हमारी आँखें बैंगनी रंग की अपेक्षा नीले रंग के प्रति अधिक संवेदनशील (सुग्राही) हैं। इसलिये आकाश हमें नीला दिखाई देता है।
- लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन न्यूनतम होने के कारण ही यातायात, रेलवे के सिंग्नल के लिये इसी रंग का प्रयोग किया जाता है।
- सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सूर्य के लाल दिखाई देने की घटना भी प्रकाश के प्रकीर्णन से संबंधित है।
अंतरिक्ष यात्रियों को आकाश काला दिखाई देता है, क्योंकि वायुमंडल अनुपस्थित होता है।
प्रकाश का विवर्तन (Diffraction of Light)
- यदि हम प्रकाश के मार्ग में कोई अवरोध रख देते हैं तो प्रकाश (Light) अवरोध के किनारों से मुड़कर आगे बढ़ता है। प्रकाश के इस गुण को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं।
- यदि प्रकाश (Light) के मार्ग में रखा गया अवरोध बहुत बड़ा है तो विवर्तन नगण्य होता है, परंतु यदि प्रकाश के मार्ग में रखा गया अवरोध प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की कोटि (Order) का है तो विवर्तन स्पष्ट होता है।
- विवर्तन की घटना से प्रकाश के तरंग प्रवृत्ति की पुष्टि होती है।
प्रकाश तरंगों का ध्रुवण (Polarisation Of Light Waves)
- प्रकाश तरंगों द्वारा प्रदर्शित ध्रुवण की घटना से इस बात की पुष्टि होती है कि प्रकाश तरंगें अनुप्रस्थ तरंगें हैं।
- ध्रुवण अनुप्रस्थ तरंगों द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली घटना है।
- ध्रुवित प्रकाश में कंपन, तरंग संचरण की दिशा के लंबवत् में एक ही तल दिशा में होते हैं।
प्रकाश का व्यतिकरण (Interference of Light)
- जब समान या लगभग समान आवृत्ति वाली प्रकाश की किरणें एक ही माध्यम में समान दिशा में चलती हैं तो उन तरंगों के अध्यारोपण से प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन हो जाता है।
- इस घटना को प्रकाश का ‘व्यतिकरण’ कहते हैं। प्रकाश के व्यतिकरण के कारण ही साबुन के बुलबुले रंगीन दिखाई देते हैं।
प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion of light)
- श्वेत प्रकाश का अपने अवयवी रंगों में विभक्त होने की क्रिया वर्ण-विक्षेपण कहलाती है।
- जब श्वेत प्रकाश की किरणें किसी प्रिज्म से गुजरती है तो अपवर्तन के पश्चात् प्रिज्म के आधार की ओर झुक जाती हैं और विभिन्न रंगों में बँट जाती हैं।
- प्रकाश के वर्ण विक्षेपण की घटना होने के पीछे प्रमुख कारण किसी पारदर्शी पदार्थ में अलग-अलग रंगों के होना है।
- प्रकाश की चाल अलग-अलग किसी पदार्थ का अपवर्तनांक विभिन्न रंगों के प्रकाश के लिये अलग-अलग हो जाता है।
- किसी पारदर्शी पदार्थ में विभिन्न रंगों के प्रकाश के अपवर्तनांक एवं उनकी चाल में विपरीत संबंध होता है अर्थात् यदि अपवर्तनांक बढ़ेगा तो चाल कम होगी।
- सूर्य के प्रकाश में बैंगनी रंग का विक्षेपण सर्वाधिक तथा लाल रंग का विक्षेपण सबसे कम होता है।
- अलग-अलग पदार्थों का अपर्वतनांक अलग-अलग होता है।
- अपवर्तनांक बढ़ने के साथ-साथ प्रकाश की चाल कम होती जाती है।
- लाल रंग के प्रकाश का वेग सबसे अधिक तथा अपवर्तनांक सबसे कम होता है,
- जबकि बैंगनी रंग के प्रकाश की चाल सबसे कम और अपवर्तनांक सर्वाधिक होता है।
इंद्रधनुष (Rainbow)
- इंद्रधनुष परावर्तन, पूर्ण आंतरिक परावर्तन और अपवर्तन द्वारा वर्ण विक्षेपण की परिघटना है। यह दो प्रकार का होता है
प्राथमिक इंद्रधनुष (Primary Rainbow)
- जब वर्षा की बूँदों पर आपतित सूर्य के किरणों का दो बार अपवर्तन और एक बार आंतरिक परावर्तन होता है तो इसका निर्माण होता है।
- इसमें लाल रंग बाहर की ओर और बैंगनी रंग अंदर की ओर होता है। बैंकको
द्वितीयक इंद्रधनुष (Secondary Rainbow)
- जब वर्षा बूँदों पर सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन और दो आंतरिक परावर्तन होता है तो इसका निर्माण होता है।
- इसमें बाहर की ओर बैंगनी व अंदर की ओर लाल रंग होता है।
- यह प्राथमिक इंद्रधनुष की अपेक्षा कुछ धुँधला होता है।
प्राथमिक, द्वितीयक तथा पूरक रंग (Primary, Secondary and Complementary Colours)
- लाल, हरे एवं नील रंग को प्राथमिक रंग कहते हैं।
- रंगीन टेलीविजन में प्राथमिक रंग (RGB) का प्रयोग होता है।
- दो प्राथमिक रंगों को आपस में मिलाने से प्राप्त रंग को ‘द्वितीयक रंग’ कहते हैं।
- लाल + नीला मैजेंटा
- हरा + नीला पीकॉक नीला (स्यान)
- लाल + हरा =पीला
- जब दो रंगों को मिलाने से श्वेत रंग प्राप्त हो ऐसे रंगों को ‘पूरक रंग’ कहते हैं।
- लाल + हरा + नीला = सफेद
- नीला + पीला = सफेद
- हरा + मैजेंटा = सफेद
- लाल + पीकॉक नीला सफेद
लेंस (Lens)
- एक अथवा दो गोलीय पृष्ठों से युक्त कोई पारदर्शी माध्यम ‘लेंस’ कहलाता है अर्थात् लेंस में कम-से-कम एक गोलीय पृष्ठ होना चाहिये।
द्विअवतल लेंस (Biconcave Lens)
- यदि दोनों पृष्ठ अंदर की ओर वक्रित हों तो ऐसे लेंस को ‘द्विअवतल लेंस’ कहते हैं।
- ऐसे लेंस प्रकाश की किरणों को अपसारित (diverge) करते हैं।
- अतः इस प्रकार के लेंस को ‘अपसारी लेंस’
द्विउत्तल लेंस (Biconvex lens)
- यदि दोनों पृष्ठ बाहर की ओर वक्रित हों तो ऐसे लेंस को ‘द्विउत्तल लेंस’ कहते हैं।
- ये प्रकाश की किरणों को अभिसारित करते हैं।
- अतः इस लेंस को ‘अभिसारी लेंस’ भी कहते हैं ।
लेंस से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण शब्द
- मुख्य अक्ष (Principal Axis ) किसी लेंस के दोनों वक्रता केंद्रों से गुजरने वाली काल्पनिक एव सीधी रेखा को ‘मुख्य अक्ष’ कहते हैं।
प्रकाशिक केंद्र (Optical Center)
- यह लेंस का केंद्रीय बिंदु है।
मुख्य फोकस व फोकस दूरी
- लेंस पर आपतित समानांतर प्रकाश किरणें अपवर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष पर स्थित किसी एक बिंदु पर अभिसरित होती हैं।
- मुख्य अक्ष पर स्थित यह बिंदु लेंस का मुख्य फोकस कहलाता है।
नोट: किसी लेंस के मुख्य फोकस एवं प्रकाशिक केंद्र के बीच की दूरी को लेंस की ‘फोकस दूरी’ कहते हैं।
अवतल लेंस का मुख्य फोकस
- अवतल लेंस पर आपतित समानांतर प्रकाश किरणें, अपवर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के एक बिंदु (चित्र में बिंदु F1) से अपसरित होती हुई प्रतीत होती हैं, उस बिंदु को अवतल लेंस का मुख्य फोकस कहते हैं।
अवतल लेंस द्वारा निर्मित प्रतिबिंब
- यदि वस्तु अनंत पर रखी हो तो लेंस द्वारा निर्मित प्रतिबिंब फोकस (F, पर बनता है।
- जो आकार में अत्यधिक छोटा (बिंदु आकार का) आभासी तथा सीधा होता है।
- यदि वस्तु अनंत एवं प्रकाशिक केंद्र 0 के बीच में रखा हो तो प्रतिबिंब का निर्माण फोकस F, तथा प्रकाशिक केंद्र O के बीच में होता है।
- जो आकार में छोटा, आभासी तथा सीधा होता है।
उत्तल लेंस से प्रतिबिंब का बनना
- यदि वस्तु अनंत पर हो तो वस्तु का प्रतिबिंब फोकस (F2) पर बिंदु के आकार का वास्तविक और उल्टा बनेगा।
- यदि वस्तु अनंत और 2F2 केबीच हो तो प्रतिबिम्ब फोकस F2और 2F2 के बीच वास्तविक छोटा और उल्टा बनेगा
- यदि वस्तु 2F2 पर स्थित हो तो प्रतिबिम्ब फोकस बिंदु 2F2 पर वास्तविक समानतथा उल्टा बनेगा
- यदि 2F2 और F1 के बीच वस्तु हो तो प्रतिबिम्ब फोकस 2F2 से दूर वास्तविक बड़ा और उल्टा बनेगा
- यदि वस्तु फोकस F1 पर हो तो वस्तु का प्रतिबिम्ब अनंत पर पर बहुत बड़ा वास्तविक और उल्टा बनेगा
- वस्तु जब फोकस F1 और प्रकाशितकेंद्र (O) के बीच हो तो प्रतिबिम्ब वस्तु की ओर सीधा बड़ा और आभासी बनता है
लेंस की क्षमता (Power of lens )
- किसी लेंस की क्षमता, लेंस द्वारा प्रकाश किरणों को अभिसरण अथवा अपसरण करने की मात्रा होती है।
P= 1/f
P – लेंस की क्षमता F – लेंस की फोकस दूरी
- लेंस की क्षमता का SI पद्धति में मात्रक डाइऑप्टर (Diopter) होता है, इसे अक्षर D द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
- यदि लेंस की फोकस दूरी 1 मीटर हो तो लेंस की क्षमता 1 डाइऑप्टर होगी।
- उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक होती है। अवतल लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है।
लेंस सूत्र
1/f =1/ V= 1 /u
- v-प्रतिबिंब की दूरी, f – फोकस दूरी u – वस्तु की दूरी,
- लेंस को किसी द्रव में डुबाते हैं तो उसकी क्षमता और फोकस दूरी में परिवर्तन होता है।
- यह परिवर्तन द्रव के अपवर्तनांक पर निर्भर करता है।
- यदि M अपवर्तनांक वाले लेंस को M’ अपवर्तनांक वाले द्रव में डुबाया जाता है तो निम्नलिखित तीन स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं
- जब द्रव का अपवर्तनांक M’ लेंस के अपवर्तनांक M से कम हो तो लेंस की क्षमता घट जाती है अर्थात् उसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है, जबकि लेंस की प्रकृति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
- जब द्रव का अपवर्तनांक M’ लेंस के अपवर्तनांक M के बराबर हो तो लेंस की क्षमता समाप्त हो जाती है और यह एक पारदर्शी प्लेट की भाँति व्यवहार करेगा।
- जब द्रव का अपवर्तनांक M’ लेंस के अपवर्तनांक M से अधिक हो तो फोकस दूरी बढ़ जाएगी तथा क्षमता घट जाएगी।
- इसके साथ-साथ लेंस की प्रकृति भी बदल जाती है।
- उत्तल लेंस अवतल लेंस की तरह और अवतल लेंस उत्तल लेंस की तरह व्यवहार करेगा।
- उदाहरणस्वरूप पानी का बुलबुला उत्तल लेंस की तरह दिखाई देता है, परंतु यह अवतल लेंस की तरह व्यवहार करता है।
आवर्धन (Magnification)
- यह वस्तु के प्रतिबिंब की ऊँचाई तथा वस्तु की ऊँचाई का अनुपात होता है।
आवर्धन (M) =प्रतिबिंब की ऊँचाई/वस्तु की ऊँचाई
प्रकाशिक यंत्र (Optical Instrument)
सरल सूक्ष्मदर्शी (Microscope)
- यह कम फोकस दूरी वाला उत्तल लेंस होता है।
- सरल सूक्ष्मदर्शी द्वारा निर्मित प्रतिबिंब वस्तु से बड़ा, आभासी और सीधा होता है।
- जब सूक्ष्मदर्शी में दो उत्तल लेंसों का प्रयोग कर दो भागों में आवर्द्धन प्राप्त करते हैं तो तब इसे ‘संयुक्त सूक्ष्मदर्शी’ (Compound Microscope) कहते हैं।
टेलीस्कोप (Telescope)
- दूरदर्शक अथवा टेलीस्कोप का उपयोग दूर की वस्तुओं को कोणीय आवर्धन प्रदान करने के लिये किया जाता है।
- किसी वस्तु का कोणीय आवर्धन ही यह निर्धारित करता है कि वह वस्तु कितनी बड़ी दिखाई देगी।
दृष्टिदोष (Defects of Vision)
- कुछ विशेष परिस्थितियों में नेत्र धीरे-धीरे अपनी समंजन क्षमता खो देते हैं, नेत्र में अपवर्तन संबंधी विकार होने से दृष्टिदोष उत्पन्न होते हैं।
- मुख्य रूप से तीन दृष्टिदोष होते हैं- (क) निकट दृष्टिदोष, (ख) दूर दृष्टिदोष, (ग) जरा-दृष्टिदोष
किसी सामान्य व्यक्ति के आँख की फोकस दूरी लगभग 17 से 22 मिलीमीटर के बीच होती है।
निकट दृष्टि दोष (Short Sightedness / Myopia)
- जब कोई व्यक्ति इस दोष से प्रभावित होता है तो वह पास में रखी वस्तु को तो स्पष्टता से देख लेता है, किंतु दूर रखी वस्तु को आसानी से नहीं देख पाता है।
कारण तथा उपाय
- अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी कम हो जाती है या नेत्र का गोलक लंबा हो जाता है।
- ऐसे दोष से प्रभावित व्यक्ति के नेत्र में दूर स्थित वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर न बनकर रेटिना के पहले बनता है।
- उचित क्षमता वाले अवतल लेंस को प्रयुक्त कर इस दोष का निवारण किया जा सकता है।
दूर दृष्टिदोष (Long-sightedness/Hypermetropia)
- इस दोष से प्रभावित व्यक्ति, दूर रखी वस्तुओं को तो आसानी से देख सकता है, परंतु पास रखी वस्तु को स्पष्टता से नहीं देख पाता है।
कारण तथा उपाय
- अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का बहुत अधिक बढ़ जाना या नेत्र के गोलक का छोटा हो जाना।
- इस दोष से प्रभावित व्यक्ति के नेत्र के पास में रखी वस्तु का प्रतिबिंब नेत्र की रेटिना पर न बनकर रेटिना के पीछे बनता है।
- उपयुक्त क्षमता वाले उत्तल लेंस को उपयोग में लाकर इस दोष का निवारण किया जा सकता है।
जरा दृष्टि दोष (Presbyopia)
- वृद्धावस्था में आँख की समंजन क्षमता में कमी अथवा समाप्त होने से व्यक्ति न तो दूर की वस्तु स्पष्टता से देख पाता है और न ही पास की।
- उचित क्षमता वाले द्विफोकल लेंस की सहायता से इस समस्या का निवारण किया जा सकता है।
अबिंदुकता (Astigmatism)
- इस दृष्टिदोष का कारण आँख के गोलक की असममित वक्रता है।
- जिसके कारण मुख्य प्रतिबिंब के अतिरिक्त एक अन्य धुँधला प्रतिबिंब बनता है।
- वर्णांधता (Colour Blindness) एक आनुवंशिक रोग है, जिसमें व्यक्ति लाल तथा हरे रंग में विभेद नहीं कर पाता है।
- इसे किसी लेंस के प्रयोग से सही नहीं किया जा सकता है।